आज 20 अप्रैल...
2021 की यही तारीख़... मां हम दोनों बहनों को छोड़कर दैहिक रूप से हमेशा के लिए चली गई थीं...
वे साहित्य जगत के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ विद्यावती "मालविका" थीं, अध्यापकीय जगत में डॉ विद्यावती क्षत्रिय और डॉ विद्यावती सिंह के रूप में लोग उन्हें जानते थे किंतु हम दोनों बहनों के लिए तो वे हमारी "मैया" थीं, "नन्ना" थीं और ... एक ऐसी संघर्षमयी मां थीं जिन्होंने हमारे लिए अपना जीवन निछावर कर दिया।
बस, यही संतोष है मुझे कि उनकी अंतिम सांस तक मैंने उनकी सेवा की ... अन्यथा उनकी कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती है ... एक रिक्त स्थान जो कभी भरा नहीं जा सकता ...💔
विश्वास नहीं होता है कि 2 वर्ष व्यतीत हो गए मुझे उनसे अलग हुए ... आज भी ऐसा लगता है जैसे भी अभी मुझे आवाज देंगी और कहेंगी- "बेटा, एक कप चाय तो बना देना।" .... जिंदगी ऐसे मोड़ पर ले आई है जहां उसे एक आवाज को सुनने के लिए कान तरस रहे हैं ... 😥❤️💔
( मैं और मेरी मां : मां को हृदयाघात होने से लगभग 1 माह पूर्व की तस्वीर ... यानी मार्च 2021)
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विनम्र श्रद्धांजलि
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