Wednesday, September 8, 2021

चर्चा प्लस | यह ज़ुनून है, प्रेम तो हरगिज़ नहीं | डाॅ शरद सिंह

चर्चा प्लस           
यह ज़ुनून है, प्रेम तो हरगिज़ नहीं
       - डाॅ शरद सिंह
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक नहीं
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो।
शायर सुदर्शन फ़ाकिर का यह शेर प्रेम की गंभीरता को बयान करता है। लेकिन इन दिनों प्रेम के नाम पर जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उन्हें पढ़-सुन कर विश्वास होने लगता है कि वह जो कुछ भी हो मगर प्रेम तो हरगिज़ नहीं हो सकता। प्रेम में प्रेमी तो अपनी जान देने को तैयार रहते हैं लेकिन अगर कोई प्रेमी उस लड़की की जान ले ले जिससे वह प्रेम करने का दावा करता है तो यह प्रेम नहीं जुनून ही कहा जाएगा।    
     

बरसों पहले एक फिल्म देखी थी ‘‘लव स्टोरी’’। कुमार गौरव और विजेयता पंडित उसके हीरो-हिरोईन थे। उस फिल्म की पूरी कहानी तो अब मुझे याद नहीं है लेकिन उसमें एक सीन था जो मुझे उस समय भी अच्छा नहीं लगा था। कुमार गौरव और विजेयता पंडित एक ही हथकड़ी से बंधे होते हैं और विजेयता पंडित गुस्से में पत्थर से हथकड़ी तोड़ने का प्रयास करती है। पत्थर धोखे से कुमार गौरव के हाथ में लग जाता है और वह चोटिल होकर विजेयता पंडित के गाल पर एक थप्पड़ जड़ देता है। इससे पहले की फिल्मों में मैंने यही देखा था कि नायक स्वयं चाहे कितना भी कष्ट उठा ले पर नायिका पर कभी हाथ नहीं उठाता था। पहली बार ऐसा दृश्य किसी फिल्म में मैंने देखा था। यह कोई अच्छा दृश्य नहीं था। यदि उस समय तक दोनों में प्रेम नहीं भी था तो भी किसी लड़की पर बिना सोचे-समझे हाथ उठाना सरासर गलत लगा था मुझे। लेकिन अब तो एक तरफा कथित प्रेम के भयावह परिणाम सुनने को मिलने लगे हैं। भला यह कैसा प्रेम कि आप आपने प्रिय को ही मार डालें?

सागर नाम के हमारे इस विकासशील शहर में विकास की गति भले ही धीमी हो लेकिन अपराध के नए नमूने ने शहर को चैंका दिया। घटना इस प्रकार है कि सागर शहर में रहने वाले एक लड़के ने पड़ोस में रहने वाली लड़की को एक तरफा प्रेम के चलते उस समय गोली मार दी जब वह कॉलेज से लौटकर अपने घर जा रही थी। गोली लगने से लड़की की मौके पर ही मौत हो गई। बीच सड़क पर लड़की को गोली लगने से वहां दहशत का माहौल हो गया। घबरा कर स्थानीय लोगों ने पुलिस को सूचना दी। सूचना मिलते ही पुलिस बल मौके पर पहुंची और सड़क पर लहूलुहान पड़े किशोरी के शव को कपड़े से ढंका गया। लड़की के भाई ने बताया कि आरोपी कई दिनों से बहन को परेशान करता था। जिसकी थाने में शिकायत भी की थी। इसी वजह से वह दुश्मनी रखने लगा था। उस लड़के पर छेड़छाड़ का मामला पहले से ही दर्ज है। इसे एक तरफा प्रेम नहीं एक तरफा जृनून ही कहा जाना चाहिए। प्रेम में हिंसा की कोई जगह नहीं होती है। जहां हिंसा की भावना है, वहां तय है कि प्रेम हो ही नहीं सकता है। किसी को जबर्दस्ती पाने की लालसा रखने और किसी को प्रेम करने में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ होता है। प्रेम हिंसा नहीं समर्पण मांगता है। प्रेम में दुख देने नहीं अपितु सुख देने की भावना होती है।
सागर जैसे सौहाद्र्यपूर्ण, शांत शहर के लिए यह अपने-आप में (मेरी जानकारी में) पहली घटना है। लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह की घटनाएं यदाकदा पढ़ने-सुनने को मिलती रहती हैं। 27 दिसम्बर 2017 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में ग्यारहवीं में पढ़ने वाली एक नाबालिग को गोली मार दी गई। गोली मारने करने वाला 16 साल का किशोर था और वह पिछले 3 महीनों से लड़की को अपने प्रेम प्रस्ताव से परेशान कर रहा था। लड़की इंटर कॉलेज में ग्यारहवीं की छात्रा थी। आरोपित पीड़िता का पड़ोसी था। जब लड़की स्कूल जा रही थी तो रास्ते में लड़के ने उसे रोकने का प्रयास किया। जब लड़की नहीं रुकी तो आरोपित ने देशी तमंचा निकाला और उसके पेट से सटाकर गोली चला दी। इसी तरह 19 फरवरी 2021 को जौनपुर में बाइक सवार युवक ने एक शिक्षिका को गोली मारने के बाद खुद को भी गोली मार ली। मामला एक तरफा प्रेम का बताया गया। कहा गया कि शिक्षिका ने उसका प्रेम प्रस्ताव मानने से इंकार कर दिया जिससे उसने यह जघन्य अपराध कर डाला। भला यह कैसा प्रेम जिसका अंत हिंसा से हो, अपराध से हो।
हजारी प्रसाद द्विवेद्वी लिखते हैं कि ‘प्रेम से जीवन को अलौकिक सौंदर्य प्राप्त होता है। प्रेम से जीवन पवित्र और सार्थक हो जाता है। प्रेम जीवन की संपूर्णता है।’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल मानते थे कि प्रेेम एक संजीवनी शक्ति है। संसार के हर दुर्लभ कार्य को करने के लिए यह प्यार संबल प्रदान करता है। आत्मविश्वास बढ़ाता है। यह असीम होता है। इसका केंद्र तो होता है लेकिन परिधि नहीं होती।’ वहीं प्रेमचंद ने लिखा है कि ‘मोहब्बत रूह की खुराक है। यह वह अमृतबूंद है, जो मरे हुए भावों को ज़िन्दा करती है। यह ज़िन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊंची, सबसे मुबारक़ बरक़त है।’
प्रेम की परिभाषा बहुत कठिन है क्योंकि इसका सम्बन्ध अक्सर आसक्ति से जोड़ दिया जाता है जो कि बिल्कुल अलग चीज है। जबकि प्रेम का अर्थ, एक साथ महसूस की जाने वाली उन सभी भावनाओं से जुड़ा है, जो मजबूत लगाव, सम्मान, घनिष्ठता, आकर्षण और मोह से सम्बन्धित हैं। प्रेम होने पर परवाह करने और सुरक्षा प्रदान करने की गहरी भावना व्यक्ति के मन में सदैव बनी रहती है। प्रेम वह अहसास है जो लम्बे समय तक साथ देता है और एक लहर की तरह आकर चला नहीं जाता। इसके विपरीत आसक्ति में व्यक्ति  पर प्रबल इच्छाएं या लगाव की भावनाएं हावी हो जाती हैं।
ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है।

प्रेम बलात् नहीं पाया जा सकता। दो व्यक्तियों में से कोई एक यह सोचे कि चूंकि मैं फलां से प्रेम करता हूं तो फलां को भी मुझसे प्रेम करना चाहिए, तो यह सबसे बड़ी भूल है। प्रेम कोई ‘एक्सचेंज़ आॅफर’ जैसा व्यवहार नहीं है कि आपने कुछ दिया है तो उसके बदले आप कुछ पाने के अधिकारी बन गए। यदि आपका प्रेम पात्र भी आपसे प्रेम करता होगा तो वह स्वतः प्रेरणा से प्रेम के बदले प्रेम देगा, अन्यथा आपको कुछ नहीं मिलेगा। बलात् पाने की चाह कामवासना हो सकती है प्रेम नहीं। यदि प्रेम स्वयं ही अपूर्ण है तो वह प्रसन्नता, आह्ल्लाद कैसे देगा? प्रेम तो पूजा की तरह, इबादत की तरह होता है। मंज़र लखनवी के शेर हैं-
दुनिया कहे कुछ है मगर  ईमान की  ये बात
होने की  तरह  हो  तो  इबादत है  मोहब्बत
है जिनसे उन आंखों की कसम खाता हूं ‘मंजर’
मेरे  लिए   परवाना-ए-जन्नत  है  मोहब्बत

सूफ़ी संत रूमी से जुड़ा एक किस्सा है कि शिष्य ने अपने गुरु का द्वार खटखटाया। गुरु ने पूछा कि ‘‘बाहर कौन है?’’ शिष्य ने उत्तर दिया-‘‘मैं।’’ अस पर भीतर से गुरू की आवाज आई ‘इस घर में मैं और तू एकसाथ नहीं रह सकते।’’ यह सुन कर दुखी होकर शिष्य जंगल में तप करने चला गया। साल भर बाद वह फिर लौटा। द्वार पर दस्तक दी। फिर वही प्रश्न किया गुरु ने-‘‘कौन है?’’ इस बार शिष्य ने जवाब दिया- ‘‘आप ही हैं।’’ और द्वार खुल गया।
संत रूमी कहते हैं- ‘प्रेम के मकान में सब एक-सी आत्माएं रहती हैं। बस प्रवेश करने से पहले मैं का चोला उतारना पड़ता है।’ इस बात को उन युवाओं को विशेष रूप से समझना चाहिए जो एक तरफा प्रेम को अपना अधिकार समझने लगते हैं और चाहते हैं कि उन्हें प्रेम है तो लड़की भी उन्हें प्रेम करे। अब ये ज़रूरी तो नहीं। जब प्रेम हठधर्मिता बन जाए तो वह प्रेम नहीं रहता। यही हठधर्मी भावना अपराध की भावना को जन्म देने लगती है। जबकि इस तरह का कोई भी अपराध दो परिवारों का सुख-चैन छीन लेता है। जो लड़की अपराध की शिकार होती है उसका परिवार तो दुख से टूटता-विखरता ही है, साथ ही उस लड़के के परिवार पर भी मुसीबत टूट पड़ती है जिसने लड़की पर प्राणघातक हमला किया होता है। वह लड़का पकड़े जाने पर जेल भेज दिया जाता है। वहीं, उस लड़के का पूरा परिवार जीवन भर के लिए पुलिस, कचहरी और कानून के चक्कर में फंस जाता है। कवि रहीम कहते हैं कि जिस प्रेम में देने के बदले में लेने की भावना हो, वह प्रेम सराहनीय नहीं हैे। असली प्रेम तो वह है, जिसमें प्राणों की बाजी तक लगा दी जाती है। यह सोचें बिना, कि हार होगी या जीत, व्यक्ति प्रेम के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है। वह यह आशा नहीं रखता कि उसके द्वारा सब कुछ न्योछावर कर देने के बदले में प्रेमी उसके लिए कितना और क्या करेगा । वह बदले में किसी भी चीज की आशा नहीं रखता। प्रेम का असली स्वरूप यही है, जहां प्रेमी निस्वार्थ भाव से अपने प्रेमी के लिए प्राण तक न्यौछावर कर देता है। युवाओं को कवि रहीम के इस दोहे से सबक लेना चाहिए कि -
यह न रहीम सराहिये, लेन देन की प्रीति।
प्राणन बाजी राखिए, हार होय कै जीति।।

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(सागर दिनकर, 08.09.2021)
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