Tuesday, April 8, 2025

पुस्तक समीक्षा | प्रेम का सात्विक सोंधापन है इन कविताओं में | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 08.04.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित - पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
प्रेम का सात्विक सोंधापन है इन कविताओं में
- समीक्षक डॉ (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - तुम्हारी आवाज़
कवि       - रामस्वरूप दीक्षित
प्रकाशक    - भावना प्रकाशन, 28, आदर्श मोहल्ला, पटपड़गंज गाँव, दिल्ली-110091
मूल्य       - 195/-
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   '‘कड़ाही में जाने को आतुर जलेबियां’’ और ‘‘टांग खींचने की कला’’ जैसे व्यंग्य संग्रहों से हिन्दी साहित्य जगत में अपनी पहचान स्थापित करने वाले रामस्वरूप दीक्षित काव्य में भी गहरी रुचि रखते हैं। हाल ही में उनका तीसरा काव्य संग्रह ‘‘तुम्हारी आवाज़’’ प्रकाशित हुआ है। यह मूलतः प्रेम कविताओं का संग्रह है।   
प्रेम कविता एक परंपरागत भावात्मक विचार है। हर युग, हर काल में प्रेम कविताएं लिखी गईं। वैसे प्रेम शब्द एक व्यापक भावना का प्रतिनिधित्व करता है। कबीर ने कहा ही है कि जिसने प्रेम का ढाई आखर पढ़ लिया उसने सब कुछ पढ़ लिया -‘‘पोथी पड़ी पडो जग मुआ. पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो, पंडित होय।।’’ जैसे वामन अवतार में विष्णु ने तीन पग में तीन लोक नाप लिए थे, ठीक उसी प्रकार मात्र ढाई अक्षर का ‘‘प्रेम’’ सारे संसार को जीतने की क्षमता रखता है। प्रेम में व्यष्टि और समष्टि दोनों निहित होते हैं। बात जब निज की हो तो संयोग और वियोग ही प्रेम को व्याख्यायित करते हैं। अब यह वैचारिक दृष्टि पर निर्भर करता है कि वह प्रेम में मांसलताजन्य दैहिक संवेदनाओं को प्रमुखता देता है अथवा अनुभूतिजन्य मानसिक संवेदनाओं को। जहां तक साहित्य में प्रेम का प्रश्न है तो प्रेमाभिव्यक्ति की अनुपस्थिति साहित्य को शून्य बना देगी। जैसे प्रेम जीवन का अनिवार्य तत्व है, वैसे ही यह साहित्य का आवश्यक तत्व है।

हिन्दी साहित्य का चाहे आदि काल हो अथवा आधुनिक काल, ढेर सारी प्रेम कविताएं लिखी गईं हैं। जहां मलिक मोहम्मद जायसी की प्रेम कविता विरह की पराकाष्ठा को सामने रखती है - ‘‘अब धनि देवस बिरह भा राती। जरै बिरह ज्यों दीपक बाती।।’’ वहीं, अशोक वाजपेयी की प्रेम कविताएं सूत्रात्मक शैली में प्रेम के रहस्य उजागर करती हैं जब वे खजुराहो पर कविता लिखते हैं- ‘‘पत्थर केलि करता है पत्थर से’’। रामस्वरूप दीक्षित के इस ताजा संग्रह ‘‘तुम्हारी आवाज़’’ की कविताओं में प्रेम का सात्विक सोंधापन है। उन्होंने सजग, चैतन्य और संतुलित हो कर प्रेम कविताएं लिखी हैं। जबकि ऐसा कर पाना दुष्कर कार्य है क्योकि प्रेम की भावना रचनाकार को विचलित करने में सक्षम होती है। प्रेम का वैचारिक आवेग कब सूक्ष्म से स्थूल की ओर बहा ले जाता है, स्वयं रचनाकार भी समझ नहीं पाता है। प्रेम कविता की इस चुनौती को रामस्वरूप दीक्षित ने पहले ही भांप लिया और इसीलिए उनकी कविताएं विचलन की धार केा आराम से पार कर गईं। इस संबंध में स्वयं रामस्वरूप दीक्षित ने आत्मकथन में लिखा है कि -‘‘प्रेम कविता लिखना सबसे कठिन काम है। एक भी हल्का शब्द पूरी की पूरी कविता को धराशायी कर सकता है। आपको एक तनी हुई रस्सी पर बेहद सावधानी से चलना होता है। चूकने की कोई गुंजाइश आपके पास नहीं होती। प्रेम की दिव्यता की रक्षा करते हुए सब कुछ अनकहा कहना होता है। संग्रह की कविताओं में ऐसा करने का प्रयास किया गया है। स्त्री मन में गहरे उतरकर उसकी भावनाओं को व्यक्त करने में ये कविताएँ कहाँ तक और कितनी सफल रही हैं, यह जानने के लिए इन्हें आपके सामने रख रहा हूं। वस्तुतः ये कविताएं नहीं, बल्कि जो व्यक्तित्व प्रेम की अनुभूति, प्रेम की प्रेरणा व जिज्ञासा के स्रोत रहे हैं, उनके प्रति आभार व्यक्त करने का किंचित प्रयास है। उम्मीद करता हूं. यह प्रयास सार्थक होगा।’’

निःसंदेह रामस्वरूप दीक्षित अपने प्रयास में सफल रहे हैं। उनकी प्रेम कविताओं में छायावादी प्रवृतियों के साथ रहस्यवादी तत्व भी हैं जिन्हें वे आधुनिक संज्ञान के साथ शब्दों में पिरोते दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए संग्रह की पहली कविता ‘‘तुम्हारी आवाज’’ का यह अंश देखिए-
मैं तुम्हारी आवाज को देख सकता हूँ 
बहुत दूर से 
और पास से तो उसे छूकर सहला तक सकता हूँ
तुम्हारी आवाज की शक्ल 
इतनी जानी-पहचानी है
कि मैं उसे तुमसे भी जल्दी पहचान सकता हूँ
कई बार कई-कई दिनों तक 
बिना बोले ही मेरे साथ रही आती है 
तुम्हारी आवाज 
और कई बार मुझे ले जाती है
अपने साथ बहुत दूर

प्रेम अहसास को जगाता है। भावनाओं को उद्वेलित करता है और प्रिय के बहाने प्रकृति के प्रत्येक तत्व से जोड़ देता है। प्रकृति के हर तत्व में प्रिय के होने का अहसास जाग उठता है। धरती की हरियाली और आकाश का नीलापन और अधिक गहरा प्रतीत होने लगता है। इसी अनुभूति को कवि ने ‘‘अहसास’’ शीर्षक कविता में कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है-  
तुम्हारे साथ होने का अहसास 
बनाए रखता है/मेरे साथ
धरती के हरे होने
पहाड़ों के इतराने
नदियों के बहने/और
आसमान के खुशी से 
और और नीले होते जाने का अहसास

यदि प्रेम को आध्यात्म की दृष्टि से देखें तो आत्मा और परमात्मा के बीच का प्रेम परिपूर्ण प्रेम जो ध्यान की गहनता के साथ परिपक्व होता है। प्रेम ‘‘गूंगे के लिए गुड़ के समान है जिसे अनुभव किया जा सकता है किन्तु अभिव्यक्त नहीं। इसी को आध्यात्म में दिव्य प्रेम माना गया है। यही सृष्टि में प्रेम आकर्षण की दिव्य शक्ति है जो सन्तुलन बनाती है, एकजुट और एकात्म करती है। जो लोग प्रेम के आकर्षक बल के साथ अन्तर्सम्पर्क में रहते हैं, वे प्रकृति और अपने प्रिय के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। यदि इस व्याख्या से आध्यात्म का भाव हटा दिया जाए तो यही लौलिक सात्विक प्रेम है। इसी भावना पर केन्द्रित है रामस्वरूप दीक्षित की कविता ‘‘तुम्हारा लौटना’’। पंक्तियां देखिए-
तुम्हारा/मेरे जीवन में 
फिर से लौटना
लौटना था जैसे 
मेरा ही खुद में लौटना
क्योंकि तुम्हारे जाते ही 
मैं भी चला गया था 
अपने से बहुत दूर

प्रेम जब व्यक्ति को एकात्म बना देता है तो जीवन के प्रति दृष्टि पूरी तरह से बदल जाती है। कवि ने इस भाव को बहुत आत्मीयता से स्पर्श किया है इसीलिए कविता ‘‘तुम्हारे न होने से’’ में विरह के प्रभाव प्रकृति में दिखाई देते हैं। कविता का एक अंश है-
सूरज हो गया बीमार 
पीली पड़ गई उसकी धूप
चांद की रोशनी 
हो गई ऐसी 
जैसे किसी ने मिला दिया हो 
दूध में पानी
सितारे बन गए जुगनू
बादलों से आने लगी 
खांसने की आवाज
हवा हो गई लकवाग्रस्त

संग्रह की एक और कविता जिसका उल्लेख किए बिना इसकी सभी कविताओं के शेड्स को बयान नहीं किया जा सकता है, यह कविता है ‘‘चाहती है वह’’। आयु और अवस्था के साथ प्रेमासिक्त शब्दों की परिभाषा बदल जाती है, आग्रह बदल जाता है, आवश्यकता होती है इसे समझने की। बेहद खूबसूरती एवं प्रभावी ढंग से कवि ने इस तथ्य को उद्घाटित किया है-
वह चाहती है कि/बार-बार
‘‘हाय डियर/हैलो डार्लिंग
आई लव यू’’/की जगह
कोई उससे पूछे
कि तुम्हारी कमर का दर्द
अब कैसा है?
कि कल रोटियां सेंकते समय
जल गई
तुम्हारी उंगलियों में 
अब जलन तो नहीं हो रही?

रामस्वरूप दीक्षित का काव्य संग्रह ‘‘तुम्हारी आवाज़’’ आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रेम कविताओं की एक ऐसी कृति है जिसे अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। इस संग्रह की प्रत्येक कविताएं नवीन बिम्बों एवं भाषाई स्निग्धता के साथ प्रेम के मूल स्वरूप का स्मरण कराती हैं, वह भी ऐसे समय में जब प्रेम अपना अर्थ खोता जा रहा है और यांत्रिकता उस पर भी हावी हो चली है। यह संग्रह प्रेम के सात्विक मूल्यों की पुनर्स्थापना करने की दिशा में एक समर्थ प्रयास है। 
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