चर्चा प्लस ...
अपने भीतर की दुर्गा को पहचाने स्त्रियां
- डॉ. शरद सिंह
नवरात्रि... वे नौ दिन जब देवी दुर्गा के नौ रूपों की अनुष्ठानपूर्वक स्तुति की जाती है... देवी दुर्गा जो स्त्रीशक्ति का प्रतीक हैं, असुरों का विनाश करने की क्षमता रखती हैं... स्त्रियों द्वारा पूरे अनुष्ठान के साथ मनया जाता है यह नौ दिवसीय पर्व। फिर भी आज स्त्री प्रताड़ित है। क्योंकि उसे अपने भीतर की दुर्गाशक्ति का पता ही नहीं है। देवी दुर्गा जिस स्त्री-साहस का प्रतीक हैं उस साहस को अपने भीतर जगाना होगा प्रत्येक स्त्री को, तभी सही अर्थ में सार्थक होगा नवरात्रि का अनुष्ठान।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मनाः।।
अपने भीतर की दुर्गा को पहचाने स्त्रियां
- डॉ. शरद सिंह
नवरात्रि... वे नौ दिन जब देवी दुर्गा के नौ रूपों की अनुष्ठानपूर्वक स्तुति की जाती है... देवी दुर्गा जो स्त्रीशक्ति का प्रतीक हैं, असुरों का विनाश करने की क्षमता रखती हैं... स्त्रियों द्वारा पूरे अनुष्ठान के साथ मनया जाता है यह नौ दिवसीय पर्व। फिर भी आज स्त्री प्रताड़ित है। क्योंकि उसे अपने भीतर की दुर्गाशक्ति का पता ही नहीं है। देवी दुर्गा जिस स्त्री-साहस का प्रतीक हैं उस साहस को अपने भीतर जगाना होगा प्रत्येक स्त्री को, तभी सही अर्थ में सार्थक होगा नवरात्रि का अनुष्ठान।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मनाः।।
Charcha Plus Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Sagar Dinkar Daily News Paper चर्चा प्लस ... अपने भीतर की दुर्गा को पहचाने स्त्रियां - डॉ. शरद सिंह |
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करते समय जिस स्त्रीशक्ति
का बोध होता है वह अपने आप में प्रेरणादायक है। विडम्बना यह कि इन रूपों
में निहित शक्तियों को सिर्फ़ धार्मिक दृष्टि से देखा और ग्रहण किया जाता
है। इसलिए तो स्त्रियां शक्ति की पूजा तो करती हैं मगर अपने भीतर की शक्ति
को पहचान नहीं पाती हैं। समाचारपत्रों में आए दिन स्त्री के विरुद्ध किए गए
जघन्य अपराधों के समाचारों भरे रहते हैं। कभी दहेज हत्या तो कभी। समाज में
आती जा रही चारित्रिक गिरावट को देख कर सभी को दुख होता है। लेकिन सिर्फ़
शोक करने या रोने से समस्या का समाधान नहीं निकलता। देवी दुर्गा का दैवीय
चरित्र हमें यही सिखाता है कि अपराधियों को दण्डित करने के लिए स्वयं के
साहस को हथियार बनाना पड़ता है। दुर्गा के नौ रूपों की नौ कथाओं की यदि
व्यवहारिक व्याख्या की जाए तो प्रत्येक कथा का सार यही मिलता है कि स्त्री
में वह क्षमता है कि वह अपनी रक्षा तो कर ही सकती है बल्कि पूरे समाज की
रक्षा कर सकती है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों की नौ
कथाएं इस प्रकार हैं-
महाकाली - कथा के अनुसार विष्णु जी के कानों के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षसों की उत्पत्ति हुई। मधु और कैटभ, ब्रह्मा को देख उन्हें अपना भोजन बनाने के लिए दौड़े। ब्रह्मा जी ने भयग्रस्त हो कर विष्णु जी स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी की स्तुति से विष्णु भगवान की आंख खुल गई और उनके नेत्रों में वास करने वाली महामाया वहां से लोप हो गई। विष्णु जी के जागते ही मधु-कैटभ उनसे युद्ध करने लगे। यह युद्ध पांच हजार वर्षों तक चला था। अंत में महामाया ने महाकाली का रुप धारण किया और दोनों राक्षसों की बुद्धि को बदल दिया। ऐसा होने पर दोनों असुर भगवान विष्णु से कहने लगे कि हम तुम्हारे युद्ध कौशल से बहुत प्रसन्न है। तुम जो चाहो वह वर मांग सकते हो। भगवान विष्णु बोले कि यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो यह वर दो कि असुरों का नाश हो जाए। उन दोनों ने तथास्तु कहा और उन महाबली दैत्यों का नाश हो गया।
महालक्ष्मी - दैत्य महिषासुर ने अपने बल से सभी राजाओं को परास्त कर पृथ्वी और पाताल लोक पर अपना अधिकार कर लिया था। अब वह स्वर्ग पर अधिकार चाहता था। उसने देवताओं पर आक्रमण कर दी। देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु तथा शिवजी से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर दोनों के शरीर से एक तेज पुंज निकला और उसने महालक्ष्मी का रुप धारण किया। इन महालक्ष्मी ने महिषासुर का अंत किया और देवताओं को दैत्यों के कष्ट से मुक्ति दिलाई।
चामुण्डा देवी - शुम्भ व निशुम्भ नामक दो असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवताओं ने भगवान विष्णु को याद किया और उनसे प्रार्थना की। उनकी इस प्रार्थना और अनुनय से विष्णु भगवान के शरीर से एक ज्योति प्रकट हुई जो चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुई। देखने में वह बहुत सुंदर थी और उनकी सुंदरता देख कर शुम्भ-निशुम्भ ने सुग्रीव नाम के अपने एक दूत को देवी के पास भेजा कि वह उन दोनों में से किसी एक को अपने वर के रुप में स्वीकार कर ले। देवी ने उस दूत को कहा कि उन दोनों में से जो उन्हें युद्ध में परास्त करेगा उसी से वह विवाह करेगी। दूत के मुंह से यह समाचार सुनकर उन दोनो दैत्यों ने पहले युद्ध के लिए अपने सेनापति धूम्राक्ष को भेजा जो अपनी सेना समेत मारा गया। उसके बाद चण्ड-मुण्ड को भेजा गया जो देवी के हाथों मारे गए। उसके बाद रक्तबीज लड़ने आया। रक्तबीज की एक विशेषता यह थी कि उसके शरीर से खून की जो भी बूंद धरती पर गिरती उससे एक वीर पैदा हो जाता था। देवी ने उसके खून को खप्पर में भरकर पी लिया। इस तरह से रक्तबीज का भी अंत हो गया। अब अंत में शुम्भ-निशुम्भ लड़ने आ गए और वह भी देवी के हाथों मारे गए।
योगमाया - जब कंस ने देवकी और वासुदेव के छः पुत्रों को मार दिया तब सातवें गर्भ के रुप में शेषनाग के अवतार बलराम जी आए और रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित होकर प्रकट हुए। उसके बाद आठवें गर्भ में श्रीकृष्ण भगवान प्रकट हुए। उसी समय गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ। वासुदेव जी कृष्ण को वहां छोड़कर योगमाया को वहां से ले आए। कंस को जब आठवें बच्चे के जन्म का पता चला तो वह योगमाया को पटककर मारने लगा लेकिन योगमाया उसके हाथों से छिटकर आकाश में चली गई और उसने देवी का रुप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के हाथों योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस का संहार किया।
रक्तदंतिका - बहुत समय पहले की बात है वैप्रचिति नाम के असुर ने पृथ्वी व देवलोक में अपने कुकर्मों से आतंक मचा के रखा था। उसने सभी का जीना दूभर कर दिया था। देवताओं और पृथ्वीवासियों की पुकार से देवी दुर्गा ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया। देवी ने वैप्रचिति और अन्य असुरों का रक्तपान कर के मानमर्दन कर दिया। देवी के रक्तपान करने उनका नाम रक्तदन्तिका पड़ गया।
शाकुम्भरी देवी - प्राचीन समय में एक बार पृथ्वी पर सौ वर्षों तक बारिश ना होने से भयंकर सूखा पड़ गया। चारों ओर सूखा ही सूखा था और वनस्पति भी सूख गई थी जिससे सभी ओर हाहाकार मच गया। सूखे से निपटने के लिए ऋषि-मुनियों ने वर्षा के लिए भगवती देवी की उपासना की। उनकी स्तुति से मां जगदम्बा ने शाकुम्भरी के नाम से पृथ्वी पर स्त्री रुप में अवतार लिया। उनकी कृपा हुई और पृथ्वी पर बारिश पड़ी। मां की कृपा से सभी वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को जीवन दान मिला।
श्रीदुर्गा देवी - प्राचीन समय में दुर्गम नाम का एक राक्षस हुआ जिसके प्रकोप से पृथ्वी, पाताल और देवलोक में हड़कम्प मच गया। इस विपत्ति से निपटने के लिए भगवान की शक्ति दुर्गा ने अवतार लिया। देवी दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का संहार किया और पृथ्वी लोक के साथ देवलोक व पाताललोक को विपत्ति से मुक्ति दिलाई। दुर्गम राक्षस का वध करने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम देवी दुर्गा पड़ा।
भ्रामरी - प्राचीन समय में अरुण नाम के राक्षस की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि वह देवलोक में रहने वाली देव-पत्नियों के सतीत्व को नष्ट करने का कुप्रयास करने लगा। अपने सतीत्व को बचाने के लिए देव पत्नियों ने भौरों का रुप धारण कर लिया। वह सब देवी दुर्गा से अपने सतीत्व को बचाने के लिए प्रार्थना करने लगी। देव-पत्नियों को दुखी देख मां दुर्गा ने भ्रामरी का रुप धारण किया और अरुण राक्षस के संहार के साथ उसकी सेना को भी नष्ट कर दिया।
चण्डिका - एक बार पृथ्वी पर चण्ड-मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए। इन दोनों राक्षसों ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। इससे दुखी होकर देवताओं ने मातृ शक्ति देवी का स्मरण किया। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर देवी ने चण्ड-मुण्ड राक्षसों का विनाश करने के लिए चण्डिका के रुप में अवतार लिया।
जब हम देवी के इन साहसी चरित्रों की कथा का पाठ करते हैं, इन्हें सुनते हैं, इन पर आस्था रखते हैं तो फिर इनसे साहस की शिक्षा क्यों नहीं ले पाते हैं? महिलाओं के प्रति अपराधों की बढ़ती दर को देखते हुए यदि इन चरित्रों के साहस को महिलाएं अपने जीवन में उतार लें तो वे अपने भीतर की याक्ति रूपी दुर्गा को पहचान सकेंगी। यदि स्त्रियों के हित में अपनी शक्ति को पहचान कर अपराधों का प्रतिकार किया जाए तो यह मां दुर्गा की सच्ची स्तुति होगी।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 10.04.2018)
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महाकाली - कथा के अनुसार विष्णु जी के कानों के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षसों की उत्पत्ति हुई। मधु और कैटभ, ब्रह्मा को देख उन्हें अपना भोजन बनाने के लिए दौड़े। ब्रह्मा जी ने भयग्रस्त हो कर विष्णु जी स्तुति करने लगे। ब्रह्माजी की स्तुति से विष्णु भगवान की आंख खुल गई और उनके नेत्रों में वास करने वाली महामाया वहां से लोप हो गई। विष्णु जी के जागते ही मधु-कैटभ उनसे युद्ध करने लगे। यह युद्ध पांच हजार वर्षों तक चला था। अंत में महामाया ने महाकाली का रुप धारण किया और दोनों राक्षसों की बुद्धि को बदल दिया। ऐसा होने पर दोनों असुर भगवान विष्णु से कहने लगे कि हम तुम्हारे युद्ध कौशल से बहुत प्रसन्न है। तुम जो चाहो वह वर मांग सकते हो। भगवान विष्णु बोले कि यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो यह वर दो कि असुरों का नाश हो जाए। उन दोनों ने तथास्तु कहा और उन महाबली दैत्यों का नाश हो गया।
महालक्ष्मी - दैत्य महिषासुर ने अपने बल से सभी राजाओं को परास्त कर पृथ्वी और पाताल लोक पर अपना अधिकार कर लिया था। अब वह स्वर्ग पर अधिकार चाहता था। उसने देवताओं पर आक्रमण कर दी। देवताओं ने अपनी रक्षा के लिए भगवान विष्णु तथा शिवजी से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर दोनों के शरीर से एक तेज पुंज निकला और उसने महालक्ष्मी का रुप धारण किया। इन महालक्ष्मी ने महिषासुर का अंत किया और देवताओं को दैत्यों के कष्ट से मुक्ति दिलाई।
चामुण्डा देवी - शुम्भ व निशुम्भ नामक दो असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवताओं ने भगवान विष्णु को याद किया और उनसे प्रार्थना की। उनकी इस प्रार्थना और अनुनय से विष्णु भगवान के शरीर से एक ज्योति प्रकट हुई जो चामुण्डा के नाम से प्रसिद्ध हुई। देखने में वह बहुत सुंदर थी और उनकी सुंदरता देख कर शुम्भ-निशुम्भ ने सुग्रीव नाम के अपने एक दूत को देवी के पास भेजा कि वह उन दोनों में से किसी एक को अपने वर के रुप में स्वीकार कर ले। देवी ने उस दूत को कहा कि उन दोनों में से जो उन्हें युद्ध में परास्त करेगा उसी से वह विवाह करेगी। दूत के मुंह से यह समाचार सुनकर उन दोनो दैत्यों ने पहले युद्ध के लिए अपने सेनापति धूम्राक्ष को भेजा जो अपनी सेना समेत मारा गया। उसके बाद चण्ड-मुण्ड को भेजा गया जो देवी के हाथों मारे गए। उसके बाद रक्तबीज लड़ने आया। रक्तबीज की एक विशेषता यह थी कि उसके शरीर से खून की जो भी बूंद धरती पर गिरती उससे एक वीर पैदा हो जाता था। देवी ने उसके खून को खप्पर में भरकर पी लिया। इस तरह से रक्तबीज का भी अंत हो गया। अब अंत में शुम्भ-निशुम्भ लड़ने आ गए और वह भी देवी के हाथों मारे गए।
योगमाया - जब कंस ने देवकी और वासुदेव के छः पुत्रों को मार दिया तब सातवें गर्भ के रुप में शेषनाग के अवतार बलराम जी आए और रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित होकर प्रकट हुए। उसके बाद आठवें गर्भ में श्रीकृष्ण भगवान प्रकट हुए। उसी समय गोकुल में यशोदा जी के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ। वासुदेव जी कृष्ण को वहां छोड़कर योगमाया को वहां से ले आए। कंस को जब आठवें बच्चे के जन्म का पता चला तो वह योगमाया को पटककर मारने लगा लेकिन योगमाया उसके हाथों से छिटकर आकाश में चली गई और उसने देवी का रुप धारण कर लिया। आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के हाथों योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस का संहार किया।
रक्तदंतिका - बहुत समय पहले की बात है वैप्रचिति नाम के असुर ने पृथ्वी व देवलोक में अपने कुकर्मों से आतंक मचा के रखा था। उसने सभी का जीना दूभर कर दिया था। देवताओं और पृथ्वीवासियों की पुकार से देवी दुर्गा ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया। देवी ने वैप्रचिति और अन्य असुरों का रक्तपान कर के मानमर्दन कर दिया। देवी के रक्तपान करने उनका नाम रक्तदन्तिका पड़ गया।
शाकुम्भरी देवी - प्राचीन समय में एक बार पृथ्वी पर सौ वर्षों तक बारिश ना होने से भयंकर सूखा पड़ गया। चारों ओर सूखा ही सूखा था और वनस्पति भी सूख गई थी जिससे सभी ओर हाहाकार मच गया। सूखे से निपटने के लिए ऋषि-मुनियों ने वर्षा के लिए भगवती देवी की उपासना की। उनकी स्तुति से मां जगदम्बा ने शाकुम्भरी के नाम से पृथ्वी पर स्त्री रुप में अवतार लिया। उनकी कृपा हुई और पृथ्वी पर बारिश पड़ी। मां की कृपा से सभी वनस्पतियों और जीव-जंतुओं को जीवन दान मिला।
श्रीदुर्गा देवी - प्राचीन समय में दुर्गम नाम का एक राक्षस हुआ जिसके प्रकोप से पृथ्वी, पाताल और देवलोक में हड़कम्प मच गया। इस विपत्ति से निपटने के लिए भगवान की शक्ति दुर्गा ने अवतार लिया। देवी दुर्गा ने दुर्गम राक्षस का संहार किया और पृथ्वी लोक के साथ देवलोक व पाताललोक को विपत्ति से मुक्ति दिलाई। दुर्गम राक्षस का वध करने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम देवी दुर्गा पड़ा।
भ्रामरी - प्राचीन समय में अरुण नाम के राक्षस की इतनी हिम्मत बढ़ गई कि वह देवलोक में रहने वाली देव-पत्नियों के सतीत्व को नष्ट करने का कुप्रयास करने लगा। अपने सतीत्व को बचाने के लिए देव पत्नियों ने भौरों का रुप धारण कर लिया। वह सब देवी दुर्गा से अपने सतीत्व को बचाने के लिए प्रार्थना करने लगी। देव-पत्नियों को दुखी देख मां दुर्गा ने भ्रामरी का रुप धारण किया और अरुण राक्षस के संहार के साथ उसकी सेना को भी नष्ट कर दिया।
चण्डिका - एक बार पृथ्वी पर चण्ड-मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए। इन दोनों राक्षसों ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। इससे दुखी होकर देवताओं ने मातृ शक्ति देवी का स्मरण किया। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर देवी ने चण्ड-मुण्ड राक्षसों का विनाश करने के लिए चण्डिका के रुप में अवतार लिया।
जब हम देवी के इन साहसी चरित्रों की कथा का पाठ करते हैं, इन्हें सुनते हैं, इन पर आस्था रखते हैं तो फिर इनसे साहस की शिक्षा क्यों नहीं ले पाते हैं? महिलाओं के प्रति अपराधों की बढ़ती दर को देखते हुए यदि इन चरित्रों के साहस को महिलाएं अपने जीवन में उतार लें तो वे अपने भीतर की याक्ति रूपी दुर्गा को पहचान सकेंगी। यदि स्त्रियों के हित में अपनी शक्ति को पहचान कर अपराधों का प्रतिकार किया जाए तो यह मां दुर्गा की सच्ची स्तुति होगी।
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(दैनिक ‘सागर दिनकर’, 10.04.2018)
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