चर्चा प्लस
क्या उनकी आत्मा उन्हें कभी धिक्कारती नहीं?
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
उन बच्चों को खांसी आ रही थी। मां-बाप ने दवा समझ कर जो कफ सिरप उन्हें पिलाया वह ज़हर निकला। खांसते, तड़पते बच्चे मौत की नींद सो गए। बच्चों की खांसी खतम नहीं हुई बल्कि उनकी किडनी गलने लगी। बाज़ार जागता रहा। नफ़े की दरिया बहती रही। मां-बाप के सपने उसमें डूबते रहे। यदि बात मीडिया तक नहीं पहुंची होती तो मौत का बाज़ार यूं ही गर्म रहता। सिरप लिखने वाले डाक्टर पकड़े गए। सिरप बेचने वाले दूकानदार पकड़े गए। मगर उनका क्या जिन्होंने ऐसे सिरप बनाए और उनका क्या जिन्होंने क्वालिटी टेस्ट में बेझिझक ‘‘ओके’’ सर्टीफिकेट दे दिया। वे ड्रग इंस्पेक्टर, ड्रग अधिकारी और उनको बचाने वाले उनके आका, उन सबको चैन की नींद कैसे आती होगी? क्या उनकी आत्मा उन्हें कभी धिक्कारती नहीं?
राजस्थान और मध्य प्रदेश में कफ सिरप पीने से कई बच्चों की मौत हो गई और कई बच्चे गंभीर रूप से बीमार हैं। इसके बावजूद, राजस्थान की सरकार मानने को ही तैयार हुई कि बच्चों की मौत कफ सिरप पीने से हुई है। कफ सिरप में गड़बड़ी के चलते 2019 में जम्मू-कश्मीर में 19 बच्चों की मौत हो गई थी। साथ ही, गांबिया और उज्बेकिस्तान में भी कई बच्चों की मौत हुई थी। तब भी जांच में गड़बड़ी पाई गई थी, लेकिन प्रदेशिक सरकारें इन मौतों पर पर्दा डालने का पूरा प्रयास करती रही, जब तक कि मीडिया सजग नहीं हो गया।
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कफ सिरप पीने से 11 बच्चों की मौत के बाद राज्य सरकार ने सख्त कदम उठाए। सिरप का सुझाव देने वाले डॉक्टर और सिरप निर्माता कंपनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। डॉ. प्रवीण सोनी को गिरफ्तार कर लिया गया। तमिलनाडु की दवा निर्माता कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स के खिलाफ मामला दर्ज होने के बाद, विशेष जांच दल-एसआईटी तमिलनाडु में मामले की जांच करेगा। इस बीच, जारी एक रिपोर्ट में कोल्ड्रिफ सिरप में हानिकारक डायएथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा 48 दशमलव 6 प्रतिशत पाई गई है। बीते एक महीने में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 11 और राजस्थान में तीन बच्चों की मौत के बाद दोनों राज्यों में बाल स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इन बच्चों के परिवार का कहना है कि कफ सिरप पीने के बाद बच्चों का स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ा और उन्हें बचाया नहीं जा सका। मध्य प्रदेश ड्रग कंट्रोल विभाग ने शनिवार सुबह तमिलनाडु में बनने वाली कोल्ड्रिफ कफ सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीं पुलिस ने सरकारी डॉक्टर प्रवीण सोनी, कफ सिरप बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मास्युटिकल्स के संचालकों और अन्य लोगों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गई। यह कार्रवाई 5 अक्तूबर को परासिया ब्लॉक के चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अंकित सहलाम की शिकायत पर हुई।
कोल्ड्रिफ कफ सिरप पीने से शिशुओं और बच्चों की मौत का मामला बढ़ता ही गया। मध्य प्रदेश और राजस्थान में इस सिरप को पीने से कई बच्चों ने अपनी जान गंवा दीं। मासूमों के माता-पिता गहरे सदमें में हैं। उनके लिए यह विश्वास करना कठिन है कि जिसे वे अमृत समझ कर अपने बच्चों को पिला रहे थे, वह घोर हलाहल विष था। इस सिलसिले में बैतूल के कलमेश्वरा गांव के कैलाश यादव के बच्चे की मौत भी 8 सितम्बर को हुई थी। कैलाश अपने 3 साल 11 माह के बेटे कबीर की सर्दी खांसी होने पर छिंदवाड़ा के परासिया के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ प्रवीण सोनी के पास 24 अगस्त को इलाज के लिए ले गए थे। डाक्टर ने उसे सर्दी खांसी के कोल्ड्रिफ सिरप सहित अन्य दवाएं लिखी थी। इन दवाइयों के उपयोग के बाद बच्चे की तबीयत और बिगड़ गई। इसके बाद उसका तीन अस्पतालों में इलाज कराया गया लेकिन 8 सितम्बर को मौत हो गई। कैलाश यादव ने हर संभव प्रयास किया कि उसका बेटा बच जाए। डॉ प्रवीण सोनी के द्वारा कोल्ड्रिफ सिरप लिखे और पिलाए जाने के बाद बच्चे की तबीयत ज्यादा बिगड़ गई। तब उसे दूसरे क्लिनिक में भेजा गया। दूसरे क्लिनिक वाले ने बताया कि बच्चे की किडनी धीरे-धीरे खराब हो रही है। इसके बाद उसका इलाज चार अस्पतालों में कराया लेकिन कैलाश अपने बेटे को बचा नहीं सके। उन्हें बेटे के इलाज के लिए अपनी जमीन भी गिरवी रखनी पड़ी। उनके हजारों रुपए खर्च हो गए। कैलाश यादव के अनुसार कुल मिलकर साढ़े चार लाख का खर्च आया, फिर भी बेटा बच नहीं सका। वह उनका अकेला बेटा था। एक बाप के लिए इससे बढ़कर कष्टप्रद और क्या हो सकता है कि उसे अपने बेटे को तिल-तिल कर के मरते हुए देखना पड़े। कैलाश यादव ने जांच टीम को कोल्ड्रिफ सीरप की शीशी सौंपी जिसमे थोड़ी सी दवाई बची थी। इसके अलावा दो अन्य दवाओं की शीशी भी उन्होंने दी जिसको लैब भेजा गया है। यह एक बाप की व्यथा-कथा है जबकि सिरप के कारण मरने वाले बच्चों की संख्या डेढ़ दर्जन से अधिक है।
अमानवीयता की हद ये कि मध्यप्रदेश में 16 बच्चों की जान लेने वाला कोल्ड्रिफ सिरप किसी दवा फैक्ट्री में नहीं, बल्कि एक जहरघर में बना था जहां घरेलू गैस चूल्हों पर केमिकल उबाले जा रहे थे। प्लास्टिक पाइपों से जहरीला तरल टपक रहा था और बिना दस्ताने, बिना मास्क के मजदूर मौत का सिरप घोल रहे थे। जंग लगे उपकरण, गंदगी, खुली नालियां, दीवारों पर फफूंदी, कोई एयर फिल्टर नहीं, कोई लैब नहीं, कोई सुरक्षा सिस्टम नहीं। जांचकर्ताओं ने 39 गंभीर और 325 बड़ी खामियां दर्ज कीं। जांच में खुलासा हुआ कि कांचीपुरम की श्रीसन फार्मास्यूटिकल्स ने इस सिरप को बनाने के लिए इंडस्ट्रियल ग्रेड केमिकल चेन्नई के स्थानीय डीलरों से नकद और जीपे से खरीदे, वो भी बिना किसी जांच या अनुमति के। यानि सिरप में इस्तेमाल होने वाले अहम रासायनिक तत्व प्रोपाइलीन ग्लाइकॉल को किसी प्रमाणित दवा सप्लायर से नहीं बल्कि पेंट और केमिकल व्यापारियों से लिया था, वो भी बिना किसी परीक्षण के। यह कैसे संभव हो पाया? उस समय वे सारे जांचकर्ता कहां थे जिनकी जिम्मेदारी किसी भी दवा के निर्माण प्रक्रिया पर ध्यान रखने की है? दरअसल लाइसेंसधारी दवा निर्माता इंडस्ट्रियल केमिकल से बच्चों की दवा बना रहे थे और देश का नियामक तंत्र बस तमाशा देख रहा था। जांच विशेषज्ञों के अनुसार इस सिरप में पाया गया 48.6 प्रतिशत डाइएथिलीन ग्लाइकॉल वही रासायनिक जहर है जो पेंट और एंटीफ्रीज में इस्तेमाल होता है। यही जहर बच्चों की दवा बनकर उनके गले से नीचे उतरा और सीधे किडनी फेल कर गया। इलाज के नाम पर दी गई इस दवा ने 16 मासूमों की सांसें छीन लीं। तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डायरेक्टरेट की 3 अक्टूबर 2025 की जांच रिपोर्ट में बताया गया कि कोल्ड्रिफ सिरप में 48.6 फीसदी डाइएथिलीन ग्लाइकॉल मिला था वही इंडस्ट्रियल सॉल्वेंट जो पेंट और एंटीफ्रीज में इस्तेमाल होता है। यही जहरीला सिरप छिंदवाड़ा में बुखार और खांसी से पीड़ित बच्चों को दिया गया, जो इलाज नहीं बल्कि मौत का फरमान साबित हुआ।
1 और 2 अक्टूबर को जब देश में नवमीं और दशहरा मनाया जा रहा था तब फैक्ट््री पर छापा मार का भयावह सच का सामना किया जा रहा था। क्या इसके लिए सिर्फ दवा कंपनी जिम्मेदार है? क्या सिर्फ डाक्टर जिम्मेदार हैं? या वह पूरा तंत्र जिम्मेदार है जो ऐसे घातक निर्माण के प्रति आंखे मूंदे बैठा रहता है। सारा मामला प्रकाश में आने के बाद जितना शोर मीडिया ने मचाया और अदालत ने संज्ञान में लिया उतना न तो आम जनता ने इसे गंभीरता से लिया और न राजनीतिज्ञों ने। त्वरित प्रतिक्रिया के रूप में कहीं कोई कैंडल मार्च नहीं हुआ और ना ही आमजन की ओर से बड़ी प्रतिक्रिया सामने आई। अभी भी न जाने कितने मानक नियमों का उल्लंघन करते हुए जीवन से खिलवाड़ कर रहे होंगे किन्तु स्वार्थ एवं चेतनाहीनता की पराकाष्ठा ने आंखों पर पर्दा डाल रखा है।
हाल ही में शरद पूर्णिमा के अवसर पर मिठाइयों में काम आने वाला मावा कई स्थानों पर बिकता हुआ अमानक स्तर का ही नहीं वरन जहरीले स्तर का पाया गया। जहर के सौदागरों का ऐसा साहस कैसे हो जाता है? स्पष्ट है कि लम्बी कानून प्रक्रिया और अपने आकाओं का भरोसा उन्हें दुस्साहसी बनाए रखता है और वे दूसरों के स्वास्थ्य एवं जान से खिलवाड़ करते रहते हैं।
निठारी कांड को हो सकता है कि कई लोगों ने भुला दिया हो किन्तु जिन लोगों ने नहींे भुलाया आज भी उन्हें उन मासूम बच्चों की सिसकियां परेशान करती होंगी। लेकिन शायद बच्चों के जीवन से खेलने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। वे शायद चैन की कहरी नींद सोते होंगे। वरना ऐसा जघन्य अपराध करने से पहले वे सौ बार सोचते। उस प्रशासन तंत्र को भी सोचना चाहिए कि मासूम बच्चों की मौत पर खड़े किए गए भविष्य के महल कभी टिक नहींे पाते हैं, वे एक दिन भरभरा कर ढह जाते हैं। अफसोस कि इससे पहले वे दर्जनों मासूमों से उनके जीवन का अधिकार छीन चुके होते हैं। मासूम बच्चों के माता-पिता के सुनहरे सपनों को रौंद चुके होते हैं। क्या ऐसे लोगों को जो मासूम बच्चों की मौत के जिम्मेदार हैं उन्हें फांसी नहीं तो कम से कम आजन्म कारावास जैसा कठोर दण्ड तो मिलना ही चाहिए। दण्ड की एक मिसाल जरूरी है इस तरह के बाकी अपराधियों को सबक सिखाने के लिए। वरना ऐसे अपराधी अपराध कर के भी चैन की नींद सोते रहेंगे और अभागे मां-बाप अपनी संतानों को असमय खो कर पीड़ा के साथ जीवन भर जागते रहेंगे। आमजन और प्रशासन दोनों को अपनी सजगता का परिचय देने की जरूरत है यदि वे अपनी भावी पीढ़ी को सुरक्षित देखना चाहते हैं तो।
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