Thursday, April 17, 2025

बतकाव बिन्ना की | पड़ा ने मारी पूंछ, नपवा डारी मूंछ | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
पड़ा ने मारी पूंछ, नपवा डारी मूंछ
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘औ भैयाजी, चाचाजी को का हाल आए?’’ मैंने भैयाजी से पूंछी।
‘‘अब तो बे ठीक आएं। का है के ठीक तो बे पैले बी हते, बस तनक घबड़ा गए रए जे जाने के जोन से उन्ने इलाज कराओ रओ बा भौतई बड़ो फर्जी डाक्टर निकरो।’’ भैयाजी ने अपने दमोए वारे चाचाजी के बारे में बताई। बेई वारे जिनके बारे में पिछली हप्ता अपन ने बतकाव करी हती। 
‘‘तुमने पढ़ी? बा फर्जी डाक्टर की अस्पताल बंद कराई गई संगे नौ जने औ पकरे गए जोन वाकी प्रबंधन कमेटी में हते। ऊमें दो ठइयां लुगाइयां सोई आएं। उनको जी ने पसीजो, जो बे ऐसो गलत काम रोकबे की जांगा खुदई सील-सिक्का लगात रईं।
‘‘भैयाजी, लालच सबसे बड़ो पर्दा होत आए, जा पर्दा जोन की आंखन पे पड़ जाए ऊको फेर कछू औ नईं दिखात। आप सुनत-पढ़त नइंया का, के ऐसई मुतके फर्जी वारे डाक्टरी की आड़ में ह्यूमन आॅर्गन बेचन लगत आएं। अब आप उनको का कैहो?’’ मैंने भैयाजी से कई।’’
‘‘हम तो उनको आदमखोर कैबी।’’ कैत भई भौजी उतईं आ गईं। फेर भौजी आगे बोलीं,‘‘सई में! जोन मानुस हो के दूसरे मानुस के हाड़-गोड़ बेचन लगे तो बा आदमखोर ई तो कओ जैहे।’’
‘‘सई कई भौजी! मनो आजकाल का नईं हो रओ। एक जमाना हतो के डाक्टर भगवान घांई पूजे जात्ते। काय से के तब उनके काम ऐसे साजे रए, पर अब तो बे दूकानदार बन गए। मैं जे नईं कै रई के अच्छे डाक्टर अब नईं बचे, बे है, पर गिनती के आएं। बाकी तो... अब का कई जाए।’’ मैंने कई।
‘‘नईं तुम सई कै रईं बिन्ना! जब हम ओरें लोहरे हते तो हमाई तबीयत खराब होत संगे हमाए पापाजी डाक्टर खों बुला लात्ते। ऊ टेम पे डाक्टर हरों के पास लमरेटा स्कूटर भओ करत्तो। सो, डाक्टर साब अपने स्कूटर पे बैठ के आजात्ते। घरे आ के अच्छे से जांच करत्ते औ पापाजी जो कछू फीस देत्ते सो बे ले लेत्ते। सो होत जे रओ के डाक्टरन से सबई को घर जैसो ब्यौहार बन जात्तो। औ अब देखो तो बे अपने टेम के आगूं-पांछू ने मरीज देखहें औ ने सकल दिखाहें। कछू खास दुकान पे उनकी दवा मिलत आए। इत्तई नईं, पांच सौ रुपईया से नैचें कोनऊं की फीस ने हुइए। लुटाई सी करत आएं।’’ भौजी बोलीं।
‘‘लुटाई की ने कओ। अबे जेई साल की जनवरी में हमाओ एक दोस्त अपने बाबूजी खों उते दिल्ली के एक प्राईवेट अस्पताले ले गओ। उते मुतको इलाज चलो। बे जैसे-तैसे उते डरे रए। बाकी बाबूजी ने बच पाए। तब लौं भौतई खर्चा हो गओ रओ। अस्पताल को लम्बो बिल बन गओ रओ। इत्ते पइसा उनके ऐंगर ऊ टेम पे ने रए। अस्पताल वारन से साफ कै दई के पैले पूरे पइसा जमा करो, ने तो हम तुमाए बाप की लहास ने देहैं। बा बिचारो एक तो ऊंसई बिपदा को मारो, ऊ पे ऐसी जल्लादी ऊके संगे करी गई। बा तो ऊके गांव को एक मोड़ा मिल गओ जो उते दिल्ली में अनवरसिटी में पढ़बे खों गओ रओ, सो ऊने बताओ के फोन पे घरे से पइसा कैसे मंगाए जा सकत आएं? तब कऊं जा के हमाए दोस्त ने अपने घरे फोन करो, पइसा मंगाए औ बिल चुका के अपने बाबूजी की लहास ले पाए। बड़ो बुरौ करो उन ओरन ने।’’ भैयाजी ने बताई।  
‘‘अरे, जो दूसरे सहरन में बी डिगरी चैक करी जाए तो कओ औ ऐसे फर्जी वारे मुतके निकर आएं।’’ भौजी ने कई। 
‘‘वैसे चाचाजी ने ठीक करी के इते चैकअप करा लओ सो सहूरी तो लग गई। ने तो बे डरात रैते।’’ मैंने कई।
‘‘बाकी आजकाल कछू अजीब सो नईं हो रओ?’’ भैयाजी बोले।
‘‘कैसो अजीब सो?’’मैंने पूछी।
‘‘जेई के कोऊ नाचत-नाचत गिरत आए औ पतो परत आए के बा तो गुजर गओ। कोऊ ब्याओ के समै घोड़ी चढ़त आए औ घोड़ी पे चढ़े-चढ़े निकर लेत आए। अबे देखो के एक मोड़ा चौदा साल को रओ, औ ऊको साईलेंट अटैक आओ औ बा ने बच पाओ। अब चौदा साल की उम्मर का कोनऊं हार्ट फेल होबे की उमर आए? को जाने का हो रओ।’’ भैयाजी चिन्ता करत भए बोले।
‘‘हऔ बात तो सोचबे वारी आए। भैयाजी, पर जे देखो आप के अपन ओरे मिलावटी खा रए। केमिकल वारो खा रए। एक ठइयां लौकी चार दिना के लाने फ्रिज में रख देओ, फेर देखो के ऊपे काली सी धारियां परन लगत आएं। सबरे फल मार्केट में कच्चे लाए जाते आएं फेर उनको केमिकल डार के पकाओ जात आए। मैंने तो सुनी आए के कलींदा खों मीठो करबे के लाने ऊको सोई कोनऊं केमिकल वारी सुई टुच्च दई जात आए। अब ऐसे में औ का हुइए?’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! एक दार हम लखनऊ से बनारस जा रए हते बाई रोड। रस्ता में हमें लौकी के बगीचा दिखाने। तीन-तीन, चार-चार फुट की लौकियां उते लटकी दिखीें। हमाई तो आंखें खुली के खुली रै गईं। फेर हमाए टैक्सी डिराईवर ने बताई के जा इंजेक्शन लगा के रातई-रात बड़ी करी गई आएं। हम तो सन्नाटा खा के रै गए।’’ भौजी ने बताई।
‘‘बाद में तो कओ जान लगो के जोन सब्जी ज्यादा चमकदार दिखाए बा नई खाओ चाइए, जोन ज्यादा बड़ी होए सो जान लेओ के ऊमें सुई टुच्ची गई आए। ओई टेम पे एक जने खों बाबा रामदेव ने बताई रई के लौकी के जूस पियो करो। बा लौकी को जूस पी के मर गओ। खूब हल्ला मचो। कइयों ने बाबा खों गरियाओ। बाद में पता परी के बा जोन टाईप की लौकी को जूस पी रओ हतो बा केमिकल से बड़ी करी जात्ती।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘का आए भैयाजी के, अपने इते बा कहनात आए न के पड़ा ने मारी पूंछ़ तो नापन लागे मूंछ। जेई होत आएं जब लौं कोनऊं कांड ने हो जाए तब लौं सबरे प्रसासन वारे पल्ली ओढ़ के सोए रैत आएं। औ फेर आगे की सबई जानक आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई में बिन्ना! हम तो कै रए के चाए अस्पतालें होंए, चाए जिम होंए, चाए पैथलाजी वारे होंए, सबई के समै-समै पे इमानदारी से जांचे होत रैनी चाइए। ईसे फर्जी वारे पांव ने फैला पाहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे हम तो कैत आएं के स्कूलन की सोई जांचें होनी चाइए। एक गली में चार-चार ठइया इंग्लिश मीडियम स्कूलें मिल जात आएं। बा बी एक-एक कुठरिया में चलत भईं। ने तो उनके ऐंगर खेल को मैदान रैत आए, ने तो प्रयोगशाला रैत आए औ ने तो बे सगरी सुबिदा रैत आए जोन स्कूलन में नियम से होनी चाइए। उते के टीचर तो मनो बेरोजगारी के मारे रैत आएं सो औना-पौना में कैसऊं बी काम करत रैत आएं। मनो बच्चन के मां-बाप सोई नईं देखत आएं के उते बच्चा खों का-का सुबिदा मिल रई? बे तो इंग्लिश मीडियम को बोर्ड देखत आएं औ उधारे खाए से भरती करा आत आएं। बाकी ई सब में प्रसासन को बी कछू दायित्व बनत आए। कोनऊं सहर में देख लेओ 75 परसेंट स्कूलें ऐसी निकरें जोन स्कूल के नियम-कायदा पे फिट ने बैठत हुइएं। हमें तो जे लगत आए के जे सब कोऊ खों दिखत काए नइयां?’’ भौजी अपने जी की कैत गईं। 
‘‘जेई तो बात आए भौजी! के सब कछू नाक के नैचे होत रैत आए मनो जब लौं कछू मामलों बिगर के मीडिया लों ने पौंचे तब लौं कोनऊं खों कछू नई दिखात।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, अबई अपने सागरे की एक खबर पढ़ी रई के एक कोनऊं राधा रमण कालेज आफ मेडिकल सांईंसेस आए, ऊकी छात्राएं कलेक्टर के इते पौंचीं औ उन्ने शिकायत करी के उने चैतन्य मेडिकल कालेज में दाखिला दओ गओ, राधा रमण में पढ़ाई कराई गई औ दसा जे के उते के सर्टीफिकेट की कऊं कोनऊं पूछ-परख नोंई। मने बे तो ठगी गईं। उनकी मेनत गई, उनके बाप-मतई के पइसा गए औ मिलो ठेंगा। बाकी अब प्रसासन जांच कराहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो हमने कई भैयाजी के अपने इते जेई हाल आए के एक पंडज्जी जा रए हते तो उनखों रस्ता चलत में एक पड़ा ने पूंछ मार दई। गिलावे से छपी पूंछ उनपे परी तो उनको नहाओ-धोओ सब बरोबर हो गओ। बे पैले तो पड़ा के मालक से भिड़ परे, फेर चैन ने परी तो राजा के लिंगे पौंचे। राजा ने उनकी अरज सुनी। सो तुरतईं उन्ने सिपाई को हुकम दओ के बा पड़ा की मूंछन की लंबाई नाप लाए। पंडज्जी चकराए के मामलो पड़ा की पूंछ को आए औ जे मूंछ नापने को हुकम दे रए? पंडज्जी ने हिम्मत करके राजा से कई के मालक! बा पड़ा ने पूंछ मारी रई, मूंछ नोईं। ई पे राजा ने कई के जेई तो राजा औ परजा में फरक आए। तुम पूंछ की सोच रए औ हमें करने न्याय सो हम ऊकी पूंछ तो उखरवा नईं सकत तो ऊकी मूंछें नपवा के पूंछ के बरोबर की मूंछे उखरवा लेबी, तभई तो ऊको सजा मिलहे। जा सुन के पंडज्जी ने अपनो मूंड़ पकर लओ। बा तो कछू मुआवजा की उमींद लगा के हते, पर इते राजा मूंछ पटा के टरका रओ। पर राजा से बा कछू कै नई सकत्तो, ने तो राजा पंडज्जी को सबई कछू पटा देतो।’’ मैंने भैयाजी खों जा कैनात वारी स्टोरी सुना डारी।                 
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लौं जुगाली करो जेई की। तब लौं मनो सोचियो जरूर ई बारे में के का कभऊं कोनऊं कांड के पैले इते फर्जीबाड़ा को पता लगाओ जा सकत आए? 
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