चर्चा प्लस
तिरंगे की कहानी और भारतीय राष्ट्र ध्वज संहिता
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
🇮🇳 ‘‘हर घर तिरंगा!’’ - यह महज़ अभियान नहीं, सम्मान है तिरंगे का। हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा मन में हमेशा जोश भर देता है। यह एक ध्वज मात्र नहीं है, यह हमारे देश के स्वतंत्रता की निशानी है। यह उन्मुक्त हवा में लहरा-लहरा कर बताता है कि हमारा देश स्वतंत्र है, हम स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। संघर्ष चाहे नरम दल ने किया या गरम दल ने, उद्देश्य एक ही था - देश की स्वतंत्रता। इन संघर्षों के साथ-साथ चलता रहा तिरंगा। इसने देखा है क्रांतिकारियों का बहता लहू, सविनय अवज्ञा और भूमिगत आंदोलन। इसलिए याद रखनी चाहिए अपने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की कहानी और साथ ही राष्ट्रीय ध्वज संहिता।
🇮🇳
लहर-लहर लहराए तिरंगा
फहर-फहर फहराए तिरंगा
- ये पंक्तियां राष्ट्रीय ध्वज के जनस्वरूप को बड़े सुंदर ढंग से व्यक्त करती है। स्वतंत्रता है तो सबकुछ है, अन्यथा कुछ भी नहीं। परतंत्र मनुष्य न सिर उठा सकता है, न अपनी बात कह सकता है, न खुल कर सांस ले सकता है। गुलामी से बढ़ कर और कोई अभिशाप नहीं है। हमारे पूर्वज, हमारे बड़े-बुजुर्ग इस अभिशप्त स्थिति से गुजरे थे। वे चाहते थे कि उनकी आने वाली पीढ़ियां गुलामी में न जियें। इसीलिए उन्होंने सतत संघर्ष किया। आत्म बलिदान दिया। फांसी चढ़े, गोलियां खाईं, डंडे खाए, अपनों को खोया, फिर भी अपने उद्देश्य, अपने लक्ष्य से रंचमात्र भी नहीं हटे। यदि वे घबरा कर अपने लक्ष्य से हट गए होते तो आज भी हम गुलामी में जी रहे होते और हमारे पास अपना घ्वज भी नहीं होता। पराए ध्वज को सैल्यूट करते रहना पड़ता।
आज हम तिरंगे को जिस आकार में देखते हैं उस आकार में इसे आने में पूरे 26 वर्ष लगे। भारत के राष्ट्रीय ध्वज को उसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि तिरंगे को पिंगली वेंकैया नामक व्यक्ति ने डिजाइन किया था। 1916 में पिंगली वेंकैया ने एक ऐसे झंडे के बारे में सोचा जो सभी भारतवासियों को एक धागे में पिरोकर रखें. उनकी इस पहल को एस.बी. बोमान जी और उमर सोमानी जी का साथ मिला और इन तीनों ने मिलकर ‘‘नेशनल फ्लैग मिशन’’ की स्थापना की। सन 1921 में आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने देश की एकता को दर्शाते हुए भारत का तिरंगा झंडा तैयार किया था। उस समय तिरंगे में केसरिया रंग की जगह लाल रंग था। लाल रंग हिंदुओं के लिए, हरा रंग मुसलमानों के लिए और सफेद रंग अन्य धर्मों का प्रतीक था। प्रगति के रूप में चरखे को झंडे में जगह दी गई थी। वैकेंया महात्मा गांधी से काफी प्रेरित थे। ऐसे में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के लिए उन्हीं से सलाह लेना उचित समझा। गांधी जी ने उन्हें इस ध्वज के बीच में अशोक चक्र रखने की सलाह दी जो संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने का संकेत बनेगा। पिंगली वेंकैया लाल और हरे रंग की पृष्ठभूमि पर अशोक चक्र बना कर लाए पर गांधी जी को यह ध्वज ऐसा नहीं लगा कि जो संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर सकता है। 1931 से लाल रंग को हटाकर केसरिया रंग का इस्तेमाल किया गया। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के विचार-विमर्श चलते रहे थे।
ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने से कुछ दिन पहले 22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा की बैठक में तिरंगे झंडे को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज बनाया गया। तिरंगे को पहली बार पं. जवाहर लाल नेहरू ने फहराया था। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। ध्वज की चैड़ाई का अनुपात इसकी लंबाई के साथ 2 और 3 का है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चैड़ाई के बराबर होता है और इसमें 24 तीलियां है।
भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत के नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवसों पर, बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रुकावट के फहराने की अनुमति मिल गई। अब भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को शान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते है। बशर्ते कि वे ध्वज की संहिता का कठोरता पूर्वक पालन करें और तिरंगे की शान में कोई कमी न आने दें। सुविधा की दृष्टि से भारतीय ध्वज संहिता, 2002 को तीन भागों में बांटा गया है। संहिता के पहले भाग में राष्ट्रीय ध्वज का सामान्य विवरण है। संहिता के दूसरे भाग में जनता, निजी संगठनों, शैक्षिक संस्थानों आदि के सदस्यों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में बताया गया है। संहिता का तीसरा भाग केन्द्रीय और राज्य सरकारों तथा उनके संगठनों और अभिकरणों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के प्रदर्शन के विषय में जानकारी देता है।
ध्वज को किस प्रकार फहराया जाए इस बारे में 26 जनवरी 2002 विधान पर आधारित कुछ नियम और विनियमन हैं। जैसे राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षिक संस्थानों (विद्यालयों, महाविद्यालयों, खेल परिसरों, स्काउट शिविरों आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता है। विद्यालयों में ध्वज आरोहण में निष्ठा की एक शपथ शामिल की गई है। किसी सार्वजनिक, निजी संगठन या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अरोहणध्प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों, आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता है।
पहले निजी घरों में तिरंगा फहराने का अधिकार नहीं था किन्तु नई संहिता की धारा 2 में सभी नागरिकों को अपने परिसरों में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया। लेकिन इसके साथ ही कुछ दिशा निर्देश भी तय किए गए हैं, जैसे- इस ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दें या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहां तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए। ध्वज को आशय पूर्वक भूमि, फर्श या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों के हुड, ऊपर और बगल या पीछे, रेलों, नावों या वायुयान पर लपेटा नहीं जा सकता। किसी अन्य ध्वज या ध्वज पट्ट को हमारे ध्वज से ऊंचे स्थान पर लगाया नहीं जा सकता है। तिरंगे ध्वज को वंदनवार, ध्वज पट्ट या गुलाब के समान संरचना बनाकर उपयोग नहीं किया जा सकता।
संहिता के बिन्दु 2.2 में स्पष्ट उल्लेख है कि जनता का कोई भी व्यक्ति, कोई भी गैर-सरकारी संगठन अथवा कोई भी शिक्षा संस्था राष्ट्रीय झंडे को सभी दिनों और अवसरों, औपचारिकताओं या अन्य अवसरों पर फहरा या प्रदर्शित कर सकता है। राष्ट्रीय झंडे की मर्यादा रखने और उसे सम्मान प्रदान करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाए-जब कभी राष्ट्रीय झंडा फहराया जाए तो उसकी स्थिति सम्मानजनक और पृथक होनी चाहिए। फटा हुआ या मैला-कुचैला झंडा प्रदर्शित नहीं किया जाए। झंडे को किसी अन्य झंडे अथवा झंडों के साथ एक ही ध्वज-दंड से नहीं फहराया जाए। संहिता के भाग-3 की धारा-9 में की गई व्यवस्था के सिवाय झंडे को किसी वाहन पर नहीं फहराया जाएगा। यदि झंडे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है, तो उसे इस प्रकार फहराया जाना चाहिए कि जब वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर हो तो झंडा उनके दाहिनी ओर रहे अथवा झंडे को वक्ता के पीछे दीवार के साथ और उससे ऊपर लेटी हुई स्थिति में प्रदर्शित किया जाए। जब झंडे का प्रदर्शन किसी दीवार के सहारे, लेटी हुई और समतल स्थिति में किया जाता है तो केसरिया भाग सबसे ऊपर रहना चाहिए और जब वह लम्बाई में फहराया जाए तो केसरी भाग झंडे के हिसाब से दाईं ओर होगा (अर्थात् झंडे को सामने से देखने वाले व्यक्ति के बाईं ओर)। जहां तक सम्भव हो झंडे का आकार इस संहिता के भाग-1 में निर्धारित किए गए मानकों के अनुरूप होना चाहिए। किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या उससे ऊपर या उसके बराबर में नहीं लगाया जाए और न ही पुष्प, माला, प्रतीक या अन्य कोई वस्तु उसके ध्वज-दंड के ऊपर रखी जाए।
फूलों का गुच्छा या पताका या बन्दनवार बनाने या किसी अन्य प्रकार की सजावट के लिए झंडे का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। जनता द्वारा कागज के बने झंडों को महत्वपूर्ण राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और खेलकूद के अवसरों पर हाथ में लेकर हिलाया जा सकता है। परन्तु ऐसे कागज के झंडों को समारोह पूरा होने के पश्चात् न तो विकृत किया जाएगा और न ही जमीन पर फेंका जाएगा। जहां झंडे का प्रदर्शन खुले में किया जाता है, वहां मौसम को ध्यान में रखे बिना उसे सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
इस प्रकार राष्ट्रीय ध्वज संहिता में ऐसे अनेक निर्देश दिए गए हैं जिनसे तिरंगे के सम्मान की रक्षा हो सके। इस संहिता की हर नागरिक को जानकारी उपलब्ध कराई जानी आवश्यक है ताकि वे अज्ञानता में तिरंगे के प्रति कोई अनुचित कार्य न कर बैठें। आखिर तिरंगा हमारा और हमारे देश का गौरव है। शायर वक़ार ख़लील के शब्दों में -
लहरा रहा है देखो आकाश पर तिरंगा
अम्न-ओ-अमां का पैकर झंडा वो रंग- बिरंगा
------------------------
#DrMissSharadSingh #चर्चाप्लस #सागरदिनकर #charchaplus #sagardinkar #डॉसुश्रीशरदसिंह
No comments:
Post a Comment