बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
कई होती तो घरे बनवा देते आपके लाने
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘काए बिन्ना कां हो आईं?’’ फुआ ने पूछी। भैयाजी की फुआ मनो मोरी फुआ। हप्ता-खांड से बे इतई ठैरीं, भैयाजी के यां। रोजई से उनसे मिलनो होत रैत आए, सो जो एक दिनां मैं उनके लिंगे ने पौंची तो बे पूछन लगीं।
‘‘दमोए गई रई।’’ मैंने फुआ को बताओ।
‘‘काए के लाने?’’ फुआ ने पूछी।
‘‘उते मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी को एक कार्यक्रम रओ, बुंदेली पे।’’ मैंने उने बताओ।
‘‘बुंदेली पे?’’ उने सुन के तनक अचरज भओ।
‘‘हऔ! का आए के आजकाल बुंदेली बोलबो कम भओ जा रओ, सो जेई के लाने बतकाव रई के का करो जाए जीसें बुंदेली बोलबे को चलन बनो रए।’’ मैंने फुआ को बताओ।
‘‘हऔ, जा बात तो ठीक आए। काए से हम ओरे तो बुंदेली बोलत आएं, मनो आजकाल के लड़का बच्चा बुंदेली का सई से हिन्दी नईं बोल पात आएं।’’ फुआ बोलीं। बाकी उन्ने बात पते की कई।
‘‘आजकाल बुंदेली की रीलें औ नाच-गाने सोई चलत आएं सोसल मिडिया पे।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, ईपे सोई उते बतकाव भई। काए से के रीलन में और नाच-गाने में फुहड़याई सोई चलन लगी आए।’’ मैंने कई।
‘‘फेर का सोचो गओ उते?’’ फुआ ने पूछी।
‘‘सोचबे को का रओ उते? एक दार सोचबे में कोनऊं हल थोड़े निकरहे। ईके लाने सबई जनों खों कछू ने कछू काम करने परहे।’’ मैंने कई।
‘‘जा तो सई आए। मनो औ का भओ उते?’’ फुआ ने पूछी।
‘‘औ ुदपाी को भोजन उतई पे रओ सो, सबने ने मिल के जीमों। अच्छो सो लगो। काय से के ऐसो मिलबे को मौको कभऊं-कभऊं आऊत आए। बाकी एक मजे की बात भई।’’ मैंने कई।
‘‘का भई? तनम हमें सोई बताओ।’’ फुआ ने पूछी।
‘‘हऔ, हम सोई तनक सुन लेवें!’’ भौजी सोई बोली।
‘‘का भओ के दमोए में मोरे एक चिन्हारी वारे रैत आएं। उनसे भेंट भई तो बे बड़े अच्छे से मिले। फेर दुपारी में भोजन को टेम भओ तो भोजन के लाने सबईखों लेन में लगने परो। काए से के बुफे को सिस्टम रओ। ई टाईप से लेन में लगबे को सोई अपनो मजो रैत आए। सो, मैं सोई लेन में ठाड़ी हो गई। मैं औ मोरी संगवारी बैन हरें जो कऊं भोपाल से आई रईं, तो कोनऊं टीकमगढ़ से। सो, हम आरें लेन में ठाड़ी रईं। इत्ते में उते से हमाए बेई चिन्हारी वारे भैया निकरे। उन्ने बताई के बे जा रए, काए से के उने कोनंऊं की गमी में जाने हतो। मैंने कई के आपखों जरूर जाओ चाइए। जेई सब बतकाव कर के बे उते से कढ़ लिए। मैं लेन में लगी रई औ जब नंबर आओ तो अपनी प्लेट में खाबे को आइटम रख लओ। मनो आइटम अच्छे रए। सन्नाटा सो मोए सबसे ज्यादा पोसाओ। हम ओरन ने सबने हंसी-ठठ्ठा कर भए अच्छे से जीमों औ फेर बैठ के बतकाव करन लगे। कछू देर में मोरे उनईं चिन्हारी वारों को फोन आओ सो बे पूछन लगे के आपकेा खाना भओ के नईं? मैंने कई हो गओ। सो बे कैन लगे के उते से निकरत समै हमसे जा गलती हो गई के हमने आप से जा ने पूछी के आपके लाने का घरे खाना बनवा दें? मैंने उनसे कई के भैया, बा की कोनऊं जरूरत ने हती, काए से के इते इत्तो अच्छो भोजन को इंतजाम रओ। औ ऊपे सबके संगे खाबे को मजोई दूसरो रैत आए। सो उन्ने कई के फेर बी हमें पूछो चाइए तो जो खाबे की आपने कई होती तो घरे बनवा देते आपके लाने। मैंने उनसे कई के जो जरूरत होती तो मैं कै देती। मनो मनई मन मैं सोची के उनसे पूछो जाए के भैया, काए घड़ी देख रए हते का के कबे खाना निबटे औ कबे खाना बनवाबे की बात करी जाए।’’ बतात-बतात मोए हंसी आन लगी।
‘‘सई में जो अच्छो के उने ख्वाने ने हतो बाकी पूछ के जे पक्को करने रओ के काल को कैबे को ने रए के पूछो नईं।’’ फुआ सोई हंसन लगीें।
‘‘जेई तो आए फुआ! धजी में ने अजी में, नोनी दुलैया सजी में।’’ मैंने कई।
‘‘बा सो सब ठीक आए, बाकी जे जो तुम बतकाव कर रई, बा उने पता परी तो बे का सोचहें?’’ भौजी ने फिकर करी।
‘‘ने कछू! बे का सोचहें? सई तो सई आए। सच बोले में डराबे को का?’’ मैंने कई।
‘‘अरे, एक दार हम ओरन के संगे सोई ऐसई भओ।’’ फुआ बतान लगीं, ‘‘का भओ के हम ओरें घूमबे के लाने बनारस गए। उते हमाए दूर के एक रिस्तेदार रैत्ते। उनसे फोन पे बात भई तो बे बोले के आप ओरें कल दुपारी को हमाए इते खाबे पे आओ। हम ओरन ने सोची के चलो अच्छो आए, जेई बहाने से उन ओरन से मिलबो हो जैहे औ रिस्तेदारी में एक मोड़ी के लाने मोड़ा ढूंढबे की सोई चल रई हती, सो हम ओरन ने सोची के जेई बहाने बा बात बी हो जाहे। सो हम ओरें दूसरे दिनां उनके इते पौंचे। उन्ने अच्छे से बिठाओ। पानी को पूछो। फेर चाय-माय चली। जेई करत-करत कुल्ल देर हो गई। हम ओरें भोजन के लाने परखे, औ उते कोनऊं भोजन की बातई ने कर रओ हतो। तुमाए फूफा जू से ने रओ गओ। सो उन्ने बात घुमा के कई के हम ओरने खों निकरने सोई आए सो भोजन के लाने तनक जल्दी करा देओ। जा सुन के उनकी घरवारी बोली के जा तो इन्ने हमें बताओ नईं के आप ओरन को खाना सोई इन्ने रखो आए, ने तो हम तो अबे लौं बना के परसई देते। अपनी घरवारी की सेन के बे भैयाजू कैन लगे के हमने तुमें बताई तो रई। तुम हमाई बात सुनतईनइयां। उन ओरन की झिकझिक सुन के तुमाए फूफा जू को मुंडा खराब हो गओ। बे बोले के अब नई बनो खाना तो रैन देओ, हमाए लिंगे बी टेम नइयां खाबे खों। औ बे उठ खड़े भए। हमें सोई बुरौ लगो। सो हमने सोई कै दई के अच्छो रओ के हमने आप ओरन से मोड़ी के रिस्ता के लाने ने कई ने तो आप ओरें जाने कोन टाईप को मोड़ा ढूंढते। अब चाए हमाई बात उने बुरई लगी होय, सो लगी रए, हमाई बला से।’’ फुआ बोलीं।
‘‘सो फेर आप ओरन के भोजन को का भओ?’’ भौजी ने फुआ से पूछी।
‘‘होने का रओ? उनके इते से उठे सो सीधे एक होटल में पौंचे। उते भरपेट खाओ तब कईं जां में जां आई। हम ओरें मरे जा रए ते भूक से।’’ फुआ बोलीं।
‘‘सई में फुआ, खाबे-पीबे में चतुराई ने दिखाओ चाइए।’’ मैंने हंस के कई।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़िया हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के जो कोनऊं पाउना आए सो ऊके संगे ऐसो करो जाओ चाइए के नईं?
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