प्रस्तुत है आज 05.07.2022 को #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई डॉ विनीत मोहन औदिच्य के काव्य संग्रह "सिक्त स्वरों के सॉनेट" की समीक्षा... आभार दैनिक "आचरण" 🙏
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पुस्तक समीक्षा
सोनेट की विदेशी शैली का सुंदर भारतीय स्वरूप
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - सिक्त स्वरों के सोनेट
कवि - विनीत मोहन औदिच्य
प्रकाशक - सर्वभाषा ट्रस्ट, जे-49, स्ट्रीट नं.38, राजापुरी मेनरोड, उत्तम नगर, नई दिल्ली-59
मूल्य - 250/-
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सम्पूर्ण विश्व में काव्य का विविध विधाएं प्रचलित हैं। प्रत्येक संस्कृति यह दावा करती है कि काव्य का आरम्भ उसके पूर्वज मनीषियों ने किया। भारतीय संस्कृति में भी काव्य के आरम्भ को वैदिक ऋचाओं के रूप में देखा जाता है। वस्तुतः प्रथम काव्य तब रचा गया होगा जब आदि मानव ने अपनी बात सस्वर एवं लयात्मक ढंग से कहने का प्रयास किया होगा। यह मनुष्य की प्रवृति है कि वह अपने जीवन, अपनी कार्यविधाओं में विविधापूर्ण परिष्कार चाहता है। भारतीय साहित्य में विदेशी साहित्यिक शैलियों का समावेश किया जाना इसकी विविधता को बढ़ाने की दिशा में अर्थवान है। अनेक विदेशी काव्य शैलियां यथा हायकू, हायगा एवं सोनेट को हिन्दी तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में अपनाया गया है। यद्यपि हिन्दी काव्य में सोनेट अब तक अधिक लोकप्रिय तो नहीं हो सका है। हिन्दी में सोनेट को पहचान दिलाने और उसका पूर्वी संस्करण तैयार करने का श्रेय जाता है त्रिलोचन शास्त्री को। उन्होंने अंग्रेजी और योरोपियन सोनेट की शैली को अपना कर उसमें देसज परिदृश्यों को अभिव्यक्त किया। किन्तु त्रिलोचन के सोनेट कैल्टिक शैली के श्रमिक और मजदूरों की अभिव्यक्ति के सोनेट के रूप में सामने आए। इनमें कथ्य की गंभीरता थी किन्तु देसज होते हुए भी भाषाई चमत्कार की कमी थी। संभवतः इसीलिए हिन्दी के अन्य कवियों को यह विधा आकर्षित नहीं कर सकी।
त्रिलोचन शास्त्री के वर्षों बाद इस दिशा में गंभीरता से पहल की है डाॅ. विनीत मोहन औदिच्य ने। यूं तो डाॅ. औदिच्य की काव्यात्मक यात्रा ग़ज़लों से आरम्भ हुई लेकिन फिर उन्हें सोनेट ने भी आकर्षित किया। डाॅ. औदिच्य ने इस विदेशी विधा को अपनी ही दृष्टि से देखा और पहचाना। इसके लिए उन्होंने योरोपियन और लैटिन अमेरिकी सोनेट्स गहन अध्ययन किया। उन्होंने अंग्रेजी सोनेट्स का हिन्दी में अनुवाद किया जो ‘‘प्रतीची से प्राची पर्यंत’’ के नाम से पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। यह सोनेट्स का काव्यानुवाद है। इस पुस्तक में उन्होंने सोनेट की आंग्ल परम्परा के उद्गम की जानकारी देते हुए पश्चिमी कवियों के 67 सोनेट अनूदित किए गए हैं। डाॅ. औदिच्य के अनुसार -‘‘सोनेट की व्युत्पत्ति इटैलियन भाषा के ‘सोनेटो’ से हुई जिसका अर्थ है नन्हीं-सी संगीतमयी ध्वनि। मध्यकालीन इटली में विकसित यह काव्य विधा मानवीय भावनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति का उत्कृष्ट वाह सिद्ध हुई और अपनी अत्यंत लोकप्रियता के चलते शताब्दियों की यात्रा हुई सम्पूर्ण विश्व में फैल गई।’’
इसके बाद डाॅ. विनीत मोहन औदिच्य की दूसरी पुस्तक आई जो चिली के विश्वविख्यात कवि पाब्लो नेरुदा के सोनेट्स का काव्यात्मक अनुवाद है। इस पुस्तक का नाम है ‘‘ओ प्रिया’’। इस पुस्तक ने पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त की। चूंकि दोनों पुस्तकें मैंने पढ़ी हैं अतः दोनों ही पुस्तकों में मैंने पाया कि विनीत मोहन औदिच्य के अनुवाद की यह विशेषता है कि वे विदेशी भाषा के सोनेट के अनुवाद को हिन्दी में सोनेट के रूप में ही करते हैं। यह सोनेट विधा के प्रति उनके लगाव की वह शुरुआत थी जो अब उनके मौलिक सोनेट संग्रह ‘‘सिक्त स्वरों के सोनेट’’ के रूप में सामने आया है।
संग्रह के आरंभिक पृष्ठों में ही एक सोनेट है ‘‘मैं, नदी और सागर’’ जिसमें कवि नदी और सागर के साथ-साथ स्वयं के अस्तित्व को पहचानने का प्रयास करता है-
कौन हूं मैं? प्रश्न बारंबार मन को कर जाता ये विचलित
आया कहां से? कहां है जाना? सोच हो हृद विगलित
तन यथार्थ है या कथित आत्मा, कौन भला सत्य पहचाना?
अंतर का स्वर या संतों की वाणी, क्या सबने उसको माना?
यह कविता कवि के दार्शनिक विचारों का बोध कराती है। किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि कवि का जीवन दर्शन ‘स्व’ तक सीमित हो। वह हिंसा और अपराध से आतंकित एवं त्रस्त दुनिया के बारे में भी चिंतनरत है। कवि की दृष्टि में वे सारे दृश्य भी हैं जिनमें मानवता रोती-सिसकती दिखाई देती है और वह उन दृश्यों से व्यथित कर कह उठता है-
निंरतर गोलियों की बौछार, वीभत्स ढंग से मारे जाते लोग
रक्तरंजित असंख्य शव, कहीं कराहते मनुज पीड़ा भोग
बर्बरता की सीमाओं को लांघकर, आतंकी ठहाके लगाते
कहीं भूखे-प्यासे गिद्ध, चीलों के समूह आकाश में मंडराते
शब्दों के चयन के मामले में डाॅ. औदिच्य बहुत सतर्क हैं। वे एक-एक शब्द इस तरह चुन-चुन कर रखते हैं कि उस सोनेट में उन शब्दों से इतर किसी और शब्द के होने की गुंजाइश दिखाई नहीं देती है। एक उदाहरण देखें जिसमें कवि ने वसंत ऋतु का वर्णन किया है-
कल कल रव करतीं सरिता की लहरें हैं इठलातीं
शीत हवाएं शृंग शिखर की हिम को हैं पिघलातीं
कानन की पगडंडी पर खर उछल कूद है करता
विस्तृत मैदानों में प्रमुदित हिरण कुलाचें भरता
शब्दों को इस तरह साधा जाना सोनेट को रोचक बनता ही है, साथ ही उसकी संप्रेषणीयता को भी बढ़ा देता है। यही कारण है कि डाॅ. औदिच्य के सोनेट अपनी मौलिकता को मुखर करते हैं। इस संग्रह में अंतर्सम्वेदनाजनित राग-विराग से जुड़े सोनेट्स हैं। इनमें दुख भी है, सुख भी। मोह है, पीड़ा भी। लोक-कल्पना है तो लोक-यथार्थ भी-
है नहीं गंतव्य निश्चित श्रृंखला है पांव में
कुछ उनींदे स्वप्न ले कर मार्ग में हूं बढ़ रहा
शांति पाना चाहता मैं गुलमोहर की छांव में
मुक्ति का उन्माद मानो शीर्ष पर है चढ़ रहा
रामकथा के प्रसंगों को भी को भी कवि ने अपने सोनेट में बड़ी सुंदरता से पिरोया है। एक बानगी देखिए-
जब राम सिया ने वन जाने का पिता वचन पर लीन्हा प्रण
सौमित्र उठे तक व्याकुल हो, संग जाने और करने को रण
माता कैकयी ने जब पुत्र राज हित, षडयंत्रों का जाल बुना
नववधू उर्मिला मोह त्याग, तब वन के कंटक का मार्ग चुना
ये सोनेट्स गहन अनुभवों से रच-बस कर सामने आए हैं। इनमें नूतन बिम्ब हैं, मुक्त अभिव्यक्ति है और रचना कर्म का श्लाघनीय आचरण है जो इन्हें अन्य समकालीन काव्य से अलग पहचान देता है। इस दृष्टि से डाॅ. विनीत मोहन औदिच्य का यह सोनेट संग्रह ‘‘सिक्त स्वरों के सोनेट’’ विश्वास जगाता है कि हिन्दी साहित्य में सोनेट्स को एक स्थाई पहचान मिल सकेगी और पाठकों को पसंद आएगा।
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