Thursday, July 14, 2022

बतकाव बिन्ना की | सो हो गई डील पक्की | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात


मित्रो, "सो हो गई डील पक्की ! "... ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की
     सो हो गई डील पक्की !
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘काए बिन्ना, का कर रईं?’’ भैयाजी ने आतई साथ पूछी।
‘‘कछु नईं! ऊंसई बैठी सोच रई हती के का करो जाए।’’ मैंने कही।
‘‘तुमें काए की फिकर? तुमाए ऐंगर सो लिखबे-पढ़बे को मुतको काम आए। ठलुआ सो हम कहाने।’’ भैयाजी बिचारो सो मों बनात भए बोले।
‘‘रैन देओ भैयाजी, आप सोई ठलुआ नइयां, आपके लाने सोई मुतके काम रैत आएं, बाकी आप करो, ने करो जे बात अलग रही।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘नईं, मनो काम सो हम करत आए, पर सांची कहों सो जे हमाई जिनगी फजूल कहानी।’’ भैयाजी दुखी होत भए बोले।
‘‘का हो गओ भैयाजी, ऐसे काए कै रए?’’ मोए भैयाजी की चिन्ता होन लगी। बे जब ऐसे बोलत आएं सो मानो के कोनऊ बड़ी वारी गड़बड़ रैत आए।
‘‘औ नई तो का बिन्ना! इत्ती जिनगी निकर गई मनो हमने दुनिया देखी ने कहाई।’’ भैयाजी के बस टसुआं नई झर रए हते, बाकी उत्तई की कमी हती।
‘‘हो का गओ भैयाजी? आप ऐसी बातें काए कर रए? अब सो मोए डर लगन लगो। जे ऐसी डिप्रेशन वाली बातें ने करो। जे कोनऊ अच्छे लच्छन नईं कहाऊत आएं।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘सुनो बिन्ना, जो तुम हमाओ भलो चात हो सो हमाए लाने तनक अच्छो सो भाषण लिख देओ।’’ रोऊत से लग रए भैयाजी की अचानक बोलत की टोन बदल गई।
‘‘आपके लाने भाषण? काए?’’ मोए घोर अचम्भो भओ।
‘‘काए का? बोलबे के लाने लिखने आए भाषण।’’
‘‘आप भाषण देहो?’’
‘‘हऔ! ईमें अचरज कैसो? काए हम बोल के नईं जानत?’’ भैयाजी तिनकत भए बोले।
‘‘मोरो मतलब जे नइयां! मतलब जे के कहां बोलबे के लाने आप खों भाषण चाउने? कहूं कोनऊ सेमिनार हो रओ? के वर्कशाप हो रओ? कहां बोलने के लाने लिखने परहे?’’ मैंने पूछी।
‘‘चुनाव में बोलबे के लाने। नेतन घांई अच्छो कड़क भाषण लिख देओ। जो सुने बो हमाए लाने वोट डाले।’’ भैयाजी ने मोए समझाओ।
‘‘पर भैयाजी, चुनाव सो बढ़ा गए। जब सगरे चुनाव निपट गए तब आप मोए से चुनाव वारे भाषण लिखबे खों बोल रए? काए, मोरी परीच्छा लेन चात हो का के मोसे चुनावी भाषण लिखत बनत आए के नईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे, ऐसो नइयां! मोए पतो आए के तुम अच्छो भाषण लिख सकत हो, जे ई लाने तुमसे कै रए। ने तो आजकाल सो हमने सुनी आए के बड़े-बड़े नेता बाजार वारे गुरुअन से अपने चुनाव की पूरी योजना बनवाउत आएं। कहां का बोलने, कैसो पोस्टर बनवाने, पोस्टर पे कित्ती इंची की मुस्कान रखने, भुनसारे कोन सो कुरता पैनने औ दुफैरी को कोन सो पैनने जे सबई कछु उनके चुनाव गुरू तै करत आएं। उनके लाने भाषण लिखबे वारे अलग रैत आएं। कोनऊ-कोनऊ पढ़-पढ़ के बोलत आएं, सो कोनऊ-कोनऊ रट्टा मार के हाथ मट्टक्का कर के अपनी स्टाईल दिखात आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आपने बड़ी रिसर्च कर रखी कहानी। पर जे तो बताओ आप के जे अपनी रिसर्च पे ऊ टेम पे अमल काए नई करो जब लों चुनाव चल रए हते। आप को सोई कछु भलो हो जातो।’’ मैंने कही।
‘‘मोए जे चुनाव से कोनऊ लेबो-देबो नइयां। जे ऐसे छुटुकुल चुनाव कोन काम के? ईमें सो कोनऊ पूछत नइयां और ने कोनऊ कहूं राखबे लाने ले जात आए। जीतन वारे की कोनऊ वैल्यू नई कहानी ई चुनाव में।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का मतलब?’’
‘‘मतलब जे के बे जो विधायक हरों के चुनाव होत आएं, बे कछु चुनाव कहाऊत आएं। पक्ष में रओ सो सुद्ध घी की पुड़ी मिलहे औ जो विपक्ष में रओ सो सुद्ध घी के संगे खीर सोई मिलहे।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘जे सब आप का कै रए? मोए कछु समझ में नईं आ रओ।’’ भैयाजी की बातें सुन के सच्ची मोरो मूंड पिरान लगो। सो मैंने उनसे कही के,‘‘ भैयाजी, जो कछु कैने होय सो खुल के कओ। मोए लाने कछु समझ में सो आ रओ। जे बुझव्वल ने बुझाओ।’’
‘‘सो सुनो बिन्ना! अब अगलो चुनाव बड़ो वारो होएगो। सो हमने सोची आए के हम ऊ चुनाव में ठाड़े होबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘विधायकन के चुनाव में?’’ मोए भारी अचरज भओ। मोए लगो के भैयाजी को दिमाग कछु सरक गओ कहानो। ने तो भैयाजी इत्ती बड़ी बात ने बोलते।
‘‘हऔ! विधायक के लाने ठाड़े होबी।’’ भैयाजी ठक्का-ठाई से बोले।
‘‘सच्ची??’’ मोए यकीन ने आ रओ हतो।
‘‘हऔ तो सच्ची! अब का स्टाम्प पेपर पे लिख के देओं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘पर जे बात आप को सूझी कैसीे? आप सो जानत हो के बाहुबली औ धनबली को टिकट दई जात आए, आपकी ठैंरीं खींसा खाली। सो आपको को पूछहे?’’ मैंने समझाई।
‘‘बस्स, जे ई लाने सो हमें ऐसो भाषण चाउने के सबरे पार्टी वारे अपने संगे करबे के लाने हमाए चक्कर लगाएं। अबई जो नेता आएं, बे ओरें हो गए सब पुराने-सुराने। पब्लिक उनकी बातें सुन-सुन के पगलया गई। सो मोए जैसो नओ चेहरो उनके लाने मिलहे सो सबई सुनहें।’’ भैयाजी ने कही। उन्ने सो मनो सबई कछु सोच रखो हतो।
‘‘चलो, मान लई आप की बात। अब जे औ बता देओ के चुनाव में आप ठाड़े काए होन चात हो? जे ऊंसई सो नई सूझी हुइए।’’ मैंने पूछी।
‘‘अब तुमसे का छुपाने बिन्ना! बात जे आए के इतनी जिनगी निकर गई मनो हमने आज लों एकऊ रिसोर्ट नई देखो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘चुनाव से रिसोर्ट को का मेल?’’ मोए समझ में ने आई।
‘‘ठैरो हम समझा रै। ऐसा आए के हम का करबी के पैलऊं विपक्षी दलन से टिकट मांगबी। जो बे ओरें दे देहें सो ठीक, ने तो निर्दलीय ठाड़े हो जेहें। औ कैसऊं बी कर के चुनाव जीत लेबी। ई के बाद जोन के तरफा लोग कम हुइएं उनखों बहुमत बनाबे के लाने निर्दलइयों की जरूरत परहे। औ जो पक्ष वारन को जरूरत परहे सो वे ओरे विपक्ष वारन खों फोड़हें। औ असल बात जे आए बिन्ना के आजकाल बहुमत बढ़ाबे के लाने जोन की जरूरत परत आए उनखों ले जा के सबसे बढ़िया वारे रिसोर्ट में रखो जात आए। सो हमें सोई उड़न खटोला पे बिठा के कोनऊ रिसोर्ट में ले जाओ जेहे। सो हमें, मुफत में रिसोर्ट में रहबे के लाने मिल जेहे। आजकाल जे लाईन सबसे फायदा जेई को आए।’’ भैयाजी ने अपनी सगरी योजना बता डारी। 
मैंने सुनी सो मोरो मों खुलो को खुलो रै गओ।
‘‘सो, लिख देहो ने मोरे लाने भाषण?’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘हऔ! मनो जे डील कर लेओ के अपने संगे मोए सोई ले चलियो! काए से के मैंने सोई अब लों कोनऊ बड़ो वारो रिसोर्ट नईं देखो।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ डील पक्की! अब जब तुम भाषण लिख लइयो सो मोए बता दइयो। अब मोए बजार जाने, तुमाई भौजी खों भरवां वारे कारे भटां चाउने।’’ कैत भए भैयाजी कढ़ गए।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए भैयाजी अगली चुनाव में ठाड़े होंए, जे ने होंए, मोए का करने? मनो नेता हरन को बजार भाव दिन बा दिन बढ़त जा रओ, ईमें कोनऊं गिरावट नईं आ रई। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(14.07.2022)
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