"काय भैया हरों धुकधुकी हो रई के नईं?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
काय भैया हरों धुकधुकी हो रई के नईं?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
कुल्ल दिनां बाद भैयाजी के घरे रौनक सी दिखानी। काय से के चुनाव के टेम पे तो बे ऐसे बिजी भए के मनो बे खुदई चुनाव में ठाड़े भये होंय। दो दिना से ऊंसई बदरा ऊंदें आएं। तनक-मनक बौछारें सी सोई पड़ गईं। मनो मावठे को पानी खेती के लाने सो अच्छो रैत आए पर जड़कारो सोई शुरू हो गओ कहाओ। खैर, बात हो रई हती भैयाजी की। पिछले कछू दिनां बे चुनाव के काम में बिजी रए। कोनऊं की केनवासिंग करी, तो कोनऊं के लाने झंडा टांगत फिरे। वोई टेम पे मोए एक दिना एक पार्टी को झंडा लगाउत दिखा गए रए। मैंने देखी के बे डंडा पे जोन झंडा बांध रए हते ऊपे पार्टी को निसान बनो हतो औ संगे निसान के नैचे अंग्रेजी में पार्टी को पूरो नांव लिखो हतो। मैने भैयाजी से पूछी के ‘‘काय भैयाजी, जोन जे मोहल्ला में आप जो झंडा लगा रए का इते इत्ते पढ़े-लिखे लोग आएं के जे पार्टी को नांव अंग्रजी में पढ़ लैंहें?’’
‘‘बे का पढ़ पाहें? जेई सो तो संगे निसान छापो गओ आए के लोग जे निसान देख के पैचान लेवें।’’ भैयाजी बोले हते।
‘‘मनो इते जे अंग्रेजी वारे झंडा भेजबे की जरूरतई का हती?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘को जाने? हमें तो लगत आए के जे उतई दिल्ली-मिल्ली से बन के आए हुइएं। ने तो इते होतो तो हिन्दी में लिखो जातो।’’ भैयाजी ने अपनी राय दई।
‘‘ठीक कओ आपने! मनो ऐसी पार्टी को का हुइए, मोय तो जे समझ में नई आ रई? जोन को इत्तई नई पतो के कोन सी जांगा पे कोन टाईप से प्रचार करो जाओ चाइए।’’ मैंने कई हती।
बाकी जा बात अब हो गई पुरानी। अब तो रिजल्ट को इंतजार आए। मैंने सोची के ई बारे में भैयाजी से तनक बतकाव करी जाए। सो मैं भैयाजी के घरे जा पौंची।
‘‘का हो रओ भैया जी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘होने को का आए? कारवां सो कढ़ गओ अब गुबार की धूरा फांक रए।’’ भैयाजी तनक कविताई करत भए बोले।
‘‘सो अब का होबे जा रओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मतलब जे, के जोन जे भैया हरें चुनाव में ठाड़े भए हैं, औ बैनजी हरें सोई, सबई की धुकधुकी हो रई हुइए के को जीतहे, को हारहे!’’ मैंने कई।
‘‘सो तो है! अभई परों बा एक उम्मींदवार मिले हतो। हमने उसे कई के आप तो जीत हो ई। सो बे कैन लगे के का पतो, जा जनता कोन खों चुनहे? मने उनको खुदई भरोसो सो नई दिखा रओ हतो के बे जीतहें के नईं। अब ऐसे में धुकधुकी सो हुइए ई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप को का लग रओ के कोन की बनहे सरकार? कछू उलटफेर हुइए का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब जे हमसे ने पूछो! जे सब के लाने बे टीवी वारे ई भौत आएं। बे सो सुभै से रात लों जेई अटकलें घालत रैत आएं के ई दफे बा आहे, ई दफे जा आहे। मनो बे वोट देबे वारन के पेट में सो घुसे बैठे जो उने सब पतो होय!’’ भैयाजी टीवी वारन पे भड़कत भए बोले।
‘‘अब बे ओरे बी का करें, उने सोई अपनी टीआरपी बढ़ाने रैत आए, सो बे ई टाईप के डिबेट कराउत आएं, एक्जिट पोल बताउत आएं औ मनो जोन सी बी नौटंकी करने परत है सो करत हैं। का करें, उने सोई अपनों पेट पालने परत आए।’’ मैंने टीवी वारन को पक्ष लओ।
‘‘तुमें बड़ी दया आ रई उन ओरन पे? औ बे जब खंडहर को रहस्य, भूत वारो कुआ जैसी रपट दिखात आएं सो तुमई गरियात आओ उनकों। बा सब बी तो बे अपनो पेट की खातिर दिखात आएं। तबे काय नईं आत दया तुमें उनपे?’’ भैयाजी को मौका मिल गओ मोरी टांग खिचाईं करबे को।
‘‘बा अंधविश्वास फैलाबे वारी बात आए। ऊको ई से काए जोड़ रए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘काय ने जोड़ें? जो बा गलत सो जा गलत। औ जो जा सई, सो बा बी सई।’’ भैयाजी बहस करत भए बोले। आखिर चुनाव टेम पे नेता हरों के संगे फिरबे को कछू तो असर हुइए ई।
‘‘हऔ, चलो दोई सई औ दोई गलत। अब काय गिचड़ रए उन ओरन के नांव पे?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ सई कै रईं बिन्ना! उन ओरन को का? अपनी ड्यूटी बजाउत बेरा इते-उते की बतकाव करी, चिंचिंया-चिंचिंया के दो-चार खबरें सुनाईं औ फेर कोनऊं पब-फब में बैठ के दो-चार बाटलें चढ़ाईं औ घरे जा के पर रए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे जो आप उन ओरन के बारे में बोल रए, जे कछू ज्यादा नईं हो गई?’’ मैंने भैयाजी खों टोको।
‘‘चलो छोड़ो! अपन ओरें सोई कां से कां पौंच गए? बात शुरू भई रई उम्मीदवारन से औ जा पौंची टीवी वारन लों। औ तुम बताओ के तुमाओ का चल रओ?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘मोरो का चलने? चलत तो उनकी आए जोन के पास लुटाबे खों पइसा होय, सोर्स-सिफारिश होय, उनसे सबई की अटकत होय! मैं सो ठैरी ऊंसई, सो मोरी का चलने।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे, तुम तो इमोशनल भई जा रईं! हमने सो ऊंसई पूछी रई। हम तुमाओ दिल नईं दुखाओ चात्ते।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मोय पतो आए। आपई ओंरे सो हो जो मोरो दुख-दरद समझत हो, ने तो बाकी के पास सो टेम लो नईयां के कभऊं हाल-खबर पूछ लेंवें।;’’ कैत भए मोय सांची में दुख सो लगो।
‘‘अरे, तुम काय दुखी हो रईं? जे दुनिया सो ऐसई चलत आए। इते कोनऊं खों कोनऊं की नईं परी। अभईं देखियो, तनक चुनाव को रिजल्ट तो आन देओ। जोन जे अपने उम्मींदवार के पांछू-पांछू फिरकी बने घूम रए हते, जो कऊं उनको उम्मीवार हार गओ, सो ऊके घरे झांकबे ने जाहें। जे जो अबे जैकारे लगात फिर रए हते, बे ऊसे हल्लो-हाय लों ने करहें। सो तुम अपनो जी ने दुखाओ। जोन को जो करने, सो करन दो।’’ भैयाजी मोय समझात भए बोले।
‘‘हऔ भैया! मैंने सोई गौर करी आए के कछू जने सो चुनाव टेम पे खाली प्रचार को पइसा खाबे खों आगे-आगे हो दिखात आएं। जो चुनाव हो गओ, सो बे सोई डकार लए बिगैर अपने घरे पर रैत आएं। आप सांची कै रए के बड़ी स्वारथ की दुनिया आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जे स्वारथ सोई राजनीति वारन ने ई अपन ओरन खों सिखाओ आए। उनको झूठ बोलत देख के अपन ओरें झूठ बोलबो सीख गए। उनको स्वारथपना देख के अपन ओरें स्वारथ की बतकाव करन लगें। जे राजनीति वारे सो आएं जो जात-धरम को भेद मिटाबे की जांगा भेद बढ़ात जा रए। पैले धरम की सल्ल रई औ अब जात-बिरादरी के सल्ल लों बात पौंचा दई। हमें सो जे सब अच्छो नईं लगत, मनो का करो जाए? एक हमाए सुधारे से सबरे थोड़ईं सुधरहें।’ भैयाजी सोई इमोशनल होत भए कैन लगे।
‘‘अब आप अपनो जी ने दुखाओ भैयाजी!’’ अबकी मैंने भैयाजी खों सहूरी बंधावे की कोशिश करी।
‘‘हऔ, हम तो जा सोचत आएं के कोनऊं जीते, मनो बा सबई के लाने अच्छो काम करे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ कछू ज्यादई उम्मींद नईं लगा रए आप?’’ मैंने भैयाजी खों टोंकी, ‘‘काय से के इते कोनऊं हमाम नोईं, इते तो खुल्ला घाट आएं ईमें सबई खुल्ला नहाऊत आएं। कोनऊं खों कोनऊं से शरम नोई। तभई तो ने तो पार्टी बदलत में देर लगत आए औ ने भ्रष्टाचार को कांड करे में कोनऊं शरम आऊत आए।’’
‘‘सांची कई। बाकी अब का सोचन लगीं?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘सोच नई रई कछू! बाकी जो जी कर रओ के चुनाव में ठाड़े नेता हरों से जा के पूछो जाए के काय भैया हरों धुकधुकी हो रई के नईं?’’ मैंने मुस्का के भैयाजी से कई।
‘‘सो चलो, संगे चलत हैं! एकाध से तो पूछ ई सकत आएं।’’ कैत भए भैयाजी सांची में ठाड़े हो गए। मैंने बी सोची के चलों जा करबे में तनक मूड अच्छो सो हो जेहे। ऊंसई अबे तो नेता हरें फेर बी बतकाव कर लैंहें। औ जो कऊं एक बेरा जीत गए सो हम ओरन को मों देखबे को उनके पास टेम नई रैने। सो हम दोई निकर परे टीवी वारन घांईं चिटपिया सवाल धर के। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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