"जबे इन्दर देव ने धरती पे विजिट करी" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
जबे इन्दर देव ने धरती पे विजिट करी
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
एक दिनां इन्दर देव ने सोची के सबरे देवता हरें जब चाए तब धरती पे घूम आउत आएं औ एक हम ठैरे के उते जा नई सकत। काए से के जब-जब हम धरती पे पौंचबो चात आएं के संगे जोर को पानी बरसने लगत आए। सो, सबरे प्राणी कैन लगत आएं के महराज, अब जाओ इते से, ने तो बाढ़ आ जैहे। उते कोनऊं खों हमाओ पौंचबो नईं पोसात। खाली दो मईना उते स्वागत-सत्कार होत आए, वो बी हमाओ नोंई बल्कि हमाए भेजे गए पानी वारे बादरा हरों को। ऐसो का करो जाए के हम सोई औ देवता घांई धरती की सैर कर आएं? इन्दर देव अभईं जा सोचई रए हते के उते नारद मुनी आ पौंचे।
‘‘का सोच रए महराज? आज आपको दरबार इत्तो सूनो काय दिखा रओ? आपकी बा रंभा-संभा औ मेनका, उरवसी कां गई?’’ नारद मुनी ने पूछी।
‘‘हमाओ जी ठीक नईं लग रओ!’’ इन्दर देव ने कई।
‘‘काए ठीक नईं लग रओ? ऐसो का हो गओ?’’ नारद मुनी ने पूछी।
‘‘काए का हम दुखी नई हो सकत?’’ इन्दर देव ठनक के बोले।
‘‘नईं, आप काय दुखी हुइयो? आपके मनोरंजन के लाने इते इत्ती अप्सराएं आएं, जे गाने-माने वारे आएं औ बाकी आपको कोनऊं किसम की कमी नइयां, फेर आप काय दुखी हो रए?’’ नारद मुनी ने कई।
‘‘जे अप्सराओं को डांस देख-देख के हम बोर होन लगे अब तो। औ जे हमाए दरबार के गंधर्व हरें एकई टाईप के राग अलापत रैत आएं। जबके हमने सुनी आए के उते धरती पे रोज नओ टाईप को खेल, तमासा होत रैत आए। हमाए सबरे देवता हरें उने उते जा-जा के देखत रैंत आएं, औ एक हम ठैरे के हमाए उते जाबे से बाढ़ आन लगत आए औ सबरे हमें भगाबे की जुगत पैलई करन लगत आएं।’’ इन्दर देव ने दुखी होत भए कई।
‘‘कै तो आप सांची रए। बाकी आप चात का हो?’’ नारद मुनी ने पूछी।
‘‘हऔ, सो सुनो! हमें कोनऊं ऐसी जुगत बताओ के हम धरती पे घूम आएं औ उते कोनऊं खों पता बी ने परे।’’ इन्दर देव ने अपनी मंसा बताई।
‘‘हूं! जे आए आपकी इच्छा। जे आप कछू दिनां पैले बताउते तो काम आसानी से बन जातो।’’ नारद मुनी बोले।
‘‘बा कैसे?’’ इन्दर देव ने पूछी।
‘‘बा ऐसे के अबे धरती पे कछू जांगा चुनाव भए रए औ चुनाव के पैले उते रैली, रोड शो, आम सभाएं होत रईं। ओई कोई में हम आपके लाने सेटिंग करा देते। मनो अबे चुनाव को सीजन पूरो भओ नईयां। कछू दिनां बाद जे पैले चुनाव को रिजल्ट आहे, औ ऊके बाद अगली चुनाव के लाने मारा-मारी होन लगहे। तब हम आपकी सेंटिंग करा देबी। ऊ टेम पे घूम लइयो धरती पे।’’ नारद मुनी बोले।
‘‘नईं! हमें तो अभईं जाने। जो कछू सेटिंग करने होय सो अभईं करो। ने तो हम तुमें अपने दरबार में घुसन ने देबी।’’ इन्दर देव ने हठ करी औ संगे धमकी सोई दे डारी।
‘‘चलो, जो अभईं चलने होय सेा हमाए संगे चलो! हम धरती पेई जा रए।’’ नारद मुनी बोले।
‘‘तुम तो ढाई घड़ी में खसक लैहो, फेर हम उते अकेले का करबी? मनो हमाए उते रैबे से बाढ़ आन लगी तो?’’ इन्दर देव ने अपनी चिंता बताई।
‘‘फजूल की चिन्ता ने करो आप! कछू बाढ़-माढ़ ने आहे। उते नदियां सूकी जा रईं। आप चलो हमाए संगे। जो ढाई घड़ी से ज्यादा आपको उते टिकबे को मन होय सो बताइयो, हम कछू ने कछू व्यवस्था बना देबी।’’ नादर मुनी ने सहूरी बंधाई।
‘‘हऔ चलो!’’ इन्दर देव राजी हो गए।
दोई धरती की तरफी चल परे। नारद मुनी सो हते चतुरा। उन्ने सोची के जो इन्दर देव को धरती पे आबे-जाबे की लत लग गई सो बड़ी सल्ल मचहे। इने बाकी देवताओं की करतूतें सोई पता परन लगहें के बे ओरें धरती पे आ के का-का करत आएं। ईसे अच्छो आए के इन्दर देव खों ऐसी जांगा लेजाओ जाए, जां पौंच के बे खुदई बोल देबें के अब हमें धरती पे पांव नईं धरने।
सो, नारद मुनी सबसे पैले इन्दर देव खों दिल्ली लेवा ले गए। कां स्वर्ग की साफ-सुफेद हवा औ कां दिल्ली की करिया हवा। दिल्ली पौंचतई साथ इन्दर देव खों खांसी के ठसका लगन लगे। तनक देर में उने खांसी उठन लगी। आंखों से अंसुआ की धार बहन लगी।
‘‘जे तुम हमें कां लिवा लाए?’’ इन्दर देव घबड़ा के बोले।
‘‘महराज, जे दिल्ली आए। भारत देस की राजधानी। अबे तो इते पराली को धुंआ नइयां। कछू दिनां बाद आइयो सो ऊको मजा बी ले लइयो।’’नारद मुनी मुस्क्यात भए बोले।
‘‘खांसत-खांसत हमाओ कलेजा फटो जा रओं और जे चिरमिटिया हवा से हमाई आंखें फूटी जा रईं, औ तुम कै रए मजा अेबे की। हमें कऊं औ ले चलो।’’ इन्दर देव घबड़ात भए बोले।
‘‘हओ चलो! बाकी आप तो इते ढाई घड़ी ने टिक पाए।’’ नारद मुनी ने कई।
फेर नारद मुनी इन्दर देव खों दिल्ली से मुतकी दूर मध्यप्रदेश में सागर लिवा लाए।
‘‘कछू राहत मिली?’’ नारद मुनी ने पूछी।
‘‘हऔ! इते आ के तनक अच्छो सो लगो।’’ इन्दर देव बोले।
बाकी नारद मुनी ने सोच रखी हती के इन्दर देव खों अच्छो तो लगवाने नइयां। ने तो बे सागर के जांगा इन्दौर ने ले जाते?
‘‘जो नओ सो पुल दिखा रओ! नोनो लग रओ। मनो, जे पुल के नैंचे का आए? जे पानी की जांगा घास-पतूला से काए दिखा रए?’’ इन्दर देव चकित होते भए बोले।
‘‘आप सई समझे। जे कारीडोर कहाउत आए। नओ बनो आए। मनो तला पुरो डरो। ईकी सफाई अबे नईं भई।’’ नारद मुनी बोले।
‘‘जे का बात भई? जब लौं तला की सफाई हुइए, तबलौं जे पुल मने बा तुमने का कई, हां करियाडोर पुरानी हो जैहे।’’ इन्दर देव खों धरती के करमन की इत्ती समझ कां हती।
‘‘जे करियाडोर नईं, कारीडोर आए।’’ नारद मुनी ने सुधारो।
‘‘जब चाए कारी कओ, चाए करिया! बात तो एकई ठैरी। बाकी, इते नैचे सो देखो नई जा रओ। तला की जांगा गिलावो सो दिखा रओ।’’ इन्दर देव बोले।
नारद मुनी उने उते से दूसरी तरफी लेवा ले गए। कछू गली, कछू सड़कें घुमाईं।
‘‘जे बताओ हमें के हमने इते हर गली, हर सड़क पे कछू अहाता सो बनो देखो। बा का आए? तुमने हमें बा भीतरे से ने दिखाओ।’’ इन्दर देव बोले।
‘‘महराज! बा तुमाए जोग नइयां। बा देसी दारू को ठेका को अहातो आए। इते हर चार कदम पे मिल जैहे। मगर आप आओ स्वरग की शुद्ध सुरा पीबे वारे औ जे ठैरी देसी ठर्रा। आपको ने पचहे।’’ नारद मुनी ने समझाई।
‘‘हैं? ऐसो का? पर हमने तो देखी के बा स्कूल के पास आए, बैंक के सामने आए, औ तो औ बच्चन के खेलबे के मैदान से लगो परो आए? जो का हो रओ? का ऐसी जांगा ऐसो अहातो होने चाइए?’’ इन्दर देव अचरज से पूछन लगे।
‘‘इत्ते हैरान ने हो आप! इते धरती पे सरकार को जेई से पइसा मिलत आए औ जो उने पइसा ने मिलहे सो बे मुफत में बांटबे के लाने कां से लाहें? सो, आप ईमें ने परो।’’ नारद मुनी बोल परे।
‘‘का मतलब?’’ इन्दर देव को कछू समझ ने परी।
‘‘ने समझो, जेई में आपकी भलाई आए। औ घूमने का? काय से हमाओ टेम भओ जा रओ इते से जाबे को।’’ नारद मुनी बोले।
‘‘नईं भैया! हम तो अफर गए। अब हमसे इते रुको नई जा रओ। नाएं-माएं कचरा सोई दिखा रओ। बे गइयां, बैल सोई छुट्टा फिर रए। हमें नईं रुकने इते।’’ इन्दर देव ने कई। औ ईके बाद दोई जने लौट परे स्वरग खों।
सो जे हतो इन्दर देव को दौरा। ईसे मोय तो जे समझ परी के हमाए देवता हरें साल में कछू दिनां सो काए जात आएं? जेई से के बे इते धरती पे घूमत-घूमत बीमार होन लगत आएं, सो सेहत बनाबे के लाने मेडिकल लीव पे चले जात आएं। बाकी देवोत्थानी पे हम उने जगा के ई मानत आएं। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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