Wednesday, August 12, 2020

चर्चा प्लस | जन्मोत्सव सदा प्रासंगिक श्रीकृष्ण का | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस
जन्मोत्सव सदा प्रासंगिक श्रीकृष्ण का
  -  डाॅ शरद सिंह
     द्वापर राजनीतिक अनाचार की चरम परिणति का समय था जिसकी किसी हद तक हम वर्तमान राजनीतिक दशाओं से तुलना कर सकते हैं। अनीतिकारियों, भ्रष्टाचारियों के दरबार में आए दिन नियम-कानून का चीर-हरण होता रहता है। जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान अधर्म का नाश करने के लिए धरती पर जन्म लेते हैं। द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। अधर्म के विनाश के मार्गदर्शक बने। ऐसे विशिष्ट व्यक्तित्व के स्वामी श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने के लिए सार्वजनिक स्थान पर मटकी फोड़ना ही जरूरी नहीं है, बल्कि जरूरी है उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को अपने जीवन में उतारना जो हमें सही ढंग से जीना सिखाते हैं।  
 समय निरंतर गतिमान रहता है। समय के साथ स्थितियां एवं परिस्थितियां बदलती हैं। इसीलिए जो कल प्रासंगिक था वह आज नहीं है, जो आज प्रासंगिक है वह कल प्रासंगिक नहीं रहेगा। लेकिन कुछ तत्व, कुछ घटनाएं एवं कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जो कालजयी होते हैं और उनकी प्रासंगिकता सदैव बनी रहती है। ऐसे ही एक व्यक्त्वि हैं श्रीकृष्ण जिनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। कृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है। एक ऐसा अवतार जो मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। कृष्ण के सभी गुण मानवीय होते हुए भी अधर्म को पराजित करने के लिए थे। दरअसल, श्रीकृष्ण हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान है। कृष्ण की शिक्षाएं कृष्ण का जीवन और कृष्ण की ‘गीता’ आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है।
गीता का ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस समय था। गीता को लेकर आज भी बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में शोध हो रहे हैं। गीता हमें जीवन को भरपूर जीने की प्ररणा देती है, कर्मयोग की शिक्षा देती है। हमारे लिए जीवंत गुरु, मार्गदर्शक और पथप्रदर्शक का काम करता है। वह हमें अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा देती है। इससे भी बढ़ कर कृष्ण का उपदेश जिसमें वे बिना फल की इच्छा के कर्म करने की बात कहते हैं, हमें उन पलों में डिप्रेशन से बचाता है जब हम अपने किसी काम में असफल होने पर हताश हो जाते हैं और ग़तल दिशाओं में सोचने लगते हैं। गीता के माध्यम से कृष्ण ने अर्जुन को अनासक्त कर्म यानी फल की इच्छा किए बिना कर्म करने की प्रेरणा दी थी। इसके पीछे का मूलभाव यही है कि हम यदि आज हम फल की इच्छा किए बिना काम करते रहें तो विभिन्न तरह की टेंशन, फ्रस्टेशन और डिप्रेशन से बच सकते हैं। देखा जाए तो कृष्ण का सम्पूर्ण व्यक्तित्व संदेशों से भरा हुआ है। वे प्रकृति के सौंदर्य के प्रतीक मोरपंख को अपने सिर पर धारण करते हैं। वे संगीत और नृत्य से जीवन को आनन्दमय बनाने का संदेश देते हैं। वे प्रगति की दौड़ में पीछे छूट गए अपने मित्रों की सहायता करने का संदेश देते हैं। वस्तुतः कृष्ण का जन्म ही धर्म की स्थापना एवं अधर्म, अन्याय तथा अत्याचार का नाश करने के लिए हुआ था।
आज अकसर युवाओं में इस बात का असंतोष रहता है कि उनके माता-पिता उन्हें वे सभी भौतिक सुख्स नहीं दे पाते हैं जो वे पाना चाहते हैं। इसी असंतोष के कारण कुछ युवा अपराध के मार्ग में चल पड़ते हैं। जबकि युवाओं को याद रखना चाहिए कि श्रीकृष्ण चांदी का चम्मच मुंह में ले कर नहीं जन्में थे। उनका जन्म तो कारागार में हुआ था। नृशंस एवं अधर्मी कंस के कारागार में। बड़ी रोचक एवं लोमहर्षक कथा है कृष्ण के जन्म की। द्वापर युग में मथुरा में राजा उग्रसेन का राज था। कंस उनका पुत्र था। लेकिन राज्य के लालच में अपने पिता को सिंहासन से उतारकर वह स्वयं राजा बन गया और अपने पिता को कारागार में डाल दिया। देवकी कंस की चचेरी बहन थी जिसे वह बहुत प्रेम करता था।  इसीलिए कंस ने देवकी का विवाह वासुदेव के साथ पूरे धूमधाम से किया था और प्रसन्नतापूर्वक विवाह की सभी रस्मों को निभाया था। लेकिन जब व्यक्ति स्वार्थ में अंधा हो गया हो तो अपनी प्रिय बहन का भी शत्रु बन बैठता है। जिसका उदाहरण आजकल के कथित ‘आॅनर किलिंग’ में देखा जा सकता है। वरना जब बहन देवकी को विदा करने का समय आया तो कंस भावविभोर हो कर देवकी और वासुदेव को रथ में बैठाकर स्वयं ही रथ चलाने लगा। तभी अचानक ही आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र ही कंस काल होगा। आकाशवाणी सुनकर कंस स्वार्थपरता की सीमाएं लांघते हुए तुरंत ही अपनी बहन को मारने के लिए तत्पर हो गया। लेकिन वासुदेव ने पत्नी देवकी के प्राण बचाने के लिए उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हें अपनी बहन देवकी से कोई भय नहीं है, देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए वे अपनी आठवीं संतान को कंस को सौंप देंगे। वासुदेव को लगा था कि जब कंस नवजात शिशु को देखेगा तो उसका हृदय पसीज उठेगा और वह शिशु को मारने का जघन्य अपराध नहीं करेगा।
कंस को वासुदेव की बात मान ली। लेकिन उसने देवकी और वासुदेव को कारागार में कैद डाल दिया। कंस को अपने प्राणों से बढ़ कर किसी का मोह नहीं था। नवजात शिशिुओं को देख कर भी उसके मन में दया भावना नहीं जागी। कंस की इस क्रूरता को हम आज इस संदर्भ में समझ सकते हैं कि पुत्र पाने के मोह में किसी प्रकार कन्याओं एवं कन्या भ्रण को मारा जाता रहा है। कंस में भी ऐसी क्रूर प्रवृत्ति थी। जब भी देवकी की कोई संतान होती तो कंस उसे मार देता इस तरह से कंस ने एक-एक करके देवकी की सभी संतानों को मार दिया। और फिर भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण ने जन्म लिया। कृष्ण के जन्म लेते ही कारागार में एक तेज प्रकाश छा गया। कारागार के सभी दरवाजे स्वतः ही खुल गए, सभी सैनिको को गहरी नींद आ गई। वासुदेव और देवकी के सामने भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा कि उन्होंने ही कृष्ण रुप में जन्म लिया है। विष्णु जी ने वासुदेव जी से कहा कि वे उन्हें इसी समय गोकुल में नन्द बाबा के यहां पहुंचा दें, और उनकी कन्या को लाकर कंस को सौंप दें, वासुदेव जी गोकुल में कृष्ण जी को यशोदा जी के पास रख आए वहां से कन्या को ले आये, और कन्या कंस को दे दी। वह कन्या कृष्ण की योगमाया थी। जैसे ही कंस ने कन्या को मारने के लिए उसे पटकना चाहा कन्या उसके  हाथ से छूटकर आकाश में चली गई। और तभी भविष्यवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने जन्म ले लिया हैं और वह गोकुल में पहुंच चुका है। तब से कृष्ण जी को मारने के लिए कंस ने कई राक्षसों को भेजा लेकिन बालपन में भगवान ने कई लीलाएं रची, और सभी राक्षसों का वद कर दिया। जब कंस ने कृष्ण को मथुरा में आमंत्रित किया तो वहां पर पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलवाई। श्रीकृष्ण ने ‘गीता’ का उपदेश देते हुए कहा भी है कि जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान अधर्म का नाश करने के लिए धरती पर जन्म लेते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं है कि सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया जाए। वे अर्जुन को यही तो उपदेश देते हैं कि धर्मरक्षा के लिए रक्तसंबंधों को भी भुला कर अन्याय के विरूद्ध शस्त्र उठाना जरूरी है। यहां धर्म का संकुचित अर्थ नहीं है। यहां धर्म का अर्थ मानवहित एवं मानवजीवन है। जो मानवहित के विरुद्ध कार्य कर रहा हो उसको दण्डित करना ही धर्म है। श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव भले ही इस बार अपने-अपने घरों में ही मनाना है किन्तु उनके जन्मोत्सव से अधिक महत्वपूर्ण है कृष्ण का व्यक्तित्व और और कृष्ण के उपदेश जिसे अपना कर आज हम अपने जीवन को सहज, सरल और संतोषमय बना सकते हैं। तो श्रीकृष्ण जन्म पर मेरी ये काव्य-पंक्तियां देखें-
      कृष्ण जन्म  का  अर्थ यही है,  मानव धर्म सदा विजयी हो।
     फल का लालच छोड़ चुका वो, उत्तम कर्म सदा विजयी हो।।
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(दैनिक सागर दिनकर में 12.08.2020 को प्रकाशित)
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