Wednesday, July 12, 2023

चर्चा प्लस | गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार -1| डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
गागर में सागर है सागर का नाट्य संसार
        - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह  
         सागर की भूमि साहित्य और प्रदर्शनकारी कलाओं के लिए अत्यंत उर्वर है। इस भूमि में कई नाटक रचे गए, कई नाटक मंचित हुए और कई रंगकर्मी देश की बड़ी-बड़ी नाट्य संस्थाओं एवं मिल्मी दुनिया तक पहुंचे हैं। लेकिन इस माटी का मोह उन्हें बार-बार सागर खींच लाता है। चाहे मुकेश तिवारी हों या गोविन्द नामदेव या फिर संगीत श्रीवास्तव ये सभी सागर आ कर नाट्यमंचन द्वारा अपने अतीत की स्मृतियों को ताज़ा करते हैं तथा युवा रंगकर्मियों को मार्ग दिखाते हैं। सागर में इप्टा की इकाई भी रही है जिसके अंतर्गत नुक्कड़ नाटक खेले गए। सागर भले ही एक छोटा शहर है लेकिन इसका नाट्य संसार विस्तृत है। संक्षिप्त करते हुए भी यह जानकारी दो भाग में सिमट पा रही है। तो लेख का पहला भाग प्रस्तुत है आज।
प्रथम भाग :
बुंदेलखंड का एक छोटा-सा शहर जो बड़ा बनने के लिए जी तोड़ प्रयास कर रहा है, उसका नाम है सागर। कला और संस्कृति का धनी। कुछ समय पहले मुझे सागर के नाट्य संसार को खंगालने का अवसर मिला। किसी ने इस संबंध में मुझसे कुछ जानकारी चाही थी। बस, इसी सिलसिले में मैंने सागर की उन सारी संस्थाओं का पता लगाने के लिए कमर कस ली जो नाट्यकला से जुड़ी रही हैं। कुछ पता चला, बहुत कुछ शायद अभी भी छूटा हुआ हो। बहरहाल, जो भी जानकारी मुझे मिली वह संक्षेप में इस चर्चा प्लस के रूप में दे रही हूं। इसमें मैंने अपना ध्यान उन संस्थाओं और मंचन पर केन्द्रित रखा है जो विश्वविद्यालय के परफार्मिंग आर्ट विभाग के इतर नाट्य मंचन करते रहे, भले ही विश्वविद्यालय में कार्यरत व्यक्ति उससे जुड़े हुए थे। जितना मैंने खंगाला, जितना मैंने जाना वह गर्व करने योग्य है।
सागर के समूचे नाट्य परिदृश्य को जानने के लिए अतीत में झांकने पर पता चला कि आज सागर के नाट्य कौशल को जिस नाट्य संस्था ‘‘अथग’’ के रूप में ख्याति प्राप्त है, इससे पहले एक और नाट्य संस्था यहां बड़ी मेहनत से काम कर चुकी है, जिसका नाम था ‘‘प्रयोग’’। इस संस्था के बारे में सबसे पहले साहित्य, कला और संस्कृति के लिए समर्पित श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र जी ने मुझे बताया। वे स्वयं ‘‘प्रयोग’’ के नाटकों में अभिनय किया करते थे। इस संस्था से जुड़े अनिल शर्मा के बारे में उनके भतीजे जो डाॅ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में रहे हैं, डाॅ राकेश शर्मा से मेरी चर्चा हुई। चर्चा के दौरान डाॅ राकेश शर्मा ने डाॅ विनोद दीक्षित से जानकारी लेने का सुझाव दिया। जब मैंने डाॅ विनोद दीक्षित से बात की तो उन्होंने बताया कि डाॅ. कल्पना सैनी प्रयोग संस्था की सेक्रेटरी रह चुकी हैं, अतः मुझे उनसे जानकारी लेनी चाहिए। डाॅ. कल्पना सैनी से फोन पर चर्चा के दौरान उन्होंने अपने पति योगेन्द्र सैनी से संवाद कराया। इस तरह एक दीर्घ चर्चा श्रृंखला क बाद मैं उस व्यक्ति तक जा पहुंची जिनसे मुझे महत्वपूर्ण जानकारी मिली। जी हां, डाॅ. योगेन्द्र सैनी ने मुझे संस्था के बारे में अत्यंत विस्तृत जानकारी दी।

यह पूरा सिलसिला बताने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि मैंने प्रयास किया है कि सागर का समूचा नाट्य परिदृश्य इस छोटे से लेख में आ जाए किन्तु इसे लिखते समय मुझे लग रहा है कि सागर का नाट्य परिदृश्य एक महासागर है और एक लेख रूपी गागर में नहीं समाया जा सकता है। फिर भी प्रस्तुत हैं कुछ प्रमुख जानकारियां। जो नाम, संदर्भ, प्रसंग छूट रहे हैं, वे इरादतन नहीं वरन कुछ सीमावश और कुछ अज्ञानतावश छूटे हैं।
सागर के वरिष्ठ रंगकर्मी रविंद्र दुबे कक्का से प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में पंडित स्व.  लोकनाथ सिलाकारी द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ‘‘दीवान हरदौल जू’’ नाम से एक नाटक लिखा गया था। पचास के दशक में लिखे गए इस नाटक का मंचन सागर के तत्कालीन रंगकर्मी लक्ष्मी नारायण सिलाकारी, सेन बंधुओं और सर्राफ आदि ने मिलकर किया था। इसी प्रकार इसी समय एक और नाटक का मंचन भी सागर स्थित राधा टॉकीज से लगकर बने एक हॉल में किया गया था, जिसमें अभिनेता और अभिनेत्री के रूप में राजा दुबे एवं रामकली मिश्रा थे। इसके बाद एक नाटक उसी दौर में प्रभात भट्टाचार्य के निर्देशन में कालीबाड़ी मंदिर परिसर गोपालगंज में मंचित किया गया था। इस तरह एक दीर्घ परंपरा जुड़ी हुई है सागर के नाटय जगत से।

प्रयोग थिएटर ग्रुप
प्राप्त जानकारी के अनुसार सागर में अन्वेषण थिएटर ग्रुप के पूर्व एक और थिएटर संस्था थी जिसका नाम था - प्रयोग थिएटर ग्रुप। इसे सुप्रसिद्ध कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान के पुत्र विजय चौहान ने स्थापित किया था। इस संबंध में हटा के लोक संस्कृतविद डाॅ श्यामसुंदर दुबे ने भी जानकारी दी। युवा उत्सव में रूसी लेखक एन्तोन चेखव की कहानी का मंचन किया था। प्रयोग संस्था के बैनर तले नाटक ‘‘अंधायुग’’ एवं ‘‘फरार फौज’’ का मंचन भी किया था। ‘‘फरार फौज’’ की प्रस्तुति में विशेष बात यह थी कि वास्तविक जीप को चलाकर मंच पर लाया गया था जो अपने आप में सागर के मंच के लिए पहली घटना थी। नाटक ‘‘फरार फौज’’ में डॉ. विजय चौहान, जितेंद्र कुमार शर्मा, सत्येंद्र कुमार तिवारी, विवेकदत्त झा, मल्लिकार्जुन, रमेश दुबे, हंसराज नामदेव, कैलाश चंद्र सिंह आदि ने भी अभिनय किया था। इसमें रमेश दुबे की भी अहम भूमिका थी।
प्रयोग थिएटर ग्रुप में सचिव रह चुकी डाॅ. कल्पना सैनी तथा उनसे भी पहले से इस ग्रुप में से संबद्ध रहे उनके पति डाॅ. योगेन्द्र सैनी से विस्तृत चर्चा में प्रयोग संस्था के बारे में अनेक महत्वपूर्ण जानकारी मिली। जैसा कि डाॅ. योगेन्द्र सैनी जी ने बताया कि आरम्भ में महिला पात्र के लिए अभिनेत्रियां नहीं मिलती थीं अतः ऐसे नाटकों का चयन किया जाता था जिसमें सिर्फ़ पुरुष पात्र हों। प्रयोग के द्वारा ‘‘अंधेर नगरी चैपटराजा’’ और ‘‘मैकबेथ’’ जैसे नाटकों का सफलतापूर्वक कई बार मंचन किया गया। उस दिनों नाटकों के लिए किसी भी प्रकार की ग्रांट की व्यवस्था नहीं थी अतः नाट्यदल अपनी क्षमता के अनुसार पैसे कंट्रीब्यूट कर के मंचन के लिए सुविधाएं जुटाता था। बाद में कुछ महिलाएं इसमें बतौर अभिनेत्री जुड़ीं जिन्हें घर पहुंचाने का जिम्मा संस्था के पुरुषों का रहता था। इस संस्था से उमाकांत मिश्र, अनिल शर्मा आदि भी जुड़े रहे। वर्तमान में श्यामलम संस्था का संचालन कर रहे उमाकांत मिश्र ने उत्पल दत्त लिखित नाटक ‘‘फरार फौज’’ का मुझे तत्कालीन ब्रोशर दिखाया कराया। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। ‘‘फरार फौज’’ नाटक का अनुवाद किया था - महेश प्रसाद जयसवाल, नरेन्द्र सिंह, मिहिर चटर्जी तथा विवेकदत्त झा ने। इसका निर्देशन भी मिहिर चटर्जी ने किया था। इसमें बलभद्र तिवारी, रघु ठाकुर, विष्णु पाठक, विवेकदत्त झा, श्रीनाथ शर्मा एवं उमाकांत मिश्र आदि का व्यवस्था से ले कर अभिनय तक सहयोग था। यह जानना दिलचस्प लगता है कि अधिकांश लोग जिनके नाम आज विभिन्न क्षेत्रों में स्थापित व्यक्तियों के रूप में जानते हैं वे भी कभी रंगमंच से जुड़े रहे।
बाद में प्रो. विजय सिंह चौहान अमेरिका चले गए और इसी तरह कई अन्य सदस्य भी अपनी-अपनी आजीविका के कारण दूसरे शहरों में चले गए। संस्था को गतिमान रखने के लिए जितने लोगों की आवश्यकता थी, वे अब नहीं थे, परिणामतः प्रयोग संस्था बंद हो गई।

अन्वेषण थिएटर ग्रुप
सागर शहर के गोविंद नामदेव का चयन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में हो गया था और वहां से निकलने के बाद वह वही रंग मंडल में शामिल होकर रंग कर्म करने लगे थे। उनका जब भी सागर घर आना होता था तो वह सागर में स्थानीय शौकिया रंग कर्मियों को रंगकर्म की बारीकियों से अवगत कराया करते थे। उनका यह कार्य कई युवाओं के लिए प्रेरक बना। आगे चल कर मुकेश तिवारी, आशुतोष राणा, श्रीवर्धन त्रिवेदी, महेश मेवाती भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली में चयनित हुए और रंगकर्म की विधा में प्रवीणता प्राप्त की। मुकेश तिवारी ने वहां से अध्ययन करने के बाद सागर आकर सबसे पहले नाटक ‘‘कोर्ट मार्शल’’ का निर्देशन किया। सन 1992 में अन्वेषण थिएटर ग्रुप की नींव पड़ी। अन्वेषण थिएटर ग्रुप यानी ’’अथग’’ शौकिया रंग कर्मियों के दल के रूप में मुकेश तिवारी, पंकज तिवारी, राकेश सोनी, जगदीश शर्मा, आनंद जैन, रविंद्र दुबे कक्का के निर्देशन में अनेक नाट्य प्रस्तुति सागर सहित दमोह, जबलपुर, बालाघाट, भोपाल, दिल्ली, चंडीगढ़ आदि जगहों पर लगातार किया जाता रहा। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से प्राप्त ग्रांट से 18 कलाकारों का संपूर्ण रंगमंडल बना चुके इस थेएटर ग्रुप के गुरु हैं गोविंद नामदेव। जो बाॅलीवुड और दक्षिण भारत की व्यावसायिक फिल्मों में एक ख्यातिलब्ध नाम हैं।
यहां प्रस्तुत अन्वेषण थिएटर ग्रुप की सम्पूर्ण जानकारी ग्रुप के वरिष्ठ रंगकर्मी रविन्द्र दुबे ‘कक्का के सौजन्य से प्राप्त है। उनका यह सहयोग इस लेख की लेखिका के लिए यानी मेरे लिए अति महत्वपूर्ण रहा है। इसमें कुछ जानकारी उनके उस लेख से साभार समाहित कर रही हूं जो डाॅ. लक्ष्मी पांडेय द्वारा संपादित ‘‘ये है बुंदेलखंड (भाग-दो)’’ में प्रकाशित हुआ था। रविन्द्र दुबे ‘कक्का के लेख से मुझे ज्ञात हुआ कि बा. व. कारंत ने सन 1997 में ‘‘प्रस्तुति परक कार्यशाला’’ में बुंदेलखंड के साथ ही मध्यप्रदेश (अविभाजित) के सुदूर क्षेत्रों से आए जैसे भोपाल, इटारसी बालाघाट, दुर्ग, भिलाई के  रंग कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया था। जयंत देशमुख द्वारा बनाए गए मुक्ताकाश मंच पर सिविल लाइन स्थित मलैया बंगला में लगातार 9 दिन तक इसकी प्रस्तुतियां की गई थी जिन्हें देखने गोविंद नामदेव के साथ मुंबई से सिने अभिनेता अनुपम खेर भी आए थे। हबीब तनवीर जी ने भी भारत भवन के रंग कर्मियों को सागर लाकर अन्वेषण थिएटर ग्रुप के साथ 10 दिवसीय 1998 में आल्हा गायन और रंग कार्यशाला की थी इसमें उन्होंने ‘‘मुद्राराक्षस’’ और ‘‘जिन लाहौर नहीं देख्या, ओ जन्माई नई’’ का पाठ और अभ्यास कराया था। इसमें प्रमुख रूप से अनूप जोशी, विभा मिश्रा, सरोज शर्मा आदि वरिष्ठ रंगकर्मी भी शामिल हुए थे। लेख पढ़ कर मुझे याद आया कि सिविल लाईन के मुक्ताकाश मंच में खेले गए ‘‘बेगम का तकिया’’ नाटक मैंने भी देखा था।
मुकेश तिवारी ने अन्वेषण थिएटर ग्रुप में प्रस्तुति पर 35 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की थी, कि जिसके अंतर्गत 1996 में ‘‘मुख्यमंत्री’’ नामक नाटक का मंचन किया गया था। अन्वेषण थिएटर ग्रुप को भारतीय रंग महोत्सव में 2003 में प्रथम बार भाग लेने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। इसके बाद दूसरी बार 2024 में जगदीश शर्मा निर्देशित नाटक ‘‘सुदामा के चावल’’ की प्रस्तुति भारतीय रंग महोत्सव में की गई। अन्वेषण थिएटर ग्रुप के द्वारा 1997-98 में रंग कबीर नाट्य समारोह, 1999 में तीन दिवसीय नाट्योत्सव, 2000 में पांच दिवसीय ग्रीष्मकालीन नाट्य महोत्सव, 2018 में चार दिवसीय अन्वेषण नाट्य समारोह आयोजित कर के बाहर के थिएटर ग्रुपों की प्रस्तुतियां सागर में की गई।
वीर मधुकर शाह बुंदेला के गौरवपूर्ण कार्य और उनके जीवन पर फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव एक नाटक लिखा -‘‘मधुकर कौ कटक’’। इसका निर्देशन भी उन्होंने किया। उनके सह निर्देशक कर थे  मुंबई से आए डायरेक्टर संतोष तिवारी। एनएसडी, अथग और सागर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में जो एक माह की वर्कशॉप की गई, उसी के प्रशिक्षणार्थियों को अभिनय के लिए चुना गया। यद्यपि कुछ अन्य लोग भी शामिल किया गया। इस नाटक ने सागर के जनमानस में गहरी पैंठ बनाई।
अन्वेषण थिएटर ग्रुप के सदस्य रहे राकेश सोनी ने सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में सेवारत रहते हुए विश्वविद्यालय के छात्रों को लेकर रंगकर्म जारी रखा तथा अनेक बार राष्ट्रीय युवा महोत्सव में प्रथम स्थान प्राप्त किया। अन्वेषण थिएटर ग्रुप ने अनेक रंगकर्मियों को न केवल प्रशिक्षित किया अपितु मंच भी प्रदान किया। अथग ने आशीष ज्योतिषी, पंकज सिंह जार्ज, पदम सिंह, अवधेश कुशवाहा, असरार अहमद, अमजद खान, कपिल नाहर, आशुतोष तिवारी, जयशेखर परोची, राकेश शुक्ला, शिवकांत ढिमोले, अतुल श्रीवास्तव, आशीष चैबे, बृजेश शर्मा, सचिन नायक आदि को स्थापना  दी।

तथागत नाट्य संस्था
अन्वेषण थिएटर ग्रुप द्वारा गोविंद नामदेव के निर्देशन में आयोजित की गई प्रस्तुति पर कार्यशाला 2013 में नए-नए अनेक रंग कर्मियों ने भाग लिया था इसमें लगभग 55 लोगों ने प्रशिक्षण पाया था। गोविंद नामदेव की कार्यशाला से प्रशिक्षण पाकर निकले कुछ तरुण रंग कर्मियों की टोली ने अन्य ऊर्जावान साथियों को जोड़ कर एक नाट्य ग्रुप बनाया जिसका नाम रखा ‘‘तथागत नाट्य संस्था’’। इस संस्था में शुभम उपाध्याय, राहुल वर्मा, आदित्य निर्मलकर, आशीष तिवारी, अप्रतिम मिश्रा, विश्वनाथ पटेल, संजय, आशा, दीपगंगा साहू, दीक्षा साहू आदि रंगकर्मी रहे हैं। आज भी तथागत थिएटर ग्रुप समय-समय पर नाट्य मंचन करता रहता है।
सागर का नाट्य संसार खूबियों एवं कर्मठता से भरपूर है। यहां संस्थाएं बनती-मिटती रहीं लेकिन नाट्य परिदृश्य किसी न किसी नाम का बैनर लेकर सतत जारी रहा। सागर की शेष नाट्य संस्थाओं के बारे में इस लेख के दूसरे और अंतिम भाग में अगले ‘‘चर्चा प्लस’’ में चर्चा करूंगी। फिलहाल इसे पढ़िए और कल्पना कीजिए सागर के नाट्य संसार के यशस्वी अतीत के बारे में। (क्रमशः)
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