बतकाव बिन्ना की
भौत दिनां से इते फेर-बदल नईं भौ
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘भैयाजी का हो रओ?’’ मैंने भैयाजी के घरे घुसतई साथ उनसे पूंछी। बे भीतर के अंगना में खटिया डार के पांव पसारे परे हते। मोरी आवाज सुनी तो तुरतईं उठ बैठे।
‘‘अरे नईं, आप तो परे रओ। भौजी कां हैं?’’
‘‘हम इते आएं।’’ कैत भईं भौजी कमरा से बायरे निकर आईं। उनके हाथ में सरसों के तेल की शिशिया हती।
‘‘जे काए के लाने? का अचार-मचार डार रईं?’’ मैंने शिशियां की तरफी उंगरिया करत भई पूंछी।
‘‘इत्ते से करै तेल में काए को अचार डरहे? जा तो गोड़न में मलबे के लाने निकारो आए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘का हो गओ गोड़न में?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे, खीबई दुख रए। दिवारी, दिवारी, लेओ कढ़ कई दिवारी! मनो जा दिवारी ने प्रान ले लए। आज लौं हाथ-गोड़े दुख रए।’’ भौजी उतईं बैठत भई बोलीं।
‘‘आप का सोच रए भैयाजी?’’ मैंने देखी के भैयाजी कछू सोस-फिकर में परे।
‘‘हम जा सोच रए बिन्ना के कुल्ल टेम नईं हो गओ अपने इते कछू फेर-बदल भए?’’ भैयाजी ऊंसई सोचत भए बोले।
‘‘कां फेर-बदल? अबई तो दिवारी पे भौजी ने पूरो रूम सेट और पर्दा हरें बदलो रओ। आपने तो सोई उनको हाथ बंटाओ रओ पर्दा लगाबे में। आप इत्ती जल्दी भूल गए?’’ मैंपे भैयाजी से पूंछी।
‘‘अरे हम घरे के फेर-बदल की बात नोंई कर रए।’’ भैया जी बोले।
‘‘तो कां के फेर-बदल की कै रए?’’ मैंने पूछीं।
‘‘अब का बताए?’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘कछू तो बताओ!’’ मैंने कई।
‘‘तनक सोचियो बिन्ना, के जोन ने चार-पांच दफा पार्टी खों सीट दिलाई, जीत के दिखाओ, ऊको आज लौं कोनऊं मंत्री की कुर्सी ने दई गई। तनक सोचो के ऊके दिल पे का बीतत हुइए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो आप सई कै रए, मनो जे खयाल आपके लाने कां से आओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘का भओ के हम दिवारी मिलबे के लाने गए हते एक विधायक जू के इते। उते लोगन ने उने बधाई देत भई कई के आप जल्दी से मंत्री बन जाओ। हमने कई के मंत्री काए? हम तो चात आएं के जे मुख्यमंत्री बनें। जा सुन के वे विधायक जू दुखी होत भए बोले के जे इत्ती बड़ी दुआ दे देत हो, जेई से तो हम मंत्री लौं नईं बन पा रए। हमने कई हम छोटी काए सोचें? हम तो जो चात आएंे बई दुआ करहें। फेर बात नाएं-माएं की होन लगी। हम सोई उते से चले आए। मानो हमाए जी में जा फांस टुच्च रई के उने अबे लौं कोनऊं मंत्री पद काए नईं दओ गओ? फेर हमें खयाल आओ के अपने इते तो कुल्ल टेम से मंत्रीमंडल में फेर-बदल नईं भओ।
‘‘देखो भैयाजी! पैली बात तो जे के सबई पार्टी में हाई कमान की चलत आए। जब ऊपरे से कओ जाहे तभई कछू फेर-बदल हुइए। औ दूसरी बात के का पता कओ हाई कमान ने उनके लाने कछू अच्छो सो सोच रखो होए।’’ मैंने कई।
‘‘का पतो?’’ भैयाजी अनमने से बोले।
‘‘पतो तो कोनऊं खों नई परत आए भैयाजी! आप काए भूल रए के जोन ने इते पार्टी खों जिताओ, ओई खों एक दिनां के लाने बी मुख्यमंत्री की कुर्सी ने दई गई। फेर जोन ऊ टेम पे मंत्री हते उने आज कनारे लगा दओ गओ आए। उन ओरन की सोई सोचो के उनके दिल पे का बीतत हुइए?’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! जा तो सांची कै रईं तुम।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर भैयाजी, जा सोई सोचो के उन ओरन के जी पे का गुजरती हुइए जोन पार्टी के लाने मरत-कुटत रैत आएं औ जबे चुनाव टेम आत आए तो पैराशूट वारे टपक परत आएं। ने तो दल बदल वारे हाथ मार लेत आएं। औ वफादारन से कई जात आए के बे नओ मेहमान खों पलकां पे बिठाएं। ऐन टेम पे पार्टी बदरवे वारन की तो चांदी रैत आए। पैले बी घी चाटत रैत्ते औ बाद में बी घी की पिकिया मिल जात आए।’’ मैंने कई।
‘‘ईको कछू हल भओ चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘को करहे हल? मैंने पूछी।
‘‘जा पार्टी वारन खों सोचो चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बे काए के लाने सोचें? आपने कभऊं सुनो के बच्चा के रोए बिगैर ऊकी अम्मा ने ऊको दूद पिलाओ होए? अम्मा सोए तभई बच्चा खों दूद पिलात आएं जबके बा मों फार-फार के रोऊत आए।’’ भौजी बोल परीं। मनो उन्ने बात पते की कई।
‘‘सई कै रई भौजी! जिने कछू नईं मिल रओ, उने मों खोल के कछू तो मांगबो चाइए। औ खुद ने मांगे तो अपने आदमियन से कछू हल्ला कराएं।’’ मैंने कई।
‘‘ऐसे करे से बे बागी ने कहला जैहें? पता परी के जो कछू मिलो आए बा बी गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जा बी बात सई आए।’’ मैंने कई।
‘‘जेई लाने तो हम कै रए हते के ई के लाने खुद पार्टी खों सोचने चाइए औ कछू-कछू टेम पे फेर-बदल करो चाइए, जोन से सबई खों मौका मिल सके।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे राजनीति आए भैयाजी, कोनऊ अनवरसिटी को विभाग नोंई जां रोटेशन में विभागाध्यक्ष बनत रैत आएं। इते जो एक बार कुर्सी से जो उतरो ऊको फेर के बैठबे में खुदई डाउट रैत आए।’’ मैंने कई।
‘‘चलो भौत हो गई उन ओरन की चिन्ता अब तनक उने अपन ओरन की फिकर कर लेन देओ।’’ कैत भईं भौजी हंसन लगीं।
‘‘अपन ओरन की चिन्ता को कर सकत, काए से अपन ओरें अपनईं चिंता करबी नईं जानत। तभई तो दिवारी पे ऐसो पटाखा चलात आएं के सांस लेबो मुस्किल हो जात आए। जो जब अपन अपनी भली नईं सोच सकत तो दूसरे से काए की उमीद करो चाइए?’’ मैंने कई।
‘‘अब तुम आरे बी नेता हरों घांईं बात ने बदलो!’’ भैयाजी ने मों बना के कई औ फेर बे हंस परे।
भौजी औ मैं, हम दोई सोई हंस परे।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के ई प्राब्लम को कछू हल निकर सकत आए के नईं?
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