Tuesday, December 12, 2023

पुस्तक समीक्षा | देश प्रेम की गौरवगाथा का स्मरण कराती ओजस्वी कविताएं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 12.12.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई कर्नल पंकज सिंह के काव्य संग्रह "वीरों के उद्गार" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा     
देश प्रेम की गौरवगाथा का स्मरण कराती ओजस्वी कविताएं        
- समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह    - वीरों के उद्गार
कवि          - कर्नल पंकज सिंह
प्रकाशक       - साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर - 302003
मूल्य          - 200/-
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एक देश मात्र भौगोलिक भू-भाग नहीं होता है। ‘‘देश’’ शब्द में वे सारी भावनाएं एवं चेष्टाएं समाई हुई होती हैं जो मनुष्य को मनुष्य होने की प्रेरणा देती हैं। किसी मनुष्य में मनुष्यत्व का आकलन उसमें उपस्थित प्रेम, स्वाभिमान, आत्म सम्मान, आत्म गौेरव, श्रेष्ठ कर्म के लिए आत्मोत्सर्ग की ललक के आधार पर किया जा सकता है। इसीलिए देशप्रेम को जीवन में एक मानक स्थान दिया गया है। हमारे वैदिक ग्रंथों में देश की ‘राष्ट्र’’ शब्द से समुचित व्याख्या की गई है तथा देशप्रेम का तात्पर्य समझाया गया है। यही कारण है कि सदियों से हमारे संस्कारों के रूप में देश प्रेम हमारे रक्त में प्रवाहित है। इसीलिए हर युग में ऐसे वीर सेनानी हुए जिन्होंने अपने देश के लिए आत्मोत्सर्ग के मार्ग को सहर्ष स्वीकार किया। किन्तु आज चिन्ता का विषय यह है कि इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों और इंटरनेट के द्वारा किए जा रहे सूचनाओं के विस्फोट से आज का युवा भ्रमित हो रहा है। वह समझ नहीं पाता है कि वह अपने देश के अतीत के गौरवशाली पन्नों को पढ़े और उन्हें याद रखे अथवा आभासीय मिथ्या को सच मानते हुए जिए। इस संक्रमण काल में देश प्रेम की भावना को प्रज्वलित रखने के लिए वीरों के बलिदान को सतत स्मरण करते रहना आवश्यक है। इस दिशा में काव्य संग्रह ‘‘वीरों के उद्गार’’ के प्रकाशन के लिए यही कहा जा सकता है कि यह तब प्रकाशित हुआ है, जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
‘‘वीरों के उद्गार’’ भारतीय थल सेना में सैन्य अधिकारी कर्नल पंकज सिंह का काव्य संग्रह है। वे हिन्दी और अंग्रेजी भाषा पर समान अधिकार रखते हैं। 25 वर्ष से अधिक का उनका सैन्य अनुभव है किन्तु देश प्रेम की भावना उन्हें बाल्यावस्था से ही अपने संस्कारों के रूप में अपने माता-पिता एवं परिवार से मिली है। जब मेरे हाथों में कर्नल पंकज सिंह का यह काव्य संग्रह समीक्षार्थ आया तो स्वतः ही भारतीय नौसेना में कमोडोर ख़ुर्रम शहज़ाद नूर की याद आ गई, जिनके कहानी संग्रह ‘‘सोलह आने सच’’ की समीक्षा मैंने अपने इसी काॅलम में की थी। पनडुब्बीरोधी युद्धशैली के महाप्रशिक्षक रहे कोमोडोर नूर बेहतरीन शायर भी हैं। एक अप्रत्यक्ष तारतम्य का अनुभव हुआ जब भारतीय सेना के ही एक और अंग थल सेना के प्रतिष्ठित अधिकारी कर्नल पंकज सिंह के काव्य संग्रह की कविताओं से हो कर गुज़रने का अवसर मिला। इस काव्य संग्रह में बच्चा सिंह का ‘‘शुभाशीष’’ तथा डाॅ संदेश त्यागी की लिखी भूमिका के साथ ही कृष्ण कुमार ‘आशु’ के विचार दिए गए है। भूमिका में डाॅ संदेश त्यागी की इन सटीक पंक्तियों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जो उन्होंने कवि कर्नल पंकज सिंह के व्यक्ति के बारे में लिखी हैं-‘‘पंकज और सिंह की विशेषताओं का अपूर्व समन्वय उन्हें विरला बनाता है। पंकज जैसा मुलायम स्वाभाव उन्हें कवि बनाता है और सिंह जैसा हौसला और हृदय फ़ौजी।’’
आमतौर पर सैन्य सेवा में रत व्यक्तियों को कठोरता का पर्याय मान लिया जाता है। जबकि यह कठोरता अनुशासन की होती है भावनाओं की नहीं। सैन्य सेवा में संलग्न व्यक्ति भी संवेदनशील होते हैं, वे भी कोमल भावनाओं से परिपूर्ण होते हैं, तभी तो वे देश प्रेम की प्रतिमूर्ति होते हैं। यदि संवेदना नहीं है तो प्रेम हो ही नहीं सकता है और प्रेम नहीं है तो देश के लिए भी अपनत्व एवं आत्मोत्सर्ग की भावना भी नहीं हो सकती है। यह अवश्य है कि सैन्य अधिकारियों को अपने व्यस्ततम जीवन में साहित्य सृजन एवं उसके प्रकाशन का अवसर कम ही मिल पाता है किन्तु जब ‘‘वीरों के उद्गार’’ जैसी पुस्तक प्रकाशित हो कर हमारे सामने आती है तो हमें चैंका देती है।
कर्नल पंकज सिंह का यह काव्य संग्रह उनकी कविताओं का संग्रह मात्र नहीं है अपितु वीरों का काव्यात्मक इतिहास है। एक ऐसा गौरवशाली इतिहास जिसे पढ़ कर रोमांचित हुए बिना नहीं रहा जा सकता है। एक साहित्यकार के रूप में वे अपने दायित्वों को भली-भांति समझते हैं इसलिए उन्होंने संग्रह की पहली कविता युवाओं को समर्पित की है जिसका शीर्षक है ‘‘पहली उड़ान’’। इस कविता को समर्पित करते हुए कवि ने लिखा है कि ‘‘ यह कविता उन नवयुवकों और नवयुवतियों के लिए है जो अपने घरों की छांव से बाहर निकलकर जीवन समर में अपना पहला कदम रखते हैं। ये वह समय है जब उनके परिवार से मिले संस्कार ही उनका पथप्रदर्शन करेंगे। उन्हें जीवन में मनचाही सफलता मिलेगी यदि वे संकल्प के साथ परिश्रम करेंगे।’’ इस पहली कविता की कुछ पंक्तियां देखिए-
जाओ स्वप्नों से आगे बढ़ने का,
तुम में उत्साह भरा है।
रगों में यौवन के तपते,
शोणित का ज्वार उठा है।
जाओ अब अपने कर्मों से,
धर्म ध्वजा फहराओ।
तुम भी सदियों से अर्जित
अपने कुल का मान बढ़ाओ। 

संग्रह में एक कविता है ‘‘आह्वान’’। इसमें कवि पंकज सिंह ने एक नवीन भारत के निर्माण के लिए गौरवमयी इतिहास से प्रेरणा लेकर प्रत्येक नागरिक से श्रम और रक्त के योगदान का आह्वान किया है। अपनी इस कविता में कवि ने लिखा है-
सूखी हुई धरती भी क्या कभी
सिंच पाई है आंसू से,
तपती जलती सूरज की किरणें,
क्या रुकी हैं ठंडी आहों से।
तुमको स्वः से ऊपर उठकर
श्याम मेघ बन जाना होगा,
तड़क कड़क गर्जन कर कर के,
अमृत जल बरसाना होगा
तुमको भी तो आना होगा।

युवाओं एवं देश के प्रत्येक नागरिकों से देश के प्रति यथायोग्य समर्पण के आह्वान के साथ ही कवि ने उन वीरों के जीवन का अपनी कविताओं उल्लेख किया है जिनके बारे में या तो लोग भूलते जा रहे अथवा उन्हें जानकारी ही नहीं है। चूंकि ये कविताएं कवि ने अपने राजस्थन प्रवास के कार्यकाल के दौरान लिखी हैं अतः इनमें अधिकतर राजस्थान के बलिदानियों का उल्लेख है। इस दृष्टि से यह कविताएं और अधिक महत्वपूर्ण हो उठती हैं क्योंकि इन कवितओं के माध्यम से राजस्थान के उन वीरों की जानकारी देश के अन्य प्रांतों के लोगों को भी हो सकेगी जो अभी उन नामों से अपरिचित हैं। कवि ने एक और उत्तम कार्य किया है कि ऐसे वीरों पर अपनी कविता प्रस्तुत करने की पूर्व-पीठिका में उनके बारे में संक्षिप्त परिचय भी दिया है। जैसे राजस्थान के वीर शिरोमणि झाला मान सिंह के बारे में अधिकतर वे लोग ही जानते हैं जिन्होंने महाराणा प्रताप के समय का भारतीय इतिहास पढ़ा है। कवि ने झाला मान सिंह के बारे में परिचय देते हुए लिखा है कि -‘‘एक परम वीर स्वामी भक्त राजपूत योद्धा जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में हिन्दू हृदय सम्राट महाराणा प्रताप की रक्षा करने के लिए महाराणा प्रताप का छत्र और मुकुट पहन कर शत्रुओं को भ्रमित कर दिया और शौर्य की नवीन परिभाषा लिखते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी प्रकार झाला मान सिंह के दादा झाला बीड़ा ने भी खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा की प्राण रक्षा के लिए महाराणा सांगा का रूप धर लिया था और स्वयं बलिदान हो गए थे।’’ इसके बाद उन्होंने अपनी कविता प्रस्तुत की है जिसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं-
सूर्य उगा हल्दीघाटी पर,
माटी पत्थर वायु तपा।
राणा का छत्र आलोकित कर,
पराक्रम का साक्ष बना।
एक लाख तुर्कों की सेना,
सहम उठी सुनकर ललकार,
ग्यारह सहस्त्र सिंहों का गर्जन,
खींची हुई उनकी तलवार।

इसी प्रकार राजस्थान के लोक देव परमवीर घोघा बप्पा पर भी एक कविता है। घोघा राणा उर्फ़ घोघा बप्पा ने सोमनाथ मंदिर के विध्वंस के लिए जाते हुए महमूद गजनवी को रोकने के लिए उसके साथ युद्ध करते हुए अपने प्राणों की बलि दे दी थी। उस समय उनकी आयु 92 वर्ष थी। वस्तुतः देश के लिए प्राणों की आहुति देने की कोई निर्धारित आयु नहीं होती है। इसी संग्रह में कवि पंकज सिंह ने ‘‘वीरव्रती मेजर नन्दिका जवाहर रेड्डी’’ शीर्षक कविता लिखी है जिसमें उन्होंने मात्र 25 वर्ष की आयु में हिमालय के दुर्गम बर्फीले क्षेत्रों में अपने राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करते हुए उनके शहीद हो जाने का उल्लेख किया है।  इसी संग्रह में ‘‘मरण कला के नायक: मेजर नारायण सिंह’’ शीर्षक कविता है जिसमें कवि ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के ‘‘वीर चक्र विजेता’’ मेजर नारायण सिंह के बलिदान बारे में लिखा है। उन्हें ‘‘फाजिल्का का रक्षक’’ भी कहा जाता है। मेजर नारायण सिंह ने पाकिस्तान के मेजर शब्बीर शरीफ को द्वंद्वयुद्ध की चुनौती दी थी। यह द्वंद्वयुद्ध आसफवाला गांव में हुआ था। इस द्वंद्वयुद्ध में ये दोनों वीर अन्तिम सांस तक लड़ते रहे और अपने-अपने वतन के लिए बलिदान हो गए। जोश से भर देने वाली इस कविता की चंद पंक्तियां देखिए-
जब बंदूकें ही कलम हुईं,
स्याही अपना ही लोहू हो,
शब्द शब्द ही अंगारा
और बनी जवानी ज्वाला हो
है तभी कहानी लिख पाएगी।

कर्नल पंकज सिंह ने भारतीय स्त्रियों की वीरता और जीवटता को भी अपनी कविताओं में मुखरित किया है। एक ओर जहां वे अतीत के पन्नों पर दर्ज़ जौहर की चर्चा करते हैं वहीं आज की नारी के साहस की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं ‘‘नारी तुम ही शक्ति हो’’। कुल उन्नीस कविताओं के इस ओजपूर्ण काव्य संग्रह में महाराणा प्रताप, झाला मान सिंह के चित्रों के साथ ही शहीद भगत सिंह, मेजर नारायण सिंह, मेजर नारायण सिंह की पत्नी तथा पुत्र, वीर चक्र तथा आसफवाला युद्ध स्मारक, मेजर नन्दिका जवाहर रेड्डी, हिम विदर एवं राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के छायाचित्र भी दिए गए हैं जिससे संग्रह की मूल्यवत्ता द्विगुणित हो गई है।
‘‘वीरों के उद्गार’’ काव्य संग्रह में कवि कर्नल पंकज सिंह ने वीरों की ओर से अपनी काव्यात्मक भावप्रस्तुति दी है जिससे संग्रह का नाम सार्थक हो उठा है। भाषा सरल, सहज और ओजस्वी शब्दों से परिपूर्ण है। देशप्रेम की भावना को बल प्रदान करने वाला यह काव्य संग्रह न केवल पठनीय अपितु संग्रहणीय भी है। 
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