"लबरा बड़ो के दोंदा?" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
लबरा बड़ो के दोंदा?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
ई टेम पे चुनाव की घमासान मची आए, जोन से मोरो तो मूंड़ पिरान लगो आए। संकारे से एक धमक परत आए, तो दुफैरी लों दूसरे, औ संझा लों तीसरे आ के वोट मांगन लगत आएं। औ जो पूछो के भैया हरों इत्ते दिनां कां रै, सकल ने दिखाई? सो दंत निपोरी करत भए कैन लगत आएं के ‘‘आपई ओरन के काम में बिजी रै। एक बार फेर के मौका दे देओ सो अधूरो काम पूरे करा देबी।’’
देखो तो तनक इनकी! आज लों कोनऊं काम पूरो करो इन्ने? चले आए कैबे के लाने के अधूरो काम पूरो करा देबी। ओ एकई जने नईं, इते तो जोन आत आए, बोई एकई सो डायलाॅग मार देत आए। मनो कोनऊं फिलम को डायलाॅग ने होय, के ‘‘हम तो अंग्रेजों के जमाने के जेलर आएं।’’
काय, जे डायलाॅग फिट नईं बैठो? अब का करो जाए एकई सी बात सुनत-सुनत सबरे फिल्मी डायलाॅग बिसर गए।
आज भैया औ भौजी दोई दर्शन के लाने रानगिर गए हैं, जेई से, उनसे तो बतकाव हो नई पा रई। सो, चलो आज मैं सोच रई के आप ओरन खों लबरा औ दोदा की किसां सुना दई जाए। माहौल सोई ओई टाईप को चल रओ, बाकी आप ओरें खुदई समझदार ठैरे।
का है के, एक गांव में दो ज्वान रैत्ते। एक को नांव रओ लबरा औ दूसरो को दोंदा। दोई के दोई ठलुआ। दोई फुल नमूना हते। जो लबरा हतो, बा लबरयाने में रओ उस्ताद। मने झूठ बोलबे में पक्को। हर बात पे झूठ बोलत्तो। ऐसई दसा हती दोंदा की। बा एक तो झूठ बोलतई हतो औ ऊपे ऐसो अड़ जात्तो के ऊकी झूठी बात बी सांची लगन लगत्ती। मने दोंदा कोनऊं टाईप की बात होय दोंदरा ई देत रैत्तो।
एक बेरा का भओ, के दोई में बहस होन लगी के कोन के पुरखा कित्ते ग्रेट हते।
‘‘हमाए दादा इत्ते स्मार्ट और बहादुर हते के उन्ने एक ठूंसा मार के शेर खों आड़ो कर दओ रओ।’’ लबरा ने दोंदा से कई।
‘‘बस? इत्तई?’ दोंदा लबरा को मजाक उड़ात भओ बोलो, ‘अरे, हमाए दादा तो इत्ते ग्रेट हते के उन्ने अपने घरे बैठे-बैठे इत्ती जोर की फूंक मारी के उनकी फूंक की जोर से उते जंगल में शेर गिर परो औ पट्ट दिना मर गओ।’’
जे सुन के लबरा को बुरौ लगो। ऊनें आगे लबरयाई के,‘‘हमाए दादा के पास इत्तो लंबों बांस रओ के ऊंसे बे बादरन खों टुच्च के जब चाएं तब पानी बरसा लेत्ते।’’
‘‘हमाए दादा के पास इत्ती बड़ी वारी अंजन की डिबिया हती के ऊमें बे तला को सगरो पानी भर लेत्ते।’’ दोंदा कोन पांछू रैबे वारो हतो।
दोई के बीच जेई टाईप की बहस होत रई। जब दोई थकन लगे, सो बोले के चलो सरपंच जी से फैसला करा लओ जाए के कोन के दादा ज्यादा चतुरे हते। सो, दोई सरपंच के लिंगे पौंचे।
‘‘सरपंच जी अब आपई बताओ के कऊं ऐसो हो सकत का के इत्ती बड़ी अंजन की डिबिया होय के जीमें तला को पूरो पानी समा जाए?’’ लबरा ने सरपंच से पूछी।
‘‘हट! ऐसो कऊं नई होत। इत्ती बड़ी अंजन की डिबिया? तला बरोबर?’’ कैत भओ सरपंच हंसन लगो।
‘‘सरपंच जी, आप भूल रए के इत्ती बड़ी डिबिया पाई जात्ती औ हमाए दादा जी ने हमें बताई रई के आपके दादाजी ने उनके लाने, उने बा डिब्बी दई रई।’’ दोंदा दोंदरा देत भओ बोलो।
अब सरपंच का करे? जो कैत आए के उनके दादा ने ऐसी कोनऊं डिब्बी ने दई रई, सो उनके दादा छोटे कहाते। सो सरपंच ने सोची, फेर कई,‘‘हऔ दोंदा! तुमने सई याद कराई, हमाए दादा जी नेई सो दई रई तुमाए दादा खों बा डिबिया।’’
‘‘देख लेओ! हो गई तसल्ली? जुड़ा गओ कलेजा? पर गई ठंडक?’’ दोंदा लबरा से बोलो।
लबरा को भौतई गुस्सा आओ। काय से के बा समझ गओ रओ के लबरा ने सरपंच जी खों अपनी बातन के फंदा में फांस लओ आए। ंपर ऊ टेम पे बा चुप मार गओ। जबे सरपंच चलो गओ सो लबरा बोलो,‘‘जे सरपंच जी तुमाई साईड ले रए हते। बे कोन दूध के धुले आएं। हम तो अब राजा जी के पास जैंहे।’’
‘‘चलो, जो तुमाई मरजी जेई आए, सो हमें का? बाकी बाद में ने कइयो के राजाजी सोई हमाई साईड ले रए।’’ दोंदा इतरात भओ बोलो।
दोई राजाजी के दरबार खों चल परे। रास्ते में दोई थक के सुस्तान लगे। लबरा की लग गई आंख। दोंदा ने दिखाई चतुराई औ सोत भए लबरा के कपड़ा पानी डार के भिजों दए। जो लबरा जगो सो बा अपने भीजें कपड़ा देख के पूछन लगो के, ‘‘जे हमाए कपड़ा कैसे भींज गए? का पानी बरस गओ?’’
‘‘हऔ, खूबई पानी बरसो।’’ दोंदा बोलो।
‘‘ठैरो, ठैरो! हमें जे बताओ के जो पानी बरसो सो तुमाए कपड़ा काए नई भीजें?’’ लबरा ने पूछी।
‘‘तुम तो राजाजी के दरबार चलो, ने तो देर हो जैहे औ दरबार उठ जैहे। हम उतई सब बताबी।’’ दोंदा बोलो।
दोई जने निंगत-निंगत राजाजी के दरबार पौंचे। राजाजी ने पूछी के का भओ? काए के लाने आए? सो दोई पांव पकर के बोले के आपई अब न्याय कर सकत हो। औ दोई ने अपने-अपने दादाजी के बारे में गप्पें सुना डारीं। राजाजी समझ गए के दोई फुल गप्पी आएं।
‘‘लबरा कै रओ के बारिश नई भईं। ऊकी बात में दम आए। काय से के जो बारिश भई होती तो तुमाए कपड़ा सोई भींजते।’’ राजाजी बोले।
‘‘आपई बताओ महाराज, के जो बारिश ने भई तो ईके कपड़ा काय से भींज गए?’’ दोंदा ने राजाजी से पूछ लई।
‘‘सो तुम काय नईं भीजें?’’ राजाजी ने सोई पूछी।
‘‘आपके दादाजी के पुन्न प्रताप से।’’ दोंदा तुरतईं बोलो।
‘‘का मतलब?’’ राजाजी चकरा गए।
‘‘मतलब जे महराज! आपके दादाजी बड़े वारे पुन्नात्मा हते। उन्ने हमाए दादा जी की सेवा से खुस हो के उने एक बूटी दई रई। बा बूटी खों शरीर पे औ कपड़ा-लत्ता पे के मले से पानी नईं भिंजा सकत।’’ दोंदा बोलो।
‘‘सो कां है बा बूटी?’’ राजाजी ने पूछी।
‘‘बा तो हमने मल लई रई तभईं तो हम नईं भींजे। अब कां बची बा बूटी।’’ दोंदा आराम से बोलो।
राजाजी समझ गए के दोंदा ऊंसई दोंदरा दे रओ, मनो बे अब जे नईं कै सकत्ते के हमाए दादाजी के पास कोनऊं बुटी ने हती, के बे पुन्नात्मा ने हते।
‘‘चलो, तुम दोई सांचे! तुम दोई के दादाजी अपने-अपने टाईप के ग्रेट हते। अब जाओ अपने-अपने घरे।’’ राजाजी पीछा छुड़ात भए बोले। अब राजाजी के कैबे के बाद बे उते थोड़ई ठैर सकत्ते, सो उते से बढ़ लिए।
दोई के जातई साथ राजाजी ने अपने महल में रैन वारे जिन्नात खों बुला के कई के,‘‘देखो तो हमाए राज में कैसे-कैसे लबरा, दोंदा रैत आएं, का हुइए हमाए राज को? अब तुमई बताओ के लबरा बड़ो के दोंदा?’’
‘‘आप ई में ने परो महराज के लबरा बड़ो के दोंदा? काय से के कछू समै बाद जेई ओरें बारी-बारी से राज करहें।’’ जिन्नात ने कई औ उते से फुर्र हो गओ। राजाजी जिन्नात की बात पे सोचत रै गए के ऊने ऐसई काय कई?
तो, भैया औ बैनों हरों! आप ओरें सोई सोचियो के जिन्नात ने ऐसई काय कई? औ सांची कई के झूठी? जिन्नात ने जे काय नई बताई के लबरा बड़़ो के दोंदा? औ का आगे चल के सांची में उन्ने राज करी हुइए? तनक आप ओरें सोई सोचियो। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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