"जब अनुभव, संवेदनाएं और विचार एकसाथ काम करते हुए किसी काव्य का सृजन करते हैं तो वह कविता युगसाक्षी काव्य के रूप में प्रकट होती है। नरेश मेहता ने अपने युग को न केवल जिया अपितु अतीत के कथानकों पर रख कर विश्लेषित और आंकलित भी किया। चाहे ‘‘संशय की एक रात’’ हो या ‘‘प्रवाद पर्व’’ हो, वे गद्य या पद्य के शिल्प से ऊपर उठ कर मानव प्रजाति के सांस्कृतिक विकास के धनात्मक एवं ऋणात्मक पक्ष को सामने रखने का पूरा यत्न करते हैं। ... नरेश मेहता उस ‘‘भाव-प्रजाति के कवि’’ थे जो किसी वाद या खेमे में स्वयं को खड़ा किए बिना अपनी बात रखने का साहस रखते थे।" विषय विशेषज्ञ के रूप में मैंने अपने ये विचार रखे महाराज छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर के हिंदी विभाग एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा कवि नरेश मेहता के जन्म शताब्दी के अवसर पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन के प्रथम तकनीकी सत्र में । 25 नवंबर 2022 को।
मेरा विषय था, "कवि नरेश मेहता और उनकी भाव-प्रजाति"।
सत्र अध्यक्षता डॉ देवेंद्र शुक्ल अध्यक्ष सूचना एवम् भाषा प्रौद्योगिकी विभाग, केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा ने की। मेरे यानी डॉ (सुश्री) शरद सिंह के साथ ही, निराला पीठ के निदेशक डॉ श्रीराम परिहार ने, सागर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य आनंद प्रकाश त्रिपाठी, ग्वालियर के डॉ विष्णु अग्रवाल ने अपने विचार रखे। सत्र का संचालन किया हिंदी विभाग की प्रो गायत्री बाजपेयी ने। संगोष्ठी के संयोजक थे प्रो बहादुर सिंह परमार जी ।
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सुंदर समारोह
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