Dr (Miss) Sharad Singh |
बुंदेलखंड की काव्यात्मक कहावतों में जीवन की सच्चाई
- डॉ. शरद सिंह
- डॉ. शरद सिंह
(नवभारत में प्रकाशित)
कहावतें जीवन का सबसे रोचक पक्ष होता है। कहावतों के माध्यम से वह सब कुछ संक्षेप में कह दिया जाता है जो शिक्षाप्रद होता है लेकिन सुनने वाले को यह झुंझलाहट नहीं होती है कि उसे कोई सीख दी जा रही है। कहावतें अनुभव से उपजती हैं। उनका कोई रचयिता अथवा लेखक नहीं होता है। प्रत्ये क्षेत्र, प्रत्येक भाषा और प्रत्येक बोली की अपनी कहावतें होती हैं। बुंदेलखंड में भी अनेक कहावतें प्रचलित हैं। जिनमें कुछ गद्यात्मक कहावतें हैं तो कुछ काव्यात्मक। तुकबंदी में कही गई कहावतें और अधिक रोचक एवं असरदार हैं तथा इनमें जीवन के यथार्थ को बड़े ही सुंदर ढंग से व्यक्त किया गया है। ये कहावतें वाचिक परम्परा के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती हैं। ये सामाजिक जगत में व्यवहारिक ज्ञान के रूप में भी हमारे बीच उपस्थित रहती हैं। कहावतों का चुटीलापन उन्हें समसामयिक एवं कालजयी बनाता है।
Bundelkhand Ki Kavyatmak Kahavton Me Jeevan Ki Sachchai - Dr Sharad Singh, Navbharat, 26.09.2019 |
बुंदेलखंड की काव्यात्मक कहावतों में लोकनीतियां और व्यावहारिक ज्ञान के तत्व एक साथ मिलते हैं। इनमें स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान से ले कर लोक दर्शन तक, मौसम संबंधी ज्ञान से ले कर कृषि संबंधी ज्ञान तक इन कहावतों में मौजूद है। लोकविश्वास, इतिहास, परम्परा और सामाजिकता भी इन कहावतों में निहित है। इन काव्यात्मक कहावतों में भले ही साहित्यगत शास्त्रीयता देखने को नहीं मिलती हो किन्तु इनकी लयात्मकता और काव्यात्मकता देखते ही बनती है।
कहावतें मूलतः घटनाओं से जन्मती हैं। जब कोई घटना घटित होती है तो उस पर की गई टीका-टिप्पणी में से ही वे कथन जिनमें घटना का सार और शिक्षा रहती है, कहावत के रूप में स्थापित हो जाते हैं। जैसे बुंदेलखंड में प्रचलित यह काव्यात्मक कहावत है-
कंडा बीने लक्ष्मी,
हर जोतें धनपाल
अमर हते ते मर गए
नोने ठनठन गोपाल
इस कहावत के पीछे एक किस्सा प्रचलित है कि एक गांव में एक व्यक्ति था जिसका नाम था ठनठन। वह अपने नाम से असंतुष्ट था। एक दिन उसने अपने पिता से कहा कि मेरा नाम बदल दो। उसके पिता ने उससे कहा कि ठीक है जो नाम तुम्हें अच्छा लगे, मुझे बताओ। मैं तुम्हारा वही नाम रख दूंगा। ठनठन अपने लिए अच्छा नाम ढूंढने निकल पड़ा। उसे एक औरत मिली जो कंडा बीन रही थी। ठनठन ने उससे उसका नाम पूछा तो पता चला कि उसका नाम लक्ष्मी है। ठनठन चकित रह गया कि धन की देवी लक्ष्मी के नाम वाली गोबर का कंडा बीन रही है। कुछ दूर पर एक हलवाहा मिला उसने बताया कि उसका नाम धनपाल है और वह खेतिहर मजदूर है। कुछ दूर पर एक शवयात्रा मिली। पूछने पर पता चला कि मृतक का नाम अमर था। ठनठन समझ गया कि नाम अच्छा या बुरा नहीं अपितु कर्म अच्छे या बुरे होते हैं और वह नाम बदलने का इरादा त्याग कर वापस अपने पिता के पास लौट आया।
मौसम के परिवर्तन की सूचना देने वाली काव्यात्मक कहावतें भी बुंदेलखंड में प्रचलित हैं। जैसे यदि घड़े का पानी ठंडा न हो, चिड़ियां को धूल में नहाती दिखाई दें, चीटियां अपने अंडे एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाती दिखाई दें तो समझना चाहिए कि बारिश जम कर होगी। इस पर यह कहावत है-
कलसा पानी को तचौ, चिरई नहाए धूर
चिंटिया लै अण्डा चलैं, तौ बरसे भरपूर
बुंदेलखंड में घाघ और भड्डरी की कहावतों के अतिरिक्त लोकव्यवहार से उपजी अनेक कहावते हैं जिनमें स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों का एक अलग संसार है। ये कहावतें सरल शब्दों में स्वस्थ रहने के बुनियादी नुस्खे याद करा देती हैं। जैसे यह कहावत है-
दोऊ बेरा घूमै जो, तीन बेर जो खाय
बनौ निरोगी वो रहे, जो रोजई भोर नहाय
कहा जाता है कि वही ज्ञान उचित है जो सब के समझ में आए और जिससे सबका भला हो सके। कई बार ज्ञान का अनावश्क प्रदर्शन अथवा आडंबर में लिप्त अनावश्यक प्रयोग आतमघाती साबित होता है। इस संबंध में बुंदेलखंड में एक सटीक कहावत प्रचलित है। कहावत की कथा इस प्रकार है कि गांव का एक आदमी एक बार फारस देश गया। वहां उसने फारसी के चंद शब्द बोलने सीख लिए। जब वह वापस गांव आया तो वह उन्हीं शब्दों को बोल-बोल कर झूठी शान दिखानी शुरु कर दी। गांव के लोग चूंकि फारसी नहीं जानते थे अतः मुंह बाए उसे देखते रह जाते और वह अकड़ में फिरता रहता। एक दिन उसकी तबीयत खराब हो गई। उसे जोर का बुखार आ गया। बुखार में वह पानी-पानी के बदले ‘आब-आब’ कहले लगा। लोगों को समझ में नहीं आया कि वह क्या मांग रहा है? किसी ने उसे पानी नहीं दिया और वह प्यास से मर गया। कहावत देखिए-
फारस गये फारसी पढ़ आये, बोले वा की बानी
आब आब कह मर गए, धरो रै गओ पानी
जब दो ज्ञानवान व्यक्ति मिलते हैं तो उनके बीच ज्ञानभरी बातें होती हैं लेकिन जब दो मूर्ख मिलते हैं तो उनके बीच मूर्खता की बातें होती हैं। इस सत्य पर आधारित बड़ी ही रोचक कहावत है कि-
ज्ञानी से ज्ञानी मिलैं, करैं ज्ञान की बातें,
गदहे से गदहा मिलैं, होवै लातई लातें।
बुंदेलखंड में कहावतों का प्रचलन आज भी मौजूद है। भले ही नई पीढ़ी इन कहावतों का मर्म नहीं समझ पाती है क्योंकि उसका जीवन अनुभव इन कहावतों से अलग हैं फिर भी बुंदेली काव्यात्मक कहावतें जीवन की नई सच्चाइयों को आत्मसात करते हुए चलती रहेंगी।
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कहावतें मूलतः घटनाओं से जन्मती हैं। जब कोई घटना घटित होती है तो उस पर की गई टीका-टिप्पणी में से ही वे कथन जिनमें घटना का सार और शिक्षा रहती है, कहावत के रूप में स्थापित हो जाते हैं। जैसे बुंदेलखंड में प्रचलित यह काव्यात्मक कहावत है-
कंडा बीने लक्ष्मी,
हर जोतें धनपाल
अमर हते ते मर गए
नोने ठनठन गोपाल
इस कहावत के पीछे एक किस्सा प्रचलित है कि एक गांव में एक व्यक्ति था जिसका नाम था ठनठन। वह अपने नाम से असंतुष्ट था। एक दिन उसने अपने पिता से कहा कि मेरा नाम बदल दो। उसके पिता ने उससे कहा कि ठीक है जो नाम तुम्हें अच्छा लगे, मुझे बताओ। मैं तुम्हारा वही नाम रख दूंगा। ठनठन अपने लिए अच्छा नाम ढूंढने निकल पड़ा। उसे एक औरत मिली जो कंडा बीन रही थी। ठनठन ने उससे उसका नाम पूछा तो पता चला कि उसका नाम लक्ष्मी है। ठनठन चकित रह गया कि धन की देवी लक्ष्मी के नाम वाली गोबर का कंडा बीन रही है। कुछ दूर पर एक हलवाहा मिला उसने बताया कि उसका नाम धनपाल है और वह खेतिहर मजदूर है। कुछ दूर पर एक शवयात्रा मिली। पूछने पर पता चला कि मृतक का नाम अमर था। ठनठन समझ गया कि नाम अच्छा या बुरा नहीं अपितु कर्म अच्छे या बुरे होते हैं और वह नाम बदलने का इरादा त्याग कर वापस अपने पिता के पास लौट आया।
मौसम के परिवर्तन की सूचना देने वाली काव्यात्मक कहावतें भी बुंदेलखंड में प्रचलित हैं। जैसे यदि घड़े का पानी ठंडा न हो, चिड़ियां को धूल में नहाती दिखाई दें, चीटियां अपने अंडे एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाती दिखाई दें तो समझना चाहिए कि बारिश जम कर होगी। इस पर यह कहावत है-
कलसा पानी को तचौ, चिरई नहाए धूर
चिंटिया लै अण्डा चलैं, तौ बरसे भरपूर
बुंदेलखंड में घाघ और भड्डरी की कहावतों के अतिरिक्त लोकव्यवहार से उपजी अनेक कहावते हैं जिनमें स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों का एक अलग संसार है। ये कहावतें सरल शब्दों में स्वस्थ रहने के बुनियादी नुस्खे याद करा देती हैं। जैसे यह कहावत है-
दोऊ बेरा घूमै जो, तीन बेर जो खाय
बनौ निरोगी वो रहे, जो रोजई भोर नहाय
कहा जाता है कि वही ज्ञान उचित है जो सब के समझ में आए और जिससे सबका भला हो सके। कई बार ज्ञान का अनावश्क प्रदर्शन अथवा आडंबर में लिप्त अनावश्यक प्रयोग आतमघाती साबित होता है। इस संबंध में बुंदेलखंड में एक सटीक कहावत प्रचलित है। कहावत की कथा इस प्रकार है कि गांव का एक आदमी एक बार फारस देश गया। वहां उसने फारसी के चंद शब्द बोलने सीख लिए। जब वह वापस गांव आया तो वह उन्हीं शब्दों को बोल-बोल कर झूठी शान दिखानी शुरु कर दी। गांव के लोग चूंकि फारसी नहीं जानते थे अतः मुंह बाए उसे देखते रह जाते और वह अकड़ में फिरता रहता। एक दिन उसकी तबीयत खराब हो गई। उसे जोर का बुखार आ गया। बुखार में वह पानी-पानी के बदले ‘आब-आब’ कहले लगा। लोगों को समझ में नहीं आया कि वह क्या मांग रहा है? किसी ने उसे पानी नहीं दिया और वह प्यास से मर गया। कहावत देखिए-
फारस गये फारसी पढ़ आये, बोले वा की बानी
आब आब कह मर गए, धरो रै गओ पानी
जब दो ज्ञानवान व्यक्ति मिलते हैं तो उनके बीच ज्ञानभरी बातें होती हैं लेकिन जब दो मूर्ख मिलते हैं तो उनके बीच मूर्खता की बातें होती हैं। इस सत्य पर आधारित बड़ी ही रोचक कहावत है कि-
ज्ञानी से ज्ञानी मिलैं, करैं ज्ञान की बातें,
गदहे से गदहा मिलैं, होवै लातई लातें।
बुंदेलखंड में कहावतों का प्रचलन आज भी मौजूद है। भले ही नई पीढ़ी इन कहावतों का मर्म नहीं समझ पाती है क्योंकि उसका जीवन अनुभव इन कहावतों से अलग हैं फिर भी बुंदेली काव्यात्मक कहावतें जीवन की नई सच्चाइयों को आत्मसात करते हुए चलती रहेंगी।
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(नवभारत, 20.09.2019)
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