Wednesday, August 5, 2020

चर्चा प्लस | स्वागत है अयोध्या के नए अध्याय का | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस ...

स्वागत है अयोध्या के नए अध्याय का          
           - डाॅ शरद सिंह
    

   आज 05 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चांदी की ईंट आधारशिला के रूप में नींव में रख कर अयोध्या का भविष्य बदल रहे हैं और भारत ही नहीं वरन विश्व के अनेकानेक लोग इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बनने जा रहे हैं। अयोध्या की भूमि श्रीराम की जन्मभूमि थी और कहा जाता है कि अयोध्या में श्रीराम ने लगभग साढ़े ग्यारह हज़ार वर्ष तक शासन किया। लेकिन कलियुग आते-आते श्रीराम की जन्मभूमि विवादों के केन्द्र बन गई किन्तु उसी भूमि पर एक बार फिर आपसी सद्भाव ने एक नई मिसाल कायम की है जो इस नवयुग में प्रवेश के लिए बुनियादी क़दम था।

      कोरोनासंकट के बावजूद राममंदिर शिलान्यास के आयोजन को ले कर पूरे देश में उत्साह की कोई कमी नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या पहुंच कर स्वयं अपने हाथों से चांदी से निर्मित तीन ईंटें रख कर शिलान्यास करेंगे। यह अयोध्या के लिए ही नहीं वरन् समूचे देश के लिए रोमांचक क्षण होगा। रामजन्म भूमि का विवाद सदियों की कटुता के बाद एक ठहराव पाने जा रहा है। यही आशा की जानी चाहिए कि यह सद्भाव सदा बना रहेगा। एक असंभव-सा लगने वाला कार्य संभव होना अपने आप में ऐतिहासिक घटना है। आपत्तियां शिथिल पड़ चुकी हैं और सहमति का स्वर गूंजने लगा है। अयोध्या कस्बे से करीब 25 किमी दूर रौनाही थाने के पीछे धन्नीपुर गांव में यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सुन्नी वक्फ़ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन सौंप दी है। देर से ही सही लेकिन शांति और सौहाद्र्य का एक रास्ता बन कर तैयार हो गया है।

राममंदिर के शिलान्यास के ऐतिहासिक अवसर पर अयोध्या के उस अतीत को याद करना जरूरी है जिसमें राजसत्ता के दबाव और जनसंघर्ष की अनेक कहानियां मौजूद हैं। जब तक हमें यह स्मरण नहीं होगा कि हम कितने दुष्कर रास्ते से चल कर आए हैं तब तक शिलान्यास की उपलब्धि का समुचित आनन्द नहीं आ सकेगा। तो, अयोध्या के इतिहास को पलटते हुए बात उस पौराणिक काल से भी पहले से शुरू की जानी चाहिए जिसमें अयोध्या को बसाए जाने की कथा है। सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना की गई थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें भगवान विष्णु के पास ले गए। भगवान विष्णु ने उन्हें साकेतधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। भगवान विष्णु ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा को भेज दिया। इसके अलावा अपने रामावतार के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने के लिए महर्षि वशिष्ठ को भी उनके साथ भेजा। मान्यता है कि वशिष्ठ द्वारा सरयू नदी के तट पर लीलाभूमि का चयन किया गया, जहां विश्वकर्मा ने नगर का निर्माण किया। ‘‘स्कंदपुराण’’ के अनुसार अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान है।

माना जाता है कि वैवस्वत मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। ब्रह्माजी के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप से विवस्वान और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु थे। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे - इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। इसमें इक्ष्वाकु कुल का ही ज्यादा विस्तार हुआ। इक्ष्वाकु कुल में ही आगे चलकर प्रभु श्रीराम हुए। अयोध्या पर महाभारत काल तक इसी वंश के लोगों का शासन रहा। अयोध्या मनु के पुत्र इक्ष्वाकु से प्रारम्भ हुआ। इस वंश में राजा रामचंद्रजी के पिता दशरथ 63वें शासक हैं। भगवान श्रीराम के बाद लव ने श्रावस्ती बसाई और इसका स्वतंत्र उल्लेख अगले 800 वर्षों तक मिलता है। कहते हैं कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका प्रभाव रहा। रामचंद्र से लेकर द्वापरकालीन महाभारत और उसके बहुत बाद तक हमें अयोध्या के सूर्यवंशी इक्ष्वाकुओं के उल्लेख मिलते हैं। इस वंश का बृहद्रथ, अभिमन्यु के हाथों ‘महाभारत’ के युद्ध में मारा गया था। महाभारत के युद्ध के बाद अयोध्या उजड़-सी गई लेकिन उस समय भी श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व सुरक्षित था जो लगभग 14वीं सदी तक बना रहा।
कालान्तर में अयोध्या मगध के मौर्यों से लेकर गुप्तों और कन्नौज के शासकों के अधीन रहा। अंत में यहां महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की। सन 1033 ई. में सैयद सालार के मारे जाने के बाद जब जौनपुर में शकों का राज्य स्थापित हुआ तो अयोध्या शकों के अधीन चला गया। 1526 ई. में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की और उसके सेनापति ने 1528 में यहां आक्रमण करके मस्जिद का निर्माण करवाया जो 1992 में मंदिर-मस्जिद विवाद के चलते रामजन्मभूमि आन्दोलन के दौरान ढहा दी गई।

श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया था। इसका प्रमाण पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। श्री राम को भी भगवान विष्णु की ही अवतार माना जाता है। त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने आयोध्या में अवतार लिया। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री राम के आयोध्या में जन्म लेने के पीछे एक खास कारण है। ब्रह्मा जी के पुत्र मनु और उनकी पत्नी सतरूपा जिन्होंने मनुष्य जाति की उत्पत्ति की यह दोनों पति और पत्नी अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर अपने पुत्र को राज सिंहासन पर बिठाकर भगवान विष्णु की भक्ति करने के लिए राजपाठ त्यागकर वनवास के लिए चले गए। वन में रहकर अन्न त्याग करके कई हजार सालों तक भगवान विष्णु की भक्ति की यदि शास्त्रों की मानें तो उन्होंने छह हजार सालों तक सिर्फ जल ग्रहण करके ही भगवान विष्णु की तपस्या की थी। मनु और सतरूपा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। तब मनु ने सतरूपा से भगवान विष्णु जैसे पुत्र को पाने की इच्छा जाहिर की उनकी इच्छा का मान रखते हुए भगवान विष्णु ने कहा कि संसार में उनके जैसा कोई भी नहीं है। मनु और सतरूपा ने पूरी भक्ति से भगवान विष्णु की तपस्या की है। इसलिए वह उनकी इस इच्छा का मान अवश्य रखेंगे और अगले जन्म में जब मनु दशरथ और सतरूपा कौश्लया के रूप में अवतार लेंगे तब भगवान विष्णु राम अवतार में इस धरती पर उनके पुत्र बनकर अवतरित होंगे। मनु और सतरूपा की इच्छा को पूर्ण करने के लिए भगवान विष्णु ने अयोध्या में जन्म लिया था और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को ही भगवान श्री राम की जन्म हुआ था।

कोरोना वायरस की महामारी के चलते भूमिपूजन समारोह में कुल 175 लोगों को ही आमंत्रित किया गया है। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के अनुसार भूमि पूजन के कार्यक्रम के लिए को निमंत्रण पत्र भेजा गया। भूमिपूजन के लिए देश की संपूर्ण नदियों का जल मंगवाया गया है। मानसरोवर का जल लाया गया हैं। रामेश्वरम और श्रीलंका से भी समुद्र का जल आया है। लगभग 2000 स्थानों से जल और मिट्टी लाई गई है। इसमें अलग-अलग आध्यात्मिक परंपराओं से आने वाले 135 संत शामिल हैं। वहीं, मंच पर प्रधानमंत्री के अलावा बस पांच लोगों को स्थान दिया गया है। आज 05 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चांदी की ईंट आधारशिला के रूप में नींव में रख कर अयोध्या का भविष्य बदल रहे हैं और भारत ही नहीं वरन विश्व के अनेकानेक लोग इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बनने जा रहे हैं। मंदिर निर्माण के लिए 40 किलो की चांदी की ईंट आधारशिला के रूप में रखे जाते ही बदल जाएगा अयोध्या का भविष्य। एक ऐसा भविष्य जिसमें आपसी भाईचारा, भक्ति, धार्मिक पर्यटन और रोजगार के अवसर होंगे। यूं तो श्रीराम अयोध्या में जन्में लेकिन श्रीराम सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं। जैसा कि तुलसीदास जी ने लिखा है-
      सिया राममय सब जग जानी।
      करउं प्रणाम जोरि जुग पानी।।
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(दैनिक सागर दिनकर में 05.08.2020 को प्रकाशित)
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