Wednesday, November 8, 2023

चर्चा प्लस | चुनावी घमासान बनाम बिगड़े बोलों का बखेड़ा | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
चुनावी घमासान बनाम बिगड़े बोलों का बखेड़ा
  - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
       चुनाव सिर पर हैं। माहौल गरमाया हुआ है। जो शांत स्वभाव के हैं वे शांत हैं लेकिन कुछ ऐसे भी जो जल्दी बौखला जाते हैं और ऐसी बयानबाजी कर बैठते हैं कि उन्हें सोशल मीडिया पर से ले कर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया तक वायरल होते देर नहीं लगती। मामला बढ़ता है तो ईसी तक जा पहुंचता है। देखा जाए तो राजनीति में यह एक परम्परागत आचरण है। अतीत के पन्ने पलटने पर अनेक ऐसे उदाहरण हमें मिल जाएंगे जिन पर कभी हंसी आती है, कभी गुस्सा आता है तो कभी सिर पीट लेने की इच्छा होती है। दिलचस्प बात यह कि ऐसे उदाहरण पैदा करने वालों में कई सत्तासीन भी हुए और राष्ट्रीय स्तर के व्यक्तित्व रहे। आज तो उस बिगड़े बोल-परम्परा का अनुकरण मात्र हो रहा है। चलिए देखते हैं कुछ नए-पुराने दिलचस्प उदाहरण।
अभी हाल में ही कांग्रेस के एक स्टार प्रचारक नेता का आडियो वायरल हुआ जिसमें उन्होंने विपक्षी नेता के लिए कहा कि उनको ‘‘कुचर’’ देना चाहिए। यह भी कहा कि ‘‘ट्रैक्टरों से कुचर देना चाहिए’’। पत्रकारों के पूछने पर उन नेताजी ने जो अर्थ बताया उसके अनुसार उनकी डिक्शनरी में ‘‘कुचरने’’ का अर्थ मारपीट नहीं बल्कि ‘‘दौड़ाना’’ है। जबकि बुंदेलखंड का बच्चा-बच्चा भी ‘‘कुचरने’’ का सही अर्थ जानता है। खैर, राजनीति में बहुत से शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। जिस अर्थ के साथ उस शब्द का प्रयोग किया जाता है, मीडिया द्वारा उस पर प्रश्न करते ही उस शब्द का अर्थ बदल दिया जाता है। इस तरह देखा जाए तो राजनीतिक शब्दावली की एक अलग डिक्शनरी बनाई जानी चाहिए जिसमें हर चुनाव के समय संशोधन होता रहे।
2022 के कुछ गंभीर बिगड़े बोलों को याद किया जा सकता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने भी राहुल गांधी की बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर उनकी तुलना सद्दाम हुसैन से कर दी थी। सरमा ने अहमदाबाद में एक चुनावी रैली के दौरान कहा था, ‘‘राहुल गांधी के नए लुक से कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर आपको लुक बदलना है तो कम से कम वल्लभभाई पटेल या जवाहरलाल नेहरू जैसा बनाइए। गांधी जी की तरह दिखें तो और भी अच्छा है, लेकिन अब आप सद्दाम हुसैन की तरह क्यों दिखते हैं?’’ इस पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन बोरा ने संयम बरतते हुए कहा था कि ‘सत्ता के लिए सीएम किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। हम इस पर ध्यान नहीं देते।’
कई बार चुनाव के समय के बाहर भी ऐसे बिगड़े बोल नेताओं के मुख से फूट पड़ते हैं, जिसकी धमक चुनाव के समय तक गूंजती रहती है। इसी सिलसिले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बोलों को रेखांकित किया जा सकता है। सन 2022 में ही बिहार में जहरीली शराब पीने के कारण लगभग 82 लोगों की मौत हुई थी। जब बात आई मृतकों के परिजनों को मुआवजा दिए जाने की तो सीएम नीतीश विधानसभा में बोल पड़े कि ‘‘मरने वालों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। जो पिएगा वो मरेगा ही।’’ नीतीश के इस बयान पर निशाना साधते हुए केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि, ‘नीतीश फ्रस्ट्रेशन में आ गए हैं। बिहार में शराब बंद है, लेकिन हर जगह बिकता है। नीतीश कुमार सरकार चलाने के लिए मानसिक रूप से फिट नहीं हैं।’
नवंबर, 2022 को गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पीएम मोदी की तुलना रावण से कर दी थी। उन्होंने एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे लगा कर कार्यकर्ताओं द्वारा वोट मांगने को लेकर कटाक्ष करते हुए सवाल किया कि ‘‘क्या आपके पास रावण जैसे 100 सिर हैं? आप हर चुनाव में चेहरा दिखाने आ जाते हैं। क्या आपके रावण की तरह सौ मुख हैं?’’ इस पर पीएम मोदी ने भी पलटवार करते हुए कहा था, ‘‘कांग्रेस पार्टी को नहीं पता कि यह राम भक्तों का गुजरात है।’’

2021 बीजेपी नेता गुलाब चंद कटारिया ने राजसमंद में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘‘हमारे पूर्वजों ने 1000 साल तक लड़ाई लड़ी है। यह महाराणा प्रताप अभी-अभी गया है। क्या उसे पागल कुत्ते ने काट लिया था कि वह अपनी राजधानी और अपना घर छोड़ कर, अलग-अलग पहाड़ों में घूमता हुआ रो रहा था? किसके लिए वह गया?’’ विरोध होने पर अपने इस बयान को लेकर कटारिया को माफी मांगनी पड़ी। उन्होंने स्वीकार किया कि महाराणा प्रताप को समझने का उनका तरीका गलत था।
राजस्थान के ही राज्य मंत्री राजेंद्र गुढ़ा जब मंत्री बनने के बाद पहली बार अपने चुनाव क्षेत्र में पहुंचे तो उन्होंने पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर से कहा कि उनके इलाके की सड़कें हेमा मालिनी के गालों जैसी बना दो। इसके बाद उन्होंने खुद लोगों से पूछा, आजकल कौन सी अभिनेत्री ज्यादा लोकप्रिय है? इस पर लोगों ने कैटरीना कैफ का नाम लिया। इसके बाद गुढ़ा ने मुख्य अभियंता से कहा कि ‘‘मेरे क्षेत्र में कैटरीना कैफ के गालों जैसी सड़कें बना दो, हेमा मालिनी तो बूढ़ी हो गई।’’
जब राजेंद्र गुढ़ा को आड़े हाथों लिया गया तो अपने इस बयान पर उन्हें शर्मिन्दा होना पड़ा। वैसे बाॅलीवुड की ड्रीमगर्ल एवं सांसद हेमामालिनी हमेशा नेताओं के बिगड़े बोलों की शिकार हुई हैं। भले ही यह बात उनकी प्रशंसा में कही गई हो लेकिन किसी महिला का अपने बिगड़े बोल में इस तरह उल्लेख करना गलत ही कहा जाएगा और हर बार गलत माना भी गया। महिला आयोग ने ऐसे मामलों को हमेशा संज्ञान में लिया और नेताओं को माफी मांगनी पड़ी। हेमामालिनी का उल्लेख सबसे पहले बिहार के नेता लालू यादव ने किया था जब उन्होंने कहा था कि ‘बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गाल की तरह चिकनी बना देंगे।’’ तब विरोधियों ने बिहार की सड़कों की तुलना ओम पुरी के गालों से की थी।
बिहार में ही महागठबंधन की सरकार के दौरान जब हेमा मालिनी पटना आईं थी तब उन्होंने लालू यादव की जमकर तारीफ की थी और कहा था कि ‘‘मैं लालू यादव की फैन हूं।’’ इस पर लालू यादव ने टिप्पणी की थी कि ‘‘मैं उनका एयरकंडीशनर हूं।’’
महाराष्ट्र सरकार में जल आपूर्ति एवं स्वचछता मंत्री रहे शिवसेना नेता गुलाबराव पाटिल ने अपने क्षेत्र के विकास के बारे में चर्चा करते हुए कह दिया था कि ‘‘जो 30 साल से विधायक रहे हैं उन्हें मेरे विधानसभा क्षेत्र में आना चाहिए और सड़कों को देखना चाहिए। अगर वे (सड़कें) हेमा मालिनी के गालों जैसी नहीं हुईं तो मैं इस्तीफा दे दूंगा।’’ इस पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि ‘‘इस तरह की तुलना पहले भी हो चुकी है। यह हेमा मालिनी के लिए सम्मान की बात है। इसलिए इसे नकारात्मक रूप से न देखें। इससे पहले लालू यादव ने भी ऐसा ही उदाहरण दिया था। हम हेमा मालिनी का सम्मान करते हैं।’’ लेकिन महाराष्ट्र राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रुपाली चाकणकर ने पाटिल के इस बयान को संज्ञान में ले कर कड़ा विरोध किया था, जिसके बाद मंत्री गुलाबराव पाटिल ने माफी मांग ली थी।
इससे पहले 2019 में छत्तीसगढ़ राज्य के धमतरी जिले के कुरूद में पट्टा वितरण के एक आयोजन में अपना उद्बोधन देते हुए मंत्री कवासी लखमा ने अपने क्षेत्र कोंटा की सड़कों की तुलना हेमा मालिनी के गाल से कर दी। मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि ‘‘हमारे क्षेत्र की सड़कें हेमा मालिनी के गाल की तरह चिकनी हैं।’’ धमतरी के प्रभारी मंत्री कवासी लखमा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘‘राज्य में मंत्री बने मुझे अभी कुछ ही महीने हुए हैं। मैं नक्सल प्रभावित क्षेत्र से आता हूं, लेकिन मैंने उस क्षेत्र में ही सड़कें बनवाईं। बिल्कुल हेमा मालिनी के गालों जैसी।’’ अपने विवादित बयानों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहने वाले मंत्री लखमा ने कुरूद में सड़कों की हालत पर दुख जताते हुए इसके लिए राज्य में पिछली रमन सिंह की सरकार को दोषी बताया था। मंत्री ने कहा था कि ‘‘कुरूद की सड़कों पर पिछली सरकार के भ्रष्टाचार के गड्ढे हैं।’’ भाजपा ने दिया जवाब मंत्री द्वारा दिए गए इस विवादित बयान पर भाजपा ने पलटवार किया। भाजपा नेता और कुरूद नगर पंचायत के अध्यक्ष रविकांत चंद्राकर ने इसे कांग्रेस का संस्कार बताया।
इस तरह के बयानों को परंपरागत तरीके से दोहराया जाना इस बात की ओर संकेत करता है कि कुछ नेता सुर्खियों में जगह पाने के लिए हर तरह के बोल बोलने को तैयार रहते हैं। सुर्खियों की लालसा और अपने दल के प्रति अपने समर्पण का प्रदर्शन करने के चक्कर में उनके बोल कई बार स्तरहीनता तक पहुंच जाते हैं।
मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव 2023 के इस दौर में राजनेताओं के बीच आरोप प्रत्यारोप की राजनीति बिगड़े बोलों ढलती जा रही है। कांग्रेस की एक जन आक्रोश यात्रा के दौरान सभा में कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष एवं लहार के छह बार के विधायक डॉ गोविंद सिंह ने ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कटाक्ष करते हुए उन्हें ‘‘जमीन चोर’’ बताया। साथ ही कहा कि ‘‘हमने तो महाराज बना कर रखा था। लेकिन आज बीजेपी में कैटरिंग का काम कर रहा है। यह औकात हो गई है।’’
कई बार बिगड़े बोल बोलने वालों के दलीय साथी भी इस गंभीरता को समझ जाते हैं कि ऐसे बयान भस्मासुर का कंगन साबित हो सकते हैं और अपने ही दल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। तब वे समझदार साथी बोल बोलने में संयम बरतने की सलाह भी देते हैं। जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने हरियाणा में एक रैली को संबोधित करते हुए बीजेपी को वोट देने वालों को राक्षसी प्रवृत्ति का कह दिया था। इतना ही नहीं, उन्होंने ऐसे लोगों को श्राप भी देते हुए कहा था कि ‘‘वे सभी लोग जो बीजेपी को वोट देते हैं वो राक्षस हैं। वे सभी लोग जो बीजेपी की विचारधारा का समर्थन करते हैं उनमें राक्षसी प्रवृत्ति है। मैं ऐसे लोगों को महाभारत की धरती से खड़े होकर श्राप देता हूं।’’ सुरजेवाला के इस बयान के बाद बीजेपी हमलावर मुद्रा में आ गई। उधर स्वयं कांग्रेसी नेताओं को समझ में आया कि ऐसे बोल कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान ने सुरजेवाला को मर्यादित भाषा के उपयोग की नसीहत दी।

ऐसा नहीं है कि कांग्रेसी नेता ही भाजपा पर बिगड़े बोल बोलते हों। भाजपा नेताओं की जबान भी कई बार फिसल जाती है और उन्हीं की पार्टी के लिए मुसीबत बन जाती है। राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां जोरों-शोरों के साथ प्रचार में लगी थीं कि इस बीच भाजपा नेता संदीप दायमा के बिगड़े बोल ने भाजपा को सकते में ला दिया। संदीप दायमा ने अपने भाषण में कहा कि ‘‘क्षेत्र में गुरुद्वारे तेजी से बढ़ रहे हैं, जो नासूर बनने जा रहे हैं और भाजपा को उन्हें उखाड़ फेंकना जरूरी है। किस तरह से इतनी मस्जिदें, किस तरह से गुरुद्वारे यहां पर बनाकर छोड़ दिए, ये आगे चलकर हमारे लिए नासूर बन जाएंगे। इसलिए हमारा सबका धर्म भी बनता है कि इस नासूर को यहां से उखाड़ कर फेंक देंगे।’’
संदीप दायमा के इन बोलों से समूचा सिख समुदाय नाराज हो गया। चुनाव आयोग ने भी दायमा को नोटिस थमा दिया। तब वीडियो जारी कर माफी मागते हुए दायमा ने कहा, ‘‘मस्जिद-मदरसा के स्थान पर, मैंने गलती से गुरुद्वारा साहब के बारे में कुछ गलत शब्दों का प्रयोग कर दिया। मैं पूरे सिख समुदाय से हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं, जिसने हमेशा हिंदू धर्म और सनातन धर्म की रक्षा की है। मुझे नहीं पता कि मुझसे गलती कैसे हो गई। मैं गुरुद्वारे जाकर इस गलती का पश्चाताप करूंगा, मैं पूरे सिख समुदाय से हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं।’’
पर भाजपा समझ गई थी इस माफीनामे से ‘‘डेमेज कंट्रोल’’ नहीं होगा अतः विवादित बयान देने के मामले में पार्टी से निष्कासित करते हुए दायमा की प्राथमिक सदस्यता भी रद्द कर दी गई।

अन्य पार्टी के नेता भी इस मामले में पीछे नहीं रहते हैं। सुर्खियां किसे नहीं चाहिए? ‘‘बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ’’ के सिद्धांत पर चलने वाले छोटे, बड़े नेता बोलने से पहले सोचते नहीं या सोच समझ कर ही बिगड़े बोल बोलते हैं, यह कहना तो कठिन है किन्तु यह तो तय है कि अब मतदाता इतने समझदार हो चुके हैं कि बिगड़े बोलों पर वे चटखारे ले कर आनन्द भले ही उठा लें, पर इन बोलों के आधार पर मतदान नहीं करते हैं। वे अपनी दृष्टि से उम्मीदवार और राजनीतिक दलों का आकलन करते हैं और फिर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर के सबको चौंका देते हैं। संभवतः इस बार का चुनावी परिणाम भी कई सीटों पर चौंकाने वाला साबित हो। वैसे परिणाम में अधिक समय नहीं है। बस, अगले माह ही सब कुछ सामने होगा कि बिगड़े बोलों ने किस पार्टी में कितना ‘‘डेमेज कंट्रोल’’ किया या कितना ‘‘डेमेज’’ किया? यानी कितना लाभ पहुंचाया और कितना नुकसान किया। फिलहाल बिगड़े बोल जारी रह सकते हैं।  
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