Saturday, October 4, 2025

टॉपिक एक्सपर्ट | दस मूंड़ को रावन बार दओ, अब बुराई सोई बार देओ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | पत्रिका | बुंदेली कॉलम

टॉपिक एक्सपर्ट | दस मूंड़ को रावन बार दओ, अब बुराई सोई बार देओ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | पत्रिका | बुंदेली कॉलम
टाॅपिक एक्सपर्ट | दस मूंड़ को रावन बार दओ, अब बुराई सोई बार देओ
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह 
      दसेरा कढ़ गओ। सहर में मनो मुतकी जांगा रावन जलाओ गओ, मगर दो जांगा पे खीब बतकाव चली। एक तो पीटीसी ग्राउंड वारी जांगा जहां सहर की महपौर ने पौंचीं, काय से के निगम के आयुक्त जू ने उनको अपमान करो है, ऐसो उनको कैबो आए। बाकी त्योहार म्योहार के समै ऐसो करो नईं चाइए। अखीर बे सहर की महापौर ठैरीं, उनको सम्मान राखो चाइए। जेई से तो कछू सयाने कै रए हते के रावन की नाभी में दो दार तीर घालो गओ फेर बी बा न मरो।  बा तो ऊके पैरन में लुघरिया छुबाई गई, तब कऊं बा जरो। अब ई बात खों को कां से जोर के देख रओ, जे तो बेई जानें। बाकी मकरोनिया पे बजरिया वारे रावन सोई अड़ी दिखा गओ। जबके उते विधायक रए, सांसद रईं, नगरपालिका के अध्यक्ष रए औ भारी भीर रई। उते कोनऊं मनमुटाव नईं रओ। मनो रावन जबे जलाओ जा रओ तो ऊकी मुंडी से तनक सी आगी निकरी औ फुस्स हो गई। फेर ऊपे पेट्रोल डार के ऊको जलाओ गओ। रावन बी सोचत हुइए के जे हम कां फंस गए। ऐसी गत तो रामजी के जमाने में ने भई। मनो कभऊं-कभऊं ऐसो हो जात आए, कछु नईं।
         बस जेई आए के जैसे दस मूंड़ को रावन जलाओ गओ ऊंसई सबरे आपसी बुराई बार देवें। काए से आपस में लड़े से अपनोई नुकसान होत आए। औ ऊंसईं सहर में फैली सबरी बुराई सोई बार देओ, जीसें अपन ओरें शान से मूंड़ उठा के कएं के अपनो सागर, नोनो सागर!
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Thank you Patrika 🙏
Thank you Dear Reshu Jain 🙏
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शून्यकाल | फिल्मी दुनिया में बुंदेलखंड की उपस्थिति को प्रतीक्षा है एक बॉक्स ऑफिस की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

शून्यकाल | फिल्मी दुनिया में बुंदेलखंड की उपस्थिति को प्रतीक्षा है एक बॉक्स ऑफिस की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर
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शून्यकाल
फिल्मी दुनिया में बुंदेलखंड की उपस्थिति को प्रतीक्षा है एक बॉक्स ऑफिस की
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
          मनोरंजन जगत में बुंदेली और बुंदेलखंड के कलाकारों का दबदबा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। बुंदेलखंड का फिल्मी दुनिया से नाता यूं तो काफी पुराना है, गीतकार विट्ठल भाई पटेल, कलागुरु विष्णु पाठक और निर्माता- निर्देशक शिवकुमार ने बुंदेलखंड को फिल्मी दुनिया में एक खास पहचान दिलाई। आशुतोष राणा, गोविंद नामदेव, मुकेश तिवारी आदि अभिनेताओं ने बुंदेलखंड का परचम बाॅलीवुड में फहराने का काम किया। फिर भी बुंदेली फिल्मों का निर्माण उस तरह से नहीं हुआ जैसे भोजपुरी फिल्मों का होता है। क्षेत्रीयता के हिसाब से भोजपुरी फिल्मों में जिस तरह से अपनी धाक जमाई उसे देख कर लगता है कि उस तक पहुंचाने के लिए बुंदेली को अभी लंबी यात्रा करनी पड़ेगी।

कला की सज़ीदगी और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध गोविंद नामदेव का कहना है कि ‘‘बुंदेली बोली को कई बार ट्राय किया और इंडस्ट्रीज में दिखाया, लेकिन अंत में प्रोड्यूसर की बात मानी जाती है। वो जो कहता है, वह होता है, क्योंकि पैसा वह लगा रहा है। उन्होंने कहा कि अब बुंदेलखंड की बोली को पहचान हप्पू सिंह के किरदार से मिल रही है। इसे हम रिफरेंस में दिखा सकते हैं।’’      
          मनोरंजन जगत में बुंदेली और बुंदेलखंड के कलाकारों का दबदबा धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। बुंदेलखंड का फिल्मी दुनिया से नाता यूं तो काफी पुराना है, गीतकार विट्ठल भाई पटेल, कलागुरु विष्णु पाठक और निर्माता-निर्देशक शिवकुमार ने बुंदेलखंड को फिल्मी दुनिया में एक खास पहचान दिलाई। आशुतोष राणा, गोविंद नामदेव, मुकेश तिवारी आदि अभिनेताओं ने बुंदेलखंड का परचम बाॅलीवुड में फहराने का काम किया। कला की सज़ीदगी और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध गोविंद नामदेव का कहना है कि ‘‘बुंदेली बोली को कई बार ट्राय किया और इंडस्ट्रीज में दिखाया, लेकिन अंत में प्रोड्यूसर की बात मानी जाती है। वो जो कहता है, वह होता है, क्योंकि पैसा वह लगा रहा है। उन्होंने कहा कि अब बुंदेलखंड की बोली को पहचान हप्पू सिंह के किरदार से मिल रही है। इसे हम रिफरेंस में दिखा सकते हैं।’’ 
      बेशक हप्पू सिंह का पात्र बुंदेली और बुंदेलखंड के परिप्रेक्ष्य में एक मील का पत्थर है जहां से मनोरंजन जगत में बुंदेली के लिए अनेक रास्ते खुलने लगे हैं। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लगभग 20 जिलों में बुंदेली भाषा बोली और सुनी जाती है। बुंदेली संस्कृति के विद्वान स्व. नर्मदा प्रसाद गुप्ता ने अपनी किताब बुंदेली संस्कृति और साहित्य में लिखा है कि ‘‘मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड, बघेलखंड, मालवा और निमाड़ा, चार जिलों में बुंदेली का प्रवाह ज्यादा है। भारतीय लोक परंपरा के विकास में बुंदेली का अहम योगदान है।’’ अब बुंदेली का प्रभाव टीवी चैनल्स पर छाता जा रहा है। इससे पहले मंचों और सीडी के माध्यम से बुंदेली लोकगीतों एवं नाटकों का बोलबाला रहा किन्तु अपसंस्कृति की छाया ने इसमें फूहड़पन घोल दिया। जिससे बुंदेली एक बार फिर तिरस्कार की ओर बढ़ने लगी थी। लेकिन टीवी चैनल्स ने बुंदेली के प्रसार में एक नई जान फूंक दी। चूंकि टीवी चैनल्स परिवार के साथ देखे जा सकने वाले कार्यक्रम दिखाने के अधिकारी होते हैं अतः इनमें बुंदेली के स्तर को चोट पहुंचने की संभावना नहीं है। कुछ लोग यह मानते हैं कि हप्पू सिंह के किरदार के रूप में बुंदेली को हास्य की भाषा के रूप में प्रोजेक्ट करने से नुकसान हो सकता है किन्तु वस्तुतः यह भय निरापद है। हास्य-व्यंग्य के संवाद किसी भी व्यक्ति के दिल को गुदगुदाते हैं और उसे अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इससे संबंधित भाषा को भी निकअता पाने का अवसर मिलता है। लोग आज बुंदेली के संवादों को बहुत पसंद करने लगे हैं। हप्पू सिंह के किरदार में कलाकार योगेश त्रिपाठी जब किसी भी मंच से अपने सीरियल के डाॅयलाॅग ‘‘काए कां गए थे’’ या ‘‘काय का हो रओ’’ बोलते हैं तो बुंदेलीखंड से बाहर के श्रोता ओर दर्शक भी न केवल तालियां बजाते हैं बल्कि उनके डाॅयलाॅग दोहराने लगते हैं। बुंदेली संवादों ने टीवी चैनल्स की टीआरपी पर भी अपनी धाक जमा ली है। एक और टीवी सीरियल ‘‘गुडिया हमारी सब वे भारी’’ में बुंदेली संवाद और बुन्देली पारिवारिक चुहलबाजी को बड़े खूबसूरत ढंग से प्रसतुत किया गया है। इसे भी हिन्दी भाषी क्षेत्रों भरपूर लोकप्रियता मिल रही है। इसमें चुलबुली गुडिया का किरदार सारिका बहरोलिया अपने बुन्देली के शब्दों से खूब वाहवाही पा रही हैं।
सन् 1992 में आए प्रसिद्ध टीवी धरावाहिक ‘‘परिवर्तन’’ से अपनी पहचान बनाने वाले गोविंद नामदेव आज एक लोकप्रिय अभिनेता हैं। उनके अभिनय की विविधता दर्शकों को हमेशा प्रभावित करती है। सन् 1995 में महेश भट्ट द्वारा निर्देशित सीरियल ‘‘स्वाभिमान’’ में आशुतोष राणा एक सादगी भरे ऐसे ग्रामीण युवा जो शहर के तौर-तरीकों से अनभिज्ञ है, के रोल में छोटे पर्दे पर आए तो दर्शकों के दिलों पर ‘‘त्यागी’’ के रूप में अपनी छाप छोड़ गए। महेश भट्ट ने उनकी प्रतिभा को आगे बढ़ाया और आशुतोष राणा को अपनी फिल्म ‘‘दुश्मन’’ में सायको किलर ‘‘गोकुल पंडित’’ के रोल के लिए चुना। सन् 1098 में फिल्म ‘‘चाईना गेट’’ में सागर में जन्में और सागर में ही पले-बढ़े मुकेश तिवारी को ‘‘जगीरा’’ का रोल मिला तो उनका बोला यह संवाद बच्चे-बच्चे की जुबान पर छा गया था-‘‘मेरे मन को भाया, मैं कुत्ता काट के खाया।’’
         अकसर यह हंसी मज़ाक में कहा जाता है कि बुंदेलखंड के अभिनेताओं को हीरो के बदले विलेन का ही रोल मिलता है। जब यही प्रश्न गोविंद नामदेव से पूछा गया तो उन्होंने साफ़ शब्दों में उत्तर दिया कि ‘‘बुंदेलखंड के पानी में ठसक है, इसलिए यहां के विलेन सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं और कोई बड़ा हीरो अभी तक नहीं आया।’’ यह बहुत हद तक सच है कि बुंदेलखंड के किसी भी अभिनेता को हीरो का रोल नहीं मिल पाया है लेकिन यह भी सच है कि ललितपुर में जन्में अभिनेता राजा बुंदेला ने ‘‘विजेता’’ और ‘‘अर्जुन’’ जैसी फिल्मों में सकारात्मक रोल किए। स्वयं गोविंद नामदेव ने अनेक सकारात्मक रोल किए हैं। बेशक़ यह कमी जरूर रही है कि बुंदेलखंड से किसी अभिनेत्री ने अपनी जोरदार उपस्थिति बाॅलीवुड में अभी तक दर्ज़ नहीं कराई है। लेकिन संभावनाएं विपुल हैं। पिछले कुछ वर्षों से बुंदेलखंड में फिल्म फेस्टिवल्स के छोटे-बड़े कई आयोजन हो चुके हैं। खजुराहो इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल में देशी विदेशी फिल्मों के साथ बुंदेलखंड के कलाकारों द्वारा बनाई गई टेली और शार्ट फिल्मों तथा वृत्त चित्रों का भी प्रदर्शन किया जाने लगा है। इससे मंनोरंजन के क्षेत्र में काम करने वाले युवाओं में उत्साह बढ़ा है। खजुराहो, झांसी और ओरछा में भी फिल्म फेस्टिवल आयोजित किए जा चुके हैं। अभिनेता गोविंद नामदेव सागर, दमोह आदि शहरों में अभिनय प्रशिक्षण शिविर लगा कर प्रशिक्षण देते रहते हैं जिससे बुंदेली कलाकारों को अपनी अभिनय क्षमता को निखारने का अवसर मिलता है तथा वे आत्मविश्वास के साथ फिल्म और टेलीविजन की ओर बढ़ने लगे हैं।
खजुराहो इंटरनेशल फिल्म फेस्टिवल में कई बुंदेली शार्ट्स फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। इनमें कुछ फिल्में वाकई गंभीर विषयों पर थीं ओर उन्हें पूरी गंभीरता से बनाया गया था। बुंदेलखंड के युवा फिल्म निर्माताओं को यह ध्यान रखना होगा कि वे ‘‘टिकटाॅक’’ की ज़मीन से ऊपर उठ कर फिल्म बनाने पर अपना ध्यान केन्द्रित करें। माना कि बुंदेलखंड में आर्थिक साधनों की कमी है लेकिन यह बात याद रखने की है कि ‘चक्र’, ‘पार’, ‘दामुल’, ‘अंकुर’ जैसी कालजयी फिल्में सीमित साधनों में बनाई गई थीं। यदि अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखें तो इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि वरिष्ठ अभिनेताओं, निर्देशकों एवं निर्माताओं से सीखते हुए बुंदेलखंड के युवा मनोरंजन जगत में बुंदेली और बुंदेलखंड का नाम रोशन करेंगे।
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Friday, October 3, 2025

बतकाव बिन्ना की | कई होती तो घरे बनवा देते आपके लाने | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम


बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव  बिन्ना की
कई होती तो घरे बनवा देते आपके लाने                               
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

         ‘‘काए बिन्ना कां हो आईं?’’ फुआ ने पूछी। भैयाजी की फुआ मनो मोरी फुआ। हप्ता-खांड से बे इतई ठैरीं, भैयाजी के यां। रोजई से उनसे मिलनो होत रैत आए, सो जो एक दिनां मैं उनके लिंगे ने पौंची तो बे पूछन लगीं।
‘‘दमोए गई रई।’’ मैंने फुआ को बताओ।
‘‘काए के लाने?’’ फुआ ने पूछी।
‘‘उते मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी को एक कार्यक्रम रओ, बुंदेली पे।’’ मैंने उने बताओ।
‘‘बुंदेली पे?’’ उने सुन के तनक अचरज भओ।
‘‘हऔ! का आए के आजकाल बुंदेली बोलबो कम भओ जा रओ, सो जेई के लाने बतकाव रई के का करो जाए जीसें बुंदेली बोलबे को चलन बनो रए।’’ मैंने फुआ को बताओ।
‘‘हऔ, जा बात तो ठीक आए। काए से हम ओरे तो बुंदेली बोलत आएं, मनो आजकाल के लड़का बच्चा बुंदेली का सई से हिन्दी नईं बोल पात आएं।’’ फुआ बोलीं। बाकी उन्ने बात पते की कई।
‘‘आजकाल बुंदेली की रीलें औ नाच-गाने सोई चलत आएं सोसल मिडिया पे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, ईपे सोई उते बतकाव भई। काए से के रीलन में और नाच-गाने में फुहड़याई सोई चलन लगी आए।’’ मैंने कई।
‘‘फेर का सोचो गओ उते?’’ फुआ ने पूछी।
‘‘सोचबे को का रओ उते? एक दार सोचबे में कोनऊं हल थोड़े निकरहे। ईके लाने सबई जनों खों कछू ने कछू काम करने परहे।’’ मैंने कई।
‘‘जा तो सई आए। मनो औ का भओ उते?’’ फुआ ने पूछी।
‘‘औ ुदपाी को भोजन उतई पे रओ सो, सबने ने मिल के जीमों। अच्छो सो लगो। काय से के ऐसो मिलबे को मौको कभऊं-कभऊं आऊत आए। बाकी एक मजे की बात भई।’’ मैंने कई।
‘‘का भई? तनम हमें सोई बताओ।’’ फुआ ने पूछी।
‘‘हऔ, हम सोई तनक सुन लेवें!’’ भौजी सोई बोली।
‘‘का भओ के दमोए में मोरे एक चिन्हारी वारे रैत आएं। उनसे भेंट भई तो बे बड़े अच्छे से मिले। फेर दुपारी में भोजन को टेम भओ तो भोजन के लाने सबईखों लेन में लगने परो। काए से के बुफे को सिस्टम रओ। ई टाईप से लेन में लगबे को सोई अपनो मजो रैत आए। सो, मैं सोई लेन में ठाड़ी हो गई। मैं औ मोरी संगवारी बैन हरें जो कऊं भोपाल से आई रईं, तो कोनऊं टीकमगढ़ से। सो, हम आरें लेन में ठाड़ी रईं। इत्ते में उते से हमाए बेई चिन्हारी वारे भैया निकरे। उन्ने बताई के बे जा रए, काए से के उने कोनंऊं की गमी में जाने हतो। मैंने कई के आपखों जरूर जाओ चाइए। जेई सब बतकाव कर के बे उते से कढ़ लिए। मैं लेन में लगी रई औ जब नंबर आओ तो अपनी प्लेट में खाबे को आइटम रख लओ। मनो आइटम अच्छे रए। सन्नाटा सो मोए सबसे ज्यादा पोसाओ। हम ओरन ने सबने हंसी-ठठ्ठा कर भए अच्छे से जीमों औ फेर बैठ के बतकाव करन लगे। कछू देर में मोरे उनईं चिन्हारी वारों को फोन आओ सो बे पूछन लगे के आपकेा खाना भओ के नईं? मैंने कई हो गओ। सो बे कैन लगे के उते से निकरत समै हमसे जा गलती हो गई के हमने आप से जा ने पूछी के आपके लाने का घरे खाना बनवा दें? मैंने उनसे कई के भैया, बा की कोनऊं जरूरत ने हती, काए से के इते इत्तो अच्छो भोजन को इंतजाम रओ। औ ऊपे सबके संगे खाबे को मजोई दूसरो रैत आए। सो उन्ने कई के फेर बी हमें पूछो चाइए तो जो खाबे की आपने कई होती तो घरे बनवा देते आपके लाने। मैंने उनसे कई के जो जरूरत होती तो मैं कै देती। मनो मनई मन मैं सोची के उनसे पूछो जाए के भैया, काए घड़ी देख रए हते का के कबे खाना निबटे औ कबे खाना बनवाबे की बात करी जाए।’’ बतात-बतात मोए हंसी आन लगी।
‘‘सई में जो अच्छो के उने ख्वाने ने हतो बाकी पूछ के जे पक्को करने रओ के काल को कैबे को ने रए के पूछो नईं।’’ फुआ सोई हंसन लगीें।
‘‘जेई तो आए फुआ! धजी में ने अजी में, नोनी दुलैया सजी में।’’ मैंने कई।
‘‘बा सो सब ठीक आए, बाकी जे जो तुम बतकाव कर रई, बा उने पता परी तो बे का सोचहें?’’ भौजी ने फिकर करी।
‘‘ने कछू! बे का सोचहें? सई तो सई आए। सच बोले में डराबे को का?’’ मैंने कई।
‘‘अरे, एक दार हम ओरन के संगे सोई ऐसई भओ।’’ फुआ बतान लगीं, ‘‘का भओ के हम ओरें घूमबे के लाने बनारस गए। उते हमाए दूर के एक रिस्तेदार रैत्ते। उनसे फोन पे बात भई तो बे बोले के आप ओरें कल दुपारी को हमाए इते खाबे पे आओ। हम ओरन ने सोची के चलो अच्छो आए, जेई बहाने से उन ओरन से मिलबो हो जैहे औ रिस्तेदारी में एक मोड़ी के लाने मोड़ा ढूंढबे की सोई चल रई हती, सो हम ओरन ने सोची के जेई बहाने बा बात बी हो जाहे। सो हम ओरें दूसरे दिनां उनके इते पौंचे। उन्ने अच्छे से बिठाओ। पानी को पूछो। फेर चाय-माय चली। जेई करत-करत कुल्ल देर हो गई। हम ओरें भोजन के लाने परखे, औ उते कोनऊं भोजन की बातई ने कर रओ हतो। तुमाए फूफा जू से ने रओ गओ। सो उन्ने बात घुमा के कई के हम ओरने खों निकरने सोई आए सो भोजन के लाने तनक जल्दी करा देओ। जा सुन के उनकी घरवारी बोली के जा तो इन्ने हमें बताओ नईं के आप ओरन को खाना सोई इन्ने रखो आए, ने तो हम तो अबे लौं बना के परसई देते। अपनी घरवारी की सेन के बे भैयाजू कैन लगे के हमने तुमें बताई तो रई। तुम हमाई बात सुनतईनइयां। उन ओरन की झिकझिक सुन के तुमाए फूफा जू को मुंडा खराब हो गओ। बे बोले के अब नई बनो खाना तो रैन देओ, हमाए लिंगे बी टेम नइयां खाबे खों। औ बे उठ खड़े भए। हमें सोई बुरौ लगो। सो हमने सोई कै दई के अच्छो रओ के हमने आप ओरन से मोड़ी के रिस्ता के लाने ने कई ने तो आप ओरें जाने कोन टाईप को मोड़ा ढूंढते। अब चाए हमाई बात उने बुरई लगी होय, सो लगी रए, हमाई बला से।’’ फुआ बोलीं।
‘‘सो फेर आप ओरन के भोजन को का भओ?’’ भौजी ने फुआ से पूछी।
‘‘होने का रओ? उनके इते से उठे सो सीधे एक होटल में पौंचे। उते भरपेट खाओ तब कईं जां में जां आई। हम ओरें मरे जा रए ते भूक से।’’ फुआ बोलीं।
‘‘सई में फुआ, खाबे-पीबे में चतुराई ने दिखाओ चाइए।’’ मैंने हंस के कई।      
 बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के जो कोनऊं पाउना आए सो ऊके संगे ऐसो करो जाओ चाइए के नईं?
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Wednesday, October 1, 2025

चर्चा प्लस | मां दुर्गा की कृपा सदा रहेगी यदि स्त्री का सम्मान सुरक्षित रहे | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

(दैनिक, सागर दिनकर में 01.10.2025 को प्रकाशित) 
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चर्चा प्लस
मां दुर्गा की कृपा सदा रहेगी यदि स्त्री का सम्मान सुरक्षित रहे
         - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह     
नवरात्रि...नौ दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की स्तुति... दुर्गा जो स्त्रीशक्ति का प्रतीक हैं, असुरों का विनाश करने की क्षमता रखती हैं... किन्तु इस बात पर विश्वास करना ही प्र्याप्त है क्या? सिर्फ़ सोचने या मानने से नहीं बल्कि करने से कोई भी कार्य पूरा होता है। इसलिए यदि आज स्त्री प्रताड़ित है, अपराधों का शिकार हो रही है तो उसे अपनी शक्ति को पहचानते हुए स्वयं दुर्गा की शक्ति में ढलना होगा। डट कर समाना करना होगा स्त्रीजाति के विरुद्ध की समस्त बुराइयों का और स्त्री का सम्मान करना सीखना होगा समस्त पुरुषों को, तभी नवरात्रि का अनुष्ठान सार्थक होगा।

   या देवि सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।
मां दुर्गा की उपासना करते समय जिस स्त्रीशक्ति का बोध होता है वह उपासना के बाद स्मरण क्यों नहीं रहता? न स्त्रियों को और न पुरुषों को। समाचारपत्रों में आए दिन स्त्री के विरुद्ध किए गए जघन्य अपराधों के समाचारों भरे रहते हैं। कभी तेजाब कांड तो कभी दहेज हत्या तो कभी बलात्कार और बलात्कार के बाद नृशंसतापूर्वक हत्या। ये घटनाएं हरेक पाठक के दिल-दिमाग़ को झकझोरती हैं। बहुत बुरा लगता है ऐसे समाचारों को पढ़ कर। समाज में आती जा रही चारित्रिक गिरावट को देख कर अत्यंत दुख भी होता है लेकिन सिर्फ़ शोक प्रकट करने या रोने से समस्या का समाधान नहीं निकलता है। देवी दुर्गा का दैवीय चरित्र हमें यही सिखाता है कि अपराधियों को दण्डित करने के लिए स्वयं के साहस को हथियार बनाना पड़ता है। जिस महिषासुर को देवता भी नहीं मार पा रहे थे उसे देवी दुर्गा ने मार कर देवताओं को भी प्रताड़ना से बचाया। नवरात्रि के दौरान लगभग हर हिन्दू स्त्री अपनी क्षमता के अनुसार दुर्गा के स्मरण में व्रत, उपवास पूजा-पाठ करती है। अनेक महिला निर्जलाव्रत भी रखती हैं। पुरुष भी पीछे नहीं रहते हैं। वे भी पूरे समर्पणभाव से मां दुर्गा की स्तुति करते हैं। नौ दिन तक चप्पल-जूते न पहनना, दाढ़ी नहीं बनाना आदि जैसे सकल्पों का निर्वाह करते हैं। लेकिन वहीं जब किसी स्त्री को प्रताड़ित किए जाने का मामला समाने आता है तो अधिकांश स्त्री-पुरुष तटस्थ भाव अपना लेते हैं। उस समय गोया यह भूल जाते हैं कि आदि शक्ति दुर्गा के चरित्र से शिक्षा ले कर अपनी शक्ति को भी तो पहचानना जरूरी है।
किसी भी प्रकार की प्रताड़ना या हिंसा का स्त्रीसमाज पर शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक दुष्प्राभाव पड़ता है। इसके कारण महिलाओं के काम तथा निर्णय लेने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। परिवार में आपसी रिश्तों  और आसपड़ौस के साथ रिश्तों व बच्चों  पर भी इस हिंसा का सीधा दुष्प्रकभाव देखा जा सकता है। इससे स्त्रियों की सार्वजनिक भागीदारी में बाधा पड़ती है और वे स्वयं को अबला समझने लगती हैं। जबकि इसके विपरीत मां दुर्गा का चरित्र उन्हें दृढ़ और सबल होने का संदेश देता है।
हिन्दुओं के शाक्त साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है। उल्लेखनीय है कि शाक्त साम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है। वेदों में तो दुर्गा का व्यापाक उल्लेख है। उपनिषद में देवी दुर्गा को “उमा हैमवती“ अर्थात् हिमालय की पुत्री कहा गया है। वहीं पुराणों में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। वैसे दुर्गा शिव की अद्र्धांगिनी पार्वती का एक रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये देवताओं की प्रार्थना पर पार्वती ने धारण किया था देवी दुर्गा के और भी कई रूपों की कल्पना की गई है। दुर्गा सप्तशती में दुर्गा के कई रूप भी बताए गए है, जैसे- ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, ऐन्द्री, शिवदूती, भीमादेवी, भ्रामरी, शाकम्भरी, आदिशक्ति, रक्तदन्तिका।
दुर्गा सप्तशती में कुल 13 अध्याय हैं, जिसमें 700 श्लोकों में देवी-चरित्र का वर्णन है। मुख्य रूप से ये तीन चरित्र हैं, प्रथम चरित्र (प्रथम अध्याय), मध्यम चरित्र (2-4 अध्याय) और उत्तम चरित्र (5-13 अध्याय)। प्रथम चरित्र की देवी महाकाली, मध्यम चरित्र की देवी महालक्ष्मी और उत्तम चरित्र की देवी महासरस्वती मानी गई है। यहां दृष्टव्य है कि महाकाली की स्तुथति मात्र एक अध्याय में, महालक्ष्मी की स्तुति तीन अध्यायों में और महासरस्वती की स्तुति नौ अध्यायों में वर्णित है, जो सरस्वती की वरिष्ठता, काली (शक्ति) और लक्ष्मी (धन) से अधिक सिद्ध करती है। मंा दुर्गा के तीनों चरित्रों से संबंधित तीन रोचक कहानियां भी हैं जो
प्रथम चरित्र - बहुत पहले सुरथ नाम के राजा राज्य करते थे। शत्रुओं और दुष्ट मंत्रियों के कारण उनका राज्य, कोष सब कुछ हाथ से निकल गया। वह निराश होकर वन से चले गए, जहां समाधि नामक एक वैश्य से उनकी भेंट हुई। उनकी भेंट मेधा नामक ऋषि के आश्रम में हुई। इन दोनों व्यक्तियों ने ऋषि से पूछा कि यद्यपि हम दोनों के साथ अपने लोगों (पुत्र, मंत्रियों आदि) ने दुव्र्यवहार किया है फिर भी उनकी ओर हमारा मन लगा रहता है। मुनिवर, क्या कारण है कि ज्ञानी व्यक्तियों को भी मोह होता है। ऋषि ने कहा कि यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, भगवान विष्णु की योगनिद्रा ज्ञानी पुरुषों के चित्त को भी बलपूर्वक खींचकर मोहयुक्त कर देती है, वहीं भगवती भक्तों को वर देती है और ’परमा’ अर्थात ब्रह्म ज्ञानस्वरूपा मुनि ने कहा, ’नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिद ततम्’ अर्थात वह देवी नित्या है और उसी में सारा विश्व व्याप्त है। प्रलय के पश्चात भगवान विष्णु योगनिद्रा में निमग्न थे तब उनके कानों के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो असुर उत्पन्न हुए। उन्होंने ब्रह्माजी को आहार बनाना चाहा। ब्रह्माजी उनसे बचने के लिए योगनिद्रा की स्तुति करने लगे। तब देवी योगनिद्रा उन दोनों असुरों का संहार किया।
मध्यम चरित्र - इस चरित्र में मेधा नामक ऋषि ने राजा सुरथ और समाधि वैश्य के प्रति मोहजनित कामोपासना द्वारा अर्जित फलोपभोग के निराकरण के लिए निष्काम उपासना का उपदेश दिया है। प्राचीनकाल में महिषासुर सभी देवताओं को हराकर स्वयं इन्द्र बन गया और सभी देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया। वे सभी देवता- ब्रह्मा, विष्णु और शंकर के पास सहायतार्थ गए। उनकी करुण कहानी सुनकर विष्णु और शंकर के मुख से तेज प्रकट हुआ। इसी प्रकार का तेज अन्य देवताओं के शरीर से भी निकला। यह सब एक होकर देवी रूप में परिणित हुआ। इस देवी ने महिषासुर और उनकी सेना का नाश किया। देवताओं ने अपना अभीष्ट प्राप्त कर, देवी से वर मांगा। ’जब-जब हम लोगों पर विपत्तियां आएं, तब-तब आप हमें आपदाओं से विमुक्त करें और जो मनुष्य आपके इस चरित्र को प्रेमपूर्वक पढ़ें या सुनें वे संपूर्ण सुख और ऐश्वर्यों से संपन्न हों।’ महिषासुर को मार कर देवी ‘महिषासुरमर्दिनी’ कहलाईं।
उत्तम चरित्र - उत्तम चरित्र में परानिष्ठा ज्ञान के बाधक आत्म-मोहन, अहंकार आदि के निराकरण का वर्णन है। पूर्व काल में शुंभ और निशुंभ नामक दो असुर हुए। उन्होंने इन्द्र आदि देवताओं पर आधिपत्य कर लिया। बार-बार होते इस अत्याचार के निराकरण के लिए देवता दुर्गा देवी की प्रार्थना हिमालय पर्वत पर जाकर करने लगे। देवी प्रकट हुई और उन्होंने देवताओं से उनकी प्रार्थना करने का कारण पूछा। कारण जानकर देवी ने परम सुंदरी ’अंबिका’ रूप धारण किया। इस सुंदरी को शुंभ-निशुंभ के सेवकों चंड और मुंड ने देखा। इन सेवकों से शुंभ-निशुंभ को सुंदरी के बारे में जानकारी मिली और उन्होंने सुग्रीव नामक असुर को अंबिका को लाने के लिए भेजा। देवी ने सुग्रीव से कहा, ’जो व्यक्ति युद्ध में मुझ पर विजय प्राप्त करेगा, उसी से मैं विवाह करूंगी।’ दूत के द्वारा अपने स्वामी की शक्ति का बार-बार वर्णन करने पर देवी उस असुर के साथ नहीं गई। तब शुंभ-निशुंभ ने सुंदरी को बलपूर्वक खींचकर लाने के लिए धूम्रलोचन नामक असुर को आदेश दिया। धूम्रलोचन देवी के हुंकार मात्र से भस्म हो गया। फिर चंड-मुंड दोनों एक बड़ी सेना लेकर आए तो देवी ने असुर की सेना का विनाश किया और चंड-मुंड का शीश काट दिया, जिसके कारण देवी का नाम ’चामुंडा’ पड़ा। असुर सेना का विनाश करने के बाद देवी ने शुंभ-निशुंभ को संदेश भेजा कि वे देवताओं को उनके छीने अधिकार दे दें और पाताल में जाकर रहें, परंतु शुंभ-निशुंभ मारे गए। रक्तबीज की विशेषता थी कि उसके शरीर से रक्त की जितनी बूंदें पृथ्वी पर गिरती थीं, उतने ही रक्तबीज फिर से उत्पन्न हो जाते थे। देवी ने अपने मुख का विस्तार करके रक्तबीज के शरीर का रक्त को अपने मुख में ले लिया और असुर का सिर काट डाला। इसके पश्चात शुंभ और निशुंभ भी मारे गए और तब देवताओं ने स्तुति की-
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरी विनाशम्।।
          हमें यह विचार करना ही होगा कि पूजा-अर्चना द्वारा हम देवी के इन चरित्रों का आह्वान करते हैं तो फिर देवी के इन चरित्रों से प्रेरणा ले कर उन लोगों पर शिकंजा क्यों नहीं कस पाते हैं जो असुरों जैसे कर्म करते हैं? क्या हम इन प्रेरक कथाओं के मर्म को समझ नहीं पाते हैं अथवा समझना ही नहीं चाहते हैं? बहरहाल, एक और रोचक कथा है- राजा सुरथ और समाधि वैश्य दोनों ने देवी की आराधना की। देवी की कृपा से सुरथ को उनका खोया राज्य और वैश्य का मनोरथ पूर्ण हुआ। उसी प्रकार जो व्यक्ति भगवती की आराधना करते हैं उनका मनोरथ पूर्ण होता है। ऐसी मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती के केवल 100 बार पाठ करने से सर्वार्थ सिद्धि प्राप्त होती है। इस मान्यता को व्यवहारिकता में ढालते हुए   यह मां दुर्गा की सच्ची स्तुति होगी।
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