Wednesday, July 26, 2023

चर्चा प्लस | गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार (अंतिम किस्त) | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार
                     - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह  
 (अंतिम भाग)
विगत दो किस्तों में आपने पढ़ा सागर के रंगमंच से जुड़ी जानकारियां। बेशक़ यह सम्पूर्ण नहीं है किन्तु इसे एक संक्षिप्त परिचय माना जा सकता है। विगत दोनों किस्तों से शेष रही जानकारी इस अंतिम किस्त में दे रही हूं। इसमें कुछ और रंगकर्मियों ने मुझे महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं जिनसे मेरे ज्ञान में भी वृद्धि हुई। थियेटर का अर्थ ही है ‘टीमवर्क’। ‘गागर में सागर’ की इस यात्रा में एक टीम स्वतः बनती गई जिसने इस लेख को समृद्ध किया है। आशा है कि इस दिशा में सुधिजन कार्य आगे बढ़ाते रहेंगे तथा सागर के रंगमंच की गौरवशाली परंपरा से सभी को इसी तरह अवगत कराते रहेंगे। याद रहे कि अपने अतीत के गौरव को सहेजना भी हमारा ही कर्तव्य है।
वरिष्ठ साहित्यकार, नाट्यलेखक एवं पूर्व रंगकर्मी अशोक मनवानी ने विनम्रतापूर्वक कुछ और जानकारी मुझे मेरे फेसबुक वाॅल पर दी जिसे मैं यथारूप यहां दे रही हूं- ‘‘बहुत आभार शरद जी, आपने मेरी टिप्पणियों और जानकारियों को लेख में शामिल किया। इसी क्रम में स्मृतियों में से दो अन्य बातें याद आ रही हैं।
4. आदरणीय राधावल्लभ त्रिपाठी जी ने मध्य प्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग के तत्कालीन संचालक श्री पंकज राग के अनुरोध पर ष्मध्यप्रदेश की नाट्य परंपराष् पुस्तक लिखी। प्रकाशन वर्ष 2006 अथवा 2007 होगा। इसमें भी सागर शहर सहित मध्य प्रदेश के नगरों और कस्बों की रंगमंच गतिविधियों का उल्लेख है।
5. मुझे स्मरण है प्रथम नाटक कार्यशाला जब सागर में हुई, निर्देशक स्वर्गीय बंसी कौल जी सागर आए थे। विश्वविद्यालय के अनेक वरिष्ठ साथी ड्रामा वर्कशॉप में शामिल हुए थे। यह 1978 या 1979 का वर्ष रहा होगा। उन दोनों मैं गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ता था। मुझे जब पता चला कि एक जाने-माने डायरेक्टर वर्कशॉप लेने आए हैं तो भागीदारी के उद्देश्य से पहुंचा और यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ साथियों के साथ एक कक्षा में बैठने की अनुमति मिली। तब उन्होंने प्राचीन नाट्यशास्त्र ,पारसी थियेटर और संस्कृत नाटकों की परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी।’’
वरिष्ठ रंगकर्मी रवीन्द्र दुबे ‘‘कक्का’’ ने टिप्पणी करते हुए मुझे जो जानकारी दी वह इस प्रकार है-‘‘मैं एक जानकारी से आपको अवगत करा रहा हूँ लगभग दस वर्षों तक सागर में 80 एवं 90 के दशक में रंगमंच परिषद ने दुलारीबाई , रस गंधर्व , जुलूस , गुरु चेला एवं महोबिया जैसे नाटकों की अनेक प्रस्तुतियां सागर सहित प्रगति मैदान दिल्ली में करते हुए रंगकर्म की रिक्तता को समाप्त किया था।’’
इसी दौरान नाटकों के संदर्भ में मेरी चर्चा रंगकर्मी एवं साहित्यकार आलोक चौबे से हुई और तब आलोक भाई ने सहजता से कहा कि ‘‘मेरी रंगकर्मी पत्नी प्रिया आपको कुछ और जानकारी दे सकती हैं।’’ इसी तारतम्य में उन्होंने बताया की सागर का रंगमंच उनके जीवन में इसलिए भी विशेष महत्व रखता है क्योंकि नाट्य रिहर्सल के दौरान ही उन्हें उनकी भावी अर्धांगिनी मिलीं और जल्दी ही दोनों विवाहसूत्र में बंध गए। प्रिया जी से मेरी फोन पर ही चर्चा हुई और मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि उन्होंने नेशनल स्कूल आफॅ ड्रामा यानी एनएसडी प्री क्वालीफाई कर किया था। किन्तु कुछ निजी कारणों से वे एनएसडी ज्वाईन नहीं कर सकीं। बातचीत में उन्होंने थिएटर से जुड़े अपने कई रोचक संस्मरण सुनाए। मैंने उनसे अनुरोध किया कि वे कुछ जानकारी लिख कर मुझे व्हाट्सअप्प कर दें ताकि मैं उन्हें अपने इस लेख में शामिल कर सकूं। उन्होंने मेरा अनुरोध स्वीकार कर लिया। उनके द्वारा प्रेषित जानकारी शब्दशः यहां साभार प्रस्तुत कर रही हूं जिससे सागर रंगमंच के तत्कालीन परिदृश्य का अनुमान लग सकेगा -
              ‘‘वेस्टर्न जोनल फेस्टीवल में लोकनृत्य की परफार्मेन्स देकर छोटी तो अचानक एक फोन आया सचिन नायक का... कि एक नाटक हो रहा है, जिसे ‘‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’’ के डायरेक्टर इश्तयाक आरिफ खान डायरेक्ट कर रहे हैं... और भी साथियों और खूबियों के बारे में बताया। प्ले था ‘‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’’ मैने कहा प्ले तो मैंने कभी स्कूल में भी में भी नहीं किया। उन्होंने परसिस्ट किया, एक बार आकर तो देखो अच्छा लगेगा। कमरे में रिहर्सल चल रही थी। कुछ जाने और कुछ अंजाने चेहरे और एक भी लड़की नहीं। कुछ समझ नहीं आ रहा था। पर सबने माहौल देने की कोशिश की और बस मन लग गया। इस तरह शुरुवात हुई रंगमंच की प्ले करने से पहले कभी कोई प्ले देखा भी नहीं था। पता ही नहीं था सागर कुछ होता है. स्कूल में बच्चों के एकाध दो नाटक देखे थे। पर इसका कैनवास इतना बड़ा होगा ये नहीं पता था। फाईनल रनथ्रू के समय जब सेट देखा तब अंदाजा लगा। कर्टेनकॉल के बारे में भी नहीं जानती थी अचानक अचानक स्टेज पर नाम बोला तो अभिवादन भी समझ नहीं आया कैसे करूँ। पर लोगों ने बहुत सराहा-- यूनिवर्सिटी में, शहर में लोग यूँ ही पहचानने लगे, आप वही है न जो ‘‘रामकली’’ बनी थीं। मेरे किरदार का नाम। तब समझ आया कि कुछ तो किया है... फिर आगे बढ़ते हुए अन्वेषण से हम भारत रंग महोत्सव तक पहुँचे। श्रीराम सेंटर में बुंदेली नाटक पर गड़गड़ाती रहीं तालियां।

‘‘बसंती’’ नाटक ‘‘खूबसूरत बहू’’ बहुत सराहना मिली मिला दर्शको ने किरदार बहुत पसंद किया इतना कि एनएसडी की वर्कशॉप के दौरान लोगों मे मुझे पहचाना। बहुत मिलने आये जिनमें कोलकाला, इलाहाबाद और जबलपुर के लोग शामिल थे। साथ के लोगों ने ही प्रोत्साहित किया। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के लिए फार्म भरा। पंकज तिवारी (ईएमएमआरसी), आलोक चैबे और अभिषेक ज्योतिषी ने हर संभव प्रयास किया। मार्गदर्शन देने में परिणाम दो बार एनएसडी में प्री क्वालीफाई किया.. पर एनएसडी पर इसके बाद ट्राई नहीं किया। प्ले करती रही।
        हर प्ले में सचिन नायक ही इत्तेफाकन मेरे अपोजिट में होते थे। एक प्ले में ऐसा नहीं हो पाया ‘‘सैया भये कोतवाल’’ में कोई और इस किरदार को निभा रहा था। परिस्थितिवश शो की फाईनल रनथ्रू में अचानक किरदार बदलना पड़ा। इश्तियाक भाई और ने मुझे निभाने को कहा। शो होने से 24 घंटे का भी समय नहीं था। सिर्फ 1 रनथ्रू के बाद सीधा फाईनल था मॉर्निंग में । पर हो गया, पता नहीं कैसे पर लिया गया। बहुत सराहना मिली। इस चैलेंज के बाद आत्मविश्वास और बढ़ गया।
        साइकोलॉजी पीएचडी की। आज प्ले तो नहीं कर पाती, पर ड्रामा को साइकोलॉजी से जोड़ दिया। ड्रामा की खूबियों को एज ए थैरेपी इस्तमाल कर साइकोड्रामा पर काम कर रही हूं जिसके लिए इंटरनेशनल डायरेक्टरी साइकोड्रामेलिस्ट में नामित किया गया है।’’

प्रिया आलोक चौबे ने सागर के रंगकर्म से जुड़े लोगों की वर्तमान जानकारी दी कि इश्तयाक आरिफ खान वर्तमान में कई फिल्मों में काम कर रहे हैं और एक जाना माना चेहरा हैं। सचिन नायक कई ऐड फिल्म्स  में दिखाई दे चुके हैं, फिल्मों में भी काम किया है। डॉ आलोक चौबे वर्तमान में टूरिज्म बोर्ड में कार्यरत हैं। पकंज तिवारी ईएमएमआरसी के डायरेक्टर हैं। अभिषेक ज्योतिषी अन्वेषण के मंजे हुए कलाकार, एलआईसी में कार्यरत हैं।
       प्रिया आलोक चौबे के द्वारा दी गई उपरोक्त सारी जानकारी सागर रंगमंच के स्त्री पक्ष को सामने रखती है कि महिला रंगकर्मियों के लिए यहां का माहौल कितना सकारात्मक एवं पारिवारिकता से परिपूर्ण है।
         चलिए, इसके बाद बात करते हैं शहर की कुछ और नाट्य संस्थाओं की जिनमें रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप तथा थर्ड आई परफॉर्मर्स थोड़े समय में ही अपनी विशेष जगह बना ली।

रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप

लोक एवं शास्त्रीय रंगमंच तथा लोक संगीत के संवर्द्धन के उद्देश्य से नगर के रंगकर्मियों ने सन 2001 में ‘‘रंग प्रयोग’’ की स्थापना की। रंग प्रयोग ने अपनी यात्रा के दौरान लोक एवं शास्त्रीय प्रदर्शनकारी कलाओं के प्रति न केवल अभिरुचि को जगाया अपितु कार्यशालाओं एवं परीक्षाओं के माध्यम से इनके सघन प्रशिक्षण का कार्य भी किया। क्षेत्रीय एवं भाषिक सीमाओं को दरकिनार कर मध्य प्रदेश की समस्त लोक एवं शास्त्रीय शैलियों पर केंद्रित प्रस्तुतियां रंग प्रयोग की विशिष्ट पहचान बन चुकी है। सन 2001 में 45 दिवसीय नाट्य कार्यशाला आयोजित की थी। इसी दौरान शरद जोशी द्वारा लिखित व्यंग नाटक ‘‘एक था गधा उर्फ अलादाद खां’’ का मंचन किया गया। यह नाटक वर्तमान विसंगतियों पर करारा प्रहार करता है। इसके कथाने में एक नवाब है जो चाहता है कि हर तरफ उसी के जयकारे गूंजे और जनता में केवल उसी की चर्चा हो। एक दिन उसे पता चलता है कि अलादाद खां का इंतकाल हो गया। वह तय करता है कि वह भी उसके जनाजे में शरीक होंगे। सब इंतजाम हो जाते हैं। शव यात्रा का आंखों देखा हाल दिखाने की भी पूरी व्यवस्था कर ली जाती है। इसी बीच पता चलता है कि अलादाद खां नाम का कोई आदमी नहीं मरा है बल्कि अलादाद एक धोबी के गधे का नाम था, जो मरा है। नवाब परेशान हो उठाता है। सारी तैयारियां हो गई, प्रचार भी हो गया, लेकिन जनाजा किसका निकाला जाए। वह कोतवाल को बुलाता है जिसने यह खबर दी थी कि अलादाद खां मर गया है। कोतवाल अपनी जान बचाने के लिए बस्ती से किसी गरीब अलादाद खां नाम के आदमी को पकड़ कर लाता है। इज्जत बचाने के लिए उस गरीब को मारकर उसका जनाजा निकाल देते हैं। इस प्रकार चुनौती भरे नाटकों का मंचन कर के रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप ने स्वयं की क्षमताओं को विश्वासपूर्वक साबित किया।

रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप द्वारा बाल प्रतिभाओं के प्रोत्साहन हेतु छह दिवसीय राज्य स्तरीय उत्सव ‘‘सागर उत्सव 2003’’ किया गया था। इसमें नगर की प्रतिभाओं को अभिनय प्रशिक्षण देने हेतु आलोक चटर्जी तथा छाऊ नृत्य प्रशिक्षण हेतु श्री माधव वारिक पधारे थे। यह सात दिवसीय सघन प्रशिक्षण कार्यशाला थी। नाटक ‘‘जंगल के शहर’’ तथा ‘‘बोझा’’ नाटकों का मंचन ग्रुप द्वारा किया गया। इनमें सिने  एवं टेली तकनीक का प्रयोग किया गया था। प्रेमचंद की कहानी ‘‘ईदगाह’’ पर आधारित इसी नाम के नाटक का मंचन किया गया था। यह बाल मनोदशा को प्रकट करती अतिसंवेदनशील कहानी है। नाटक का मुख्य पात्र हामिद किसी भी बाल कलाकार के लिए कठिन चरित्र है। रंग प्रयोग थिएटर ग्रुप द्वारा इसका सफलतापूर्वक मंचन किया गया। आज भी निर्देशक राजकुमार रायकवार के निर्देशन में यह संस्था सागर तथा सागर से बाहर  निरंतर नाटक करती रहती है।

थर्ड आई परफॉर्मर्स

नाट्य संस्था ‘‘थर्ड आई परफॉर्मर्स’’ की स्थापना 24 मार्च 2020 को शहरी एवं राष्ट्रीय पटल पर कला एवं  कलाओं द्वारा शिक्षा के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु किया गया। संस्था का मुख्य उद्देश्य प्रदर्शनकारी कलाओं का संरक्षण एवं संवर्द्धन करने के साथ लोक कलाओं तथा बुंदेली संस्कृति का प्रचार प्रसार करना भी है। सर्व समाज में निर्धन एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए लोक कल्याण में भागीदारी भी इस संस्था का उद्देश्य है। कोरोना काल के पूर्व संस्था द्वारा 50 दिवसीय नाट्य कार्यशाला के तहत पीयूष मिश्रा द्वारा लिखित नाटक ‘‘गगन दमामा बाज्यो’’ तैयार कराया गया, जिसमे लगभग 40 प्रतिभागियों ने भाग लिया था। डा. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक शाखा के संयुक्त तत्वाधान में शहर के विभिन्न प्रायोजकों के साथ मिलकर इस नाटक की प्रस्तुति स्वर्ण जयंती सभागार हाल में की गई। वर्ष  2021 को 23 मार्च शहीद दिवस के उपलक्ष्य में संस्था द्वारा एक बार फिर नाटक ‘‘गगन दमामा बाज्यो’’ की तीन प्रस्तुति विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयंती सभागार में की गईं । यह नाटक दरअसल शहीद भगत सिंह के संघर्ष की दास्तान है। ‘गगन दमामा बाज्यो’ गुरु ग्रंथ साहिब की एक सूक्ति है। इसका अर्थ है, ‘तू आज से भिड़ जा, बाकी देख लेंगे’। पीयूष मिश्रा ने इस नाटक में भगत सिंह की उस सोच को भी शामिल किया है जिसमें उन्होंने आज के हिंदुस्तान की कल्पना कर ली थी। ‘‘थर्ड आई परफॉर्मर्स’’ अपनी स्थापना से ही नाट्यकला एवं शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने हेतु प्रयासरत है।

अन्य नाट्य संस्थाएं

सागर में बंसी कौल के साथ रंग कर्म करने के बाद अपने शहर आकर राजेश शिल्पाचार्य, पद्मसिंह, आनंद, राजेश पंडित और राजकुमार रैकवार ने सागर में रंगकर्म की धारा प्रवाहित करने में अपना योगदान दिया। सागर में थर्ड बेल, भारतीय नाट्य कला मंच, सरस, रंग प्रयोग, रंग खोज, युवा थिएटर ग्रुप, नाट्य परिषद, तरुण सांस्कृतिक आर्ट, दर्पण थिएटर ग्रुप आदि जैसे रंगकर्मियों के समूहों ने समय-समय पर नाटकों का मंचन करके सागर में नाट्य-मंचन की परंपरा को बनाए रखने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
               
       सागर में नाट्यविधा के सम्पन्नता से परिपूर्ण वर्तमान परिदृश्य को देख कर आश्वस्त हुआ जा सकता है कि यहां नाट्य विधा अभी और परवान चढ़ेगी और देश के नक्शे में अपनी अलग पहचान स्थापित करेगी।
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