"जो हुइए, अच्छो ई हुइए !" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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जो हुइए, अच्छो ई हुइए !
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
टीवी पे अपने नए मुख्यमंत्री जू खों शपथ लेत देखो। संगे, दोई छुटकल सीम हरों मने डिप्टी सीएम हरों खों को सोई शपथ लेत भए देख लओ। मनो रओ तो जरा सो टेम को काम, पर भीतरे बैठे में जड़कारों लगन लगो हतो। अब आप ओरें कछू गलत ने सोचियो के मैं डिप्टी सीएम हरों खों छुटकल काए बोल रई? छुटकल बोलो, लोहरे बोलो कछू बी बोलो जा सकत लाड़-प्यार में। कभऊं-कभऊं घर के कक्का, दद्दा, जिज्जी कोनऊं बी लोहरे हरों खों बोल देत आएं के ‘‘काय रे नासमिटो! तुमें समझ में ने आ रई?’’ सो, ईको मतलब जे नोईं के बे ओरें उन लोहरे हरों को नासमिटत देखबो चात आएं। जे ऐसे बोल लाड़ में सोई बोले जात आएं। सो आप ओरें कछू औ ने समझियो, ने तो सोचो के मिटत जा रई पार्टी की हवा लग गई मोय। ऐसो कछू नइयां।
मनो मंच पे सबई जने बड़े नोने से लग रए हते। लाड़ली बैनों के भैया सोई उते मंच पे सहूरी बांधे बैठे दिखा रए हते। बाकी जैसे पैले दरबार में नवरतन होत्ते, ऊंसई छै ठइयां राज्य के मुख्यमंत्री हरें औ बड़े वारे नेता हरें, सबई मंच पे जंच रए हते। मोय तो सुन्ने रई अपने मोदी जी के दो बोल, मनो बे बिना बोले कढ़ गए। मोरे जैसे ने जाने कित्ते उने सुनबे के लाने उते मैदान में बैठे रए हुइएं औ ने जाने कित्ते मोए जैसे टीवी के आंगू धुनी रमाए हुइएं। मनो उन्ने सो जे दिसम्बर के जड़कारे खों सरप्राईजन से गरमाने की ठान रखी आए। पैले उन्ने उने ने बनाओ जिनके लाने सबई खों उम्मीद लगी हती। फेर आए, औ ऊंसई से कढ़ गए। माईक मनो छूंछो सो ठाड़ो रओ गओ। अब का कओ जाए, उनकी लीला बेई जाने, मोरी तो इत्ती बु़द्धि नोंई के जे इत्ती बड़ी वारी बातें मोरी समझ में आएं। सो मैंने सोची के तनक भैयाजी के लिंगे पौंचो जाए। बे मोसे ज्यादा सयाने ठैरे। बे कछू बताहें। औ उते उनके आंगन में तनक धूप सोई सेकों जा सकत आए। मैं निकर परी भैयाजी के इते के लाने। अपने घरे के दुआरे पे तारा डारो औ कुची अपने पैजामा की खींसा में रख लई। मनो अब जे सई व्यवस्था हो गई आए के लुगाइयन के पैजामा औ सलवार में सोई खींसा (जेबें) बनाए जान लगे। ने तो कुची तो मानो कऊं फेर बी खोंस लेओ, पर आजकाल के मोबाईल, बे सो कऊं समाई नईं सकत। उनके लानेई जे खींसा बनाए जान लगे। पनना वारे किशोरजी भली करें बे डिजाइनर हरों की!
सो जो मैं भैयाजी के इते पौंची, सो बे धूप में पलका डारे बैठे दिखाने।
‘‘काए बिन्ना, अब तुमें अपने भैयाजी की याद आई? अब लौं कां रईं?’’ भैयाजी ने मोय तानो मारो।
‘‘कऊं नईं घरे टीवी देख रई हती। मैंने सोची के अपने नए वारे मुख्यमंत्री जू शपथ ले लेवें फेर आप के इते पौंचो जाए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘काय, तो का हमाए इते टीवी नइयां, के हम टीवी देखत नईं जानत? के जो तुम अपने घरे टीवी ने देखतीं तो नए वारे मुख्यमंत्री जू शपथ ने लेते़?’’ भैयाजी ने औरई खिंचाई करी।
‘‘अरे, ऐसो कछू नईं! बस तनक आलस सी हो रई हती, सो बिस्तर पे लेटे-लेटे बा प्रोग्राम देखों, मनो उत्तेपेई जड़कारो लगन लगो। बाहरे उत्ती समझ नईं परत, मनो भीतरे ज्यादा ठंड लगत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘चलो ठीक रओ! हमने सोई पूरो प्रोग्राम देखो। वैसे सांची कैं सो पैले उते को जंका-मंका देख के लग रओ हतो के प्रोग्राम लंबो चलहे। मनो पीएम के आतई सात तीनोई खों शपथ दिला दओ गओ औ फेर तुरतईं अपने पीएम जू छत्तीसगढ़ के लाने निकर गए। बाकी हम तो उनको सुनबे के लाने तरस गए।’’ भैयाजी ने बोई बात कै दई जो मोय लगी हती।
‘‘हऔ भैयाजी! मोय सोई दुख भओ, काय के उनको भाषण अच्छो सो लगत आए।’’ मैंने सोई अपने मन की बात कै दई। अपने पीएम सोई जेई पक्ष के आएं के अपने मन की बात कै दओ चाइए। सो मैंने सोई अपने मन की बात भैयाजी से कै दई।
‘‘अरे सुनो बिन्ना, काल बड़े मजे की बात भई! ’’ भैयाजी तनक चहक के बोले।
‘‘का बात भई?’’ मैंने पूछी।
‘‘ भई जे के तुम उनको जानत हो, बे पंडज्जी ढाना वारे! जो कभऊं-कभऊं हमाए इते आऊत रैत आएं।’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘हऔ! का भओ उनको?’’ मैंने पूछी।
‘‘उनको कछू नई भओ। बे काल हमाए इते आए रए दुफैरी में, जेई टेम पे। उने गल्लामंडी में कोनऊं काम रओ। उनको काम तनक जल्दी निपट गओ सो बे जात बेरा हमसे मिलबे खों चल आए रए। तुमाए लाने सोई पूछ रए हते।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, एक-दो दारे उनसे आपई के इते भेंट भई रई। सज्जन आदमी आएं।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! औ मजाकिया सोई ठैरे। काल बे कैन लगे के भैया अपन ओरें तो झटका खा गए। हमने पूछी काय को झटका? सो बे कैन लगे के झटका ईको के अपन ओरन ने वोट दओ रओ बिही के लाने औ अपन ओरन खों पकरा दओ गओ अमरूद। सो हमने कई पंडज्जी, जे बताओ के बिही औ अमरूद में कोन सो फर्क आए जो तुम इत्ते बिलाप कर रए? सो बे बोले के भैया तनक ध्यान से सुनियो! जो बिही कई जाए सो बचपन की जानी-पैचानी सी चीज लगत आए। मनो बोई बिही खों जो अमरूद कै दओ जाए तो कछू बाहरे की चीज लगन लगत आए। कछू ज्यादई पढ़ी-लिखी सी चीज। पंडज्जी की बात सुन के मोय कछू समझ ने परी। सो मैंने कई के कछू खुल के बोलो, हमें समझ ने पर रई। सो बे बोले के अच्छा चलो जे छोड़ो। हम तुमें दूसरे ढंग से बता रए के तनक सोचो के भौजी ने चाय बनाई औ तुमाए लाने ला के ई स्टूल पे रख दई। इत्ते में तुमाओ मकान मालिक आओ औ ऊने बा चाय को मग्गा उठा के दूसरे किराएदार खों पकरा दओ। मनो अब तुम ऊसे का कैहो? जो तुम कछू कैहो सो बा बोलहे के जैसे तुम हमाए किराएदार, ऊंसई जे हमाओ किराएदार। हम जे चाए तुमें पीने देंवे या चाए ईको पिवाएं, जे हमाई मरजी।’’ भैयाजी बोलई रै हते के मैंने उने टोंक दओ।
‘‘जे कोन सी बात भई? बा चाय मकान मालिक की थोड़े हती, बा तो भौजी ने बनाई हती, वा बी आपके लाने। बे ऐसो कैसे कर सकत आएं?’’ मोसे कै आई।
‘‘जेई तो! ठीक जेई हमने पंडज्जी से कई के तुम जे ठीक एक्जाम्पल नईं दे रए। सो हमाई बात सुन के पंडज्जी बोले के तुमें एक्जाम्पल की परी, औ इते जेई सब कछू हो बी गओ। तनक देर से, मनो जब हमें समझ में आई सो हम दंग रै गए के जे पंडज्जी खों कां-कां की बातें सूझत रैत आए? सो हमने उने चाय-माय पिला के बिदा करी। अरे, कोनऊं जे सब सुन के कछू और समझ लेवे, सो हमें लेबो को देबो पर जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कई भैयाजी! जमानो खराब आए। तिल को ताड़ बनबे में देर नईं लगत। मनो जे सोचो के जो हुइए, अच्छो ई हुइए।’’ मैंने कई।
भैयाजी ने सोई अपनी मुंडी हिलाई औ तनक चैन की सांस लई। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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