चर्चा प्लस
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता वास्तविक बुद्धिमत्ता की जगह ले
सकती है?
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
एक अरसे से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कौतूहल का विषय बना हुआ है। अनेक संशय, अनेक प्रश्न, अनेक संभावनाएं। मानव का मस्तिष्क जिसका क्लोन यानी प्रतिकृति आज तक वैज्ञानिक नहीं बना पाए हैं क्या उसका स्थान ले सकेगा यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस? क्या यह विचारों की नई उर्वरता दे सकेगा? या फिर बुद्धिमत्ता को ही कुंद कर देगा? अब तो सोशल मीडिया के आॅप्शन्स में भी एआई शामिल कर दिया गया है। यदि आप कविता, कहानी, लेख नहीं लिख पा रहे हैं तो वह आपके लिए लिख देगा। तो, चलिए दृष्टि डालते हैं कृत्रिम बुद्धिमत्ता के औचित्य और अनौचित्य पर।
लगभग साल भर पहले एक साहित्य-गोष्ठी में विश्वविद्यालय के फार्मेसी विभाग के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर अतिथि के रूप में शामिल हुए थे। उन्होंने अपने उद्बोधन के दौरान एक कविता सुनाई और पूरी ईमानदारी से इस बात को बताया कि उनकी यह कविता उनकी लिखी नहीं बल्कि एआई अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के द्वारा लिखी गई है। उनकी यह बात कुछ लोगों को समझ में आई, कुछ को नहीं आई। आज भी कई लोग एआई को फोटो एडीटर एप्प मान लेते हैं। ज्ञान की यह कमी विशेष रूप से उन लोगों में है जो समय के साथ स्वयं को प्रौद्योगिकी में अपडेट नहीं कर पाए हैं। वे इंटेलिजेंस यानी बुद्धिमत्ता से परिचित हैं किन्तु आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता से नहीं। जबकि हाॅलीवुड की फिल्मों और बच्चों की काॅमिक्स में इसे दशकों पहले स्थान मिल गया था। फिल्म स्क्रिप्ट लिखने वालों और काॅमिक्स लेखकों को भले ही साहित्यिकारों श्रेणी में नहीं रखा जाता है किन्तु वेे एआई के खतरों को इसके विकास के साथ ही भांपते गए। वे इसके खतरों से आगाह भी कराते गए। फिर भी उनकी इस चेतावनी को साईंस फिक्शन मान कर अनदेखा कर दिया गया।
जी हां, 2010 में हॉलीवुड के निर्देशक क्रिस्टोफर नोलन द्वारा निर्देशित एक फिल्म आई थी ‘‘इन्सेप्शन’’। मूवी इनसेप्शन एक ऐसी दुनिया रचती है, जिसमें उन्नत तकनीक उपयोगकर्ताओं अपने सपनों को जीवंत कर सकते हैंै। फिल्म की कहानी में कॉब (लियोनार्डो डिकैप्रियो) एक कुशल चोर है, जो दूसरों के अवचेतन में घुसपैठ करके उनके रहस्यों को जानने की क्षमता रखता है। वह दूसरे के सपनों और विचारों में प्रवेश कर उनमें फेरबदल करने में माहिर है। फिर उसे उसके आपराधिक रिकॉर्डों को मिटाने के बदले आॅफर मिलता है, जिसमें उसे एक अन्य टार्गेट के अवचेतन में प्रवेश कर के नया आविष्कार शुरू करने को प्रेरित करना था।
हॉलीवुड में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर फिल्में बना ‘‘इनसेप्शन’’ से भी पहले शुरू हो चुका था। ‘‘ब्लेड रनर’’ (1982)। इस मूवी ने एआई के एक विशेष पक्ष को सामने रखा। यह फिल्म सिर्फ रोबोट का पीछा करने के बारे में नहीं थी। इसमें सहानुभूति, चेतना और मानव को मानव बनाने वाले तत्वों से जुड़े कुछ गंभीर सवालों पर चर्चा थी। एक गेमिंग के जरिए गहन विचारों तक पहुंचने की प्रक्रिया की भांति। फिर 2001 में आई फिल्म ‘‘ए स्पेस ओडिसी’’। स्टेनली कुब्रिक द्वारा लिखित ‘‘2001: ए स्पेस ओडिसी’’ प्रौद्योगिकी के साथ बहुत आगे जाने के जोखिमों के बारे में थी। इसका एक सबसे उल्लेखनीय हिस्सा है ‘एचएएल-9000’ नामक अत्यंत घातक कंप्यूटर। इस कंप्यूटर के माध्यम से लेखक ने बताया कि जब हम मशीनों को उनकी अपनी भलाई के लिए बहुत अधिक स्मार्ट होने देते हैं, तो उसका क्या परिणाम क्या हो सकता है। इस फिल्म ने इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया था कि क्या हम उस तरह की कृत्रिम बुद्धिमत्ता के लिए तैयार हैं जो एक दिन हमें मात दे सकती है?
‘‘द टर्मिनेटर’’ (1984) और ‘‘टर्मिनेटर 2 - जजमेंट डे’’ (1991) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विविध पक्षों को अपने तरीके से सामने रखा था। इसमें स्काईनेट नामक एक बेहद डरावने एआई के बारे में कहानी थी, जो मानव की आज्ञाओं से तंग आ जाता है और संपूर्ण मानव जाति के विरुद्ध एक युद्ध शुरू कर देता है।
2001 में स्टीवन स्पीलबर्ग द्वारा बनाई गई ‘‘एआई - आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’’। ।इसे एआई के बारे में सबसे भावनात्मक फिल्म माना जाता है। यह डेविड नाम के एक रोबोट लड़के के बारे में है जो बहुत ही उन्नत है और बस एक असली इंसान की तरह प्यार और जुड़ाव महसूस करना चाहता है। यह मूवी बताती है कि इंसान होने का क्या मतलब है और क्या कृत्रिम प्राणी कभी भावनाओं को महसूस कर सकते हैं। और इसके बाद यह फिल्म एक और प्रश्न छोड़ जाती है कि यदि कृत्रिम प्राणी में मनुष्य की सभी असली भावनाएं आ जाएं, तो क्या वह भी मनुष्य की भांति विद्ध््वंसक जाएगा?
एलेक्स गारलैंड की ‘‘एक्स मशीना’’ एआई पर बेहतरीन मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है। यह 2014 में रिलीज हुई थी। यह मूवी एआई पर सवाल उठाते हुए मानो पूछती है कि भविष्य में अधिकार किसका होगा, निर्माता का या सृजन का? फिल्म में सत्ता संघर्ष, मानसिक खेल और सुपर स्मार्ट रोबोट का त्रिकोण है।
‘‘द मैट्रिक्स’’ एआई पर वह बेहतरीन मूवी है जो डायस्टोपियन यानी भ्रम की अंधेरी कुटिल दुनिया में ले जाती है। जहाँ मनुष्य मूल रूप से सुपर-स्मार्ट मशीनों द्वारा बनाए गए एक विशाल कंप्यूटर सिमुलेशन में रह रहे हैं। यह मूवी प्रश्न उठाती है कि क्या प्रौद्योगिकी एक ऐसा भ्रम है जो सच को बदलने की ताकत रखता है? ‘‘यूटोपियन’’ एक ऐसे समाज का वर्णन करता है जिसे परिपूर्ण माना जाता है। डिस्टोपियन इसके बिल्कुल विपरीत है - यह एक काल्पनिक समाज का वर्णन करता है जो सीमातीत अमानवीय और अप्रिय है।
‘‘फिंच’’, ‘‘ट्रांसेंडेंस’’, ‘‘आई रोबोट’’, ‘‘एवेंजर्स: एज ऑफ अल्ट्रॉन’’, ‘‘एम3 जीएएन’’, ‘‘मदर/एंड्रॉइड’’ आदि अनेक फिल्में एआई पर बन चुकी है। इसी क्रम में 2023 में आई थी ‘‘द क्रिएटर’’। यह मानवता और अल्फा-ओ नामक एक क्रूर एआई हथियार के बीच संघर्ष गाथा है।
वर्षों पहले जादूगर मैंड्रेक नामक कॉमिक्स में ऐसे ही एक सुपर कंप्यूटर की घटना बयान की गई थी जिसमें पूरे शहर के और घर के सारे विद्युतचलित उपकरण सुपर कंप्यूटर से जोड़ दिए जाते हैं। यानी सभी उपकरणों का नियंत्रण सुपर कंप्यूटर का हो जाता है। एक दिन वह सुपर कंप्यूटर अपनी मनमानी पर उतर आता है और कभी वह यातायात के सिग्नल बदल देता है तो कभी टोस्टर से टोस्ट उछालने लगता है तो कभी वैक्यूम क्लीनर के वायर से गृहणी के गले में फंदा लगने लगता है। यानी वह आदेश मानने के बजाए आदेश दे कर सारे छोटे उपकरणों को अपना गुलाम बना लेता है और इंसानों के विरुद्ध विद्रोह कर देता है। जब उस सुपर कंप्यूटर को बंद करने का प्रयास किया जाता है तो वह संभव नहीं हो पाता क्योंकि दूसरे कंप्यूटर और छोटे-बड़े सभी हथियार सुपर कंप्यूटर के नियंत्रण में थे। तब जादूगर मैंड्रेक के मित्र लोथार के हाथ का एक घूंसा ही काम आता है। क्योंकि उसके बारे में उस सुपर कंप्यूटर को कोई जानकारी नहीं थी। यानी मनुष्य अपनी मौलिक एवं प्राकृतिक शक्ति से ही उस सुपर कंप्यूटर को मात दे पता है। देखा जाए तो उस सुपर कंप्यूटर के कई जेनरेशन आगे की कृति है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस। इसलिए इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कहां, कब, और कैसे नियंत्रण साधे रखा जाए।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जनक जॉन मैकार्थी के अनुसार यह बुद्धिमान मशीनों, विशेष रूप से बुद्धिमान कंप्यूटर प्रोग्राम को बनाने का विज्ञान और अभियांत्रिकी है अर्थात यह मशीनों द्वारा प्रदर्शित किया गया इंटेलिजेंस है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ है बनावटी (कृत्रिम) तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता। इसके जरिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क काम करता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर द्वारा नियंत्रित रोबोट या फिर मनुष्य की तरह इंटेलिजेंस तरीके से सोचने वाला सॉफ्टवेयर बनाने का एक तरीका है। सबसे मुख्य बात कि यह इसके बारे में अध्ययन करता है कि मानव मस्तिष्क कैसे सोचता है और समस्या को हल करते समय कैसे सीखता है, कैसे निर्णय लेता है और कैसे काम करता। इसकी क्षमता देखने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले सिस्टम का प्रयोग सन 1997 में शतरंज के दुनिया के नंबर वन खिलाड़ी गैरी कास्पोरोव के विरुद्ध प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के रूप में किया गया। जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम ने गैरी कास्पोरोव को हरा दिया। यह खुशी का पल भी था और ठहर कर सोचने का भी।
2018-19 के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह उल्लेख किया था कि केंद्र सरकार का थिंकटैंक नीति आयोग जल्दी ही राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता कार्यक्रम (नेशनल आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस प्रोग्राम) की रूपरेखा तैयार करेगा। चीन पहले ही अपने त्रिस्तरीय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कार्यक्रम की रूपरेखा जारी कर चुका था, जिसके बल पर वह वर्ष 2030 तक इस क्षेत्र में विश्व का अगुआ बनने की योजना बना रखी है। वर्तमान में भारत सरकार ने फिफ्थ जनरेशन टेक्नोलॉजी स्टार्ट अप के लिये 480 मिलियन डॉलर का प्रावधान रखा है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग इंटरनेट ऑफ थिंग्स, 3-डी प्रिंटिंग और ब्लॉक चेन शामिल हैं। इसके अलावा सरकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, डिजिटल मैन्युफैक्चरिंग, बिग डाटा इंटेलिजेंस, रियल टाइम डाटा और क्वांटम कम्युनिकेशन के क्षेत्र में शोध, प्रशिक्षण, मानव संसाधन और कौशल विकास को बढ़ावा देने के योजना बना रही है। इससे पहले पिछले वर्ष अक्टूबर में केंद्र सरकार ने 7-सूत्री रणनीति तैयार की थी, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करने के लिये भारत की सामरिक योजना का आधार तैयार करेगी।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में वह क्षमता है जो हमारी जीवनशैली को बदल सकती है। रोबोटिक्स और वर्चुअल रियलिटी जैसी तकनीकों से उत्पादन और निर्माण के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन आते जा रहे हैं। चिकित्सा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में यह बेहद उपयोगी है। लेकिन इसके अपने खतरे हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में बताया गया है कि केवल अमेरिका में अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोजगार खत्म हो जाएंगे। दूसरे खरे के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने-समझने वाले रोबोट अगर किसी कारण या परिस्थिति में मनुष्य को अपना दुश्मन मानने लगें, तो मानवता के लिये खतरा पैदा हो सकता है। सभी मशीनें और हथियार विद्रोह कर सकते हैं। ऐसी स्थिति की कल्पना हॉलीवुड की ‘‘टर्मिनेटर’’ फिल्म में की जा चुकी है।
दरअसल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कोई मामूली एप्प नहीं बल्कि वह प्रौद्योगिकी है जो भावी विकास और भावी विनाश के बीच की कड़ी रचती है। संयम से प्रयोग विकास के द्वार खोल सकता है और मनुष्य की सोचने सहित समस्त क्षमताएं मशीनों को सौंपना विनाश का कारण भी बन सकता है। यदि यह कोई पूछे कि क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता वास्तविक बुद्धिमत्ता की जगह ले सकती है? तो उत्तर होगा कि ‘‘बिलकुल!’’ लेकिन यह ठीक वैसे ही होगा जैसे हम अपने शारीरिक एवं मानसिक सारे अधिकार मशीनों को दे दें और उन्हें अपना क्लोन बना दें। फिर चाहे वे हमारी तरह दिमाग पा कर हमें ही अपना गुलाम बनाने लगें।
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