बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
जबे भौजी ने भैयाजी खों पढ़ा दओ स्त्रीविमर्श को पाठ
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
मैं भैयाजी के इते पौंची तो देखों के भैयाजी औ भौजी में कोनऊं बात पे गिचड़ चल रई हती।
‘‘काय भैयाजी, का हो गओ? भौजी खों काय चिड़का रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम चिड़का रए? हम कऊं नईं चिड़का रए। जे खुदई दोंदरा दे रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! हमई तो दोंदरा दे रए। आप तो दूध के धुले ठैरे। मों बोलत नईं जानत।’’ भौजी बिगरत भईं बोलीं।
‘‘हऔ हम तो जनम से सीधे रए, तभई तो तुमाई चलत रैत आए।’’ भैयाजी सोई हथियार डारबे वारे ने हते।
‘‘देख लेओ बिन्ना, तुमाए सीधे भैयाजी खों! जे तो लड़कौरें में पानी को पप्पा कैत रए हुइएं।’’ भौजी तिन्ना के बोलीं। बाकी मोय भौजी की ‘‘पानी को पप्पा’’ वारी बात पे हंसी आ गई।
‘‘मनो हो का गओ?’’ मैंने अपनी हंसी पे ब्रेक लगाओ औ पूछो। काय से मोय लगो के कऊं भौजी बुरौ ने मान जाएं।
‘‘देखी जाए तो बात कछू नईयां। का भओ आए के हमने एक ठईंया बिलाउज सिलाओ आए। ऊकी पीठ तनक खुली आए। अब तुम तो जानतई आओ के आजकाल डोरियन वारो खुली पीठ के बिलाउज को फैशन आए। हमने पैन्ह के इनको दिखाओ तो जे बर्रयान लगे। के तुम ईको ने पहनियो। तुमई बताओ के हम काय ने पैन्हें? सबरी लुगाई सो ऊसे खुलो बिलाउज पैन्ह रईं। हमने तो तनक पीठई खुलवाई आए, बाकी जनी तो आगूं से बी खूबई नीचों करवा लेत आएं।’’ भौजी ने अपनो मसला मोय एकई संास में सुना डारो।
‘‘आप ठीक कै रईं भौजी! आजकाल तो इत्तो छोटो-छोटो ब्लाउज को फैशन आए के पतोई नईं परत के बे ब्लाउज आएं के कछू और आएं। बो का कहाउत आए ‘नूडल्स स्ट्रेप्स’ औ ‘स्ट्रेप्स लेस’। मनो सब चल रओ। आपने भैयाजी खों का टीवी सीरियल ने दिखाए? तनक इने सोई बे दिखा देतीं तो इनके बुद्धि के किवारें खुल जाते।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘हमाए बुद्धि के किवारें पैलई से खुले आएं। औ हमने खींब देखे आएं टीवी सीरियल। मनो बे ओरें ऊमें जो करत आएं, बे सब अपन ओरे सोई करें, जे जरूरी आए का?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात टीवी सीरियल की नईं हो रई, बात हो रई फैशन की। जोन फैशन चल रओ, ऊको अपनाए में का खराबी आए? का आपने कभऊं हिप्पी कट लम्बे बाल ने राखे हते के, कभऊं बेलबाटम ने पैन्हों रओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हऔ, लंबे बाल बी काढ़त्ते औ बेलबाटम बी पैन्हत्ते, मनो बा टेम हमाई ज्वानी को रओ।’’भैयाजी को कै आओ।
‘‘हऔ, सो अब आप बुढ़ा गए हुइयो, हम नोंई बुढ़ाए। औ जो बुढ़ाई गए हो, सो जे जींस-मींस काय पैन्हत आओ? धुतिया पैन्हों करे।’’ भौजी ने फेर के भैयाजी की खिंचाई करी।
मोय दोई की जा गिचड़ में जे समझ ने पर रई हती के जो भौजी ने बद्धियन वारो ब्लाउज सिलवा लओ सो, भैयाजी खों काय को पीरा हो रई? सो मैंने फेर के भैयाजी से पूछी।
‘‘मनो आप खों का कष्ट हो रओ? भौजी को जोन टाईप को ब्लाउज पैन्हने होय सो इने पैन्हन दो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हमें कोनऊं कष्ट नोंईं। जे पूरी खुल्ली पीठ पैन्हें सो हमें का? बात जे नोईं। हमाओ कैबे को मतलब जे आए के बा फैशन करो जोन में सई दिखाओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का मतलब?’’ मैंने पूछी।
‘‘मतलब जे बिन्ना, के इन्ने बद्धियन वारो खुली पीठ को बिलाउज सो बनवा लओ, मनो इने जे नईं दिखा रओ के इनकी पीठ पे बनत भए टायर सोई दिखा रए।’’ भैयाजी बोलई परे।
‘‘सो, हमाई पीठ, हमाए पीठ के टायर दिखान देओ, आप काय बिसुर रए? जे आप ओरन चात आओ के लुगाइयां ऊंसई दिखे, जोन टाईप की आप ओरन देखबो चात आओ। सबरी छत्तीस-चौबीस-छत्तीस की बनी रएं, चाय ई चक्कर में उनके प्रान काए ने कढ़ जाएं।’’ भैयाजी की बात सुन के भौजी को पारा सातवें आसमान पे जा पौचों।
‘‘देखो भैयाजी, भौजी सई कै रईं। फैशन में तनक-मनक सब चलत आए। अब सबरी कैटरीना कैफ तो बन नईं सकत, पर ईको मतलब जे नोंई के बे जया भदुड़ी के जमाने को फैशन करन लगंे।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘तुमाओ कैबो सई आए। हम बी जे नईं कै रए के जया भादुड़ी घांईं ‘मिली’ औ ‘गुड्डी’ के जमाने सी ढंकी-मुंदी रओ। मनो नओ फैशन पैन्हबे पे अच्छो बी तो लगो चाइए।’’ भैयाजी ने घुमा-धुमू के अपनो बोई राग फेर के अलाप दओ।
‘‘रामधई बिन्ना, जो इते संसद होती, सो हम इनको माईक खाली बंद नईं करते, बल्कि पूरोई पटा देते। जे कां की दए जा रए आएं।’’ भौजी ने बा छक्का मारो के मैं सो मैं, भैयाजी सोई मों बाए देखत रै गए। बड़ी गजबई की बात कै दई रई भौजी ने।
‘‘अरे, बा तो ऊंसई कओ जात आए के माईक बंद कर दओ रओ। कोनऊं ने माईक बंद ने करो हुइए, कोनऊं टेक्निकल गड़बड़ी रई हुइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जरूर टेक्निकल गड़बड़ी रई हुइए! तुम ओरें हम औरतन खों बोलन कां देत आओ? कछू ने कछू कर के हम ओरन की आवाज दबा दई जात आए।’’भौजी आज कछू औरई अवतार में हतीं। उन्ने ब्लाउज को छोड़-छाड़ के स्त्रीविमर्श को पकर लओ। आज भैयाजी की खैर ने हती। काय से के बात जब सबरी औरतन के अधिकारों की होय सो मोसे कैसो चुप रओ जातो?
‘‘ऐसो नइयां! इते घर में तुमई-तुम तो बोलत रैत आओ, हमने का कभऊं तुमें चुप कराओ?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बिन्ना तुमई बताओ के जो अपन ओरन खों इन ओरन के घांई सबई जांगा फिरबे औ बतियाबे खों मिले, तो अपन ओरें घरे काय बोलहें? अपन ओरें सोई बाहरे बतिया के बोलबे को कोटा खाली कर लैहें।’’ भौजी ने ऐसी बात कै दई जोन जे बड़ी-बड़ी स्त्रीविमर्श वारी ने कै पाती आएं। बे तो पईसा की आजादी, संबंधों की आजादी की बात करत आएं, बाकी बोलबे की आजादी की ई टाईप की बात तो करई नईं पात आएं।
‘‘आपने बिलकुल सांची कई भौजी! आपने मोरे दिल की बात आज कै दई।’’ मैं गदगद होत भई बोली।
‘‘नईं तुमई बताओ बिन्ना! हमने तो यां तक देखी आए के जो कोनऊं लुगाई संकारे से अखबार पढ़न लगे, सो ऊको घरवारो ऊसे अखबार छीन के कैन लगत आए के -तुम का करहो ईको पढ़ के, ईमें तुमाए जोग कछू नईंया। तुम तो चाय बना ल्याओ।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई भौजी! पढ़ी-लिखी लुगाइयां लौं अखबार पढ़बे की आदत नईं डार पात आएं, काय से के उने पढ़न नईं दओ जात आए। उने तो बस, चूला-चौका, चाय-नास्ता में उरझा के रखो जात आए।’’ मैंने भौजी की बात को समर्थन करो। काय से के भौजी खांटी सच्ची बोल रई हतीं। औ बा बी पूरी प्रैक्टिकल बात।
‘‘हमने कभऊं तुमे अखबार पढ़बे से टोंको का?’’ भैयाजी मासूम बनत भए बोले।
‘‘सीधे तो नईं टोंको। मने जब कभऊं हम संकारे अखबार ले के बैठे सो आपसे जे नईं भओ के आप चाय बना ल्याओ। हमई से कई के तनक एक कप चाय सो बना दइयो। अब तुमई बताओ बिन्ना! के जो एक बेर अपन ओरन के हाथन से अखबार छूटो औ अपन ओरें चौका में पौंचे, तो फेर उतई के काम-धाम में उरझ के रै जात आएं। है के नईं?’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई भौजी।’’ मैंने फौरन अपनी मुंडी हिलाई।
‘‘हऔ, हमें समझ में आ गई। अब हम तुमें कभऊं ने टोंकबी। तुम पैले अखबार पढ़ियो, औ हम तुमाए बाद पड़हें।’’ भैयाजी हथियार डारत भए बोले।
‘‘ज्यादा नाटक नोंई! घरे दो अखबार आत आएं। अपन ओरें संगे चाय बना के संगे पढ़बे काय नईं बैठ सकत आएं?’’ भौजी ने भैॅयाजी खों झारत भई कई।
‘‘हऔ, तुमने सई कई। जे तो हमने सोचोई ने हतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो सल्ल आए के अपन ओरन खों लरकौरें सेई ठांस-ठांस के जे समझा दओ जात आए के, जे काम लुगवा हरों को आए औ जे लुगाइयन को। जबके सबरे काम बच्चा जनबे के नईं होत के लुगवा हरें ने कर सकें।’’भौजी ने अपने स्त्रीविमर्श खों क्लाईमेक्स पे पौंचा दओ। मोय उनको जे रूप देख के भौतई अच्छो लगो। भैयाजी खों सोई समझ में आ गई औ बे बोल परे।
‘‘हऔ, हम समझ गए! तुमें जो पैन्हने होय सो पैन्हों, जो खाने हो सो खाओ, जां जाने हो जाओ, हम तुमें ने टोंकबी। तुम खुदई समझदार आओ।’’ भैयाजी की बात सुन के भौजी मुस्कान लगीं औ दोई की गिचड़ को सीजफायर हो गओ।
सो भैया हरों, आप ओरें सोई भौजी की बातन पे तनक गौर करियो। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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