Thursday, March 30, 2023

बतकाव बिन्ना की | काए, जो सब का चल रओ? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"काए, जो सब का चल रओ?"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
काए, जो सब का चल रओ?                  
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘भैयाजी! एक ठइयां बात बताओ!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘पूछो! का पूछ रईं?’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे बताओ के जो सब का चल रओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जो सब? का सब?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे जेई सब!’’ मैंने कई।
‘‘हमें नोई समझ पर रई तुमाई बतकाव? तनक खुल के बोलो के का पूछो चा रईं?’’ भैयाजी झुंझलात भए बोले।
‘‘अरे जोई के कोनऊं धनी कै रओ के अपने गांधी बापू ने वकालत की कोनऊं डिग्री ने लई हती, तो कोनऊं कै रओ के राहुल गांधी खों संसद से निकार दओ, सो अच्छो करो। जो सब का आए? जे सो ऐसो लगत आए के कोनऊं खों गांधी नांव से खुन्नस आए। ने तो मोहनदास से खुन्नस, ने तो राहुल से। काय नई लगत ऐसो?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो तुमें का? जोन खों जो कछुू बोलने होय सो बोलन देओ। तुम ने परो जे सब में।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय ने परो का मोहनदास करमचंद गांधी जी अपने राष्ट्रपिता नोंई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘सो ईसे का? का उनके पढ़े, ने पढ़े से का बे अपन ओरन के बापू ने रैहें? अपने इते सो दूसरी फेल सांसद रै चुके आएं। जे राजनीति में पढ़े, ने पढ़े से कोनऊं फरक नईं परत। बाकी अपने बापू पे कोनऊं ऐसी-वेसी बात होनी ने चाइए। ईसे बिदेसन तक में गलत असर परत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जेई से सो राहुल भैया खों हड़काओ गओ के बे बिलायत की अनवरसिटी में काय इते की बोल आए?’’ मैंने कई।
‘‘सो का जेई के लाने उने संसद से निकार दओ गओ?’’ भैयाजी ने अचरज से पूछी।
‘‘अरे नईं, बा तो उनसे जे लाने संसद की सदस्यता छुड़ा लई गई के उन्ने चार साल पैले कोनऊं खों अपमान करबे वालो डायलाॅग बोल दओ रओ।’’ मैंने भैयाजी के आगूं अपनो अधकचरो ज्ञान बघारो।
‘‘लेओ, उन्ने अपमान करोे चार साल पैले औ सदस्यता छिनी अबे?’’ भैयाजी बोले। फेर बे मजाक करत भए कै बैठे के -‘‘बड़ी जल्दी करी।’’
‘‘हऔ, अपने इते की अदालते सो ऊंसई तारीख पे तारीख, तारीख पे तारीख के लाने मशहूर आएं, जे सो सांची में कछु जल्दी निपट गए।’’ मैंने कई। मोए अपने सनी देओल भैया की बा फिलम याद आ गई जोन में जा तारीख वारो डायलाॅग उन्ने बोलो रओ। शायद ‘‘दामिनी’’ हती बा फिलम।
‘‘का सोचन लगी?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मोय याद आ गई के मैंने एक भौत बड्डे वाले संपादकजी की पोस्ट पे टिप्पणी करी के जो कऊं आज लेखक जार्ज आर्वेल होते सो बे का लिखते? उन्ने जवाब दओ के बे 1984 सो लिख चुके, 2024 ही लिखते। मोरो जी करो के मैं टिप्पणी करौं के जे गलत जवाब! काय से के जार्ज आर्वेल ने 1948 में लिखी रई ‘‘1984’’ जो 1949 में छपी रई। सो बे आज होते तो ‘‘2042’’ लिखते 2024 नोईं। औ 2042 बी काय, बे 2023 में 2032 लिखते। है के नईं?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो तुमने ऐसो लिखो नई उनको?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अब ऐसो आए के मोरे मन में उनके लाने बड़ो सम्मान आए, सो मोसे जे ठिठोली करी ने गई।’’ मैंने कई।
‘‘अच्छी करी! अब जे गुणा-भाग छोड़ो के बे तुमाए का कहाउत आएं, के जार्ज आरवेल होते सो का लिखते औ का नई लिखते? बे होते सो अपनी कलमई तोड़ताड़ के मईं खों फेक देते। काय से के इते कल को भरोसो नईं के कल को का कै देवै।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सही कई भैयाजी आपने! मनो भगवान ने मों दओ, सो ऊंको कैसऊं बी चलात रओ, जे मोय सोई नई पोसात। कछू सो गम्म खाओ चाइए।’’ मैंने कई।
‘‘ओ छोड़ो, जे कां की राजनीति की सल्ल ले बैठीं। जे बताओ के परों संझा को कां गई हतीं? हम तुमाए दुआरे के आगूं से कढ़े सो ताला परो दिखो।’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘भूल गए आप? मैंने आप के लाने बताई तो हती के मोय बा नाटक देखबे जाने है, आपके लाने सो सोई मैंने कही रई के आप सोई चलो। पर आप बोले हते के आपखों कछू जरूरी काम हतो।’’ मैंने भैयाजी खों याद कराई।
‘‘अरे हओ! मोय सोई देखने रओ, बड़ो अच्छो सो नांव रओ ऊं नाटक को।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ ऊंको नांव रओ -‘ऐरी बऊ, कबे बज हे रमतूला’। बे अपने जगदीश शर्मा भैया है न, उन्ने लिखो रओ औ उन्ने ई ऊको डायरेक्शन करो रओ। बे भए औ अपने अतुल श्रीवास्तव भैया भए औ बे सतीश साहू भैया, जे इन ओरन ने एक्टिंग करी, मंच सम्हारो औ संगे बाजे सोई बजाओ। औ हम का बताएं आपके लाने भैया जी के अतुल भैया हरें सो इत्ती नोनी लुगाई बने रए के देख के मजोई आ गओ। जे सो बड़ी काली मूंछें औ ऊपे मूंड़ पे धुतिया को घूंघट सो करें, देखतई बन रए हते। बाकी जोन को रमतूला ने बज पा रओ हतो बा कल्लू बने हते अपने कपिल नाहर भैया। ऐसी नोनी एक्टिंग करी के ने पूछो। बाकी सबई जने अच्छे रए। आपने देखी होती सो आपको भौतई अच्छो लगतो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अब का करो जाए, कछू जरूरी सो काम आन परो रऔ, ने तो मोय सो जानेई रओ। एक सो नाटक औ वा बी अपनी बुंदेली में। मोय सो बड़ी ललक रई देखबे की।’’ भैयाजी तनक पछतात से बोले।
‘‘अरे कछू नईं भैयाजी! जी छोटो ने करो! जो फेर के हुइए, सो देख लइयो। अबईं सो जे नाटक खों देखो जो अपने इते की राजनीति में चल रओ आए।’’ मैंने भैयाजी खों तनक चुटकी लई।
‘‘तुम सोई, फेर उतई के उतई आ गईं!’’ भैयाजी खों हंसी आई गई।
‘‘हऔ, सो का करो जाए। चाए फेसबुक देख लेओ, चाए ट्विटर देख लेओ औ चाय व्हाट्सअप्प देख लेओ, सबई जागां, सबई जने राजनीति के एक्पर्ट घांईं गिचड़ कर रए। इत्ती ज्यादा किचर-किचर हो रई आए के अब तो मोसे जे सोशल मीडिया देखो नई जा रओ।’’ मैंने कई।
‘‘सो काय देख रईं? देवी मैया के दरसन करो औ भजन गाओ।’’भैयाजी बोले।
‘‘देवी दरसन की ने कऔ भैयाजी! मैं सो रानगिर वारी औ बाघराज वारी दोई हरसिद्धी माता के दरसन कर आई औ भजन सोई गा आई। मैंने ढोल सोई बजा के देख लओ। मनो जे बड़ी पोल वारी राजनीति की ढोल कछू ज्यादी जोर से ढमर-ढमर कर रई। ईके मारे कछू औ सुनाई नई परत।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, कै सो सांची रईं तुम। सुनाई की सो छोड़ो, कछू के कछू समझ परत आए। अभईं ऊं दिनां तुमाई भौजी बोलीं जे किवार के जोड़े खुले जा रए, तनक इनखों बनवा दइयो। औ हमने सुनी का? के बे बोल रईं के हम किवार जोड़बे जा रए। सो हम कै बैठे के मोरी धना जे जोड़ा-जोड़ी ने करो, ने तो तोड़ा-तोड़ी हो जेहै। बे जा सुन के बोलीं- के का सठिया गए जो अंटशंट बके जा रए? हम किवार के जोड़ ठीक कराबे की कै रए भारत जोड़बे की नोंईं।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘जे सोई खूब रई।’’ मोय हंसी फूट परी। भैयाजी सोई हंसन लगे।  
सो, मोरे भैया-बैन हरों, रई मोरे सवाल की, सो बा तो अबे लों स्टेंडबाई आए के-‘‘काय जो सब का चल रओ?’’ मनो, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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