बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
ऊंची पहरिया पे माई को डेरा
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काय बिन्ना कल कां हतीं, दिखानीं नईं?’’ भौजी ने मोसे पूछी।
‘‘काल ज्वाला माई के दरसन के लाने गई रई।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘हम ने जा पाए अब लौं! बड़ी प्रसिद्धी आए उनकी तो।’’ भौजी ने कई।
‘‘बड़ी नोनी जांगा आए, भौजी। जा अपने सागर की सुरखी विधान सभा क्षेत्र में पड़त आए। जलंधर गांव में।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘बोई जलंधर, जां के बे अपने गांधीवादी दादा रघु ठाकुर आएं?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘हऔ, बोई वारो।’’ मैंने कई।
‘‘बाकी भौजी, उते जांगा भौतई सुंदर आए। उते ऊंची पहरिया पे माई को डेरा आए। लोग बताउत आएं के पैले उते तनक सी मढ़िया रई। मनो हमने देखी के अब उते खूब बड़ो सो मंदिर बन गओ आए। पक्की छिड़ियां और छिड़ियां पे टीनशेड की छायरी। ने का मोसे उत्ते ऊपरे चढ़त बन पातो? मनो जे जरूर आए भौजी के उते पौंच के न जाने कां से ताकत आ जात आए। मैं सोई बड़ी मजे-मजे छिड़ियां चढ़ गई।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘जे तो होत आए। हम सोई पर की साल मैहर गए रए, शारदा माई के दरसन खों। हम ओरन ने सोची रई के उते ऊपर लौं गाड़ी से पौंचबी, मनो उते नैचे पौंचत साथ हमाए संगे गईं एक बाई कैन लगीं के हम तो छिड़ियां चढ़ के जाबी। पैले तो हम ओरन ने उनको समझाबे खों प्रयास करो, जब बे ने मानीं सो हम ओरें सोई उनके संगे छिड़ियां चढ़े। पैले हमें सोई लगो के हम ने चढ़ पाबी, बाकी फेर कैसे चढ़ गए पतो ई ने परो। ऐसी जांगा पे ऐसई होत आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘भौजी, उते एक बात हमें औ मजे की लगी के उते सुद्ध बुंदेली सुनबे खों मिल रई हती। हम ओरन ने रस्ता में एक बालक से पूछी के माई के मंदर के लाने जे रस्ता मुड़ने परहे के सीधी रस्ता जाएं? तो बा तुरतईं बोलो के ‘सूदे जाओ’। ऊके मों से ‘सूदे’ सुन के मोय भौतई अच्छो लगो। जेई से मैंने उते मंदर में औ मेला में बुंदेली में मुतकी बतकाव करी। रामधई भौजी, अपनी बुंदेली भौतई मीठी आए। औ अपने इते के लोग इत्ते प्रेम से बोलत आएं के का कओ जाए।’’ मैंने भौजी से कई।
जे तो आए, अपनी बुंदेली बो का कहाउत आय के ‘साॅफ्ट टोन’ वारी आए। ऐसो नईं के कोऊ बोले तो लगे के मूंड़ पे लट्ठ घुमा के दे रओ होय। सुने, बोले में बड़ी मुलायम सी लगत आए। औ तुमें तो खुदई पतो के अपनी बुंदेली में कित्तो सारो साहित्य लिखो जा चुको।’’ भौजी बोलीं।
‘‘औ बताऊं! उते मंदर में मोए एक बिन्ना मिली। मैंने ऊंसे पूंछी के कां की आओ? सो बा बोली के इतई जलंधर के। फेर मैंने पूछी के पढ़त आओ? स्कूलें जात आओ? सो बा बोली के हऔ, जात आएं। सो मैंने फेर के पूछी के इते मंदर में कोन के संगे आईं? सो ऊने बताई के अपने पापा के संगे आई, जोन बे उते मेला में दुकान लगा रए। फेर मैंने ऊसे पूछीं के तुम सोई दुकान पे बैठहो? सो बा कैन लगी के हऔ। काल हमने दो सौ रुपइया की चूड़ी-बिंदी बेची रई। औ जा बात ऊने बड़ी शान से बताई। ऊकी बात सुन के मोय भौतई अच्छो लगो। मोड़ियन खों ऐसई लड़कोरें से पढ़ाओ, सिखाओ चाइए। ईसे जो कभऊं कोनऊं बुरौ समै परे तो बे अपनो जी-खा सकें।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘सई कई बिन्ना!’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ भौजी! सई बताऊं तो कभऊं-कभऊं जी करत आए के कोनऊं गांव में जा के रहो जाए। उते की सुद्ध हवा की शहरन से कोनऊं मुकाबला नोईं।’’ मैंने भौजी खों अपने जी की बताई।
‘‘सांची कई बिन्ना! बाकी आज संकारे से बा खबर पढ़ के भौतई बुरौ लगो।’’ भौजी तनक दुखी होत भई बोलीं।
‘‘कोन सी खबर?’’ मैंने पूछी।
‘‘बा जो उते गुजरात में पटाखा फैक्टरी में भए बिस्फोट में दस जने मर गए, ऊमें नौ तो अपने एमपी के हते। उनमें बाल-बच्चा सोई मरे। देख तो बिन्ना, जे पापी पेट की खातिर का-का नई भुगतने परत आए। बे ओरें गए हते उते दो रोटी कमाबे के लाने और ऐसे मारे गए। जोन उनके मालिक हते उन्ने उन ओरन के बारे में तनकऊं ने सोची के बे उन ओरन की जान से खेल रए।’’ भौजी दुखी होत भई बोलीं।
‘‘हऔ भौजी, मैंने सोई पढ़ी बा खबर। सई में जी दुखात आए। एक मानुस अपने पइसा कमाबे के लाने मुतके मानुस की जान से खेलत रैत आए। औ जोन खों जे सब पे नजर रखनी चाइए, बे पइसा की पल्ली से मों ढंाप के सोए रैत आएं। ने तो आप ई बताओ के ऐसे गलत काम कैसे चलत रैत आए?’’ मैंने कई।
‘‘सई कै रईं बिन्ना! तुमाए भैयाजी बता रए हते के आजकाल तो जैई होत आए के इते के मजूर राजस्थान, गुजरात औ हरियाणा भेज दए जात आएं औ उते के मजूर इते बुला लए जात आएं। ईमें होत का आए के उनके कुनबा के बाकी लोग से अपने गांव में रैत आएं सो उनपे दबाव बनो रैत आए। फेर बे परदेस जात आएं अपने ठेकेदार मालक के सहारे, सो उते बी उने उनई को कहो मानने परत आए, ने तो उते उने कोन को संग मिलहे। मने उनकी मजबूरी को पूरो फायदा उठाओ जात आए।’’ भौजी ने बताई।
‘‘हऔ भौजी! जेई बात आए। बड़ी उमर वारे सो मजूरी के लाने इते से उते ले जाए जात आएं, संगे बच्चा हरों खों सोई ले जाओ जात आए। फेर उनसे उते कऊं दरी बुनबे के कारखाना में काम कराओ जात आए तो कऊं बोतलन में लेबल लगवाओ जात आए। उते उन ओरन से अठारा-अठारा घंटे काम लओ जात आए। जे सब तो ऊ टेम पे खुलो जबे बा अपने विदिशा वारे जोन खों नोबल प्राईज मिली रई, कैलास सत्यार्थी जू ने ऐसे मुतके बच्चन खों बचाओ रओ। मनो आज बी जे सब चल रओ।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘सई में भौतई अत्तें होत रैत आएं।’’ भौजी दुखी होत भई बोलीं।
‘‘अरे का कओ जाए भौजी। कोरोना के पैले हम ओरें भुनसारे घूमबे खों जाओ करत्ते। ऊ टेम पे रस्ता में एक हथकरघा वारो कारखाना परत्तो। भुनसारे चार-पांच बजे से उते करघा चलाबे की खटर-खट्ट, खटर-खट्ट सुनाई परन लगत्ती। फेर दिन भरे में जबे उते से निकरो सो ऊंसई खटर-खटर सुनी जा सकत्ती। उने खाबे औ आराम करबे खों कबे मिलत्तो पतो नइयां। एक जने ने बताई रई के ऊ सेंटर में राजस्थान के करीगर हते। फेर तो बा कोरोना के टेम पे कारखाना बंद हो गओ। बा कारीगरन को का भओ, उने पइसा दओ गओ के ऊंसई भगा दओ गओ, पता नई परी। बड़ी दुरदसा रैत आए इन ओरन की।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘जेई तो मोय लगत आए बिन्ना के देवी मैया इन ओरन की मदद काय नईं करतीं? सगरे पापी फलत-फूलत रैत आएं औ गरीब-गुरबा जिनगी भर खटत रैत आएं।’’ भौजी दुखी होत भई बोलीं।
‘‘माई बी का करें भौजी, जे कलजुग आए। ई टेम पे रक्तबीजी राच्छस मुतके आएं। एक खों दण्ड दओ नईं के चार ठाड़े हो जात आएं। बाकी देर-सबेर उनकों सजा तो मिलत आए।’’ मैंने भौजी खों समझाओ।
‘‘चलो, हम चाय बना रए। अपन ओरे चाय पीबी। काय से के जी भारी हो रओ।’’ कैत भईं भौजी उठ खड़ी भईं।
बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। तब लौं माई को ध्यान करियो औ मनो सोचियो जरूर ई बारे में के का जे ठीक आए के ताकतवारो गरीबन की जान के बारे में सोचत लौं नईयां?
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