ब्लॉग मित्रो, 20.04.2023 को अपनी मां डॉ विद्यावती "मालविका" जी की द्वितीय पुण्यतिथि पर मैंने विगत वर्ष की भांति स्थानीय समाज सेवी संस्था 'सीताराम रसोई' में वृद्धजन को अपने हाथों से परोस कर भोजन कराया... ऐसे पलों में वही स्मृति ताजा हो जाती है जब मैं मां को अपने हाथों से परोस कर खिलाया करती थी... लगभग वही अनुभूति ... वही सुख...
भोजन आरंभ होने से पूर्व वहां वृद्धजन पूरे उत्साह से भजन गाते हैं आज मैंने भी उनके साथ मिलकर खरताल (झांज) बजाई और भजन गाया.... वे सभी मुझे अपने बीच पाकर खुश थे और मैं उनके साथ समय बिताते हुए खुशी महसूस कर रही थी.... सचमुच हम जिंदगी को आसान बना सकते हैं एक दूसरे की पीड़ा को साझा करके और एक दूसरे को परस्पर खुशियां देकर.... मेरी मां ने भी तो हमेशा यही किया....
सीताराम रसोई का पूरा स्टाफ बहुत ही मिलनसार और उत्साही है सभी महिला कर्मचारी सेवा भाव से कार्य करती हैं ...उन सब से मिलकर भी मुझे बहुत अच्छा लगता है .... यहां कई महिलाएं कार्य करती हैं वैसे रोटी बनाने की मशीन भी है ... यहां का किचन बहुत साफ सुथरा है....
सीताराम रसोई संस्था की यह विशेषता है कि वह अपनी संस्था के डाइनिंग हॉल में तो वृद्धों को निःशुल्क भोजन कर आते ही हैं साथ ही जो वृद्ध सीताराम रसोई तक पहुंच पाने में असमर्थ है ऐसे वृद्धों के लिए वे उनके घर तक निःशुल्क भोजन पहुंचाते हैं ... इस सेवा कार्य के लिए दानदाताओं द्वारा दी गई गाड़ियां उपलब्ध है... निश्चित रूप से ऐसी संस्थाओं के साथ अधिक से अधिक दानदाताओं को जुड़ना चाहिए... क्योंकि निःशक्तजन की सेवा करने से बढ़कर और कोई पुण्य कार्य नहीं है....
मित्रो, आपको भी अपने शहर की ऐसी संस्थाओं से जुड़ना चाहिए.... आप यक़ीन मानिए की ऐसे सेवा कार्य के द्वारा न केवल आपको प्रसन्नता मिलेगी बल्कि आप जिनकी स्मृति में सेवा कार्य करेंगे, वे जहां कहीं भी होंगे, आपके सेवाकार्य को देख कर खुश होंगे... मुझे पूरा विश्वास है 🙏
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