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बतकाव बिन्ना की
बा ऊपरे सुफेद बनो रओ, भीतरेे करिया निकरो
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
दोरे की घंटी बजी। मैंने बायरे झांक के देखो। भैयाजी औ भौजी दिखानीं।
इत्ते टेम? दुफैर के साढ़े ग्यारा बज रए हते। जा टेम तो उन ओरन के खाबे-पीबे को होत आए? ऐसे टेम पे बे घाम में काए निकरे? मोय तनक अचरज भओ। चिन्ता भई। बाकी मैंने तुरतईं बायरे जा के दोरे खोलो।
‘‘आप ओरे ई टेम पे? सब ठीक तो आए?’’ मोसे पूछे बिगर ने रओ गओ।
‘‘हऔ सब ठीक आए! पैले तो पानी पिला बिन्ना! बायरे भौतई गरमी आए।’’ भैयाजी कैत भए सोफा पे आ बैठे। पांछू से भौजी सोई रुमाल से अपनो मों पोंछत भईं भीतरे आईं औ कैन लगीं,‘‘जा तो घाम में अभई से लुघरिया सी छू रई। ऐसो लग रओ मनो बायरे आगी-सी लगी होय।’’
‘‘हऔ, जब के अबे तो अप्रैल ई चल रओ। मई औ जून में का हुइए?’’ कैत भई मैंने पंखा चलाओ औ किचन में जा के दो गिलास पानी ले आई।
‘‘अबे फ्रिज में बाॅटलें धरनी सुरू र्नइं करी?’’ भैयाजी एक बेर में गिलास को पूरो पानी गटकत भए पूछन लगे।
‘‘अबे नईं! अबे का आए के मौसम बदल सो रओ आए औ ऊंसई मोय प्रिज को ठंडो पानी नईं पोसात। मोय तो घड़े को पानी अच्छो लगत आए। बाकी नओ घड़ो अबे ले ने पाई। एकाद दिनां जाबी तो लाबी।’’ मैंने भैयाजी खों बताई औ पूछी, ‘‘औ लाओं?’’
‘‘नईं! तनक देर में चाय जरूर बना लइयो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप औ, बिन्ना खों काए परेसान कर रए? घरे चलियो सो हम पिबा देबी।’’ भौजी ने भैयाजी खों टोंको।
‘‘ईमें परेसानी काय की? आप सोई गजब की कै रईं? अभईं बनाऊं के तनक देर में?’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘तनक ठैर के!’’ भौजी बोलीं।
‘‘आप ओरें आ कां से रए?’’ मोए पूछे बिगर रओ नईं जा रओ हतो।
‘‘अरे का बताएं, बिन्ना! संकारे चार बजे बा दमोए वारी चाची को फोन आओ के बे ओरें सागरे आ रए चाचा जू खों इते चेकअप कराने खों। औ उन्ने हम दोई खों उते तला के ऐंगर वारे अस्पताल पे मिलबे खों बोलो। सो सुभै सात बजे हम दोई उते अस्पतालें पौंचे।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘सरकारी वारे में?’’ मैंने पूछी।
‘‘नईं, उते जोन प्राईवेट अस्पताल बनी आए। बा संजय ड््राईव के इते, ऊ वारे में।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘का हो गओ चाचा जी खों?’’ मैंने पूछी।
‘‘अबे कछू नईं भओ। बाकी हम दोई खों बी जेई लगो हतो के उनकी तबीयत ज्यादा बिगरी हुइए, तभईं बे ओरें उने ले के सागरे आ रए। मनो उते अस्पताले पौंच के पतो परो के अबे उने कछू नईं भओ, बस, तनक डरा गए।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘डरा गए मने? काय से डरा गए?’’ मैंने पूछी।
‘‘भओ का के दो-ढाई मईना पैले उनके सीने में दरद उठो रओ। उन्ने उतई दमोय में डाक्टर खों दिखाओ। दो दिनां भरती बी रए। डाक्टर ने बताई रई के हल्को सो अटैक आओ रओ। बाकी अब तो लग रओ के बा हार्ट को अटैक रओ के गैस को अटैक? डाक्टर ने सई बताओ रओ के नईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘काए? आप ऐसो काए कै रए? जबे डाक्टर ने हार्ट को अटैक कओ रओ, तो हार्ट ई को अटैक रओ हुइए।’’ मैंने कई।
‘‘कछू नईं कओ जा सकत बिन्ना! देख नई रईं, बा फर्जी डाक्टर खों कैसे पुलिस पकर लाई।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, बा तो गजब को फ्राडिया निकरो।’’ मैंने कई।
‘‘औ का! ओई को तो दिखाओ रओ इन ओरन ने। सो अब डरा गए के का पता ऊने का दबाई दई, औ का करो। कईं अब ने कछू हो जाए। मनो इत्ते दिनां बाद कछू ने हुइए। पर दिल में डर तो बैठई जात आए। सो चाचा जू खों जब से पता परी के बा डाक्टर फर्जी निकरो तब से बे घबड़ा रए हते। फेर उनके बड़े वारे मोड़ा ने सोची के जो पैले सई को हार्ट अटैक ने बी आओ रओ हुइए तो अब घबड़ात-घबड़ात सई को हार्ट अटैक आ जाहे। सो ऊने चाचा जू से कई के सागरे चल एक बेर पूरो चेकअप करा लेत आएं सो सबरी संका मिट जैहे। जेई लाने बे ओरे भुनसारे निकर परे इते के लाने।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘तो बे ओरें अब कां आए? लौट गए का?’’ मैंने पूछी।
‘‘नईं, बे ओरे उतई आएं। पूरी जांच कराबे में अबे टेम लगहे। बाकी अरजेंट में ज्यादा पइसा दे के संझा लों रिपोर्टें मिल जैहे। जे ठीक रओ के अबे जो डाक्टर ने चेकअप करो तो बे बोले के घबड़ाने की कोन ऊं बात नोंई, सब ठीक आए। बाकी जांच में पूरो पतो पर जैहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हमने तो उन ओरन से कई रई के घरे चलो, भोजन-पानी कर के अस्पताले पौंच जाइयो। सो बे ओरें कैन लगे के दूर परहे। औ अबे मुतकी जांचे होने, इतई रुकबे से रिपोर्ट के लाने टोंकत रैबी। फेर बे ओरे हम ओरन से बोले के आप ओरे जाओ, जो कछू जरूरत परहे तो हम फोन कर देबी औ जो सब ठीक निकरहे सो बा बी बता देबी। सो, उनको कैबो बी ठीक हतो, हम ओरें उते रुक के करत बी का? इन्ने उन ओरन खों उते नास्ता-पानी करा दओ औ उतई की एक होटल में एक कमरा दवा दओ, के बे ओरें आराम कर सकें। सपर-खोंर सकें।’’ भौजी ने बताई।
‘‘जा ठीक करो। इते तक आबे में उन ओरन खों परेसानी तो होती। संगे टेम बी खराब होतो। चलो मैं अब चाय बना रई। चाय पियत भए आगे की कैबी-सुनबी।’’ कैत भई मैं उठ खड़ी भई।
किचन में पौंच के मैंने तुरतईं। कुकर में एक डब्बा में दाल धरी और दूसरे में चाऊंर। दूसरे छोटे कुकर में आलू उबलने खों धर दए। फेर चाय को पानी चढ़ाओ। तीन बर्नर वारो चूला को जेई तो फायदा रैत आए के तीन काम एक संगे करो जा सकत आएं। जब लौं मैं चाय छान के बैठक में पौंची, उत्ते में दोई कुकर सीटी मारन लगे।
‘‘काय, तुमाओ खाना नईं बनो का? तुम तो जल्दी बना लेत आओ?’’ भौजी ने कुकर की सीटी सुन के पूछी।
‘‘मोरो खाना तो बनो धरो, जा तो आप ओरन के लाने बना रई। अब का थके-थकाए घरे जा के आप बनाहो का?’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘बिन्ना, तुम औ परेसान हो रईं!’’ भौजी खों संकोच लगी।
‘‘ऐसो बोल के मोरो जी ने दुखाओ। आप ओरे चाय पी लो फेर सब्जी छौंक के तुरतईं रोटी बना देबी, सो अच्छे से भोजन करियो औ आराम करियो। काय से जब कोनऊं के बीमारी की खबर मिले तो सरीर से ज्यादा जी में थकान हो जात आए।’’ मैंने कई।
‘‘सई में! पर देख तो बिन्ना, बा कैसो राच्छस डाक्टर आए, ऊको तनकऊं ने लगो के बा कित्तो बड़ो पाप कर रओ?’’ भौजी बोलीं।
‘‘औ का।’’ भैयाजी सोई बोल परे,‘‘ ऊने तो राष्ट्रपती जू की नकली सील-सिक्का लगा के फर्जी सर्टीफिकेट बना लओ। औ ऊपे गजब की बात जे के हार्ट की सर्जरी करत्तो ससुरो...।’’भैयाजी ने ऊके लाने तनक गारी-सी दई। बाकी ऊने कामई ऐसो करो, गरियाबे जोग।
‘‘सई कै रए भैयाजी आप! आदमी डाक्टर खों भगवान मानत आए औ अपनी जिनगी ऊके हाथ में सौंपे के सोचत आए के जा सब ठीक कर दैहे। जो ठीक आए के डाक्टर भगवान नईं होत, पर जा तो शैतान निकरो। डाक्टरी पढ़ी नईं औ कलेजा चीरन लगो, ऐसे में मरीज को रामनाम सत्त ने होतो तो औ का होतो? ऊ पापी खों तो कर्री सजा मिलो चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘बा तो ठीक आए बिन्ना! अब तो ऊको पुलिस ने पकर लओ आए और केस फाईल कर दई गई हुइए, मनो जे बताओ के ऊके कागज-पत्तर पैले कोनऊं ने चैक ने करे? औ जोन ने नईं करो या मिली-भगत करी, उने बी पकरो जाओ चाइए। बोलो सई के नईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बिलकुल सई। ऊकी लाईसेंस औ डिगरी पैलई चैक कर लए जाते तो इत्ते लोग बेमौत ने मरते।’’ मैंने कई।
‘‘सई में बिन्ना! सबने ऊको देवता घांईं समझो औ मों मांगी फीस दई। औ मिलो का? जान औ चली गई। औ जोन की जान नईं गई बे अब चाचा जू घांई डरात फिर रए के उनको इलाज पैले ठीक करो गओ के नईं। बे ओरंे ऊसईं डरा-डरा के मरे जा रए। कित्तो नीच आदमी आए बा। डाक्टर को सुफेद कपड़ा पैन्ह के करिया काम कर रओ हतो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, बा ऊपरे से सुफेद बना रओ, भीतरे से करिया निकरो। बाकी अब ऊ को औ ऊ के सबई संगवारों खों अच्छी बत्ती दओ जाओ चाइए।’’ भैयाजी बोले। औ कोनऊं बात होती तो मोय भैयाजी को ऐसो कैबो बुरौ लगतो, मनो बा पापी तो गरियाबे जोग ई आए।
‘‘चलो मैं सब्जी छौंक के रोटी बना रई, तब तक आप ओरें हाथ मों धो लेओ।’’ मैंने भैयाजी औ भौजी से कई।
बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। तब लौं मनो सोचियो जरूर ई बारे में के ईमें सासन वारन की भी लापरवाई आए के नईं?
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