अयोध्या-सी दृढ़ता चाहिए सागर को स्मार्ट बनाने के लिए
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘जीवन में कुछ सपने पूरा होने में समय लेते हैं, ऐसा ही एक सपना जो मेरे हृदय के समीप है, अब पूरा हो रहा है।’’ श्री लालकृष्ण आडवानी के ये उद्गार थे अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास किए जाने पर। इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखे जाने के बाद कहा कि ‘‘यह आनंद का क्षण है क्योंकि जो संकल्प लिया गया था। वह आज पूरा हुआ है।’’ ठीक इसी प्रकार सागर नगर ने भी स्मार्ट सिटी बनने का सपना देखा है और इस सपने के पूरा होने के आनंद के क्षण को नगर का प्रत्येक नागरिक जीना चाहता है। लेकिन अभी यह सपना पूरा होने में अनेक कठिनाइयां हैं। इसके रास्तें में सबसे बड़ी बाधा है दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी। यदि सागर को स्मार्ट सिटी में बदलते देखना है तो नेताओं, अधिकारियों और नागरिकों को दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा। मात्र सोचने, कल्पना करने अथवा चर्चा की चुगाली करने से यह सपना सच नहीं होगा।
जब 500 साल पुराना सपना पूरा हो सकता है तो चंद पंच वर्षीय योजनाओं पुराना सपना क्यों नहीं? जब स्मार्ट सिटी की चर्चा आती है तो पहला प्रश्न मन में कौंधता है कि यह ’स्मार्ट सिटी’ है क्या? किसी भी शहर की स्मार्टनेस उसकी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति पर निर्भर होती है। यदि शहर में सड़कें उखड़ी हुई हैं, ड्रेनेज की व्यवस्था चौपट है और हर साल बारिश में नागरिकों को सड़क पर बहती नालियों का समाना करना पड़ता है, यदि कचरा प्रबंधन का काम लचर है या फिर शासकीय स्तर पर चिकित्सकीय सुविधाएं गड़बड़ी से भरी पड़ी हैं तो मान कर चलना होगा कि आसान नहीं है डगर स्मार्टसिटी की। उदाहरण के लिए सागर को ही लीजिए। भौगोलिक दृष्टि से एक अत्यंत सुंदर शहर है। यहां का विश्वविद्यालय डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र दुनिया के कोने-कोने में जा कर नाम कमा रहे हैं। शहर की अपनी एक झील है। एक पुराना शहर है जो चारो ओर से नई काॅलोनियों के रूप में विस्तार पाता जा रहा है। इस शहर की अपनी एक बोली है, अपनी है संस्कृति है और अपनी एक पहचान है। इस तरह की खूबियां लगभग हर उस शहर की है जो स्मार्टसिटी की दौड़ में विजयी मुद्रा में खड़े हैं। इसलिए इन सभी चुनौतियां भी लगभग एक समान हैं। इसीलिए यहां मैं सागर शहर के संदर्भ में बात करूंगी। सबसे पहले तो सागर शहर के अभिन्न हिस्से मकरोनिया उपनगर को पुनः नगर निगम से जोड़ने की जरूरत है ताकि मकरोनिया उपनगर जो एक ऐजुकेशन हब और व्यावसायिक केन्द्र के यप में तेजी से उभरता जा रहा है उसे भी स्मार्ट सिटी योजनाओं के साथ विकास करने का अवसर मिल सके।
निसंदेह सागर शहर के मध्य में एक पुराना शहर है। इस पुराने शहर के बसाने वालों ने शहर के लिए उत्तम कोटि की पेयजल व्यवस्था एवं जल निकासी व्यवस्था की थी। लेकिन धीरे-धीरे वे सारी व्यवस्थाएं सिकुड़ गईं। आज डेªनेज़ और सफाई की व्यवस्था चरमरा चुकी है। जब पुराना शहर बसाया गया था तब उसकी सड़कें चैड़ी हुआ करती थीं (जैसेकि साक्ष्य मिले हैं) लेकिन कई अब सड़कें आज भी अतिक्रमण की चपेट में हैं। नगरनिगम की सीमा में आने वाले शहर के अधिकांश हिस्से अतिक्रमण के शिकार हैं। बरसाती पानी की निकासी के लिए सभी सड़कों तक का बेहतरीन नेटवर्क तैयार करना होगा। शत-प्रतिशत रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर देना होगा। जरा-सी बारिश हुई और निचली बस्तियों तथा काॅलोनियों में पानी भरने लगता है। शहर के पुराने नालों का रख-रखाव जरूरी है। सभी घरों तक डोर-टू-डोर कचरा उठाने की व्यवस्था की जा चुकी है लेकिन इस मुद्दे पर नागरिकों में अभी जागरुकता की कमी है। नतीजन कई मोहल्ले ऐसे हैं जहां कचरों का ढेर लग जाया करता है। ठोस कचरे की शत-प्रतिशत रिसाइक्लिंग करने की समस्या का स्थाई समाधान जरूरी है। मसवासीग्रंट में जहां शहर का सारा कचरा डम्प किया जाता है, गांव वाले परेशान होते रहते हैं। सभी घरों में शौचालय, स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था की जानी आवश्यक होने पर भी आज भी लोग ‘लोटा परेड’ करते दिखाई दे जाते हैं। सीवरेज और गंदे पानी के प्रबंधन के लिए नेटवर्क का संपूर्ण विस्तार जरूरी है। पुरानी सीवरेज सिस्टम पूरी तहर से ध्वस्त हो चुका है। सभी घरों में कनेक्शन देकर 24 घंटे जलापूर्ति करना भी स्मार्ट सिटी का कंसेप्ट है। जिसके चलते प्रत्येक व्यक्ति पर लगभग 135 लीटर की आपूर्ति करनी होगी। जिससे लोगों को सहूलियत हो। वाटर ट्रीटमेंट पर ध्यान देना होगा।
आईटीके मामले में दूसरे शहरों की अपेक्षा हम पीछे हैं। नेट कनेक्टिविटी के चुस्त-दुरूस्त संजाल की जरूरत है। पूरे शहर में 100 एमबीपीएस की स्पीड के साथ वाई-फाई की सुविधा मिलनी चाहिए, ताकि लोग कभी भी नेट इस्तेमाल कर सकें। यूं भी दैनिक जीवन में हर काम के लिए इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। अतः इंटरनेट व्यवस्था सुचारू होना जरूरी है।
सागर शहर को स्मार्ट बनाने के लिए नागरिकों के भी कुछ दायित्व हैं जैसे, शहर की स्वच्छता बनाए रखना, नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा, विशेष रूप से महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा पेयजल को व्यर्थ बहने से रोकना, रेन वाटर हार्वेसिं्टग को अपनाना, सौदर्याीकरण के लिए लगाए जाने वाले पेड़-पौधों की रक्षा करना क्यों कि ये न केवल सुन्दरता बढ़ाते हैं बल्कि पर्यावरण में संतुलन भी बनाए रखते हैं। सच तो यह है कि हर नागरिक चाहता तो बहुत कुछ है लेकिन उसे पाने के लिए शासन अथवा राजनीतिक दलों का मुंह ताकता रहता है। बुनियादी जरूरतों को पूरा कराने में भी उसे हिचक होती है। इसलिए यह तय है कि यदि अपने शहर को सचमुच ‘स्मार्ट सिटी’ बनाना है तो नागरिक सहयोग एवं जागरूकता की अहम भूमिका को स्वीकार करना होगा। राह कठिन है, इस अर्थ में भी कि किसी स्कैम पर चर्चा करना आसान होता है लेकिन समय रहते उस स्कैम को होने से ही रोकना साहस का काम होता है। लेकिन यदि आमजनता अधिक टैक्स चुकाते हुए अधिक सुविधाएं पाने की चाहत रखती है तो उसे ‘‘व्हिसिल ब्लोअर्स’’ बन कर अपने टैक्स के पैसों की निगरानी भी करनी होगी। दरअसल नेताओं, अधिकारियों एवं नागरिकों में अयोध्या-सी दृढ़ता चाहिए सागर को स्मार्ट बनाने के लिए।
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(दैनिक जागरण में 06.08.2020 को प्रकाशित)
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