Wednesday, August 28, 2024

चर्चा प्लस | देश-विभाजन के विरोध में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गांधी जी को पत्र लिखा | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
देश-विभाजन के विरोध में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने गांधी जी को पत्र लिखा 
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                          
           यह माना जाता है कि महात्मा गांधी देश के विभाजन के पक्ष में थे किन्तु वस्तुतः वे आरंभ में विभाजन के पक्ष में नहीं थे। वहीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी आरंभ से अंत तक देश के विभाजन का विरोध करते रहे। विभाजन के विरोध में उन्होंने महात्मा गांधी को एक पत्र भी लिखा था जिसमें उन्होंने विभाजन के विचारों पर रोक लगाने के लिए ठोस तर्क भी दिए थे। इस महत्वपूर्ण पत्र ने महात्मा गांधी को भी विभाजन के विरोध में सहमत कर दिया था। क्या थे वे तर्क?     
        श्यामा प्रसाद मुखर्जी तत्कालीन राजनीतिक वातावरण से बहुत चिन्तित थे। अंग्रेज ‘फूट डालो और राज करो’ की अपनी कुत्सित नीति को अपना कर हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच मतभेद बढ़ाती जा रही थी। यह ऐसा समय था जब दोनों पक्षों को धैर्य वं विवेक से काम लेना चाहिए था किन्तु मुस्लिम लीग मुस्लिम राष्ट्र की संकल्पना को ले कर अपनी गतिविधियां बढ़ाता जा रहा था। जिससे वातावरण में कटुता बढ़ती जा रही थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्वयं हिन्दू समर्थक थे किन्तु वे वैचारिक दृष्टि से अतिवादी नहीं थे। वे शांति एवं एकता के पक्षधर थे। 
सन् 1940 में लाहौर में हिन्दू महासभा का अधिवेशन होना था। इस सम्मेलन में सभा के अध्यक्ष वीर सावरकर को आना था किन्तु अस्वस्थता के कारण वे सम्मेलन में नहीं आ सके। तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सभा का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया तथा सम्मेलन की सफलता का दायित्व भी सौंपा गया जिसे उन्होंने भली-भांति निभाया। आर्य समाज की ओर से 20 से 22 फरवरी सन् 1944 को दिल्ली में आॅल इंडिया आर्यन कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया। इस अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य देश के संभावित बंटवारे के विरूद्ध जनमत तैयार करना था। क्योंकि मुस्लिम लीग की हिन्दू विरोधी गतिविधियां बढ़ती जा रही थीं। सिंध प्रांत में मुस्लिम लीग के प्रशासन ने स्वामी दयानन्द सरस्वती की पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश’ पर प्रतिबंध लगा दिया था। अधिवेशन की अध्यक्षता के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आमंत्रित किया गया। अपने अध्यक्षीय भाषण में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा कि -             ‘‘मनुष्य को कायर बना देने वाली विषाक्त और हीन भावना का मूलोच्छेदन कर लोगों में व्यक्तिगत आत्मसम्मान, देश के प्रति अक्षुण्ण गौरव, दृढ़ वैचारिकता एवं देश की संस्कृति तथा सभ्यता के प्रति अनुराग को जगा कर आर्य समाज ने देश की बड़ी सेवा की है। कोई भी व्यक्ति जो भारत की एकता का विध्वंस करना चाहता है या विभाजन का सक्रिय समर्थन करता है, वह देश द्रोह के सबसे बड़े जुर्म का अपराधी है और उसका किसी भी मूल्य पर सामना करना चाहिए।’’
श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा आॅल इंडिया आर्यन कांग्रेस के अधिवेशन के मंच से दिए गए संदेश ने लोगों के मन में उत्साह का संचार किया और लोगों ने देश के बंटवारे के विरुद्ध अपना स्वर तेज कर दिया। क्रिप्स मिशन और देश के बंटवारे के विरोध के कारण मुस्लिम लीग तथा मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत को बंाट कर पाकिस्तान बनाए जाने की मांग को धीमा कर दिया। किन्तु तभी श्यामा प्रसाद मुखर्जी को एक बड़ा झटका यह जान कर लगा कि कुछ ही दिन पहले जेल से छूट कर आए महात्मा गंाधी ब्रिटिश सरकार द्वारा सुझाए गए तथा मुस्लिम लीग के हित में तैयार किए गए ‘सी. आर. फार्मूले’ के आधार पर मोहम्मद अली जिन्ना से मिलने का समय तय कर रहे हैं।  श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लगा था कि कम से कम महात्मा गांधी ‘सी. आर. फार्मूले’ की सिफारिश नहीं करेंगे। किन्तु अब वे देख रहे थे कि महात्मा गांधी सी. आर. फार्मूले पर मोहम्मद अली जिन्ना से चर्चा करने को तैयार हैं और इससे देश के बंटवारे की दिशा में एक कदम और उठ जाएगा। गंभीरता से सोचने-विचारने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने महात्मागांधी को एक पत्र लिखा -
   77, आशुतोष मुखर्जी रोड,
   कलकत्ता,
   19 जुलाई, 1944
   प्रिय महात्मा जी,
पत्रवाहक श्री मनोरंजन चैधरी आपके पास बंगाल की स्थिति के संबंध में कुछ नोट और पर्चे ले कर आ रहे हैं। अगस्त 1942 से राजनीति और खाद्यान्न के प्रश्नों पर बंगाल में जो घटनाएं हुई हैं, ये उन पर प्रकाश डालेंगे। आपके विचारार्थ सभी प्राप्तव्य सामग्री इनके हाथ भेजी जा रही है।
सच तो यह है कि श्री राजगोपालाचारी द्वारा श्री जिन्ना को दिए गए प्रस्ताव से हमें बहुत क्षोभ हुआ हैं हम उचित हिन्दू-मुस्लिम समझौते के लिए बहुत उत्सुक हैं, किन्तु श्री राजगोपालाचारी जो रास्ता अपना रहे हैं उससे लक्ष्य प्राप्ति होगी, हमें विश्वास नहीं। अपने अनुभवों के आधार पर आप भी जानते ही होंगे कि श्री जिन्ना कोई खेल खेलने के इच्छुक नहीं हैं। वे स्वयं को भारतीय नहीं मानते और समग्र भारत की स्वतंत्रता से, जिसके लिए भारतियों की कई पीढ़ियों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है, उनका कोई संबंध नहीं है। हमारे लिए बंगाल और भारत का संभावित बंटवारा घृणास्पद है।
अतः हमें बहुत दुख हुआ है कि बिना विभिन्न दृष्टिकोण को परखे आप भी उक्त प्रस्ताव से सहमत दिखाई पड़ रहे हैं। हम आपको कांग्रेस से महान मानते हैं और इस स्थिति में आपकी कोई भी स्वीकृति हम सबके लिए उद्वेगजनक हो सकती है। 
बंगाल की विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं के बहुत से लोगों की इस विषय पर जो विचारधारा है, मनोरंजन बाबू आपको अवगत कराएंगे।
हमें भय है कि श्री जिन्ना इस प्रस्ताव का अनुचित लाभ उठाते हुए हिन्दुस्तान और तथाकथित पाकिस्तान के क्षेत्रों में और लाभ पाने का प्रयास करेंगे। उत्पीड़न और उलझन की जिसका परिणाम होगा। ब्रिटिश सरकार आपके कथनानुसार इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी, क्योंकि उसे अपनी सत्ता का मोह है। श्री जिन्ना भी सक्रिय नहीं होंगे, क्यों कि वे नहीं चाहते हें कि गतिरोध समाप्त हो, किन्तु आपका विभाजन का सिद्धांत मान लेने का प्रस्ताव रहेगा, जिससे हमारी भावी कठिनाइयां और बढे़ंगी। 
मेरा आपसे अनुरोध है कि आप अपने निर्णय पर पुनर्विचार कीजिए। यदि श्री जिन्ना और मुस्लिम लीग को आपकी शर्तें मान्य नहीं हैं तो आप उनका अनुमोदन छोड़ कर अखण्ड भारत का समर्थन कीजिए। भारत विभाजन की किसी भी योजना के विरुद्ध केवल सन् 1942 के ‘हरिजन’ में आपने अपने विचार स्पष्टतम रूप में रखे थे। आपने ठीक ही लिखा था कि ऐसे किसी प्रस्ताव से हम लोगों में नए झगड़े उत्पन्न होने की आशंका रहेगी।
मेरा विचार है कि आपको भारत की स्वाधीनता के लिए  सभी दलों और जातियों के सहयोगब से अपनी योजना प्रस्तुत करनी चाहिए। जो लोग अल्पमतों के हितों की पूर्ण सुरक्षा के साथ पूरे भारत की स्वाधीनता के समर्थक हैं, उन्हें इस योजना को लोकप्रिय बनाने का आह्वान करना चाहिए। अनेक मुसलमान आज यह समझ रहे हैं कि पाकिस्तान बनना असंभव और एक छल है। ब्रिटिश सरकार भी मात्र अपनी सुविधानुसार श्री जिन्ना को समर्थन देती है। ऐसे नाजुक समय में आप श्री जिन्ना को, जो केवल मुस्लिम दृष्टिकोण से ही सोचते हैं, प्रोत्साहित कर रहे हैं। इससे लीग के इतने मुसलमानों को, जो राष्ट्रीय भावना से प्रेरित हो कर भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहे हैं, उन्हें बड़ा आघात पहुंचा है।
मुझे आशा है कि जिन प्रांतों में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, आप वहां उनकी शोचनीय परिस्थिति से अवगत होंगे ही। आपका कथन है कि उन शर्तों की स्वीकृति देते समय आपने अपने को एक हिन्दू नहीं अपितु भारतीय माना है। यदि आप एक भारतीय होने के नाते मुसलमानों की मांग का विशेष ध्यान रख कर श्री जिन्ना को प्रसन्न करने के लिए तैयार हैं, तब मैं एक हिन्दू होने के नाते हिन्दुओं के न्यायोचित और वैध अधिकारों की रक्षा करने के लिए आपसे क्यों न निवेदन करूं? यदि आप एक भारतीय हैं और आपका हिन्दू या मुसलमानों की किसी भी समस्या से संबंध नहीं है तो आपको अनिवार्य रूप से मुस्लिम लीग की अवहेलना कर देनी चाहिए और उन लोगों को सहयोग देना चाहिए जो केवल भारतीय हैं, और कुछ नहीं।
मैं तिलक जयंती के संबंध में एक अगस्त को पूना आ रहा हूं, वहां तीन दिन ठहरूंगा। इसके पूर्व मनोरंजन बाबू आपके  दर्शन करेंगे और यदि आपने उन्हें मेरे लिए कोई संदेश देने की कृपा की तो मुझे बतलाएंगे।
आशा है आप प्रसन्न होंगे!
सद्भावना सहित
भवदीय -
श्यामा प्रसाद मुखर्जी’’
अगस्त माह में तिलक जयंती पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी पूना गए। वहां से लौटते समय उन्होंने महात्मा गंाधी से भेंट की। उन्होंने गंाधी जी से विभाजन के मुद्दे पर चर्चा की तथा इस पर उनके विचार जानने चाहे। 
इस पर महात्मा गंाधी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को आश्वस्त किया कि -‘‘मेरे जीते जी भारत का विभाजन नहीं होगा।’’
महात्मा गंाधी के आश्वस्त करने के बाद भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी पूर्ण आश्वस्त नहीं हुए। उन्हें इस बात का अनुमान था कि यदि जिन्ना ‘सी. आर. फार्मूले’ पर सहमत हो गए तो महात्मा गंाधी भी उन्हें समर्थन देने से पीछे नहीं हटेंगे। इसके आगे की घटनाएं इस बात को सिद्ध करती हैं कि कई बार परिस्थितियां व्यक्ति से अनचाहा इतिहास लिखवा देती हैं। यही हुआ महात्मा गांधी के आश्वासन और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आशाओं के साथ। देश का विभाजन हुआ जिसकी पीड़ा आज तक हर भारतीय के हृदय को चीरती रहती है।
(विस्तृत जानकारी के लिए आप पढ़ सकते हैं सामायिक प्रकाशन, नईदिल्ली से ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व’’ श्रृंखला के अंतर्गत प्रकाशित मेरी पुस्तक ‘‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी’’।) 
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1 comment:

  1. भारत का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा इसे

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