मित्रो, कभी-कभी चौंका देने वाली घटना हो जाती है। शुरुआत सामान्य थी... एक आत्मीय आमंत्रण प्रिय साहिबा नासिर जी की ओर से जिसमें उन्होंने घर पर आमंत्रित किया था अपने बड़े भाई श्री के. एस. नूर , एडमिरल भारतीय नौसेना (रिटा.) जी के साथ एक 'टी-पार्टी' के लिए। एक सैन्य डिसिप्लिन वाली पार्टी की कल्पना थी और एडमिरल नूर के स्वभाव का अनुमान लगाना कठिन था। लेकिन जब मैं बहन साहिबा जी के घर पहुंची और नूर साहब से जब परिचय कराया गया तो उनकी सादगी सहजता देखकर मैं चकित रह गई। कुछ चर्चा- परिचर्चा के बाद और पर्तें खुलीं, तो पता चला कि नूर साहब ख़ुद भी बेहतरीन शायरी करते हैं। वे कहानियां भी लिखते हैं। उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। यह सब जानना सुखद आश्चर्य था। मैंने भी उन्हें अपनी तीन पुस्तकें भेंट की।
शेरो-शायरी और गानों का दौर चला।
बाहरहाल, इस ख़ुशनुमा मुलाक़ात की जो सबसे यादगार बात थी वह यह कि नौसेना के सर्वोच्च पद से सेवानिवृत्त होने वाला व्यक्ति भी एकदम सरल और सहजता भरा हो सकता है, यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। नूर साहब का हंसमुख स्वभाव बिलकुल अपनी बहन साहिबा जी और बहनोई नासिर सिद्दकी की तरह।
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