Wednesday, November 1, 2023

चर्चा प्लस | मध्यप्रदेश का स्थापना मास मनेगा चुनावी महोत्सव के संग | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस 
मध्यप्रदेश का स्थापना मास मनेगा चुनावी महोत्सव के संग
  - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                       
       1 नवंबर अर्थात मध्यप्रदेश का स्थापना दिवस। एक ऐसी तिथि जो अविभाजित मध्यप्रदेश की भी याद दिलाती है। इस बार प्रदेश का स्थापना मास चुनाव का मास भी है। जिससे आचार संहिता लागू हो जाने पर कई समारोह एवं आयोजन स्थगित किए गए हैं किन्तु लोकतंत्र में चुनाव से बड़ा और कोई आयोजन एवं महोत्सव हो ही नहीं सकता है। वर्ष 2023 का नवंबर मास प्रदेश के स्थापना समारोह को प्रजातंत्र के सबसे बड़े चुनाव अनुष्ठान के साथ मना रहा है। यह चुनाव अनुष्ठान प्रदेश के भावी विकास की दिशा एवं गति को निर्धारित तथा सुनिश्चित करेगा। इसलिए इस बार का स्थापना मास और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। 

मध्य प्रदेश चूंकि देश के मध्य भाग में स्थित है इसलिये इसे भारत का हृदय प्रदेश भी कहा जाता है। जब देश स्वतंत्र हुआ उस समय मध्यप्रदेश अस्तित्व में नहीं था। यह क्षेत्र मध्य भारत के नाम से जाना जाता था। इसके साथ बरार क्षेत्र भी जुड़ा हुआ था। इसीलिए इसे सीपी एंड बरार यानी सेंट्रल प्राविंसेस एंड बरार के नाम से अभिलेखित किया जाता था।  1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब मध्य भारत और विंध्य प्रदेश के नए राज्यों को पुरानी सेंट्रल इंडिया एजेंसी से अलग कर दिया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के तीन साल बाद राज्यों का पुनर्गठन किया गया। सन 1950 में मध्य प्रांत और बरार का नाम बदलकर मध्य प्रदेश कर दिया गया। यह पुर्नगठन भाषीय आधार पर किया गया था। इसके घटक राज्य मध्य प्रदेश, मध्य भारत, विंध्य प्रदेश एवं भोपाल थे, जिनकी अपनी विधानसभाएं थीं। इस राज्य का निर्माण तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य को मिलाकर किया गया था।
एक नवंबर 1956 को नए मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को बनाया गया। पंडित रविशंकर शुक्ल मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने और डाॅ. बी पट्टाभिसीतारमैया पहले राज्यपाल। राजधानी के रूप में भोपाल का चयन आसान नहीं रहा। ग्वालियर, इन्दौर और जबलपुर की दावेदारी के बीच भोपाल को चुना गया। राज्य पुनर्गठन आयोग ने भी मध्य प्रदेश की राजधानी के लिए जबलपुर के नाम भी सुझाव दिया था। भोपाल को अधिक उपयुक्त माना गया। कुछ इतिहासविद भोपाल को चुने जाने के पीछे दो कारण बताते हैं। पहला कारण कि भोपाल में कई ऐसी इमारते थीं जिनमें फौरी तौर पर अच्छी तरह कामकाज का संचालन किया जा सकता था। दूसरा कारण राजनीतिक तथा अधिक ठोस प्रतीत होता है। यह भोपाल की राजनीति को एक ऐसी गरिमा के साथ जोड़ देने का राजनीतिक कदम था जिससे वहां के नवाब भविष्य में कभी अलगाव की बात न सोचें। दरअसल, राज्यों के विलय के समय जब सरदार वल्लभ भाई पटेल साम, दाम, दण्ड का प्रयोग करते हुए राज्यों का का विलय कर के भारत को एक एकीकृत राष्ट्र का स्वरूप दे रहे थे, उस समय भोपाल के नवाब भारत से संबंध ही रखना नहीं चाहते थे। वे हैदराबाद के निजाम के पदचिन्हों पर चलते हुए अपनी स्वायत्ता बनाए रखना चाहते थे। उन्होंने निजाम से मिल कर भारत से न मिलने के गुपचुप उपाय किए किन्तु अंततः सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नवाब को भोपाल का विलय करने के लिए राजी कर लिया। किन्तु अलगाव की भावना वह कीड़ा था जो कभी कुलबुला सकता था। अतः यह तय किया गया कि भोपाल को प्रदेश की राजधानी बना दिए जाने से अलगाव का विचार कभी सिर नहीं उठा सकेगा। इन दो कारणों के अतिरिक्त भी कुछ अन्य कारण गिनाए जाते हैं किन्तु राजनीतिक कारण निर्विवाद रूप से सटीक बैठता है।

मध्यप्रदेश राज्य में आरंभ में 43 जिले थे। इसके बाद, वर्ष 1972 में दो बड़े जिलों का बंटवारा किया गया, सीहोर से भोपाल और दुर्ग से राजनांदगांव अलग किया गया। तब जिलों की कुल संख्या 45 हो गई। वर्ष 1998 में, बड़े जिलों से 16 और जिले बनाए गए और जिलों की संख्या 61 हो गई। नवंबर 2000 में राज्य का बंटवारा हो गया। भौगोलिक दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य दो टुकड़ों में विभक्त हो गया। राज्य का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा विभाजित कर छत्तीसगढ़ का नया राज्य बनाया गया। इस प्रकार, वर्तमान मध्यप्रदेश राज्य अस्तित्व में आया, जो देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और जो 308 लाख हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र पर फैला हुआ है।
अविभाजित मध्यप्रदेश का इतिहास अत्यंत सम्पन्न रहा है। इस भू-भाग को प्रागैतिहासिक काल से मानवों ने अपने निवास स्थान के रूप में चुना था। भीमबैठका, आबचंद की गुफाएं, खरबई के शैलचित्र, भीमकुण्ड का प्रचीनतम ज्वालामुखीय जलकुण्ड, रायगढ़ जिले के शैलाश्रय, लगभग 32 हजार साल पुराने सिंघनपुर के शैलाश्रय। कोटमसर अथवा कुटुम्बसर अथवा कोटसर की भूमि की सतह से 55 फीट नीचे 330 मीटर तक की लंबाई तक फैली गुफाएं संयुक्त मध्यप्रदेश की भौगोलिक प्राचीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। विभाजित मध्य प्रदेश में विंध्याचल पर्वत तथा सतपुड़ा की पर्वत-घाटियों पुराणों में में भी उल्लेख है। विपरीत दिशा में बहने वाली चिर कुंवारी नदी नर्मदा तथा सोन का नद मध्यप्रदेश की प्राकृतिक संपदा का गौरवशाली अभिन्न अंग है। बुंदेलखंड, बघेलखंड, मालवा, निमाड़ आदि की संस्कृतियों ने मध्यप्रदेश को अतुल्य सम्पन्नता दी है। प्रागैतिहासिक काल पाषाणकाल से शुरू होता है, जिसके गवाह भीमबेटका, भेड़ाघाट, जावरा, रायसेन, पचमढ़ी जैसे स्थान है। हालांकि राजवंशीय इतिहास, महान बौद्ध सम्राट अशोक के समय के साथ शुरू होता है, जिसका मौर्य साम्राज्य मालवा और अवंती तक विस्तृत था। कहा जाता है कि राजा अशोक की पत्नी विदिशा की थी, जिसके निकट बौद्ध तीर्थस्थल सांची मौजूद है। सम्राट अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन हुआ और ई. पू. तीन से पहली सदी के दौरान मध्य भारत की सत्ता के लिए शुंग, कुशान, सातवाहन और स्थानीय राजवंशों के बीच संघर्ष हुआ। ई. पू. पहली शताब्दी में उज्जैन प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र था। गुप्ता साम्राज्य के दौरान चैथी से छठी शताब्दी में यह क्षेत्र उत्तरी भारत का हिस्सा बन गया, जो श्रेष्ठ युग के रूप में जाना जाता है। हूणों के हमले के बाद गुप्त साम्राज्य का पतन हुआ और उसका छोटे राज्यों में विघटन हो गया। हालांकि, मालवा के राजा यशोधर्मन ने ई. सन 528 में हूणों को पराभूत करते हुए उनका विस्तार समाप्त कर दिया। बाद में थानेश्वर के हर्षा ने अपनी मृत्यु से पहले ई.सन 647 तक उत्तरी भारत को फिर से एक कर दिया। मध्ययुगीन राजपूत काल में 950 से 1060 ई.सन के दौरान मालवा के परमरस और बुंदेलखंड के चंदेल जैसे कुलों का इस क्षेत्र पर प्रभुत्व रहा। भोपाल शहर को नाम देनेवाले परमार राजा भोज ने इंदौर और धार पर राज किया। गोंडवना और महाकौशल में गोंड राजसत्ता का उदय हुआ। 13 वीं सदी में, दिल्ली सल्तनत ने उत्तरी मध्यप्रदेश को हासील किया था, जो 14 वीं सदी में ग्वालियर की तोमर और मालवा की मुस्लिम सल्तनत (राजधानी मांडू) जैसे क्षेत्रीय राज्यों के उभरने के बाद ढह गई। 1156-1605 अवधि के दौरान, वर्तमान मध्यप्रदेश का संपूर्ण क्षेत्र मुगल साम्राज्य के तहत आया, जबकि गोंडवाना और महाकौशल, मुगल वर्चस्व वाले गोंड नियंत्रण के तहत बने रहे, लेकिन उन्होने आभासी स्वायत्तता का आनंद लिया। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल नियंत्रण कमजोर हो गया, जिसके परिणाम स्वरूप मराठों ने विस्तार करना शुरू किया और 1720-1760 के बीच उन्होने मध्यप्रदेश के सबसे अधिक हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इंदौर में बसे अधिकतर मालवा पर होलकर ने शासन किया, ग्वालियर पर सिंधिया ने तथा नागपुर द्वारा नियंत्रित महाकौशल, गोंडवाना और महाराष्ट्र में विदर्भ पर भोसले ने शासन किया। इसी समय मुस्लिम राजवंश के अफगान के जनरल दोस्त मोहम्मद खान के वंशज भोपाल के शासक थे। कुछ ही समय में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल, बंबई और मद्रास जैसे अपने गढ़ों से शक्ति का विस्तार किया। उन्होने 1775-1818 में मराठों को पराजित किया और उनके राज्यों के साथ संधि कर उनपर सर्वोपरिता स्थापित की। मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल, नागपुर, रीवा जैसे बड़े राज्यों सहित अधिकांश छोटे राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए। उत्तरी मध्यप्रदेश के राजसी राज्य सेंट्रल इंडिया एजेंसी द्वारा संचालित किए जाते थे। सीपी एंड बरार रूपी मध्यप्रदेश ने बहुत से राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखे।

मध्यप्रदेश वनोपज का धनी है तथा वन्य जीवन से सुसम्पन्न है। इसके कुछ अंचल आर्थिक दृष्टि से पिछड़े रहे हैं क्योंकि ब्रिटिश काल में इनकी अवहेलना की गई। विशेष रूप से बुंदेलखंड में अंग्रेजों को सबसे अधिक विरोध का सामना करना पड़ा। ठग और पिण्डारियों से जूझना पड़ा अतः उन्होंने इस क्षेत्र को शिक्षा और विकास से दूर रखा। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रदेश के पिछड़े हिस्सों में प्रगति की लहर दौड़ी। गति धीमी ही सही किन्तु थमी नहीं।
आज मध्यप्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है। खेलकूद निरंतर गौरव हासिल कर रहा है। बस, कमी है तो संसाधनों के उचित दोहन की और विकास के आधुनिक प्रयासों की। प्रदेश के अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जो खनिज संपदा से सम्पन्न हैं किन्तु कोई बड़ा औद्योगिक केन्द्र न होने से पिछड़ा हुआ है। इन क्षेत्रों में उद्योग-धंधे इसलिए भी नहीं लग पाते हैं क्योंकि हवाई संपर्क का अभाव है, रेलों की कमी है। पिछले कुछ दशक में सड़कों की स्थिति में सुधार हुआ है किन्तु आईटी क्षेत्र सीमित है जिससे रोजगार के अवसर कम हैं। युवाओं को अपना राज्य छोड़ कर दूसरे राज्य जाना पड़ता है। युवाशक्ति का यह पलायन प्रदेश के विकास के लिए उचित नहीं है। प्रदेश में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं। खजुराहो, ओरछा, मांडू, भेड़ाघाट, कान्हा, भेड़ाघाट आदि स्थलों के अतिरिक्त अनेक ऐसे स्थान हैं जिनका पर्यटन स्थलों के रूप में विकास किया जा सकता है।

प्रदेश में निरंतर प्रशासनिक इकाइयां बढ़ रही हैं। जैसे 15 अगस्त 2003 को तीन नए जिले अशोकनगर, बुरहानपुर तथा अनूपपुर का निर्माण किया गया। 17 मई 2008 को अलीराजपुर, 24 मई 2008 को सिंगरौली, 14 जून 2008 को शहडोल संभाग, 25 मार्च 2013 को नर्मदापुरम संभाग का गठन किया गया। 16 अगस्त 2013 को आगर मालवा का निर्माण हुआ। मध्य प्रदेश का 52 वां जिला निवाड़ी 01 अक्टूबर 2018 को अस्तित्व में आया। जो टीकमगढ़ जिले की 3 तहसील निवाड़ी, ओरछा, और पृथ्वीपुर को मिलकर बनाया गया। 5 अक्टूबर 2023 को दो नए जिले सतना से मैहर और छिंदवाड़ा से पांढुर्ना जिला अस्तित्व में आया। दो जिले नागदा व पिछोर प्रस्तावित हैं अगर इन 2 जिलों को मान्यता मिल गयी तो मध्य प्रदेश में 55 से बढकर 57 जिले हो जायेंगे। इसके पहले रीवा से अलग कर मऊगंज 53वां जिला बनाया गया था। प्रदेश का प्रशासनिक विकास निर्माणकार्य तथा शिक्षा आदि के विकास को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
वर्ष 2023 में प्रदेश का स्थापना मास चुनाव का मास भी है। जिससे आचार संहिता लागू हो जाने पर कई समारोह एवं आयोजन स्थगित किए गए हैं किन्तु लोकतंत्र में चुनाव से बड़ा और कोई आयोजन एवं महोत्सव हो ही नहीं सकता है। वर्ष 2023 का नवंबर मास प्रदेश के स्थापना समारोह को प्रजातंत्र के सबसे बड़े चुनाव अनुष्ठान के साथ मना रहा है। यह चुनाव अनुष्ठान प्रदेश के भावी विकास की दिशा एवं गति को निर्धारित तथा सुनिश्चित करेगा। इसलिए इस बार का स्थापना मास और अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। अंत में मेरी काव्यमय दो पंक्तियां भी अपने प्रदेश के लिए-
हृदय देश का, हरित, ललित है
मेरा मध्यप्रदेश।
उर्वर  धरती, नित्य श्रमित है 
मेरा  मध्यप्रदेश। 

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