बतकाव बिन्ना की | जा तो खीबई बंदर बांट भई
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
आज संकारे मैं घरे झाड़ू-पोछा कर रई थी के मोए बायरे रोड पर कछू झगड़बे की सी आवाज सुनाई परी। मैंने झाड़ू माएं खों पटकी औ बायरे दौड़ी पता करबे खों। लग रओ तो के कौनऊं झगड़ रओ होए। मोए बा जानबे की मचमची सी भई।
बायरे निकरी तो देखी के रोड पे सब्जी को ठिलिया वारो ठाड़ो हतो औ कछू लोग ऊको घेर-घार के ऊसे कछू पूछ रए हते औ बा सोई जोर-जोर से हात मटकात भओ कछू कै रओ तांे। उते की कचर-कचर में मोए कछू साफ समझ ने पर रई ती, सो मैं सोई ठिलिया के इते बढ़त गई। उते पौंच के देखो तो मोए भौजी औ भैयाजी सोई ठाड़े दिखाने। मोए लगो के होए ने होए कछू गंभीर बिधौना बिधो आए।
‘‘काए भौजी, का हो गओ?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘ने पूछो बिन्ना! आजकाल गरीबन खों पूछबे वारे कोनऊं नइयां, सबरे उने लूटबे वारे मिलहें।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो हो का गओ?’’ मैंने फेर के पूछी।
‘‘होने का, जे इनई बारे भैया से पूछ लेओ, जे खुदई बता रए।’’ भौजी मोसे बोलीं फेर बा सब्जी वारे मने बारे भैया से बोलीं,‘‘ तनक इने सोई बता देओ के तुमाए संगे का लूट करी गई। हो सकत आए के जे कोनऊं से कै बोल के तुमाओ काम बनवा देवें।’’
भौजी की बात मोए ठीक ने लगी, काय से आजकाल कोनऊं को काम कराबे से आसान तो ऊके घर के बासन मांज देबो आए। काए से के खुद जो करने होए सो कर देओ, मनो दूसरे से काम कराबो सबसे टेढ़ी खीर आए। बाकी बा बारे भैया मोए सुनान लगे अपनी ब्यथा।
‘‘दीदी जू का बताएं, हमाए संगे बड़ो अन्याय भओ आए।’’ बोर भैया बोले।
‘‘का हो गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘हम ठैरे गरीब आदमी। घरे दो मोड़ीं औ एक मोड़ा आए। हमाई मताई सोई हमाए संगे रैत आएं। गांव में तो हमाओ अपनो घर रओे, मनो बा सब चाचा हरों ने छुड़ा लओ औ हमाए बापराम के गुजरबे के बाद हम ओरन खों बायरे मैक दओ। जेई से तो हम इते चले आए। किराए के मकान में रैत आएं। मकान काए, एक कुठरिया आए। नहाबे के लाने लौं हमने लुगाई की धुतिया बांध के गुसलखानो बना रखो आए। जे ठिलिया सोई किराए की आए। पर की पिछली साल हमें कोऊं ने बताओ रओ के गरीबन के लाने सरकार ने मकान बनाए आएं औ भौत कम पइसा में दए जा रए आएं। ऊके लाने फारम भरने रओ। सो हमने सोई फारम भरवा के जमा कर दओ रओ। हमें तो फारम भराए के बी पइसा लग गए रए। काए से हम तो इत्ते पढ़े-लिखे नोंई।’’ बारे भैया बीच में एक जनी खों सकला के दाम बतान लगे।
‘‘फेर का भओ?’’ हमने पूछी।
‘‘होने का रओ, कछू मईना बाद पता परी के बे मकान तो बिक गए। ने तो हमाओ नंबर लगो औ ने हमाई बा चिन्हारी वारे को। सो हम अपने चिन्हारी वारे के संगे ऊ दफ्तर पौंचे जां फारम जमा करो रओ। उते हमें बताओ गओ के बा मकान तो उन ओरन खों दे दए गए जोन हमसे बी ज्यादा गरीब हते। हम दोई अपनों सो मों ले के आ गए। मनो आज सुभै पता परी के बा उते तो बड़ी धांधली करी गई। बे बाबू हरन ने खुदई मकान हथिया लए औ किराए दे दए। अब आपई बताओ के बे बाबू हरें औ उनके रिस्तेदार का हम ओरन से ज्यादा गरीब रए? बताओ! आपई बताओ!’’ बारे भैया बमकत भए बोले।
‘‘हऔ भओ तो गलत आए। जा तो खीबईं बंदरबाट भईं। मनो तुमें कोन ने बताओ जा सब?’’ मैंने पूछी।
‘‘बे उते चक्की वारे जैन साब ने अखबार में पढ़ के हमें बताई। हमाओ तो तभई से खून सो खौल रओ। कित्ते लबरा आएं साले हरें। चार पइसा के लाने गरीब को हक मारत आएं।’’ बारे भैया बोले।
‘‘हऔ बा तो हमने सोई देखी रई। बा व्हाट्सअप पे कोनऊं लोकल चैनल वारे ने वीडियो डारी रई। ऊमें नगर निगम कमिश्नर सोई दिखा रए हते। उन्ने दो बाबुअन खों सस्पेंड सोई कर दओ आए। हो सकत के फेर के फारम भराएं जाएं। ऐसो होए सो फेर के भर दइयो। काय से के अबई जा मामलो खुलो आए, सो इत्ती जल्दी फेर के गड़बड़ी ने हुई। औ अब तो कमिश्नर साब खुदई पौंच गए, सो गड़बड़ होबे को औ डर नइयां।’’ मैंने बारे भैया खों समझाई।
‘‘हऔ, जा आपने ठीक कई दीदी जू! हम ऐसई करबी। एक दार फेर के फारम भर देबी। अब बीस पचीस रुपैया फारम भराबे के लग जैहें, सो लग जैहें। का करो जा सकत आए।’’ बारे भैया बोले।
‘‘अरे, काए खों लग जैहें? हमाए पास ले आइयो, हम भर देबी तुमाओ फारम।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जा ठीक रैहे।’’ मैंने सोई हामी भरी।
ईके बाद बारे भैया तो तनक सहूरी बांध के आगे बढ़ गए, बाकी हम ओरे दो-चार जने ओई के बारे में बतकाव करन लगे।
‘‘जे अपने इते को जाने कब भ्रष्टाचार मिटहे!’’ शर्मा जी अपनो मूंड़ खुजात भए बोले। सो तिवारन भौजी बोलीं के ‘‘कभऊं नईं मिटने! अपने इते एक से बढ़े के एक खउआ बैठे।’’
‘‘हऔ, तनक चुनाव के टेम पे देखो, जब उम्मींदवारन की जायदाद के फारम भरे जात आएं तो ऊ टेम पे सब कंगला बन जात आएं। औ जो कभऊं ईडी को छापो परत आए तो उन ओरन की बेनामी संपत्ति को खुलासो होत आए।’’ शर्मा जी बोले।
‘‘सई कै रए आप। जां अपनो फायदो दिखों वां का अफसर औ का नेता, सबरे एक हो जात आएं। सबई एक-दूसरे की ढांकत फिरत आएं। बा तो कभऊं कभऊं कोऊं जाच-परताल के लाने निकर परत आए। ने तो अपनो देस सई ने हो जातो?’’ मैंने कई।
‘‘ई टाईप की जांचें तो सबई जांगा होनी चाइए। जो ऐसो होन लगे तो सबई की पोलें खुल जाएं।’’ तिवारन भौजी बोलीं।
‘‘चलो, चल के सब्जी सोई बना लई जाए।’’ कैत भईं भौजी चलबे को हुईं। मैंने सोई अपने घरे की गैल लई।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के जो परसासन के नाक के नैंचे ऐसो घोटालो होत रैत आए, सो ऐसे में गरीबन को भलो कां से हुइए?
---------------------------
बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
---------------------------
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #batkavbinnaki #bundeli #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat
No comments:
Post a Comment