Thursday, August 27, 2020

साहस नहीं ये तो है दुस्साहस | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | दैनिक जागरण में प्रकाशित

दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा विशेष लेख "साहस नहीं ये तो है दुस्साहस" 🚩
❗हार्दिक आभार "दैनिक #जागरण"🙏
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साहस नहीं ये तो है दुस्साहस 
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        प्रकृति के सौंदर्य को निहारना भला सभी को अच्छा लगता है। हर कोई भरी हुई नदियों, तालाबों और झर-झर झरते प्रपातों को देखना चाहता है। सागर संभाग में ऐसे अनेक स्थल हैं जो बारिश के दिनों में अपनी छटाएं बिखेरने लगते हैं और पर्यटकों तथा प्रकृतिप्रेमियों को अपने पास बुलाने लगते हैं। सागर के राहतगढ़ वाटर फॉल, राजघाट बांध, पन्ना के बृहस्पति कुण्ड, पांडव फॉल आदि अनेक नाम गिनाए जा सकते हैं जहां प्रति वर्ष बारिश के मौसम में सैंकड़ों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। इस वर्ष भी ये प्राकृतिक स्थल सौंदर्य से लबालब भर गए क्योंकि प्रकृति को क्या पता कि इस वर्ष उसे देखने आने वालों के लिए जोखिम ही जोखिम है। लेकिन जिन्हें इस जोखिम का पता है वे कथित साहस का परिचय देते हुए ऐसे पर्यटन स्थलों पर जा धमके। अभी हाल ही की घटना है जब सागर के राजघाट बांध और राहतगढ़ वाटर फॉल पर दर्शनार्थियों का हुजूम उमड़ पड़ा। प्रकृति का आनंद लेने पहुंचे लोगों ने न तो सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा और न ही कोविड-19 गाईड लाईन का। मेरे एक परिचित भी उसी भीड़ में सपरिवार शामिल थे। फोन पर उन्हें मैंने उनके इस कृत्य पर उलाहना दिया तो वे बड़े आत्मविश्वास से बोले-‘‘अरे, कुछ नहीं होता। फिर हम अपनी गाड़ी से गए थे। वहां सभी ठीक-ठाक दिखाई दे रहे थे। आप चिंता मत करिए। हम सब ठीक रहेंगे।’’ मैंने भी दुआ की उनके लिए  कि उनके साथ सब ठीक ही रहे। क्योंकि उनका बेटा जो अभी अट्ठारह साल का भी नहीं हुआ है, इन्दौर में कोचिंग ले रहा था। लेकिन कोरोना संक्रमण के इस दौर में उसे अपनी कोचिंग छोड़ कर बीच में ही घर वापस आना पड़ा। उनकी बेटी अभी कक्षा दस में पढ़ रही थी। बोर्ड परीक्षा के लिए उसने बहुत मेहनत की थी लेकिन कोरोना के चलते पढ़ाई का सिलसिला गड़बड़ा गया। उसने साहस कर के परीक्षा तो दी लेकिन रिजल्ट उसके मन मुताबिक नहीं रहा। फिर भी वे दोनों बच्चे अपने भविष्य को ले कर सचेत हैं और ऑनलाईन पढ़ाई ज़ारी रखे हुए हैं। लेकिन माता-पिता अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य को ले कर कितने सजग हैं यह तो उनके राजघाट भ्रमण से ही पता चल गया। मैं इसे उनका साहस नहीं बल्कि दुस्साहस कहूंगी जो उन्होंने इतना बड़ा रिस्क लिया। यदि वे सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड-19 गाईड लाईन का ध्यान नहीं रख सकते थे तो उन्हें ऐसे स्थान पर जाना ही नहीं था या फिर भीड़ देख कर गाड़ी से उतरे बिना उसी समय वापस लौट आना था। यह संक्रमण ऐसा नहीं है जिसके लक्षण तुरंत दिखने लगें। फिर जानते-बूझते स्वयं को, अपने परिवार को मुसीबत में क्यों डालना? इससे उन लोगों के लिए भी खतरा बढ़ जाता है जो संपर्क में आते हैं। सभी जानते हैं कि जब तक संक्रमण का पता चलता है तब तक यह संक्रमण दो-चार लोगों को अपनी चपेट में ले चुका होता है।
मध्यप्रदेश में अब तक कुल 9 लाख 51 लाख 822 लोगों के टेस्ट हो चुके हैं। जिसमें से करीब 42 हजार मरीज कोरोना पॉजिटिव हुए हैं। अकेले सागर शहर में ही कोरोना मरीजों की निरंतर बढ़ती संख्या एक वार्निंग की तरह है जिसे लोग अनदेखा कर के स्वयं को मुसीबत की ओर धकेल रहे हैं। सागर शहर में जहां 10 अप्रैल को एक मरीज था वहां अब आंकड़ा रिकार्ड तोड़ता जा रहा है। बायरोलॉजी लैबों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार 25 अगस्त 2020 को सागर में कोरोना का विस्फोट हुआ। एक साथ 34 लोगों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव मिली। इस पर स्वास्थ्य विभाग का चिंतित होना स्वाभाविक है। बुंदेलखंड चिकित्सा महाविद्यालय में कोविड-19 महामारी के कारण हो रही मौतों की संख्या को कम करने तथा संक्रमण की रोकथाम के लिए संभाग कमिश्नर जेके जैन ने भी स्वास्थ्य एवं प्रशासनिक अमलों तथा समाजसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों की एक बैठक ली। कमिशनर जैन ने बताया कि, कोविड-19 संक्रमण के संबंध में पॉजिटिव प्रकरणों का ’’अर्ली आइडेंटिफिकेशन’’ अर्थात प्रारंभिक अवस्था में ही संक्रमण का पता कर इलाज प्रारंभ करना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि कोविड संक्रमण की रोकथाम एवं बचाव हेतु आइडेंटिफिकेशन, आइसोलेशन, टेस्टिंग तथा ट्रीटमेंट की प्रक्रिया अपनायी जा रही है। ऐसे प्रकरण जो संक्रमण की प्रारंभिक अवस्था में ही सामने आ जाते हैं उनका इलाज सही वक्त पर शुरू हो जाता है। जिससे व्यक्ति जल्द स्वस्थ होकर घर लौट पाता है। परंतु ऐसे प्रकरण जिनमें व्यक्ति गंभीर रूप से संक्रमित होने के बाद अस्पताल पहुंचता है, उसके बचने की संभावना कम होती है। शहर में दर्ज हो रही मृत्यु का सबसे बड़ा कारण ’’लेट प्रेजेंटेशन’’ है। लेट प्रेजेंटेशन से तात्पर्य व्यक्ति के गंभीर रूप से संक्रमित होने के बाद अस्पताल पहुंचना है। ऐसी स्थिति में संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाता है। उन्होंने जन सामान्य से अपील की कि, कोविड-19 के लक्षण दिखने पर तत्काल रूप से चिकित्सकीय परामर्श लिया जाए। कमिश्नर ने कोविड-19 की गाईड लाईन भी याद दिलाई कि कोविड संक्रमण से बचाव हेतु फेस कवरिंग अर्थात नाक एवं मुंह को ढकना अति-आवश्यक है। इसके लिए ना केवल मास्क बल्कि कोई अन्य कपड़ा जैसे गमछा, दुपट्टा आदि के द्वारा भी चेहरे का ढंका जा सकता है। वायरस से बचाव हेतु आवश्यक है कि, कपडे़ को थ्री-फोल्ड करके पहना जाए। संभागायुक्त ने सभी को संबोधित करते हुए इस आपदा के समय देशहित में सभी से सहयोग मांगा। उन्होंने बताया कि कोविड-19 संक्रमण को फैलने से रोकने हेतु जन भागीदारी भी अत्याधिक आवश्यक है। सभी के समन्वित प्रयासों से संक्रमण को फैलने से रोका जा सकेगा साथ ही इससे होने वाली मृत्युदर को भी कम किया जा सकेगा। उन्होंने शहर के बुद्धिजीवी, गणमान्य नागरिकों से अपील की कि, आज शहर को उनकी जरूरत है। वे अपने-अपने क्षेत्र में लोगों को कोरोना के संबंध में सजग एवं जागरूक बनाएं। जिससे ना केवल सही वक्त पर मरीज अस्पताल पहुंच सके बल्कि सावधानियां रखकर इस संक्रमण से बच भी सके। इस मुहिम में भागीदारी तथा जन जागरूकता हेतु शहर की मुहल्ला समितियों को शामिल करना भी तय किया गया।

एक कहावत है कि जगाया उसे जा सकता है जो सो रहा हो। जो जाग रहा हो और जानबूझ कर सोने का ढोंग कर रहा हो, उसे जगाया नहीं जा सकता है। यही हाल उन दुस्साहसियों का है जो अपने कथित प्रकृतिप्रेम और पर्यटन के नाम पर खुद की और अपने परिवारजन की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि कोविड कोरोना संक्रमण की संख्या जितनी तेजी से घटेगी, उतनी तेजी से हमें इस भयावह स्थिति से छुटकारा मिलेगा। जब संक्रमण फैलेगा नहीं तो वायरस बढ़ेगा कैसे? और जब वायरस बढ़ेगा नहीं तो इससे छुटकारा भी मिल ही जाएगा। राजघाट बांध में नियमों को ताक में रख कर उमड़ी भीड़ जल्दी वहां से नहीं टलती यदि किसी ने उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल नहीं किया होता। उस वीडियो को देख कर प्रशासन हरकत में आया और वहां पहुंच कर लोगों को समझाईश दी। 

बेशक पर्यटन और घूमने-फिरने में बुराई नहीं है लेकिन यदि कोरोना गाईड लाईन का ध्यान नहीं रखा जाए तो फिर इसमें जानलेवा बुराई है। प्रशासन सिर्फ़ समझा सकता है, दण्डित कर सकता है लेकिन जब बात जानलेवा संक्रमण की हो तो स्वविवेक से काम लेना भी जरूरी है। ऐसे मामले में किसी भी प्रकार का दुस्साहस सभी के लिए भारी पड़ सकता है। वो कहते हैं न कि सतर्क रहें, सुरक्षित रहें।  
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(दैनिक जागरण में 27.08.2020 को प्रकाशित)
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