प्रस्तुत है आज 04.04.2023 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई श्री विनीत मोहन औदिच्य के द्वारा अनूदित सॉनेट संग्रह "काव्य कादम्बिनी" की समीक्षा...
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पुस्तक समीक्षा
पाश्चात्य साॅनेट की संवेदनशील दुनिया का काव्यात्मक परिचय
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - काव्य कादम्बिनी
अनुवादक - विनीत मोहन औदिच्य
प्रकाशक - अयन प्रकाशन, जे 19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
मूल्य - 400/-
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साॅनेटियर कवि एवं शायर विनीत मोहन औदिच्य का पाश्चात्य काव्य शैली साॅनेट के प्रति विशेष लगाव है। हिन्दी में उनके द्वारा अनूदित सॉनेट संग्रह ‘‘प्रतीची से प्राची पर्यंत’’ (2020), कारवां ए सुखन (2021), हिंदी में अनूदित सॉनेट संग्रह ‘‘ओ प्रिया’’ (2021), एकल सॉनेट संग्रह ‘‘सिक्त स्वरों के सॉनेट’’ (2022) के बाद अब आंग्ल भाषा से हिन्दी में अनूदित सार्वकालिक श्रेष्ठ साॅनेट्स का उनका संग्रह ‘‘काव्य कादम्बिनी’’ प्रकाशित हुआ है। कुल 101 कवियों के साॅनेट्स के इस अनुवाद की यह विशेषता है कि यह काव्यात्मक अनुवाद है। अर्थात् कविता का अनुवाद कविता के रूप में ही किया गया है। इस तरह अनूदित कविताओं की भाषा बदली है किन्तु शैली और केन्द्रीय भाव यथावत है। फिर भी यह भाषान्तर मात्र नहीं वरन अनुवाद ही है।
सॉनेट अंग्रेजी कविता में सबसे प्रसिद्ध रूपों में से एक है। सॉनेट इटैलियन शब्द ‘‘सोन्नेट्टो’’ का लघु रूप है। यह छोटी धुन के साथ मेण्डोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य) पर गायी जाने वाली कविता है। सॉनेट का जन्म कहां हुआ, इस पर मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सॉनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों (इपीग्राम) से हुआ होगा। प्राचीन काल में इपीग्राम का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इंग्लैण्ड और स्कॉटलैंड में प्रचलित बैले से पहले सॉनेट का अस्तित्व रहा है। यह भी मान्यता है कि यह सम्बोधिगीत का ही इटैलियन रूप है। एक मान्यता कहती है कि इस विधा का जन्म सिसली में हुआ और इसे जैतून के वृक्षों की छंटाई करते समय गाया जाता था। तेरहवीं शताब्दी के मध्य में सॉनेट का वास्तविक रूप सामने आया। फ्रॉ गुइत्तोन को सॉनेट का प्रणेता माना जाता है। इटली के कवि केपल लॉप्ट ने सॉनेट की खोज के लिए फ्रॉ गुइत्तोन को ‘काव्य साहित्य का कोलम्बस’ कहा है। फ्रॉ गुइत्तोन ने स्थापित किया कि सॉनेट की प्रत्येक पंक्ति में दस मात्रिक ध्वनियाँ होना चाहिए। गुइत्तोन के सॉनेट में कुल चैदह चरण होते हैं जो दो भागों में बॅंटे होते हैं। सॉनेट को फ्रांस के कवियों, इंग्लैंड में सरे और स्पेन्सर तथा स्पहानी कवियों ने भी अपनाया। जर्मनी में पेट्रार्कन शैली के सॉनेट रचे गये। अंग्रेजी में इसे सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन, वर्डसवर्थ और कीट्स ने रचा।
सोलहवीं सदी में सर्वप्रथम थामस व्याट और हेनरी हावर्ड (सरे) ने अँग्रेजी में सॉनेट लिखे। ये दोनों इटली में निवास के दौरान पेट्रार्का की कविताओं से प्रभावित हुए। थामस व्याट इटैलियन मॉडल को अपनाकर सॉनेट लिखते रहे। स्पेन्सर ने इटैलियन और आरंभिक अँग्रेजी सॉनेट संरचनाओं को मिलाकर नया सॉनेट फॉर्म तैयार किया और इसी बदले रूप के साथ उन्होंने प्रेम सॉनेट ‘‘एमोरेट्टी’’शीर्षक से लिखे। एलिजाबेथ काल में बड़ी संख्या में लेखकों ने सॉनेट लिखे। फिलिप सिडनी ने इन्हें पूर्णता और सुन्दरता प्रदान की। स्पेन्सर के फॉर्मेट को शेक्सपियर और मिल्टन ने नहीं अपनाया क्योंकि इसमें छांदिक स्वतंत्रता नहीं थी। शेक्सपियर ने डेनियल और ड्राइटन के सॉनेट ढांचे को अपनाया। शेक्सपियर के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बजाय तीन चतुष्पदियों और एक द्विपदी लय से बँधे हैं। मिल्टन के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बीच नैरन्तर्य के लिए जाने जाते हैं। मिल्टन की एक रचना ‘‘आॅन हिज़ ब्लाइंडनेस’’ में इतालवी प्रारूप देखा जा सकता है। भारतीय उपमहाद्वीप में सॉनेट असमी, बंगाली, डोंगरी, अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, सिन्धी, उर्दू आदि सभी भाषाओं में लिखे गये। कवि त्रिलोचन शास्त्री को ‘हिन्दी सॉनेट’ का साधक माना जाता है। उन्होंने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की। अनुवादक विनीत मोहन औदिच्य ने स्वयं हिन्दी में कई साॅनेट्स लिखे हैं।
‘‘काव्य कादम्बिनी’’ के ब्लर्ब पर कवि रामेश्वर काम्बोज ‘‘हिमांशु’’ ने इस संग्रह तथा अनुवादक के संबंध में उचित लिखा है कि-‘‘साहित्य की कोई भी विधा या शैली हो, ऐसे सृजक से जुड़कर वह सार्वकालिक अभिव्यक्ति का रूप ले सकती है। विनीत मोहन औदिच्य जी ने ‘‘काव्य कादम्बिनी’’ के अनूदित सॉनेट से यह सिद्ध कर दिया है। इस संग्रह के 101 सॉनिटियर की रचनाएं इस पर मुहर लगाती हैं। अंग्रेजी जैसी भाषा के विभिन्न देश और संस्कृति से जुड़े कवियों का अनुवाद, वह भी सॉनेट के प्रारूप में करना, सचमुच श्रमसाध्य और भावसाध्य कार्य है। यहाँ केवल शाब्दिक अनुवाद से ही निर्वाह नहीं हो सकता। उस देश के मिथक, वहां का जीवन और सभ्याचार भी उसके अनिवार्य अंग हैं। अनुवाद को छन्द के कलात्मक कलेवर में सँजोना और भी चुनौतीपूर्ण कार्य है। विनीत मोहन जी ने इस नैष्ठिक अनुष्ठान को पूरी तन्मयता से पूरा किया है। सहृदय पाठक इसका रसास्वादन करके आनन्द ले सकेंगे, ऐसी आशा है।’’
निश्चितरूप से पाश्चात्य साॅनेट्स का काव्यात्मक अनुवाद कर के विनीत मोहन औदिच्य ने महत्वपूर्ण काम किया है। यह हिन्दी साहित्य जगत को साॅनेट से विस्तारपूर्वक परिचित कराने की दिशा में अत्यंत सहयोगी कृति हैं विभिन्नकाल खण्ड के कालजयी साॅनेट्स को चुन कर विनीत मोहन औदिच्य ने साॅनेट का काव्यमय साहित्यिक इतिहास प्रस्तुत कर दिया है। इस संबंध में कवि ने आत्मकथ्य में स्वयं लिखा है कि -‘‘ आप सभी सुधी पाठकों के समक्ष एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना के अंतर्गत 101 सुप्रसिद्ध सॉनेट रचनाकारों की 136 रचनाओं को अंग्रेजी भाषा से हिन्दी में अनूदित कर ‘‘काव्य कादम्बिनी’’ के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस संग्रह में सॉनेट विधा के मूल आविष्कारक इटालियन कवि गियोकामा डी लेंटीनी से लेकर अति आधुनिक काल के कई रचनाकारों को सम्मिलित किया गया है, जिनका संबंध इटली, इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, भारत कनाडा, फ्रांस, रूस, पुर्तगाल, अफ्रीका, स्पेन आदि अनेक देशों से रहा है।’’
मध्य तेरहवीं शताब्दी के सिसिलियन स्कूल प्रमुख कवियों में से एक थे इटली के गिया कोमो दा लेंटिनी (1210 - 1260)। इन्हें सॉनेट काव्य विधा का प्रणेता माना जाता है। इन्होंने कुल 22 सॉनेट लिखे। संकलित सॉनेट मूल सिसिलियन भाषा का है। इस संग्रह में लेंटिनी के साॅनेट ‘‘मैंने धूप के दिनों में बारिश होते देखी’’ (आइ सॉ रेनिंग इन द सनी डेज) का काव्यानुवाद कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है, बानगी देखें-
मैंने धूप के दिनों में बारिश होते देखी मचलती
और देखा अंधकार को उजाले से जगमगाते।
यहाँ तक कि प्रतीत हुई झाड़ी विद्युत में बदलती
हाँ जमी हुई बर्फ को देखा चमकते व गरमाते।
और मधुर वस्तुओं में देखा है स्वाद कड़वाहट का
और जो है कड़वा उसका मधुर स्वाद पाया
शत्रुओं को आस्वादन करते पाया प्रेम की मुस्कुराहट का
अच्छा और घनिष्ठ मित्र जो मिलने तक न आया।
विलियम शेक्सपियर (1564-1616) ने अंग्रेजी साहित्य के विश्वविख्यात महानतम नाटककार व कवि, इटैलियन सॉनेट की सरंचना को परिवर्तित कर सॉनेट विधा को लोकप्रिय बनाने में अप्रतिम योगदान। इस संग्रह में शेक्सपियर का साॅनेट ‘‘ग्रीष्म ऋतु के दिवस से क्या करूं तुम्हारी तुलना’’ (शैल आई कम्पेयर दी टू ए समर्स डे) को शामिल किया गया है-
ग्रीष्म ऋतु के दिवस से क्या करूं तुम्हारी तुलना
पर तुम हो अधिक सुन्दर और अत्यधिक संयमित
मई मास की कलिकाओं का, शुष्क हवाओं से झरना
ग्रीष्म काल अवधि भी तो होती, अत्यंत संकुचित ।
कभी कभी दिवाकर के प्रखर आलोक का चढ़ाव
रह रहकर मंद पड़ती उसकी, सुवर्णमयी विभा
प्रत्येक सुंदर वस्तु पर होता, क्रूर काल का प्रभाव
कभी भाग्य, कभी प्रकृति परिवर्तन, मंद करे प्रभा ।
पर नहीं कुम्हला सकेगी, तुम्हारी शाश्वत सुंदरता
सौंदर्य पर सदैव रहेगा.......
सुप्रसिद्ध अमेरिकी कवि एडविन अर्लिंगटन राबिन्सन (1869-1935) जिन्होंने तीन बार पुलित्जर पुरस्कार जीता व चार बार नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित हुए, अनुवादक औदिच्य ने इनके साॅनेट ‘‘द शीव्स’’ को ‘‘गठ्ठे‘‘ शीर्षक से अनुवाद किया है। कुछ पंक्तियां देखें-
सुंदर दिवस चलता रहे आगामी दिवस तक
एक सहस्र सुनहरे गठ्ठें पड़े हुए थे वहां पर।
चमकते हुए और स्थिर पर ठहरने के लिए देर तक
मानो सहस्रों बालाएं, सुनहरे केशों के साथ हों वहां
वहां से उठेंगे, सोकर उठे और गए जहां पर।।
पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित अमरीकी कवयित्री एडना सेंट विंसेंट मिल्ले (1892-1950) के चार साॅनेट्स का अनुवाद अनुवादक औदिच्य ने किया है जिनमें उनका प्रसिद्ध साॅनेट ‘‘आई बीइंग बोर्न ए वोमेन एण्ड डिस्ट्रैस्ड’’ को ‘‘मैं जन्मी एक स्त्री के रूप में, रही सदा व्यथित’’ शीर्षक से दिया है-
मैं जन्मी एक स्त्री के रूप में, रही सदा व्यथित
नारी प्रजाति की सारी आवश्यकताओं व विचारों के साथ
प्राप्त करने तुम्हारा सानिध्य, आग्रह करता सनाथ
तुम्हारा आकर्षण, उत्साह होता, अनुभूतिजनित।
तुम्हारी काया का भार अपने वक्ष पर सहने के लिए
जीवन का धुंआ निर्मित किया गया है इस सूक्ष्मता से
है नाड़ी और मष्तिष्क के मेघ स्वच्छ करने स्पष्टता से
अधिकार की हुई सी विवश, मुझे पुनः छोड़ने के लिए।
‘‘काव्य कादम्बिनी’’ साॅनेट अनुवाद संग्रह जहां साॅनेट्स की संवेदनशील दुनिया से काव्यात्मक परिचय कराता है, वहीं अनुवादक के अनुवद कौशल और भाषाई दक्षता को भी प्रमाणित करता है। जैसा कि मैं हमेशा कहती हूं कि अनुवाद दो भिन्न भाषाओं के बीच सेतु का काम करता है और यदि बात साहित्य की हो तो यह उस भाषा के संसार को समृद्ध करता है जिसमें अनुवाद किया गया हो। इस तरह यह कृति हिन्दी के साहित्य को अनूदित साॅनेट्स से समृद्ध करने में सक्षम है। यह संग्रह एक पाश्चात्य काव्य शिल्प से जुड़ने में सहायक और पठनीय है। अनुवाद के क्षेत्र में यह कृति विनीत मोहन औदिच्य के अनुवादकर्म को और अधिक गहरे रंग से रेखांकित करती है।
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