दैनिक 'नयादौर' में मेरा कॉलम
शून्यकाल
ऐसे ही कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है पाकिस्तान के विरुद्ध
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों का रक्त बहा कर आतंकियों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनके लिए मानवता का कोई अस्तित्व ही नहीं है। जिस ढंग से आतंकियों ने पर्यटकों को धर्मगत निशाना बनाया वह तो और भी जघन्य अपराध है। बल्कि यह कहा जाए कि पाकिस्तान की ओर से एक ऐसी साज़िश है जिसमें वह एक तीर से दो शिकार करना चाहता है। वह भारतियों के दिल-दिमाग को चोट पहुंचाना चाहता है और देश के भीतर धार्मिक वैमनस्यता पैदा कर के अस्थिरता फैलाना चाहता है। कश्मीर की वर्तमान अर्थव्यवस्था को तो उसने गहरी चोट दे ही दी है। ऐसे में भारत की ओर से प्रधानमंत्री द्वारा जो कड़े कदम उठाए जा रहे हैं वे बेहद जरूरी हैं। आतंकी साज़िशों का पानी सिर के ऊपर जा पहुंचा है।
यह सोच कर ही दिल कांप उठता है कि वह दृश्य कैसा रहा होगा जब हाथ में हथियार थामें नृशंस आतंकियों ने निर्दोष पर्यटकों को कलमा पढ़ने को कह कर, उनका धर्म परीक्षण कर के उन्हें मौत के घाट उतार दिया होगा। क्या गुज़री होगी उनके परिजन पर, जब सारा देश इस घटना को सुन कर ही हिल गया। आतंक का वह चेहरा जो भारत की सीमा के बाहर हम देखते आए हैं, उसे अपने देश में देखना असहनीय है। ये आतंकी निरीह और निर्दोष पर्यटकों को निशाना बना कर किसी भी देश की साख, अर्थव्यवस्था तथा पर्यटन को नुकसान पहुंचा कर अपनी धाक जमाने का प्रयास करते हैं। टर्की के समुद्रतट पर पर्यटकों पर गोलियां बरसाई गई थीं। पिरामिडों के क्षेत्र मिस्र में पर्यटकों को बमम्बारी से हताहत किया गया था। अब भारत का पहलगाम भी उनके इसी कायराना कृत्य का शिकार बना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना की कड़ी निंदा की। वे साउदीअरब का अपना दौरा बीच में ही छोड़ कर वापस देश लौट आए। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा ‘‘इस जघन्य घटना के पीछे जो लोग हैं उन्हें कड़ी सजा मिलेगी। उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा।’’
इसके बाद तत्काल कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यॉरिटी की मीटिंग बुलाई गई जिसमें सिंधु जल समझौते को तत्काल प्रभाव से रोक देने का फैसला लिया गया। साथ ही पाकिस्तान में भारतीय दूतावास बंद कर दिया गया और ऑटारी बॉर्डर भी सील कर दिए गए। पाकिस्तानी राजनयिकों को 48 घंटे में देश छोड़ने का आदेश भी दिया गया।
सन 1960 में हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने के फैसले पर पाकिस्तान ने वैश्विक स्तर पर गुहार लगानी शुरू कर दी। वह खुद को ‘‘बेचारा’’ साबित करने के लिए हाथ-पांव मार रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उपप्रधानमंत्री इसहाक डार ने पाकिस्तानी मीडिया से बातचीत में कहा कि ‘‘भारत इस तरह से एकतरफा फैसला नहीं कर सकता है।’’
इसहाक डार ने पाकिस्तानी न्यूज चैनल समा टीवी से बातचीत में कहा, ‘‘अतीत का जो हमारा अनुभव है, उससे हमें अंदाजा था कि भारत ऐसा कर सकता है। मैं तो तुर्की में हूँ लेकिन फिर भी पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने पहलगाम हमले की निंदा की। भारत ने सिंधु जल संधि के अलावा बाकी जो चार फैसले किए हैं, उनका जवाब तो आसानी से मिल जाएगा।’’ इसहाक डार ने आगे कहा कि ‘‘सिंधु जल संधि को लेकर भारत पहले से अड़ा है। पानी रोकने के लिए इन्होंने कुछ वाटर रिजर्व भी बनाए हैं। इसमें विश्व बैंक भी शामिल है और यह संधि बाध्यकारी है। आप इसमें एकतरफा फैसला नहीं ले सकते हैं। ऐसे में तो दुनिया में मनमानी शुरू हो जाएगी. जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाला मामला तो नहीं चल सकता। भारत के पास कोई भी कानूनी जवाब नहीं है। इस मामले का जवाब पाकिस्तान का कानून मंत्रालय देगा।’’
इसी को कहते हैं चोरी और सीना जोरी। अपने देश में आतंकियों को पनाह देते समय पाकिस्तान को कोई भी संधि क्यों नहीं याद आती? यूं भी, भारत की ओर से अभी भी इतना कड़ा कदम नहीं उठाया गया है जितना बढ़ा-चढ़ा कर पाकिस्तान चींख रहा है। ‘‘द हिन्दू’’ समाचार पत्र की डिप्लोमैटिक अफेयर्स एडिटर सुहासिनी हैदर के अनुसार,‘‘ भारत ने पाकिस्तानी मिशन छोटा कर दिया लेकिन बंद नहीं किया। सिंधु जल संधि को स्थगित किया है लेकिन निरस्त नहीं किया है। पाकिस्तान के लोगों के लिए सार्क वीजा सुविधा को बंद किया है लेकिन सभी तरह के वीजा नहीं।’’
इन तथ्यों को छिपाते हुए पाकिस्तान इस बात का अहसान जता रहा है कि उसके विदेश मंत्री ने आतंकी हमले में पर्यटकों के मारे जाने पर शोक व्यक्त किया था। कितना हास्यास्पद है यह। पहले गोली मार दो और फिर मगरमच्छी आंसू बहाओ। उनके झूठे आंसुओं से क्या उन 26 लोगों के प्राण वापस आ जाएंगे जो आतंकियों ने नृशंसतापूर्वक छीन लिए? सच तो ये है कि इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वालों से स्वयं सच्चे इस्लामिक दुखी हैं, शर्मिंदा हैं। चंद लोगों की अमानवीय हरकतें पूरे कौम को कटघरे में खड़ा कर देती है। न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद पूरी दुनिया के इस्लामियों को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा था। भारत के मुस्लिमों को भी अमरीका में इस संदेह को झेलना पड़ा था। इसके बावजूद इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वाले अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आते हैं। दरअसल वे मौका परस्त हैं, किसी मजहब से उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन मानवता के दुर्भाग्य और उनके सौभाग्य से उन्हें गोद में खिलाने और उन्हें पालने वाले राजनीतिक लोग मिल जाते हैं। पाकिस्तान यही कर रहा है। भारत को कमजोर करने के लिए वह आतंकवादियों का सहारा लेता रहता है।
भारत ने अभी तक पाकिस्तान के साथ उदारता का ही बर्ताव किया है, जिससे पाकिस्तान का दुस्साहस समय-समय पर उभर कर सामने आता रहा है। पुलवामा की घटना के ज़ख़्म आज भी ताजा हैं। पहलगाम की घटना ने तो न केवल उस दबे हुए ज़ख़्म को कुरेदा है बल्कि एक और गहरा ज़ख़्म दे दिया है। इसके बाद भी यदि कड़े कदमों को उठाए जाने का निर्णय नहीं लिया जाता तो देशवासियों के मनोबल पर विपरीत असर पड़ता। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई और इसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर शामिल हुए थे। बैठक के बाद भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने 23 अप्रैल 2025 को रात करीब नौ बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि ‘‘1960 में हुई सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया जाता है। यह स्थगन तब तक रहेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को समर्थन देना हमेशा के लिए बंद नहीं कर देता है।’’
देखा जाए तो भारत का यह फैसला अभी भी नरम है क्योंकि भारत की ओर से संधि स्थगित की गई है, रद्द नहीं। जैसाकि पाकिस्तान हाय-तौबा मचा रहा है। सच तो ये है कि इस आतंकी हमले के द्वारा पाकिस्तान जो चाहता था उसने तात्कालिक रूप से वह पा लिया। वह कश्मीर में शांति स्थापित नहीं होने देना चाहता है। वह कश्मीर की आर्थिक तरक्की नहीं चाहता है। जबकि कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद से अपेक्षाकृत शांति आती जा रही थी और पर्यटन भी अपनी पुरानी चहल-पहल के साथ लौट रहा था। इसीलिए ऐसा समय चुना गया जब पहलगाम में पर्यटन का समय था। देश भर से पर्यटक पहलगाम पहुंचे हुए थे। लगभग पूरे सीजन के लिए करोड़ों रुपयों की बुकिंग हो चुकी थी। लेकिन इस घटना ने पर्यटकों के पैर रोक दिए। बहुत-सी बुकिंग कैंसिल कर दी गई हैं। यद्यपि कुछ साहसी लोग इस आशा में बुकिंग करा रहे हैं कि जल्दी ही हालात सुधर जाएंगे और वहां से आतंक का साया हट जाएगा। फिर भी प्राणों का भय सबसे बड़ा भय होता है, वह पर्यटकों को जल्दी विश्वास में नहीं ले पाएगा। इस तरह पाकिस्तान ने न केवल कश्मीर बल्कि पूरे देश का बड़ी आर्थिक चोट पहुंचाई है।
कश्मीर में आय का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन है। इस हमले से वापस स्थिर हो रही कश्मीर की आर्थिक स्थिति पटरी से उतर सकती है। कश्मीर के लोगों की इनकम पर भी गहरा असर दिखाई पड़ सकता है। अभी तक जम्मू और कश्मीर की आर्थिक प्रगति मजबूत रही है। सन 2018 में आतंकवादी घटनाओं की संख्या 228 से घटकर 2023 में सिर्फ 46 रह गई थी, जो 99ः की गिरावट है इस हमले से सबसे ज्यादा नुकसान यहां के टूरिज्म को होगा. यह एक ऐसा सेक्टर है जो कश्मीर की जीएसडीपी में 7-8 प्रतिशत का योगदान देता है। पहलगाम में आतंकी हमला ऐसे समय पर हुआ जब पर्यटकों का मौसम चरम पर था। 2020 में 34 लाख पर्यटक आए थे, जबकि 2024 में यह संख्या बढ़कर 2.36 करोड़ हुई थी, जिसमें 65,000 विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। 2025 की शुरुआत भी अच्छी थी। श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन में सिर्फ 26 दिनों में 8.14 लाख पर्यटक आए थे। इस हमले का असर कश्मीर के सभी सेक्टर्स पर पड़ सकता है।
इस समय पूरा देश भारत सरकार के कड़े कदमों का समर्थन कर रहा है। आवश्यकता पड़ने पर यदि और कठोर कदम उठाए जाते हैं तो उसके लिए भी आमजन की सहमति सरकार के साथ रहेगी। इस घटना ने हर भारतीय के मन को क्रोध और क्षोभ से भर दिया है। सभी का मानना है कि अब वह समय आ गया है जब पाकिस्तान की कुचेष्टाओं पर पूर्णविराम लगा दिया जाए।
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