Tuesday, August 27, 2024

पुस्तक समीक्षा | बच्चों को उनका बचपन लौटातीं कविताएं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 27.08.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई डॉ वंदना मिश्र जी की पुस्तक "चलो उजाले की ओर" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
बच्चों को उनका बचपन लौटातीं कविताएं  
समीक्षक - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक  - चलो उजाले की ओर (बाल कविता संग्रह)
कवयित्री - डॉ वंदना मिश्र
प्रकाशक - आईसेक्ट पब्लिकेशन ई-7/22, एस.बी.आई., अरेरा कॉलोनी भोपाल-462016
मूल्य    - 250/- 
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डिजिटल क्रांति ने बच्चों से मानो उनका बचपन छीन लिया है। उनकी खेलकूद की गतिविधियां बहुत सीमित हो गई हैं। अधिकांश समय वे अपने कंप्यूटर अथवा मोबाइल में डूबे रहते हैं। इसके साथ ही परिवारों के विकेंद्रीकरण ने बच्चों की उनके नाना-नानी, दादी-दादी आदि बुजुर्गों से दूरी बढ़ा दी है। आज छोटे बच्चे “एलेक्सा” जैसे यंत्रों से कहानी सुनते हैं। उन्हें कहानी सुनाने के लिए उनकी नानी या दादी उपलब्ध नहीं रहती हैं। एक मशीन भावनाओं के उतार-चढ़ाव सहित कहानी तो सुना सकती है, राइम्स भी सुना सकती है, लेकिन प्यार और ममत्व भरा स्पर्श नहीं दे सकती। फिर बच्चों पर पढ़ाई का बोझ भी इतना अधिक रहता है कि वे केजी-वन, केजी-टू से ही उस बोझ के तले दबने लगते हैं। ऐसे दुरूह समय में बच्चों को उनके बचपन की प्राकृतिक स्वाभाविकता से जोड़ना अत्यंत कठिन काम है। इस कठिन काम को आसान बनाने का उपाय अपनी कविताओं के माध्यम से किया है डॉ वंदना मिश्र ने। वे एक विदुषी साहित्यकार हैं तथा विभिन्न विधाओं में एक साथ सृजन कार्य कर रही है। उनके लेखन को जो महत्वपूर्ण बनता है वह उनका बाल साहित्य।
मध्य प्रदेश स्कूल शिक्षा में प्राचार्य पद से सेवानिवृत डॉ वंदना मिश्र बाल मनोविज्ञान को भली-भांति समझती हैं इसीलिए वे अपनी कविताओं में अत्यंत सरल शब्दों में बच्चों को जीवन का महत्वपूर्ण ज्ञान देने का यत्न करती हैं। इस दिशा में उनकी दो महत्वपूर्ण कृतियां “सांसों की सरगम” जो कि लोरी-प्रभाती संग्रह है तथा ‘‘भर लो तुम आकाश’’ बाल कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है। इसी क्रम में उनका ताज़ा बाल कविता संग्रह ‘‘चलो उजाले की ओर’’ प्रकाशित हुआ है। आईसेक्ट पब्लिकेशन ने इसे बड़े ही खूबसूरत ढंग से प्रकाशित किया है। इसमें बच्चों को ध्यान में रखते हुए सुंदर चित्र तथा फोटोग्राफ्स दिए गए हैं। पुस्तक का ब्लर्ब दिविक रमेश ने लिखा है तथा भूमिका डॉ विकास दवे ने तथा पुरोवाक महेश सक्सेना का है।
     कुल 168 पृष्ठों के इस बाल कविता संग्रह की कविताओं को विषय अनुसार छः खण्डों में विभक्त किया गया है। ये खण्ड हैं - प्रकृति की गोद में, हमारे सहचर, रिश्ते नाते, त्योहार, जीवन गीत और सीख। डाॅ. वंदना मिश्र एक संवेदनशील कवयित्री हैं। उन्हें पता है कि बच्चों को जीवन के प्रत्येक पक्ष से कैसे जोड़ा जा सकता है, यह बात उनके द्वारा चयनित विषयों से ही स्पष्ट है। वे अपनी कविताओं के द्वारा बच्चों को उनका वो बचपन लौटाना चाहती हैं जो उनसे छिनता जा रहा है। संग्रह की कविताएं इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य धीरे-धीरे हाशिए में चला गया है। कुछ कवि, लेखक आज भी प्रतिबद्ध रूप से बाल साहित्य का सृजन कर रहे हैं लेकिन बहुतायत बड़ों के लिए साहित्य रच रहे हैं। एक समस्या यह भी है कि अधिकांश बच्चे अंग्रेजी माध्यम के सुपुर्द हैं। जो हिन्दी माध्यम बच्चे हैं उन्हें भी उनके माता-पिता अंग्रेजी राइम्स सिखा कर खुश होते हैं जबकि मातृ भाषा की बाल कविताएं बच्चों को अधिक अच्छे से समझ में आती हैं और उन्हें आसानी से याद भी रहती हैं। डाॅ. वंदना मिश्र की कविताएं इतनी सरल हिन्दी में हैं कि इन्हें अंग्रेजी माध्यम बाले बच्चे भी सुगमता से पढ़ और समझ सकते हैं।
संग्रह की कविताएं प्रकृति से जोड़ती हैं, रिश्तों से जोड़ती हैं और त्योहार रूपी भारतीय संस्कारों से जोड़ती हैं। कवयित्री ने अपने संग्रह की आरंभिक कविता में बच्चों का आह्वान किया है। ‘‘देश के प्यारे बच्चे’’ शीर्षक की कविता का यह अंश -
छोटे-छोटे प्यारे बच्चे
मगर बड़े उजियारे बच्चे
नन्हें-मुन्ने दीप सरीखे
चंदा सूरज तारे बच्चे
बड़े-बड़ों को खूब छकाते
नटखट-नटखट प्यारे बच्चे।
       संग्रह में दूसरा खंड ‘‘हमारे सहचर’’ के नाम से है जिसमें प्रकृति के जड़-चेतन तत्वों पर केन्द्रित कविताएं हैं। जैसे एक कविता तितली पर है-‘‘तितली प्यारी आई है’’।
रंग-बिरंगे पंखों वाली
तितली प्यारी आई है
फूलों का रस लेने
उड़ती-उड़ती आई है।
झूम रही है इधर-उधर
रस ढूँढ रहे उसके अधर
इस डाली से उस डाली तक
घूम रही तुम कहाँ किधर।
गांवों से नगर और नगरों से महानगर में परिवर्तित होती बसाहट में प्राकृतिक हरियाली विस्थापित होती जा रही है। अपार्टमेंट्स में रहने वाले बच्चे न तो तितलियों को उनके उंमुक्त वातावरण में देख पाते हैं और न कौवों को। जीवन श्रृंखला के ये महत्वपूर्ण प्राणी नई पीढ़ी के लिए अजनबी बनते जा रहे हैं। इसीलिए सिर्फ तितली नहीं कौवे को भी कवयित्री ने अपनी कविता में स्थान दिया है -
कांव-कांव जब कौआ बोला
नींद गई आंखों को खोला
देखा था एक सपन सलोना
नया मिला था मुझे खिलौना।
रिश्ते-नातों से ही परिवार बनता है और परिवार जीवन जीने का सही तरीका सिखाता है। संग्रह के एक खंड ‘‘रिश्ते नाते’’ में उन पारिवारिक संबंधों की कविताएं हैं जो बच्चों के सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैसे एक कविता है ‘‘नानी आई’’। इसकी पंक्तियां देखिए-
देखो-देखो नानी आई,
लेकर नई कहानी आई
लेकर झोला भरी मिठाई
हँसती और मुस्काती आई।
मोटा ऐनक आँख में चमके
चम-चम-चम-चम बिंदिया चमके
लेकर खेल खिलौना आई
नानी आई- नानी आई।
इसी तरह एक कविता है जिसमें फूलों के माध्यम से कवयित्री ने बच्चों को पारिवारिक संबंधों का ज्ञान कराया है-
देखो-देखो फूल खिले
प्यारे न्यारे फूल खिले
एक बुआ का/एक पापा का
एक मम्मी का/एक दादा का
एक मामा का/एक मौसी
और गुड़िया का/सबसे सुन्दर
बड़ी बुआ का।
इसी खंड में एक कविता है ‘‘दादी सुनाओ एक कहानी’’। इस कविता में श्रीराम के जन्म से विवाह तक की संक्षिप्त कथा है। वहीं ‘‘त्योहार’’ खंड में होली, दीपावली आदि पारंपरिक पर्वों एवं राष्ट्रीय पर्वों पर कविताएं है। राखी पर लिखी गई कविता की कुछ पंक्तियां देखिए -
हर सावन में आती राखी
बहना से मिलवाती राखी
देखो कैसी मन भावन ये
रिश्ता मजबूत बनाती राखी।
इसी प्रकार ईद पर भी कविता है जो पारस्परिक भाईचारा सिखाती है-
होली, ईद, दीवाली, क्रिसमस
भारत के त्योहार
ईद-सिंवैया खिलाती है
मीठी ईद कहलाती है।
‘‘जीवन गीत’’ खंड में ऋतुओं से परिचित करातीं तथा प्रकृति को सहेजने का संदेश देती कविताएं हैं। ‘‘सीख’’ खंड में कथा कहती लंबी कविताएं हैं जो रोचक भी हैं और ज्ञानवर्द्धक भी।
डाॅ. वंदना मिश्र का बाल कविता संग्रह ‘‘चलो उजाले की ओर’’ बच्चों के लिए उपयोगी कविताओं से भरपूर है। ये कविताएं बालमन के अनुरुप लिखी गई हैं। इनकी सरल, सहज भाषा, छोटी-छोटी पंक्तियां सुगमता से याद रह जाने वाली हैं। यह संग्रह मात्र बच्चों को ही नहीं, उन बड़ों को भी पसंद आएंगी जो अपने बच्चों को काव्य के द्वारा ज्ञान और बचपन दोनों से जोड़े रखना चाहते हैं। इस संग्रह को निर्विवाद रूप से बाल साहित्य की अनुपम कृति कहा जा सकता है।
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