चर्चा प्लस
गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
(दूसरा भाग)
सागर के यशस्वी नाट्य संसार के संबंध में चर्चा के प्रथम खंड में आपने पढ़ा यहां की तीन नाट्य संस्थाओं के बारे में - प्रयोग, अन्वेषण थिएटर ग्रुप तथा तथागत नाट्य संस्था। इनमें प्रयोग एवं अन्वेषण थिएटर ग्रुप को शहर की बुनियादी संस्था का दर्ज़ा दिया जा सकता है। इन संस्थाओं से जुड़े रहे व्यक्तित्व आज भी इस शहर को ख्याति दिला रहे हैं। जहां एक ओर गोविन्द नामदेव, मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा आदि बाॅलीवुड में स्थापना पा चुके हैं, वहीं रघु ठाकुर आज गांधीवादी चिंतक के रूप में सुपरिचित व्यक्तित्व हैं। उमाकांत मिश्र आज शहर में ‘‘श्यामलम’’ नामक संस्था के द्वारा साहित्य, संस्कृति एवं कला के विकास की अलख जगाए हुए हैं। शहर की नाट्य संस्थाओं के क्रम में पढ़िए कुछ और सक्रिय नाट्य संस्थाओं के बारे में।
इस लेख के प्रथम भाग के प्रकाशन के उपरांत मेरे व्हाट्सएप्प पर एक आपत्ति मेरे पास आई जिसमें कुछ तथ्यों के छूटने एवं त्रुटिपूर्ण होने के प्रति विरोध जताया गया था। किन्तु दुख है कि आपत्तिकर्ता ने वास्तविक तथ्यों से मुझे अवगत नहीं कराया। वैसे मुझे प्रसन्नता हुई कि आपत्तिकर्ता ने मेरे लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ा। यदि वे वास्तविक तथ्यों को मुझसे साझा करते तो मुझे और भी अधिक प्रसन्नता होती। कमियां हर लेख में होती हैं, उन्हें दूर करने में मदद करना एक उत्तम कार्य है। जैसा कि साहित्यकार डाॅ. अशोक मनवानी ने मेरे लेख को पढ़ कर सौजन्यतापूर्वक मुझे कई जानकारियां मेरे फेसबुक पर दीं, जिनमें कई तथ्य मुझे पहले ज्ञात नहीं हो सके थे। मैं डाॅ. अशोक मनवानी की आभारी हूं तथा उनके द्वारा प्रदत्त जानकारी साभार यहां शामिल कर रही हूं। उन्होंने अपनी तीन टिप्पणियों में क्रमशः लिखा कि -
प्रथम टिप्पणी - ‘‘श्री विवेक दत्त झा , प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति और पुरातत्व विभाग में प्रोफेसर थे। रंगमंच से जुड़े रहे। आजाद विद्यार्थी सांस्कृतिक संगठन ने 1981 में पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज के सभाकक्ष में प्रेमचंद जी लिखित आहुति का मंचन किया इसमें जगदीश सोनी कमलेश पाराशर ,श्यामाकांत दुबे की भूमिका थी। मैंने भी स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका की थी। गोपालगंज में गुप्ता जी कोरियोग्राफी और नाटक अभिनय सिखाते थे, वे निर्देशन भी करते थे।’’
द्वितीय टिप्पणी -‘‘वर्ष 1967 में विश्व विद्यालय ऑडिटोरियम में एक सिंधी भाषा का नाटक हुआ। ‘‘एस्क्यूज मी मिस्टर बाल्मीकि’’ इसका निर्देशन मेरे पिता प्रोफेसर एस एन मनवानी ने किया था। इस नाटक में श्री अमोल सिंह पिंजवानी, प्रताप फुलवानी सेवकराम आदि ने भूमिका की। एडवोकेट चंद्र या चंदू भाई (शास्त्री मार्केट में इनका ऑफिस था कुछ साल पहले तक) इसमें एक किरदार थे।’’
तृतीय टिप्पणी -‘‘संभागीय उत्सव प्रारंभ हुए तो बीवी कारंत जी 1982 या 1983 में चर्चित नाटक ‘‘इंसाफ का घेरा’’ बुंदेली में लेकर आए ,जो काकेशियन चाक सर्किल का अनुवाद था। सागर के स्टेडियम के मंच पर इसकी प्रस्तुति हुई। दर्शक कम थे हालांकि। सागर के तीन स्थानीय कलाकार भी लिए गए जिनमें मैं भी एक था। संस्कृति विभाग ने इसी मौके पर एमएलबी विद्यालय के मंच पर कुमार गंधर्व जी का शास्त्रीय गायन भी संभागीय उत्सव के अंतर्गत रखा था। रश्मि वाजपेयी जी का नृत्य भी।’’
इसी प्रकार कवि एवं राजनीतिज्ञ डाॅ आशीष ज्योतिषी ने भी फेसबुक पर मेरे लेख के तारतम्य में दो टिप्पणियों के रूप में मुझे महत्वपूर्ण जानकारी दी कि -
प्रथम टिप्पणी - ‘‘मैंने अथग और सागर विश्वविद्यालय में अनेक नाटक किए है, जिनमे कोर्ट मार्शल, अंधायुग, मुख्यमंत्री, कंजूस, धुआँ में किरदार निभाए, नुककड़ नाटक किए।’’
द्वितीय टिप्पणी - ‘‘पं ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी सागर के रंगमंच का पहला नाम है जिन्होंने अंतिम ओज, अजेय भारत, इंकलाब की आवाज, नारद निर्वाण, जय भारत माता जैसे नाटकों की रचना की। बल्कि आजादी के पूर्व अजेय भारत और अंतिम ओज का मंचन किया और निर्देशन किया। उस दौर मै महिला पात्र भी पुरुष किया करते थे। दुर्गा नाई महिला किरदार निभाते थे।’’
मैं आभारी हूं डाॅ आशीष ज्योतिषी की जिन्होंने जानकारी दे कर मेरे ज्ञान में वृद्धि की। निश्चित रूप से अभी भी मेरे इस पूरे लेख में अनेक तथ्य छूटे हुए होंगे क्योंकि बहुत प्रयास करने पर भी कई बार बहुत सी बातें पता नहीं चल पाती हैं जबकि मैं चाहती हूं कि सागर के नाट्य जगत की अधिक से अधिक जानकारी हर व्यक्ति तक पहुंचे। अतः लेख के इस दूसरे भाग को पढ़ते हुए यदि किसी को कुछ स्मृतियां कौंधे तो मुझसे अवश्य साझा करें।
यहां मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि यह लेख लिखना अथवा इस लेख की सामग्री को जुटाना किसी अर्थलाभ वाले प्रोजेक्ट के तहत नहीं है, अपितु सागर की साहित्यिक, सांस्कृतिक गरिमा को सभी की स्मृतियों से जोड़े रखने का मेरा निःस्वार्थ उपक्रम है। अतः इसमें अपने ज्ञान का सहयोग मुझे दे सकते हैं। मैं रंगमंच की व्यक्ति नहीं हूं किन्तु मुझे रंगमंच से अगाध लगाव है। थिएटर मुझे लुभाता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे लखनऊ, दिल्ली, जयपुर तथा भोपाल में जोहरा सहगल, नादिरा बब्बर, इब्राहिम अलकाजी, मोहन शशि जैसे प्रतिष्ठित रंगकर्मियों से मिलने तथा चर्चा करने का सुअवसर मिला। लखनऊ ललित सिंह पोखरिया जी के साथ एक नाट्यलेखन वर्कशाप में लेखकीय कार्य किया। मैंने रेडियो के लिए अनेक धारावाहिक नाटक लिखे तथा दूरदर्शन के लिए प्रहसन लिखी। मेरा लिखा नाटक ‘‘बीवी ब्यूटी क्वीन’’ का प्रसार भारती, भारत सरकार द्वारा दिल्ली, आगरा, लखनऊ, कानपुर आदि देश के पांच शहरों में मंचन किया गया था।
उल्लेखनीय है कि मेरे दो नाटक संग्रह ‘‘गदर की चिंगारियां’’ तथा ‘‘आधी दुनिया पूरी धूप’’ प्रकाशित हो चुके हैं। खैर, अपने बारे में यह सारी जानकारी देने का उद्देश्य मात्र यही है कि मैं रेडियो नाट्य लेखन, फीचर तथा डाक्यूमेंट्री स्क्रिप्ट लेखन तथा मंचीय नाटकों में गहरी दिलचस्पी रखती हूं। मेरा यही लगाव मुझे अपने शहर के रंगमंच पर कुछ न कुछ लिखने के लिए प्रेरित करता रहता है।
समय के साथ अनेक तथ्य विस्मृति की फाईल में बंधते चले जाते हैं। यदि बातें न दोहराई जाएं तो उन्हें भूलने का क्रम आरंभ हो जाता है। आज बहुत कम लोगों को पता है कि आज जिन्हें हम गांधीवादी चिंतक, समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ के रूप में जानते हैं, वे रघु ठाकुर जी कभी रंगमंच पर सक्रिय थे। निश्चित रूप से यह जानकारी हमें उतनी ही चौंकाती है जितनी कि यह जानकारी कि साहित्य, कला, भाषा एवं संस्कृति के उन्नयन के लिए सतत क्रियाशील श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र भी संगीत वाद्य कांगो प्लेयर होने के साथ ही रंगमंच के हर स्तर से सक्रियता से जुड़े रहे हैं। स्व. प्रो. विवेकदत्त झा जिन्होंने पुरातत्व के क्षेत्र में उल्लेखनीय उत्खनन तथा अन्वेषण किए और भरतीय इतिहास के कई खोए हुए पन्ने ढूंढ निकाले, वे भी रंगकर्मी थे। प्रो. बलभद्र तिवारी ने बुंदेली लोक साहित्य पर महत्वपूर्ण कार्य किया। वे भी रंगमंच पर सक्रिय रहे।
सागर के मंचों पर भी मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक ‘‘आषाढ़ का एक दिन’’ कई बार मंचित हो चुका है। यह नाटक मुझे व्यक्तिगत रूप से हमेशा रोमांचित कर देता है। इसका मेरा एक निजी कारण यह है कि इप्टा की पन्ना इकाई द्वारा पन्ना जिला मुख्यालय में मंचित किए गए ‘‘आषाढ़ का एक दिन’’ में मेरी दीदी स्व. डाॅ. वर्षा सिंह ने नाटक की नायिका मल्लिका की मां ‘‘अंबिका’’ का रोल अभिनीत किया था। अतः अब जब भी मैं इस नाटक को मंचित होते देखती हूं तो अंबिका में मैं अपनी दीदी डाॅ. वर्षा सिंह की छवि तलाशने लगती हूं। यह नाटक इसलिए भी मुझे रोमांचित करता है क्योंकि इसे देश के लगभग सभी नामचीन रंगमंच निर्देशकों ने निर्देशित किया है। इब्राहिम अलकाजी, ओम शिवपुरी, अरविंद गौड़, श्यामानंद जालान, राम गोपाल बजाज इसे अपना पसंदीदा नाटक मानते आए। इब्राहिम अलकाजी का कहना था कि -‘‘यह नाटक मानवीय भावनाओं हर पक्ष को अपनी सम्पूर्णता के साथ सामने रखता है।’’ फिल्म निर्देशक मणि कौल भी इस नाटक से प्रभावित रहे और इसीलिए उन्होंने 1971 में इस नाटक पर आधारित ‘‘आषाढ़ का एक दिन’’ नाम से फिल्म बनाई, जिसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ‘‘फिल्म फेयर पुरस्कार’’ दिया गया। इसमें कालिदास की भूमिका अरुण खोपकर ने तथा मल्लिका की भूमिका रेखा सबनीस ने निभाई थी।
ऐसे प्रतिष्ठित नाटकों को सागर के रंगमंच पर अपने सीमित साधनों द्वारा सफलतापूर्वक मंचित किया जाना किसी चुनौती को पूरा कर लेने से कम नहीं है। चलिए, सागर शहर के कुछ और थिएटर ग्रुप्स पर दृष्टिपात करते हैं। यूं तो मैं अपने इस लंबे लेख को दो किस्त में ही समाप्त करने वाली थी लेकिन जानकारियों में वृद्धि तथा व्यक्तिगत जानकारी शामिल करने के कारण इसे अगली किस्त में समाप्त कर सकूंगी। तो पढ़िए इस दूसरी किस्त में कुछ और थिएटर ग्रुप्स के बारे में संक्षिप्त जानकारी। वैसे यह अगली किस्त में भी जारी रहेगी।
रंग थिएटर फोरम
थिएटर फोरम कलर के विभिन्न क्षेत्रों के प्रगतिशील कलाकारों का समूह है। क्षेत्र के प्रमुख हिंदी थिएटर समूह में से एक रंग थिएटर फोरम सौंदर्य वाली रूप से नवीन और सामाजिक रूप से प्रासंगिक थिएटर के लिए प्रतिबद्ध है। 2008 में इसकी स्थापना के बाद से रंग थिएटर फोरम ने रंगमंच के प्रशिक्षण के क्षेत्र में अद्भुत कार्य करते हुए देश के अनेक हिस्सों में कार्यशाला का आयोजन किया है जिसमें देश-विदेश के अनेक जाने-माने विद्वानों ने प्रशिक्षण दिया है। थिएटर कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य नए कलाकारों को रंगकर्म के लिए आत्मनिर्भर बनाना है तथा समकालीन मुद्दों और प्रचलित सामाजिक समस्याओं पर एक संवाद के निर्माण करने हेतु प्रशिक्षित करना है। रंग थिएटर फोरम ने विभिन्न सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य के नाटकों का मंचन करते हुए क्षेत्रीय रंगमंच के दृश्य में भी खुद को स्थापित किया है। यह समूह समकालीनता के साथ मनोरंजन के बेहतरीन साधन प्रदान करते हुए हमारी समय की रूपरेखा को रेखांकित कर रहा है।
रंग थिएटर फोरम आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी जैसे प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संस्कृतविद् के नाटकों का भी मंचन कर चुका है। राधावल्लभ त्रिपाठी संस्कृत को आधुनिकता का संस्कार देने वाले विद्वान माने जाते हैं। उनके द्वारा लिखी गई कथा ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ एक असाधारण कृति है। संस्कृत के महान गद्यकार महाकवि दंडी पद-लालित्य के लिए विख्यात हैं। ‘‘दशकुमार चरित’’ उनकी चर्चित कृति है। परंतु दिलचस्प बात यह है कि राधावल्लभ त्रिपाठी जी को उनकी एक और संस्कृत कृति ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ की जीर्ण-शीर्ण पांडुलिपि हाथ लग गई। इस कृति को हिंदी में औपन्यासिक रूप देकर प्रो. त्रिपाठी ने जहां एक और मूल कृति के स्वरूप की रक्षा की है और वहीं दूसरी ओर उसे एक मार्मिक कथा के रूप में प्रस्तुत किया है। इस कृति से उस युग का नया परिदृश्य उद्घाटित होता है। नाट्य शास्त्र संस्कृत नाटक कार्यशाला 03 से 23 मार्च 2018 को विश्वविद्यालय में ‘‘विक्रमादित्य कथा’’ का मंचन रंग थिएटर फोरम द्वारा किया गया था।
फोरम द्वारा 01-15 फरवरी 2021 को प्रोडक्शन वर्कशॅाप आयोजित किया गया था जिसमें संगीत श्रीवास्तव जैसे रंगकर्मी ने आ कर प्रशिक्षण दिया था। संगीत श्रीवास्तव ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से वर्ष 2013 में रंगमंच तकनीक और परिकल्पना में विशेषज्ञता के साथ स्नातक उपाधि प्राप्त की। उसके बाद वे परिकल्पना प्रशिक्षक तथा मार्गदर्शक के रुप में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से जुड़ गए। साथ ही मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय, भारतेंदु नाट्य अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय सिक्किम केंद्र आदि नाट्य प्रशिक्षण केंद्रों के शैक्षणिक कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे हैं। संगीत श्रीवास्तव ने भारत और विदेश में कई प्रसिद्ध प्रस्तुति निर्माताओं के साथ एक प्रकाश परिकल्पक एवं दृश्य रचनाकार के रूप में सहयोग किया है। एक परिकल्प प्रस्तुति निर्माता और मिक्स मीडिया कलाकार के रूप में 14 देशों में 300 से अधिक प्रस्तुतियां कर चुके हैं। ऐसे रंगकर्मी का आ कर प्रशिक्षण देना सागर के युवा रंगकर्मियों के लिए विशेष अनुभव रहा।
मुझे आशा है कि मेरे लेख की इस दूसरी किस्त को पढ़ने के उपरांत विद्वतजन कुछ और जानकारियां मुझसे साझा करेंगे, जिन्हें मैं इस लेख की अगली एवं अंतिम किस्त में शामिल कर सकूंगी। संभवतः कुछ ऐसे नाट्य ग्रुप भी रहे हों जिन्होंने बहुत ही छोटे स्तर पर अथवा मात्र नुक्कड़ के रूप में नाट्य प्रदर्शन किया हो और वे मेरी जानकारी में अब तक नहीं आ सकें है तो यदि किसी को उनके बारे में जानकारी हो तो वे मुझे अवगत करा सकते हैं। अन्यथा मुझे प्राप्त जानकारी का शेष भाग मैं अपने अगले लेख में आप सबके सामने रखूंगी ही। (क्रमशः)
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