"जै हो लट्ठमार होरी की !!" मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
जै हो लट्ठमार होरी की !!
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
काय बिन्ना कां खों चल दीं?’’ भैयाजी ने मोय देखो, सो पूछन लगे। ‘‘काय होरी खेलबे जा रईं का?’’
‘‘नईं, होरी सो बाद में खेलबी, पैलऊं महिला दिवस मनाबे की हो रई।’’ मैंने कईं।
‘‘महिला दिवस? अई हौ तो, आज सो महिला दिवस सोई संगे पर गओ आए! हम सो भूलई गए हते।’’ भैयाजी अपनो माथा ठोंकत भए बोले।
‘‘हऔ, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आए। जेई से तो हम ओरन ने सोची के पैलऊं महिला दिवस मना लऔ जाए औ फेर होरी खेल लेबी।’’ मैंने भैयाजी खों बताओ।
‘‘अच्छी सोची। अब ऐसो करो के अपनी भौजी खों सोई अपने संगे लिवा जाओ, ने तो बे अबई हमाए लाने बखेड़ा खड़ो करन लगहें।’’ भैयाजी चिरौरी सी करत भए बोले।
‘‘काय को बखेड़ा?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे ने पूछो! अब तुम सो जानत आओ के हम कोनऊं टाईप को नशा-पानी नईं करत। मनो अब जे होरी में संगवारन के संगे तनक-मनक भंग-वंग सो चलाने परत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, औ भौजी आप खों भांग नईं लेन देत हुइएं। जेई से आप भौजी खों भगा रए।’’ मैंने भौयाजी से कही।
‘‘अई बिन्ना जो का कै रईं? हमाई का औकात के हम उने कहूं भगाएं, बे चाएं सो हमें भगा सकत आएं, हम नोईं। और अपनी भौजी से ऐसो कइयो बी नईं। ने तो अबई ठाड़े-बैठे सल्ल बिंध जेहे।’’ भैयाजी डरात भए बोले।
‘‘सो आप चात हो के मैं भौजी खों अपने संगे लिवा ले जाओं ताकि पांछू से आप भांग सूंट सको।’’ मैंने भैयाजी से दो टूक पूछी।
‘‘हऔ तो बस, हमाई इत्ती सी इच्छा पूरी कर देओ, रामधई तुमाओ बड़ो अहसान हुइए।’’ भैयाजी चमचोंई सी करत भए बोले।
‘‘हऔ, अबई लेओ।’’ मैंने भैयाजी से कही औ भौजी खों टेर लगाई,‘‘भौजी, औ भौजी कां हो?’’
‘‘आओ बिन्ना! हैप्पी होली!’’ भौजी कमरा से बाहरे निकरत भईं बोलीं।
‘‘आपके लाने सोई हैप्पी होली भौजी!’’ मैंने सोई उनें होली की बधाई दई। फेर मैंने कई, ‘‘औ भौजी, महिला दिवस की सोई बधाई!’’
‘‘हऔ, तुमाए लाने बी खूब-खूब बधाई! आओ तनक गुझियां-पपड़ियां खा लेओ।’’ भौजी बोलीं।
‘‘अबई रैन देओ भौजी, बाद में खा लेबी! अबई मैं जा रई महिला दिवस मनाबे के लाने। हम चार-छै जनी ने सोची के भले होरी पर गई मनो जे अपनो दिवस तो मनाओ जाओ चाइए। जेई के लाने आपको बुलाबे आई हती। आप सोई मेरे संगे चलो। जल्दी आ जाबी।’’ मैंने भौजी से कही।
‘‘कोनऊं जल्दी ने करियो! हम सो आएं घरे। तुम ओरें निष्फिकर हो के जाओ।’’ भौयाजी बोले।
‘‘हऔ, भौजी! भैयाजी सो मोय देखतई बोले के अपनी भौजी खों संगे लेवा ले जाओ। बे रैहें सो हम अपने संगवारन के संगे भंाग-वांग ने ले पाहें। तुमाई भौजी ऐसो करन ने देहें।’’ मैंने कछू ने छिपाई औ सब कै दई।
‘‘हमने ऐसी कबे कई?’’ भैयाजी हड़बड़ात भए बोले।
‘‘हऔ जेई टाईप से तो कई हती।’’ मैंने सोई सूदेपन से कई।
‘‘जे बिन्ना झूठ आ बोल रईं। हमें तो लग रओ के बिन्ना खुदई भंग चढ़ा के आ रईं।’’ भैयाजी अपनी छिपाने के लाने कछू के कछू कैन लगे।
‘‘अब इत्तो बड़ो वालो झूठ ने बोलो भैयाजी!’’ मैंने भैयाजी खों टोकों।
‘‘रैन देओ बिन्ना! जब तुम ओरन की बातें चल रई हतीं तब हम इतई कमरा में ठाड़ें हते औ हमने सब सुनी आए के तुमाए भैया का कै रए हते।’’ भौजी मुस्कात भई बोलीं। फेर कैन लगीं,‘‘हमें जो अच्छो लगो के तुमने अपने भैयाजी को नईं, हमाओ साथ दओ!’’
‘‘बा तो देनई हतो! आप तो जानत हो भौजी, के मोय गलत बात कभऊं नईं पोसात! औ चाए भांग होय, चाए दारू होय, नशा सो कोनऊं होय नशा होत आए! जे होरी में मुतकी रार सो भंाग के कारन होत आए। भांग चढ़ा लई औ छेड़न लगे कोनऊं खों बी। कछू बात बिगरी सो जे कै के पल्ला झरा दओ के -बुरौ ने मनो होरी है! - अरे, आप बुरौ करो औ आगूं से कोनऊं बुरौ ने माने, जे कौन सी बात आए?’’ मैंने कई।
‘‘ठीक कै रईं बिन्ना! जेई से सो हम तुमाए भैया खों टोंकत रैत आएं के जब कोनऊं नशा नईं करत आओ सो जे भंाग सूंटबे के लाने काय मरे जात आओ?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हम नईं मरे जात, बे सो संगवारे आएं जो हमसे कैत आएं, सो हम उन ओरन के लाने व्यवस्था बना देत आएं।’’ भैयाजी भोले बनत भए बोले।
‘‘आए हाय मोरे भोलेनाथ! तुमाई जै हो! तुम सो परोपकार के लाने जन्में आओ। औ परोपकार बी कैसो? भंाग सूंटबे वारो! सच्ची तुमाई जै हो!’’ भौजी भैयाजी खों ताना मारत भई बोलीं।
‘‘सो भौजी, अब का करने, बताओ?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बाकी जनी कां आएं?’’ भौजी ने मोसे पूछी।
‘‘बे ओरें शर्माइन भौजी के इते मोरी बाट जोह रही हुइएं।’’ मैंने बताई।
‘‘सो ऐसो करो के उन ओरन खों फोन कर के इतई बुला लेओ। इतई हम सब जनी मिल के महिला दिवस मनाबी औ ऊके बाद होरी खेलबी।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, जे आप ने ठीक कई!’’ मोय भौजी की बात खूबई जमी।
‘‘संगे जे औ कै दइयो उन ओरन से, के उनके इते लट्ठ-मट्ठ होंय सो बे सोई अपने संगे ले आएं। आज तो मोय लट्ठमार होरी खेलबे को जी कर रओ!’’ भौजी भैयाकी ओर आंखे तरेरत भईं बोलीं।
‘‘हऔ, अबई लेओ! मैंने अब लौं लट्ठमार होरी कभऊं ने खेली, आज खेलबी। मजो आ जेहे!’’ मैंने हंस के कई।
‘‘हंस लेओ, हंस लेओ! दोई जने हंस लेओ! हम सीधे सादे पर गए न, सो हम पे चाय लट्ठ बरसाओ, चाय मूसर पटको, हम का कर सकत आएं।’’ भैयाजी रोत घांईं बोले।
‘‘अब जे डिरामा ने करो! जो इत्ते सीधे सूदे होते तो हमें घरे से भगा के भांग सूंटबे की न सोचते! तुमाए सब चरित्तर समझत आएं हम!’’ भौजी भैयाजी खों घुड़कत भई बोलीं।
‘‘सो तुम ओरें इतई रओ! हम कहूं चले जात आएं।’’ भैयाजी सुच्चे बनत भए बोले।
‘‘ने तुमें कऊं जाने औ ने हम ओरें कऊं जा रए। औ तुमने जो फोन कर के अपने संगवारन खों मना करो, सो देख लइयो के हम तुमाए संगे का करहें। सो, आन देओ सबई भंगेड़ियन खों! आज हम ओरें भांग सुटवाबी। वा बी अच्छी लट्ठ दे दे के!’’ भौजी भैयाजी खों धमकात भईं बोलीं।
‘‘जे तुमने अच्छो नईं करो बिन्ना!’’ भैयाजी की सुई फेर मोय तरफी घूम गई।
‘‘बिन्ना से कछू ने कओ! इने ठीक करो! जे होरी पे नशा-मशा बंद रओ चाइए। ईके मारे हम लुगाइयां ढंग से होरी बी नईं खेल पाती आएं। जेई धड़का लगो रैत आए के कऊं कोनऊं गलत हरकत ने कर देबे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘होरी पे सरकार सो नशां की दूकानें खोलन नईं देत।’’ मैंने कई।
‘‘सो का? जे अपने सयाने पैलऊं खरीद-खरूद के रख लेत आएं। जे ओरें ख्ुादई सुधरबे की सोचे, सो कोनऊं इने सुधार सके।’’ भौजी के निसाने पे सो आज भैयाजी हते। भैयाजी को मिचकूं सो मों देख के मोय बड़ो मजो आ रओ हतो।
रई भंगेड़ियन की, सो कछू जने को सो आज सुधरई जाने। काय से के भौजी के दो लट्ठ परहें सो सबरी नशापत्ती भूल जेहें औ तरीके से होरी खेलहें। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम! औ होली की खूब-खूब बधाई!!
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