Friday, April 4, 2025

शून्यकाल | स्त्री शक्ति का स्मरण कराती है नवरात्रि | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर


दैनिक 'नयादौर' में मेरा कॉलम -
शून्यकाल
स्त्री शक्ति का स्मरण कराती है नवरात्रि

- डॉ (सुश्री) शरद सिंह

     ‘देवी’ का अर्थ है निर्भयता और शक्ति। नवरात्रि वह काल खण्ड है जिसमें देवी के प्रतीक को स्थापित कर के शक्ति की उपासना का अनुष्ठान किया जाता है और देवी के रूप में शक्तिसम्पन्न निर्भय स्त्री की कल्पना को साकार किया जाता है। नवरात्रि में देवी भगवती के नौ रूपों में नौ शक्तियों की पूजा की जाती हैं। यह नौ शक्तियां स्त्रीशक्तियां ही तो हैं। निर्भय स्त्री ही देवी है, जो असुरों का संहार करने, जो देवताओं और सम्पूर्ण जगत् का कल्याण करने की क्षमता रखती है। जो जगत् की जननी है, मां है, वही शक्ति है। इसीलिए इस पर्व के धार्मिक महत्व के साथ ही हमें इसके व्यावहारिक महत्व को भी समझना होगा। वस्तुतः नवरात्रि पर्व स्त्रियों का सम्मान का पर्व है।


सम्मान किया जाता है। उसे समाज में बराबरी का दर्जा दिया जाता था। पौराणि ग्रंथों में ऋषितुल्य विदुषी स्त्रियों का उल्लेख मिलता है। किन्तु हमारे अतीत में वह काला समय आया जो भारतीय इतिहास में मध्यकाल के नाम से जाना जाता है। विदेशी हमलावरों ने भारतीय पुरुषों को भ्रमित कर के स्त्री सम्मान के मायने ही बदलवा दिए। उन्होंने यह मस्तिष्क में बिठा दिया कि यदि स्त्री को परपुरुष स्पर्श भी कर ले तो उसे आत्मदाह कर लेना चाहिए। इससे भी आगे बढ़ कर एक पाठ और पढ़ाया कि परपुरुष की कुदृष्टि मात्र से बचने के लिए स्त्रियों को तलवार नहीं उठानी चाहिए बल्कि जौहर कर लेना चाहिए। दुर्भाग्य यह कि मातृशक्ति को देवी के रूप् में पूजने वाला पुरुष समाज इस तरह के पाठों को आत्मसात करता चला गया और स्वयं स्त्री समाज आत्महत्या में अपने सम्मान का प्रतिबिम्ब देखने लगी। लेकिन कहा जाता है न कि बुराई के पैर भले ही मजबूत दिखाई दें लेकिन होते कमजोर ही हैं और जल्दी थक जाते हैं। इन बुराइयों के पैर कई दशक बाद थके लेकिन अंततः थक कर चूर-चूर हो गए। जौहर और सती प्रथा बंद हुई। लेकिन इन काले दशकों ने स्त्रियों को शिक्षा, निर्णय लेने के अधिकार, कोख पर अधिकार और यहां तक कि खुली हवा से भी वंचित कर दिया। विचित्रता यह कि जब स्त्रियां दलित बनाई जा रही थीं, उस दौरान भी देवियां पूज्य रहीं। काल्पनिक शक्ति के सामने समाज ने सिर झुकाया किन्तु प्रत्यक्ष शक्ति को लम्बे समय तक अनदेखा किया। इतना अधिक अनदेखा किया कि आज भी समाज स्त्रीशक्ति को पूरी तरह से नहीं देख पा रहा है। शायद इसीलिए नवरात्रि के रूप में देवी के नौ रूपों वाली नौ शक्तियां प्रति वर्ष दो बार समाज के सामने आती हैं ताकि समाज स्त्रीशक्ति को पहचाने और उसे अपना सहभागी बनाए। नवरात्रि तो यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण दिलाता है, साथ ही सकल समाज को नारी शक्ति का सम्मान करन के लिए प्रेरित करता है।

मां दुर्गा की उपासना करते समय जिस स्त्रीशक्ति का बोध होता है वह उपासना के बाद स्मरण क्यों नहीं रहता? न स्त्रियों को और न पुरुषों को। समाचारपत्रों में आए दिन स्त्री के विरुद्ध किए गए जघन्य अपराधों के समाचारों भरे रहते हैं। समाज में आती जा रही चारित्रिक गिरावट को देख कर अत्यंत दुख भी होता है लेकिन सिर्फ़ शोक प्रकट करने या रोने से समस्या का समाधान नहीं निकलता है। देवी दुर्गा का दैवीय चरित्र हमें यही सिखाता है कि अपराधियों को दण्डित करने के लिए स्वयं के साहस को हथियार बनाना पड़ता है। जिस महिषासुर को देवता भी नहीं मार पा रहे थे उसे देवी दुर्गा ने मार कर देवताओं को भी प्रताड़ना से बचाया। नवरात्रि के दौरान लगभग हर हिन्दू स्त्री अपनी क्षमता के अनुसार दुर्गा के स्मरण में व्रत, उपवास पूजा-पाठ करती है। अनेक महिला निर्जलाव्रत भी रखती हैं। पुरुष भी पीछे नहीं रहते हैं। वे भी पूरे समर्पणभाव से मां दुर्गा की स्तुति करते हैं। नौ दिन तक चप्पल-जूते न पहनना, दाढ़ी नहीं बनाना आदि जैसे सकल्पों का निर्वाह करते हैं। लेकिन वहीं जब किसी स्त्री को प्रताड़ित किए जाने का मामला समाने आता है तो अधिकांश स्त्री-पुरुष तटस्थ भाव अपना लेते हैं। उस समय गोया यह भूल जाते हैं कि आदि शक्ति दुर्गा के चरित्र से शिक्षा ले कर अपनी शक्ति को भी तो पहचानना जरूरी है। मां दुर्गा का चरित्र उन्हें दृढ़ और सबल होने का संदेश देता है।
यह भी सच है कि आज स्त्रियों को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। दरअसल, स्त्रियों के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का सम्मान किया जाना जरूरी है। घर में मौजूद स्त्रियां अर्थात् माता, पत्नी, बेटी, बहन में नौ दुर्गा के गुण होते हैं जिन्हें स्वीकार कर के सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सकता है। इस पर्व के धार्मिक महत्व के साथ ही हमें इसके व्यावहारिक महत्व को भी समझना होगा। वस्तुतः नवरात्रि पर्व स्त्रियों का सम्मान का पर्व है।
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