Tuesday, March 21, 2023

पुस्तक समीक्षा | सोलह आने सच | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण


प्रस्तुत है आज 21.03.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई लेखक ख़ुर्रम शहज़ाद नूर के कहानी संग्रह "सोलह आने सच" की समीक्षा...
-------------------


पुस्तक समीक्षा
दैनिक जीवन के सच से उद्वेलित करती कहानियां
------------------------------
कहानी संग्रह - सोलह आने सच
लेखक       - ख़ुर्रम शहज़ाद नूर
प्रकाशक     - सत्साहित्य प्रकाशन, 205 बी, चावड़ी बाज़ार, दिल्ली-110006
मूल्य           - 250/-
-------------------------------
        हिन्दी कथाजगत के लिए ख़ुर्रम शहज़ाद नूर एक नया नाम हो सकता है लेकिन उनके प्रथम कहानी संग्रह ‘‘सोलह आने सच की कहानियां’’ किसी भी तरह से किसी नए हस्ताक्षर की कहानियां नहीं कही जा सकती हैं। ये कहानियां आम आदमी के दैनिक जीवन के सच का ऐसा प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती हैं जिनमें हर पाठक खुद की उपस्थिति अनुभव कर सकता है। संग्रह में कुल 18 कहानियां हैं। कहानियों की चर्चा करने से पहले कथाकार के जीवनानुभव पर दृष्टिपात करना दिलचस्प रहेगा। जैसा कि बल्र्ब पर परिचय दिया गया है कि ख़ुर्रम शहज़ाद नूर भारतीय नौसेना में ‘‘कमोडोर नूर’’ के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। वे नौसेना की शिक्षा शाखा में रहते हुए पनडुब्बी-रोधी युद्धशैली के महाप्रशिक्षक रहे हैं। नवंबर 2022 में कमोडोर नूर के सागर प्रवास के दौरान मेरी उनसे अनौपचारिक भेंट हुई। उस समय वे एडमिरल के पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे तथा पूर्णकालिक साहित्य सेवा का मन बना चुके थे। एक सहज, सरल स्वभाव के व्यक्ति के रूप में कमोडोर नूर से भेंट उल्लेखनीय रही। लेकिन जब मैंने उनका कहानी संग्रह ‘‘सोलह आने सच’’ पढ़ा तो हिन्दी और कथाशिल्प पर उनकी पकड़ ने मुझे चैंका दिया। वैसे वे बेहतरीन ग़ज़लकार है, कवि हैं और उनके तीन काव्य संग्रह ‘‘ख़्वाब, ख़्याल और ख़्वाहिशें’’, ‘‘रेशा-रेशा रेशम सा’’ तथा अंग्रेजी कविताओं का संग्रह ‘‘नाॅस्टेल्जिया’’ प्रकाशित हो चुका है।
‘‘सोलह आने सच’’ की कहानियां जीवन की रोज़मर्रा की घटनाओं से जोड़ती हैं। हर कहानी का अपना एक अलग रंग है, अलग संवाद है लेकिन आधारभूत रूप से ये सभी कहानियां उन छोटी-बड़ी परिस्थितियों को रेखांकित करती हैं जिन पर झुंझलाते, खींझते और कभी-कभी मुस्कुराते हुए व्यक्ति पार पा लेता है। संग्रह की पहली कहानी है ‘‘पार्किंग’’। दैनिक जीवन से जुड़ा हुआ एक बड़ा मसला। महानगरों में अपने चैपहिया वाहन के लिए पार्किंग-स्थल में सही जगह हथिया लेना किसी गलाकाट प्रतियोगिता से कम नहीं होता है। इस चक्कर में अच्छा-भला इंसान भी ढीठ बन जाता है। लेकिन कभी-कभी यह ढिठाई कितनी मंहगी पड़ती है, इस सच्चाई को घटनाक्रम को मोड़ देते हुए इसे बड़े ही रोचक ढंग से कथाकार ने प्रस्तुत किया है। बिना किसी उपदेशात्मक भाव के यह कहानी बहुत कुछ सिखा जाती है।
दूसरी कहानी है ‘‘संयोग’’। यह एक छोटी कहानी है लेकिन इसमें संवेदनाओं का एक ऐसा बड़ा धमाका है कि जो विचारों की चूलें हिला देने की दम रखता है। एक युवा अपनी वृद्धा मां से छुटकारा पाने के लिए उसे वृद्धाश्रम में छोड़ने जाता है। वहां वृद्धाश्रम के साथ ही अनाथश्रम भी था। इस अनाथाश्रम से उस युवक को जो जानकारी मिलती है वह उसे उसके जीवन के संयोग के उस दरवाज़े पर ला खड़ा करती है जिसके भीतर झांकते ही वह अवाक रह जाता है।
तीसरी कहानी है ‘‘कर्ज’’। यह कहानी सत्तर के दशक के परिवेश का स्मरण कराती हुई दो भाइयों के परस्पर प्रेम का कथानक प्रस्तुत करती है। आज चार पहिया गाड़ियों की भीड़ के समय में सत्तर के दशक की लूना मोपेड के महत्व को समझ पाना भले ही कठिन हो लेकिन एक बड़े भाई का अपने छोटे भाई के प्रति प्रेम को समझना कठिन नहीं है, बशर्ते हृदय की पारिवारिक संवेदनाएं मरी नहीं हों। भौतिक सुख और भाई के सुखद भविष्य में से किसी एक को चुनना हो तो एक भाई से यही अपेक्षा की जाती है कि वह अपने छोटे भाई के सुखद भविष्य को ही चुनेगा। इस कहानी का कथानक बेशक़ नूतन नहीं है लेकिन इसका शिल्प इसे नूतन बनाता है।
      संग्रह में एक कहानी है ‘‘शब्बो’’। इस कहानी में बालमन की अवधारणाओं के दीर्घकालिक प्रभाव को बड़ी सुन्दरता और स्वाभाविकता से सामने रखा गया है। यह कहानी एक ऐसे भाई की ओर से है जिसकी एक छोटी बहन ‘लिजु’ का डिलेवरी आॅपरेशन उसकी दूसरी छोटी बहन डाॅ. शीबू कर रही है। उसकी बहनें उसे ‘भय्यू’’ कह कर पुकारती हैं। आॅपरेशन थियेटर के बाहर बैठे भय्यू को याद आता है कि -‘‘बचपन में मेरी दोनों बहनों शीबू और लिजु के बीच खेल-खेल में बड़ा ही कमाल का बंटवारा हुआ था।
पापा शीबू के-मम्मी लिजु की
भैय्यू शीबू के - भाईजी लिजु के
शीबू ददिहाल वालों की चहेती - लिजु ननिहाल वालों की
खुली कमांडर जीप शीबू की - कार लिजू की
कुत्ता जैकी शीबू का - बिलाव मीकू लिजु का
.... ओर नवीनतम खिलौनों में -
गिटार शीबू का- और गुड़िया शब्बो लिजु की।’’
- यह बचपने भरा बंटवारा कब भावनात्मक विकृति का रूप ले बैठा, इसका अहसास उन बच्चों को नहीं हुआ। अब उसी विकृति का भय आॅपरेशन थियेटर के बाहर बैठे भय्यू को डरा रहा था कि कहीं बहनों के बीच का भयावह मतभेद जीवन पर भारी न पड़ जाए। यह कहानी एक सस्पेंस के साथ चर्मोत्कर्ष पर पहुंचती है।
‘‘कशिश’’ एक शिक्षक, एक शिक्षिका और एक छात्रा के बीच ‘‘लव क्रश’’ की दिलचस्प कहानी है। शिक्षक को छात्रा की काॅपी में रखा हुआ प्रेमपत्र मिलता है जिसके अंत में पूरा नाम लिखने के बजाए मात्र एक अक्षर ‘‘के’’ लिखा गया था। अपने युवा शिक्षक के प्रति किसी छात्रा के मन में प्रेमभाव जाग उठना कोई अपवाद घटना नहीं है। कच्ची आयु में इस तरह के ‘‘क्रश’’ हो जाते हैं जो समय के साथ समाप्त भी हो जाते हैं। लेकिन कहानी में बहुत कुछ ऐसा है जो नेपथ्य में चलता रहता है और अंत में प्रकट होता है। और साथ ही भेद खुलता है ‘‘के’’ का।
‘‘काले तिल वाली लड़की’’ यह कहानी सच का गहरा शेड किए हुए हैं। इस कहानी में मुंबई के कुलाबा के उन गलियों का दृश्य है जो मानवीय गिरावट को बेनकाब करता है। कहानी में एक दृश्य है -‘‘इन सबसे अलग कुलाबा की इन गलियों का एक काला और खिलौना सच भी-  यहां की वेश्यावृत्ति।  यह सब को दिखता है,  फिर भी कोई कुछ नहीं बोलता।  यह इस शहर के दोहरे मापदंडों की सच्चाई है। विक्टोरियन जमाने की इमारतों के ऊंचे ऊंचे स्तंभों से चिपक कर खड़ीं, भड़कीले कपड़ों में और सस्ते में कबसे पुती र्हुइं,  अंधेरी सीढ़ियों वाले और घंटे के हिसाब से कमरा देने वाले,  घटिया होटलों के पास मंडराती और  अपनी ओर भद्दे तरीके से आकर्षित करती यह बदनसीब लड़कियां शाम होते ही दिखाई देने लगती हैं।  ना चाहते हुए भी नजर उन पर पड़ ही जाती है और आपकी नजर जरा सी भी ज्यादा देर को पड़ गई तो समझिए कि आप गए काम से.. क्योंकि कहीं अंधेरे में से एक बीमार सा लड़का प्रगट हो जाएगा और आपसे उस लड़की का मोल भाव ऐसे करने लगेगा जैसे वह लड़की इंसान ना होकर कोलाबा के फुटपाथ पर बिकता हुआ कोई बिकाऊ माल हो।’’
कुलाबा के देह बाजार में बिकने वाली एक लड़की का यह कथन पढ़ने वाले के मन को झकझोर देता है जब वह कहती है - ‘‘जब  बच्ची थी तब वहां नौकरानी का काम किया।  फिर वहीं पर यह बदन बेच बेचकर अम्मा से अपनी आजादी वापस खरीदी।  अब आजाद तो हूं, मगर अब इस शरीर को जिंदा रखने के लिए इसी शरीर को रोज बेचती हूं।’’
यह कहानी उस युवक की भी कहानी है जिसकी बहन बचपन में खो गई थी। वह वैश्या संभावना प्रकट करती है कि वह उसकी खोई हुई बहन हो सकती है। लेकिन युवक जानता है कि यह सच नहीं है। यह कहानी लेखक की मानवीय संवेदना के घनीभूत पक्ष को बखूबी रेखांकित करती है।
‘‘टेढ़ी उंगली’’, ‘‘रिश्ता’’, ‘‘घांेसला’’, ‘‘गायब’’ जैसी कहानियां संग्रह की महत्ता को बढ़ाती हैं। इन सभी कहानियों में समाजविमर्श के साथ ही मनोवैज्ञानिक विमर्श है। पारस्परिक संबंधों की उपादेयता के साथ ही वर्तमान परिवेश का आकलन किया गया है।
संग्रह की शीर्षक कहानी है ‘‘सोलह आने सच’’। यह कहानी टेरो काड्र्स पढ़ कर भविष्य बताने वाले राजू रमानी नामक पात्र के उल्लेख से आरम्भ होती है। राजू रमानी द्वारा की गई दो भविष्यवाणियां सच होने के बाद भी कथानायक टेरो काडर््स की भविष्यवाणियों को सच मानने को तैयार नहीं है। इस कहानी में टेरो के समानांतर समुद्रविज्ञान से जुड़ी कई ऐसी बातों की जानकारी बड़ी सहजता से दी गई है जो किसी भी पाठक के मन में समुद्रविज्ञान और पर्यावर्णीय ऊर्जा के प्रति उत्सुकता जगा सकती है। कथानायक लक्षद्वीप समूह के कवारत्ती द्वीप पर आयोजित समारोह में सम्मिलित होने के लिए पहुंचा है। जहां उस संयंत्र को मंत्रीजी द्वारा देश को समर्पित किया जाना है ‘‘जो इस टापू पर नमकीन समुद्री जल को एल.टी.टी.डी. (अर्थात् लो टेम्प्रेचर थर्मल डी सैलीनेशन) प्रणाली से पेयजल में परिवर्तित करता है।’’ कथाकार ने इस एल.टी.टी.डी. की प्रक्रिया को भी संक्षेप में चंद पंक्तियों में सहजता से बता दिया है कि -‘‘इस संयंत्र द्वारा समुद्र में उठती लहरों की ऊर्जा से बनी बिजली से चलने वाले एक बड़े निर्वात चैंबर में समुद्र की ऊपरी सतह का गरम पानी कम ताप पर खौलाया जाता है और बनी वाष्प को इकट्ठा कर के गहरे समुद्र से निकले बहुत ठंडे पानी की सहायता से ठंडा कर के बिना नमक वाले पेयजल में परिवर्तित किया जाता है। यह साथ-साथ बिजली भी बनाता है और आसपास की इमारतों में वातानुकूलन भी करता है।’’ यह वैज्ञानिक जानकारी छोटी-छोटी अन्य जानकारियों के साथ बढ़ती हुई एक बार फिर टेरो कार्ड्स रीडर राजू रमानी से होती हुई एक और पात्र जेम्स मैथ्यूज़ तक जा पहुंचती है। फिर एक बार टेरो काडर््स के सच-झूठ का द्वंद्व चलता है जिसे कथानायक अनुभूत तो करता है किन्तु उसका तार्किक वैज्ञानिक मन मानने को तैयार नहीं होता है। अंततः उसके लिए यह तय करना कठिन है कि जो वह देख रहा है, अनुभव कर रहा है वह सोलह आने सच है या नहीं। इस कहानी का रंग संग्रह की अन्य कहानियों से तनिक भिन्न होते हुए भी शिल्प में अन्य कहानियों की भांति ही है।         
कथाकार ख़ुर्रम शहज़ाद नूर के कथालेखन की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि वे कथानक के अंत से ठीक पहले एक ऐसा अनूठा मोड़ देते हैं जिसे ‘‘कहानी में ट्विस्ट’’ कहा जा सकता है। जिससे साधारण-सा लगने वाला कथानक अचानक महत्वपूर्ण बन जाता है, चकाता है और बहुत सारे बिन्दु छोड़ जाता है विचार करने के लिए। उनका यही शिल्प उन्हें हिन्दी के नवोदित कथाकारों के बीच विशिष्ट बनाता है। ‘‘सोलह आने सच’’ कहानी संग्रह निश्चित रूप से पठनीय है। यदि कथाकार नूर अपने कथालेखन को आगे भी ज़ारी रखते हैं तो उनके सफल कथाकार बनने के भविष्य के बारे में उनकी इन कहानियों के आधार पर आश्वस्त हुआ जा सकता है।         
  ----------------------------              
#पुस्तकसमीक्षा #डॉसुश्रीशरदसिंह #BookReview #BookReviewer #आचरण #DrMissSharadSingh  

No comments:

Post a Comment