Thursday, November 16, 2023

बतकाव बिन्ना की | सहूरी के लाने किसां-कहानी सोई जरूरी आएं | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"सहूरी के लाने किसां-कहानी सोई जरूरी आएं" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
सहूरी के लाने किसां-कहानी सोई जरूरी आएं
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       एक हते राजा औ एक हती परजा। राजा की मुतकी रानियां हतीं। मनो, बा अलग मसला कहाओ। इते किसां आए राजा और परजा की। ऊ टेम पे राजा खों जबे परजा को सई हाल मालूम करने होत्तो, सो बा अपनो भेस बदल के अपने महल-अटारी से दुबक के निकर पड़त्तो। आजकाल घांई नोंई के पैले पार्टी औ आफिस वारन ने मिल के बना दओ एक ठइयां दौरा कार्यक्रम औ राजा, मंत्री हरें निकर परे ढोल-ढमाका के संगे अपनी परजा को हाल जानबे। जेई से तो जब जे ओरें कोनऊं अस्पतालें देखबे पौंचत आएं सो उते पैलई इत्र छिड़क दओ जात आए। सबरे डाक्टर, नर्सें, वार्ड ब्याय हरें अपनी डरेस सूंट के ऐसे ठाड़े दिखात आएं मनो बे तो मरीज की सेवा में जियत-मरत होएं। कोनऊं-कोनऊं ऐसे होत बी आएं, मनो अब ऊ टाईप की प्रजाति बढ़ाई जा रई। अब तो बा दूसरी टाईप की प्रजाति दिखात आए जोन में सेवा भावना नोईं, मेवा भावना रैत आए। अब का करो जाए जो किस्मत फूटी होय तो हिरना सोई बाघ घांईं दहाड़न लगत आए।
सो का भओ के राजा जी अपने दरबार में बैठे हते औ चापलूसन ने चापलूसी चालू कर रखी हती। एक दरबारी बोलो,‘‘महाराज! आप घांई राजा तो ई धरती पे ने कभऊं भओ औ ने कभऊं हुइए।’’
‘‘हऔ महाराज! आपके राज में आपकी परजा ऐश कर रई। खूबई खा रई औ खूबई उड़ा रई।’’ दूसरो दरबारी बोल परो।
‘‘महाराज! जो मैं कऊं झूठ, सो मोरो सिर काट लइयो! मनो सांची जे आए के आपके पुरखन के टेम पे बी ऐसो नोनो राज नईं रओ, जैसो के आपके ई टेम पे आए।’’ तीसरो दरबारी औरई तरचटुआ निकरो।
राजा ने अपने दरबारियों के मों से तारीफें सुनी, सो बा फूलो न समाओ। ऊको सीना फूल के तिगुनो हो गओ। गरदन हती सो अकड़न लगी। शान के मारे मुंडी झुकबो भूल गई। तनक देर में दरबार हो टेम हो गओ खतम। राजा जी उठ खड़े भए।
राजा जी अपने महल में पौंचेई हते के बड़ी रानी बोलीं-‘‘महाराज! हमें नौलखा हार चाऊंने।’’
‘‘सो ईमें का? अभईं मंगा देत आएं।’’ राजा जी सो ऊंसई दरबार से फूले-फूले चले आ रए हते, उन्ने झट से कई।
‘‘जे का? बड़ी रानी की बड़ी सुध आए औ हम का आपकी दासी आएं जो हमाई नईं पूछ रए?’’ मंझली रानी आ टपकीं। बे पैलई से परदा के पांछू छिपी ठाड़ी हतीं।
‘‘कओ! तुमें का चाउने?’’ राजा जी ने मंझली रानी से पूछी।
‘‘इने नौलखा दिला रए, सो हमें कछू नईं तो हीरों को हार देवा देओ।’’ मंझली रानी इठलात भई बोलीं।
‘‘हऔ! सो लेओ।’’ कैत भए राजा जी बोले। इत्ते में संझली रानी आ पौंची।
‘‘महाराज! जे दोई तुमाई लाड़ली कैहाईं औ हम को आएं तुमाई?’’ संझली रानी रूठबो जतात भई बोलीं।
‘‘तुम सोई हमाई रानी ठैरीं! बोलो तुमाए लाने का मंगा दएं?’’ राजा जी ने संझली रानी से पूछी।
‘‘हमाए लाने केसर को इत्र मंगा देओ!’’ संझली रानी ने अपनी डिमांड बताई।
‘‘केसर को इत्र? जो कोन लगात आए?’’ राजा जी को भओ अचरज।
‘‘हम लगाबी औ कोन लगाहे? आप मंगा रए के नईं?’’ संझली रानी मों बनात भई बोलीं।
‘‘हऔ, काय ने मंगाबी?’’ कैत भए राजा जी सेवक से बोले,‘‘सुनो, सुनार के संगे तुम बा इत्र वारे के इते सोई चले जइयो औ उसे कइयो के राजी जू के लाने केसर को इत्र ले के फौरन पौंचो।’’
‘‘हऔ हजूर!’’ सेवक ने कई। के इत्ते में छोटी रानी आ गईं।
‘‘वा महाराज, वा! एक के लाने नौलखा, एक के लाने हीरों को हार और एक के लाने केसर को इत्र मंगाओ जा रओ, औ हमाई आपको फिकरई नइयां? आपने एक दफा जे ने सोची के छोटी रानी से सोई पूछ लओ जाए के उने कछू चाउने तो नईं? मगर आप काय ऐसो सोचहो? आपके लाने सो जे तीनऊं सगी वारी आएं औ हमाई तो कोनऊं खों सोचबे की फुरसत नइयां।’’ छोटी रानी ने अल्ल-गल्ल सब कछू सुना दओ।
‘‘ऐसो ने कओ! जे इन ओरन ने खुदई अपनी इच्छा बताई आए, अब तुम सोई बोल देओ के तुमें का चाउंने?’’ राजा जी ने छोटी रानी से पूछी।
‘‘हमें ने नौलखा चाउने, ने हीरा चाउंने, ने इत्तर-मित्तर चाउंने। हम सो जे चात आएं के आप हमाई एक बात मान लेओ।’’ छोटी रानी बोली।
‘‘कओ, का बात आए?’’ राजा जी ने पूछी।
‘‘पैले जे सेवक को जान देओ औ जे रानियन खों सोई आराम करन देओ। फेर बताबी।’’ कैत भई छोटी रानी उते से चली गई।
राज जी जानत्ते के जब लौं सुनार और इत्र वारो ने आ जैहे तब लौं बे तीनऊं रानियां उते से टरबेे वारी ने हतीं। कछू देर में सुनार आ गओ और संगे इत्र वारो सोई। तीनों रानियन खों अपनी-अपनी चीजें मिल गईं औ बे इतरात भईं अपने-अपने कमरा में चली गईं। राजा ने सेवक से कई के जे सुनार औ इत्र वारे खों खजाना से पइसा देवा देओ। राजा जी को आदेश पा के सेवक उन दोई जने खों ले के उते से चलो गओ।
अब राज जी छोटी रानी के लिंगे पौंचे।
‘‘कऔ का कै रई हतीं?’’ राजा जी ने छोटी रानी से पूछी।
‘‘हम जे कै रए महाराज! के आप खजाना को पइसा लुटात फिर रए, कभऊं परजा की सोई सोच लेओ करे।’’ छोटी रानी ने सूदे-सूदे कै दओ।
‘‘परजा की का सोचने? हमाए दरबारी आजई बता रए हते के हमाई परजा हमाए राज में इत्ती सुखी आए के जित्ती पैलऊं कभऊं ने हती।’’ राजा जी अकड़त भए बोले।
‘‘सुनी-सुनाई में ने परो! तनक भेस बदल के निकरो औ अपनी आंखन से देखो के परजा सुखी आए के दुखी आए?’’ छोटी रानी बोली।
‘‘तुमें का पतो? औ तुमई सोचो के जो परजा खों कोनऊं दुख होतो तो बा हमाएं लिंगे ने आती अपनी फरियाद ले के?’’ राजा जी बोले।
‘‘जो कां की फंकाई दे रए? ऐसो कऊं हो ‘‘जो कां की फंकाई दे रए? ऐसो कऊं हो पात आए के परजा अपनो दुख सुनाबे राजा के लिंगे पौंच पाए? दरबारी का, दरबार के दरबान लौं उने दरवज्जा से नईं घुसन देत आएं। औ आप पूछ रए के हमें कैसे पतो? सो सुनो! हम कल्ल रात खों भेस बदल के निकरे हते औ हमने अपने जेई दोई सगे कानों से सुनी के परजा आपके लाने कित्तो गरिया रई हती।’’ रानी कोन डरात्ती, ऊने सांची-सांची बोल दई। अब राजा सोच में पर गए। उने लगो के कऊं छोटी रानी सच्ची ने कै रई होंए?
‘‘चलो, आज हम सोई तुमाए संगे रात को भेस बदल के चलबी।’’ राजा जी बोले।
‘‘पर कोनऊं से ई बारे में कइयो ने! ढिंढोरा ने पीटियो!’’ छोटी रानी ने चेताया।
रात भई सो दोई संगे निकरे। फटो-पुरानो कपड़ा पैन्ह के। दोई पूरे शहर में घूमें। राजा जी ने सोई अपनी कानों से सुन लई के परजा उनके लाने कित्तो गरिया रई हती। राजा जी की आंखें हतीं सो खुल गईं। उन्ने दूसरई दिन तीनऊं रानियन से उनको जेवर औ इत्र छुड़ाओ औ वापस करा दओ। दरबारियन के खरचा में सोई कटौती को ऐलान कर दओ। संगे परजा के लाने काम देवाबे की सांची वारी घोषणा कर दई। दरबारी हते सो मों दाब के रै गए। उने समझ ने परी के राजा जी को होश कां से आ गओ। औ उते परजा ने सुनी सो बा जैकारे करन लगी।
जे किसां सुनबे में नोनी लगी ने? किसांएं हमेसई नोनी होत आएं, पर असल जिनगी नोईं। सो कभऊं-कभऊं किसां-कहानी कै लओ जाए सो जी हल्को हो जात आए, सहूरी हो जात आए। ने तो मैंगाई सो अब कोनऊं मुद्दा रओ नई। मुतके राजा बनबे की लेन में ठाड़े औ मुतकी घोषणाएं कर रए। मुफतखोरी कराबे की होड़ मची दिखात आए। अब का-का की कएं? मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम !
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