Wednesday, August 21, 2024

चर्चा प्लस | विनेश फोगाट और पूजा खेडकर मामलों से सिर उठाते प्रश्न | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह


चर्चा प्लस  

विनेश फोगाट और पूजा खेडकर मामलों से सिर उठाते प्रश्न 
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                          
           पिछले दिनों देश को दो घटनाओं ने चौंकाया और उलझाया - रेसलर विनेश फोगाट को ओलंपिक में अयोग्य ठहराया जाना और दूसरी घटना थी ट्रेनी आईएएस पूजा खेडकर द्वारा धोखाधड़ी करके चयनित होना। दोनों एक दूसरे से एकदम विपरीत घटनाएं हैं लेकिन दोनों में एक समानता है, वह चयन प्रक्रिया व्यवस्था की है जिसने एक योग्य महिला को समूचे विश्व के सामने अपमानित होने की कगार पर पहुंचा दिया और दूसरा एक अयोग्य महिला को देश के सर्वोच्च योग्य पदों में से एक पर काबिज़ होने का मौका दे दिया। यह दोनों घटनाएं देश की विभिन्न चयन प्रक्रियाओं को लेकर कई प्रश्न उठाती हैं।     
समूचा देश उस समय स्तब्ध रह गया जब रेसलर विनेश फोगाट को पेरिस ओलंपिक में मात्र 100 ग्राम वजन अधिक होने के कारण अयोग्य घोषित कर दिया गया। सभी को यह निर्णय ओलंपिक संघ का अन्याय प्रतीत हुआ। इस घटना में अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का भी आरोप लगाया गया। सबसे अधिक चोट पहुंची स्वयं विनेश फोगाट को जो बड़ी उम्मीदें लेकर पेरिस ओलंपिक में शामिल होने पहुंची थीं। उनकी कई वर्षों की मेहनत एक पल में धराशायी हो गई। तीव्र विरोध के कारण मामले पर पुनर्विचार किया गया किंतु अंत में निर्णय विनेश फोगाट के विरुद्ध ही गया। देश की बेटी घर लौटी उसे भरपूर सांत्वना, सराहना और सम्मान दिया गया। लेकिन इन सब के बीच वह प्रश्न दबने नहीं चाहिए जिनके कारण विनेश फोगाट को पदक के बजाय लोगों के सांत्वना से संतोष करना पड़ा। एक खिलाड़ी के लिए पदक, और वह भी ओलंपिक पदक सबसे महत्वपूर्ण होता है, लोगों की सांत्वना उस खिलाड़ी की पीड़ा को मिटा नहीं सकती है। विनेश के प्रति सहानुभूति रखते हुए भी यह प्रश्न तेजी से उभर की 53 किलोग्राम वर्ग में चयनित होने वाली विनेश फोगाट को 50 किलोग्राम वर्ग में क्यों शामिल किया गया? 50 और 53 के अंतर को पाटे रखना क्या विनेश के लिए इतना आसान था? क्या विनेश इससे जुड़े खतरे को स्वयं नहीं भांप सकी? या फिर उन्हें पूरा विश्वास दिला दिया गया था कि वह इस बाधा को भी पार कर लेंगी।
किसी भी खिलाड़ी की ओलंपिक के लिए चयनित होने की इच्छा को समझा जा सकता है। हर खिलाड़ी का यह स्वप्न होता है कि वह एक दिन ओलंपिक में खेले। खिलाड़ियों को ओलंपिक में भेजे जाने के लिए कड़ी चयन प्रक्रिया होती है। जो खिलाड़ी अंतिम रूप से चयनित होता है उसे ही ओलंपिक में भेजा जाता है। अब जरा विनेश फोगाट के मामले पर ध्यान दें कि उन्हें 50 किलोग्राम वर्ग में क्यों चयनित किया गया। विनेश फोगाट ने 50 किलोग्राम और 53 किलोग्राम दोनों श्रेणियों में हिस्सा लेने का विकल्प चुना। इसके बाद वह 50 किलोग्राम का ट्रायल जीतती हैं और 53 किलोग्राम के ट्रायल में शीर्ष चार में रहती हैं। नियमों की अस्पष्टता के कारण विनेश फोगाट को यह नहीं पता था कि वह किस श्रेणी का हिस्सा होंगी। इसलिए उन्होंने दो श्रेणियों में हिस्सा लिया। फोगाट ने 2016 में रियो में ओलंपिक डेब्यू में 48 किलोग्राम वर्ग में हिस्सा लिया था। उन्होंने 50 किलोग्राम भार वर्ग में एशियन गेम्स का स्वर्ण पदक जीता, लेकिन एक साल बाद ही 2019 विश्व चैंपियनशिप में 53 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीता। वजन घटाने के लिए संघर्ष करने के कारण उन्होंने कैटेगरी बदली थी।
रेसलर अंतिम पंघाल ने 2023 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। इससे भारत को 53 किलोग्राम वर्ग में पेरिस ओलंपिक का कोटा मिला। भारतीय कुश्ती महासंघ के नियमों के अनुसार कोटा विजेता को यानी रेसलर अंतिम पंघाल को ओलंपिक के लिए जगह मिल गई थी। अब विनेश फोगाट असमंजस में थीं। उस समय भारत में कुश्ती का संचालन एड-हॉक कमेटी कर रही थी। उन्होंने विनेश से वादा किया था कि 53 किलोग्राम वर्ग के लिए ट्रायल होगा। लेकिन ऐसा शायद ही हो पाता क्योंकि रेसलिंग फेडरेशन का चुनाव हो गया था। संजय सिंह नए अध्यक्ष चुन लिए गए थे। फोगाट का मानना था कि डब्ल्यूएफआई की वापसी से उन्हें 53 किलोग्राम वर्ग में ओलंपिक में हिस्सा लेने का मौका नहीं मिलेगा। उनके पास 50 किलोग्राम वर्ग या 57 किलोग्राम का विकल्प था। उन्होंने 50 किलोग्राम चुना। इस वर्ग में उन्होंने आखिरी बार 2018 में हिस्सा लिया था। इसे लेकर विनेश ने कहा था, ‘‘मुझे 53 किग्रा कोटा के लिए ट्रायल को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी। आमतौर पर कोटा देश को मिलता है, लेकिन उन्होंने पहले ट्रायल नहीं किए थे। उन्होंने (एड हॉक कमेटी) कहा कि इस बार ऐसा नहीं होगा। मेरे पास ऐसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि मुझे ओलंपिक में हिस्सा लेना था।’’
देखा जाए तो विनेश फोगाट के सपने को चयन प्रक्रिया ने छला है। यदि वे 50 किलोग्राम के लायक उपयुक्त नहीं थी तो उन्हें स्पष्ट बताया जाना चाहिए था। एक तरह से रिस्क लेकर एक खिलाड़ी का पूरा करियर  दांव पर लगा दिया गया। जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि यह रिस्क थी या साजिश? इस पूरे विवाद के दौरान रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के तत्कालिन प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आंदोलन में विनेश की सहभागिता का प्रश्न भी उछला। जबकि प्रश्न यह भी उठाना चाहिए कि क्या खिलाड़ियों की शारीरिक योग्यता पर नजर रखने वाली मेडिकल बोर्ड यह समझ नहीं पाई की विनेश के लिए 50 किलोग्राम वजन बरकरार रखना कठिन हो सकता है?
यदि मेडिकल बोर्ड की बात करें तो दूसरा ज्वलंत प्रकरण पूजा खेडकर का है जिसने 40 प्रतिशत दृष्टिबाधित होने के आधार कोटे पर आईएएस चयन प्राप्त किया। वह कौन सा मेडिकल प्रैक्टिशनर था अथवा कौन-सी मेडिकल बोर्ड थी जिसने पूजा खेडकर को 40 प्रतिशत दृष्टिबाधित होने का प्रमाण पत्र दिया। सभी जानते हैं कि एक चपरासी की नौकरी में भी मेडिकल योग्यता का सर्टिफिकेट और पुलिस वेरिफिकेशन होता है। फिर यह तो देश का सबसे प्रतिष्ठित माना जाने वाला आईएएस का पद था। इसकी चयन प्रक्रिया में कहां-कहां शिथिलता रही जिसके कारण एक अयोग्य महिला कथित रूप से योग्यता की सीढ़ियां चढ़ती हुई ट्रेनी आईएएस अधिकारी बन गई। जब पूजा खेडकर का मामला जांच के घेरे में आया तो उससे जुड़ी कई और जालसाजियां सामने आईं। 
पूजा खेडकर सुसम्पन्न परिवार से है। पूजा के पिता दिलीपराव खेडकर महाराष्ट्र पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रिटायर्ड अधिकारी हैं। नाना जगन्नाथ बुधवंत वंजारी समुदाय के पहले आईएएस अधिकारी थे। पूजा की मां मनोरमा भलगांव की सरपंच हैं। पूजा ने पुणे के श्रीमती काशीबाई नवले मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। बाद में 2021 में यूपीएससी परीक्षा 841 वीं रैंक के साथ उत्तीर्ण की। ट्रेनिंग के बाद इसी वर्ष जून 2024 में उन्हें पुणे कलेक्टर आफिस में पहली नियुक्ति मिली। हालांकि पहली ही नियुक्ति में ट्रेनिंग के दौरान उन पर जांच बैठ गई और इसी बीच उनका ट्रांसफर कर दिया गया। पूजा ने विकलांगता श्रेणी के तहत यूपीएससी का आवेदन पत्र भरा था। दावा किया गया कि वह 40 प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं और किसी मानसिक बीमारी से जूझ रही हैं। हालांकि मेडिकल के दौरान वह हर बार नहीं पहुंची। एमबीबीएस कॉलेज में प्रवेश के समय भी दस्तावेजों की हेर-फेर के आरोप पूजा पर हैं। यह भी आरोप है कि पूजा ने आईएएस बनने के लिए झूठे दस्तावेज का इस्तेमाल करते हुए यूपीएससी के फार्म में खुद को ओबीसी नाॅन क्रीमी लेयर बताया। जबकि वह पूजा खेडकर खुद लगभग 17 करोड़ की संपत्ति की मालकिन है। यूपीएससी की एफआईआर में पूजा के नाम को लेकर भी एक प्रकरण है। यूपीएससी की नोटिस में पूजा खेडकर का नाम मिस पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर बताया गया है। यूपीएससी ने अपने एफआईआर में कहा गया है कि यूपीएससी 2022 की उम्मीदवार मिस पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर की जांच की गई है। यूपीएससी ने इसी नाम से पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई। इसके अलावा यूपीएससी के नोटिस में पूजा खेडकर की प्राइवेट ऑडी कार का भी जिक्र किया गया है। दस्तावेजों में यह खुलासा हुआ है कि पूजा खेडकर ने पहले अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखा था जिसे बाद में हटा दिया था और वर्ष 2020 मे उन्होंने किसी अन्य नाम से यूपीएससी परीक्षा के लिए आवेदन किया था।
प्रतिवर्ष देश के लाखों युवा कलेक्टर बनने की उम्मीद लेकर यूपीएससी परीक्षा में बैठते हैं। यह माना जाता है कि इस परीक्षा में सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्तम ही चयनित हो पाते हैं किंतु पूजा खेडकर मामले ने सारी चयन प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। यह कैसे संभव हो सका की पूजा खेड़कर फर्जी योग्यता के बल पर सिलेक्ट हो गई? सीधी सी बात है कि यदि सुरक्षा व्यवस्था में चूक हो तभी चोर कर चोरी कर पता है। लेकिन इस प्रकार की चोरी देश के लाखों युवाओं के सपनों को रौंदती हुई नजर आती है। यदि एक अयोग्य व्यक्ति का सिलेक्शन हो गया तो इसका अर्थ है की दूसरा योग्य व्यक्ति चयनित नहीं हो पाया, जिसे कि होना चाहिए था। इस तरह योग्यता का हक मारा जाना गहन जांच के दायरे में आता है। इसका सीधा सरोकार आम जनता से भी है क्योंकि जो युवा इन परीक्षाओं में शामिल होते हैं वे आमजन से ही आते हैं।
      चाहे विनेश फोगाट का मामला हो या पूजा खेडकर का, एक के साथ धोखा हुआ और दूसरे को धोखा देने का अवसर मिला जिसके लिए चयन प्रक्रिया की व्यवस्था जिम्मेदार है। विनेश को सपना दिखाया गया और उसने सपना देखा साथ ही भरपूर मेहनत की, लेकिन यह स्वप्न उस पर भारी पड़ा। इस चयन प्रक्रिया ने न केवल एक प्रतिभावान खिलाड़ी के मनोबल को तोड़ा बल्कि पूरे देश का सिर नीचा कर दिया। हम अपने को तसल्ली देने के लिए भले ही कितने भी आरोप-प्रत्यारोप कर लें किंतु जो सच है उसे अंततः स्वीकारना ही पड़ेगा। चूक विश्व ओलंपिक संघ में नहीं बल्कि भारतीय ओलंपिक संघ के चयनकर्ताओं द्वारा ही हुई है। इसी तरह पूजा खेड़कर के मामले में भी चूक चयन प्रक्रिया के दौरान ही हुई है, जहां कई स्तरों पर जांच होती है और सत्यता परखी जाती है।
दोनों मामले सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हुए। कुछ लोगों ने विनेश फोगाट के प्रति सहानुभूति जताई तो कुछ लोगों ने विनेश पर ही आरोप लगाया कि उन्होंने 50 किलोग्राम वर्ग में जाकर दूसरे का हक मारा है। इसी प्रकार पूजा खेड़कर को भी सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया और उस पर तरह-तरह के आरोप लगाए गए। लेकिन सिर्फ एक तरफ देखने से समस्या का हल नहीं होगा। फिर कोई विनेश फोगाट छली जाएगी और फिर कोई पूजा खेडकर छल कर जाएगी। यदि समस्या की जड़ तक पहुंचना है तो प्रत्येक क्षेत्र में चयन प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को सुनिश्चित करना होगा अन्यथा देश के युवाओं के साथ इसी तरह छल-कपट होता रहेगा। यूं भी व्यापम घोटाला की यादें अभी धुंधली नहीं पड़ी हैं।
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