Wednesday, April 23, 2025

चर्चा प्लस | पृथ्वी को हमने चढ़ा रखा है अपने कर्मों के जलते चूल्हे पर | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस (सागर दिनकर में प्रकाशित)
 चर्चा प्लस
       पृथ्वी को हमने चढ़ा रखा है अपने कर्मों के जलते चूल्हे पर
         - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
कुछ साल पहले एक हिंदी फिल्म का गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था- ‘‘हाय गर्मी, हाय-हाय गर्मी!’’ ये एक द्विअर्थी गाना था, लेकिन अब बढ़ते तापमान में इस गाने का एक ही मतलब रह गया है और वो है प्राकृतिक गर्म हवाओं का बढ़ना। घरों में कूलर रिपेयर हो चुके हैं, एसी की सर्विस भी हो चुकी है। यानि गर्मी से बचने के उपायों की दिशा में गति तेज हो गई है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये अस्थायी उपाय हमें कितने दिनों तक गर्मी से बचा पाएंगे? जब अप्रैल के मध्य में ही बैरोमीटर का पारा 40 डिग्री को पार कर जाएगा, तो ये सारे उपाय भविष्य में बौने साबित होंगे। जरूरी है कि हम अस्थायी उपायों के साथ-साथ स्थायी उपायों पर भी ध्यान दें।  
       80 वर्ष से अधिक आयु के लोगों का कहना है कि जो तापमान पहले मई-जून में होता था, वो अब मार्च-अप्रैल में है। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही तापमान का 40 डिग्री पार करना साफ संकेत है कि मई और जून में तापमान आसानी से 47 डिग्री को पार कर जाएगा। यह अच्छी स्थिति नहीं है। अप्रैल के मध्य तक भोपाल जैसे शहर में तापमान 40 डिग्री को पार कर गया है। चल रहे अध्ययन से यह भी पता चला है कि 103 मौसम स्टेशनों में से अधिकांश ने 1961-2020 की अवधि के दौरान अप्रैल और जून के बीच हीट वेव की आवृत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है। इसका एक मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन माना जा सकता है। 1850 से 1900 के बीच दुनिया का औसत तापमान अब 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। यानी वैश्विक तापमान इतना बढ़ गया है। यही वजह रही कि 2015 से 2022 तक सभी 8 साल बेहद गर्म रहे पिछले कुछ सालों से दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों का तापमान 40 के पार जा रहा है। वहीं, देश के दूसरे राज्यों और शहरों में 40 से 45 डिग्री तक तापमान दर्ज किया जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, हर दो दशक में तापमान में 10-14 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। 
मैंने अपने एक परिचित से पूछा कि क्या आप कभी पृथ्वी के बारे में सोचते हैं? तो उसने कहा कि पृथ्वी के बारे में क्या सोचना? अच्छी-भली तो है। फिर वो कहने लगे कि मुझे तो यही चिंता रहती है कि इस बार मुझे इंक्रीमेंट मिलेगा या नहीं? मैंने घर के लिए लोन के लिए भी अप्लाई कर दिया है। अगर लोन सेंक्शन नहीं हुआ तो इस बजट सत्र में मेरा घर बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा।

 दरअसल हम ऐसी कितनी ही चीजों के बारे में चिंता करते रहते हैं, लेकिन हमें अपने ग्रह, अपनी पृथ्वी के बारे में सोचना अनावश्यक लगता है, जबकि आज सबसे पहले पृथ्वी के बारे में सोचना जरूरी है। हम तभी रहेंगे जब पृथ्वी रहने लायक रहेगी। हमने तो जंगलों को काट कर, नदियों से रेत निकाल कर, जल स्रोतों को सुखा कर अपने आत्मघाती कर्मों का एक ऐसा चूल्हा जला रखा है जिस पर पृथ्वी को चढ़ा कर उसके तप कर आग का गोला बनने का इंतजार कर रहे हैं।
‘‘हम सभी बढ़ते प्रदूषण और वनों की कटाई के बारे में जानते हैं। वनों की कटाई का मतलब है पेड़ों को काटना, जिसे किताब में बहुत अच्छे से समझाया गया है। हम प्लास्टिक की थैलियों की जगह कपड़े के थैले इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव है जब हम इसे गंभीरता से लें।’’ ये शब्द मेरे नहीं हैं, ये शब्द तनिशी शर्मा के हैं जो उस समय सिर्फ 11 साल की स्कूली छात्रा थी। हाँ, उस समय वह 11 साल की थी, जब मैंने उससे मेरी किताब के ब्लर्ब के लिए टिप्पणी लिखने का अनुरोध किया था। दरअसल, जब मैंने अपनी किताब ‘‘ क्लाईमेट चेंज: वी केन स्लो द स्पीड’’ पूरी की, तो मैंने तय किया कि मेरी किताब के ब्लर्ब के लिए स्कूली बच्चों से लिखवाऊँगी क्योंकि हमारी धरती और धरती का भविष्य नई पीढ़ी के हाथों में है। 
दूसरे दो युवा छात्र काव्या कटारे और आराध्य कर्मा उस समय 14 वर्ष के थे। देखिए, क्या लिखा था युवा छात्रा काव्या कटारे ने, ‘‘मैं हमेशा सोचती थी कि हमारे समाज को क्या हो गया है। हम क्यों अपने हाथों से इंसानों की जिंदगी काट रहे हैं? क्या हम कभी अपनी स्वस्थ धरती को फिर से पा सकेंगे या यह जल्द ही नष्ट हो जाएगी? लेकिन इस किताब ने मुझे हर सवाल का जवाब दिया। इस किताब ने हमारे सामने एक चुनौती रखी है। अब हमारी बारी है। बस इतना ही कहिए कि चुनौती स्वीकार है!’’ और, छात्र आराध्य कर्मा ने लिखा कि, ‘‘हम सभी को यह कड़वी सच्चाई स्वीकार करनी होगी कि तथाकथित ‘आधुनिकीकरण’ की ओर हमारे कदम लगातार धरती माता को प्रभावित कर रहे हैं। यह किताब ‘ सभी को प्रकृति के संरक्षण की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेगी। मुझे लगता है कि यह ऐसी किताब है जो हर किसी की बुकशेल्फ पर होनी चाहिए।’’ 

छात्रा, 17 वर्षीय उर्जा अकलेचा ने बहुत ही बौद्धिक ढंग से लिखा कि, ‘‘मुझे डर है कि भविष्य में, भले ही हम अपनी धरती माँ का हाथ थामने को तैयार हों, वह मना कर देगी, या अधिक संभावना है कि वह ऐसा करने के लिए बहुत बिस्तर पर होगी... यह किताब हमारे लिए एक चेतावनी है कि हम अभी जाग जाएँ, अन्यथा यह ग्रह अनंत काल तक सो जाएगा।’’

चारों छात्रों के विचारों का यहां उल्लेख करने का आशय यही है कि जिस खतरे की ओर हम बड़ी उम्र के लोग आंख मूंद कर बैठे हैं, उस ख़तरे को ये वर्तमान युवा 2022 में भली-भांति समझ रहे थे और अपनी चिंता जता रहे थे।

इस सच पर ध्यान क्यों नहीं जाता कि गर्मियों में ग्रामीण या खुले इलाकों के मुकाबले मध्यम और बड़े शहरों में हालात ज्यादा खराब हो जाते हैं। कई शहरों को अब ‘‘अर्बन हीट आइलैंड’’ या ‘‘हीट आइलैंड’’ कहा जाने लगा है। अगर हवा की गति कम हो तो शहरों को आसानी से अर्बन हीट आइलैंड बनते देखा जा सकता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसके क्या कारण हैं? क्योंकि शहरों में पेड़ कट रहे हैं और ऊंची इमारतें बढ़ती जा रही हैं। इन ऊंची इमारतों में तापमान बदलने वाले शीशे लगे होते हैं जिनसे गर्म लहरें परावर्तित होकर एक दूसरे में लौटती हैं। इससे इमारतों के बीच का स्थान यानी सड़क, गली आदि गर्म हवाओं का दरिया बन जाती है। वैज्ञानिक इस स्थिति को कठिन भाषा में समझाते हैं लेकिन मैं सीधे, सरल और संक्षिप्त रूप में बता रहा हूं कि हम तेज तापमान के थपेड़े खाते हुए इमारतों के बीच की गलियों से गुजरते रहते हैं। इस तरह की गर्मी देर रात तक कम नहीं होती जिससे भवन के अंदर चंद्रमा जैसी शीतलता का अनुभव होता है लेकिन भवन के बाहर मंगल ग्रह जैसी गर्मी महसूस की जा सकती है। प्रश्न उठता है कि फिर क्या हमें ऊंची इमारतें नहीं बनानी चाहिए या उनमें बड़े-बड़े ताप रोधी शीशे नहीं लगाने चाहिए? हां, बिल्कुल! हमें न तो बड़ी इमारतें बनानी चाहिए, न ताप रोधी शीशे लगाने चाहिए, न ही एयर कंडीशनर का उपयोग करना चाहिए, जब तक कि हम अपने भवनों के आसपास ऐसे पेड़ न उगाएं जो बाहर के तापमान को नियंत्रित करते हों। हमने पेड़ों को काटकर पृथ्वी की तापमान में संतुलन बनाए रखने की वर्षों की मेहनत को नष्ट कर दिया है। बिल्कुल भी, बाहर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए किसी बड़ी तकनीक की आवश्यकता नहीं है। केवल छायादार पेड़ों की आवश्यकता है। हम वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के माध्यम से ऐसे पेड़ शीघ्र उगा सकते हैं और इस प्रकार अपनी गलती को सुधार सकते हैं।

लगभग यही स्थिति छोटे शहरों की भी है। वहां बड़ी इमारतें तो हैं नहीं, लेकिन पेड़ भी नहीं हैं। उन्हें काट दिया गया है। जलाशयों को हमने अपनी लापरवाही के कारण नष्ट कर दिया है। इसलिए जब जमीन में नमी नहीं रहेगी और सिर पर पेड़ों की छाया नहीं होगी, तो तापमान की दर हर साल बढ़ेगी ही। विचारणीय है कि वृक्षारोपण अभियान कई दशकों से चल रहे हैं, फिर भी हम पेड़ों की संख्या नहीं बढ़ा पाए हैं। क्या यह विडंबना नहीं है? वातावरण में तापमान बढ़ने का एक और बहुत बड़ा कारण सड़कों पर वाहनों की भीड़ है। जीवाश्म ईंधन से चलने वाला लगभग हर वाहन हवा में गर्मी छोड़ता है, जिससे हवा गर्म रहती है। चूंकि गर्मी का मौसम ही गर्म होता है, ऐसे समय में वाहनों से निकलने वाली अतिरिक्त गर्मी स्थिति को और खराब कर देती है। मार्च से 21 जून तक सूर्य पृथ्वी के करीब आ जाता है।

दरअसल, वैश्विक तापमान लगातार बढ़ रहा है। वैज्ञानिक कई बार चेतावनी दे चुके हैं कि धरती का पारा बढ़ रहा है। यह हर साल बढ़ रहा है। दरअसल, हम अपने ही विकास के चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं, जिसमें प्रकृति को नुकसान पहुंचाकर हमने इस धरती के लिए भी परेशानियां खड़ी कर दी हैं। बीते सालों में दुनिया भर में लगी भीषण जंगलों की आग की खबरें भुलाई नहीं जा सकी हैं। वो आग ग्लोबल वार्मिंग का ही साइड इफेक्ट थीं। इस ग्लोबल वार्मिंग के लिए हम इंसान ही जिम्मेदार हैं। गर्म! गर्म! चिल्लाने से गर्मी कम नहीं होगी, बल्कि साल दर साल बढ़ती ही रहेगी। अगर इस बढ़ते तापमान की रफ्तार को रोकना है तो जल, जंगल और जमीन पर ध्यान देना होगा। इन तीनों को हुए नुकसान की तेजी से भरपाई करनी होगी। तभी हम उस दौर में लौट सकेंगे, जब हमारे पूर्वज गर्मी के इस मौसम को खौफनाक नहीं बल्कि ठंड के बाद एक स्वागत योग्य बदलाव मानते थे। 
हमें यह समझना चाहिए कि हमारे पास कोई ‘‘प्लेनेट बी’’ नहीं है। जब तक पृथ्वी है, तब तक हजमारा अस्तित्व है। अगर पृथ्वी न होती तो हम जीवित नहीं होते। पृथ्वी के स्वास्थ्य लाभों से मनुष्य को बहुत लाभ होता है। हमारा ग्रह निश्चित रूप से ईश्वर की ओर से एक अमूल्य उपहार है। यह ग्रह पर सभी जीवित चीजों के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों का मुख्य स्रोत है। जीवित रहने के लिए पृथ्वी द्वारा प्रदान की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण चीज ऑक्सीजन है। पृथ्वी सभी जीवित प्राणियों के सांस लेने के पूरे चक्र को नियंत्रित करती है। हम जो ऑक्सीजन सांस लेते हैं वह पेड़ों से आती है, और हम जो कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं वह पेड़ों द्वारा अवशोषित की जाती है। पृथ्वी हमें वह सब कुछ प्रदान करती है जिसकी हमें आवश्यकता होती है, जिसमें हम जो भोजन खाते हैं, जो कपड़े पहनते हैं और जिस घर में हम रहते हैं, वह शामिल है। पृथ्वी को श्माँ पृथ्वीश् के रूप में जाना जाता है, क्योंकि, हमारी माँ की तरह, वह हमेशा हमारा पालन-पोषण करती है और हमारी सभी जरूरतों को पूरा करती है। संयुक्त राष्ट्र का सुझाव है कि जलवायु परिवर्तन न केवल हमारे समय का परिभाषित मुद्दा है, बल्कि हम इतिहास के एक निर्णायक क्षण में भी हैं। मौसम के पैटर्न बदल रहे हैं और खाद्य उत्पादन को खतरा होगा, और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और दुनिया भर में विनाशकारी बाढ़ का कारण बन सकता है। देशों को प्रमुख पारिस्थितिकी प्रणालियों और ग्रहीय जलवायु को अपरिवर्तनीय क्षति वाले भविष्य से बचने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। इसके पहले कि हमारे करने के लिए कोई अवसर न बचे इससे पहले ही हमें अपने उन कर्मों पर लगाम लगाना चाहिए जिन्होंने पृथ्वी के तापमान को बढ़ाना शुरू कर दिया है।
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