कोरोना संकट : डर के आगे जीत है
- डाॅ शरद सिंह
समय विपरीत है लेकिन
न टूटे हौसला देखो
न बढ़ने पाए संकट का
कि अब ये सिलसिला देखो
सागर में आंकड़ा सौ तक पहुंचना ही इस बात का साबूत है कि कहीं न कहीं चूक हुई है। वह भी जिम्मेदार लोगों से चूक हुई है। जिसमें आमजनता में मौजूद जिम्मेदार व्यक्ति भी शामिल हैं। लाॅक डाउन में ज़रा-सी छूट मिलते ही सड़कों पर भीड़ के रूप में निकल पड़ना। दूसरे शहर जाना और फिर लौट कर अपनी जांच कराने में कोताही बरतना। यह जानते हुए भी कि यदि व्यक्ति संक्रमित हो गया है तो वह स्वयं के ही नहीं अपने सगे-संबंधियों और परिचितों के लिए भी संकट का कारण बना रहा है। एक गैरजिम्मेदाराना हरक़त यह भी कि कन्टेन्मेंट क्षेत्र से सपरिवार पलायन कर दूसरे मोहल्ले में जा कर रहने लगना, वह भी पार्षद जैसे महत्वपूर्ण पद पर होते हुए। एक मोहल्ले में पार्षद की भूमिका उस मोहल्ले के पालक अथवा अभिभावक की भांति होती है। अब यदि अभिभावक ही लाॅकडाउन या कन्टेन्मेंट के नियमों का पालन नहीं करेगा तो उस मोहल्ले में किसी से धैर्य की आशा कैसे की जा सकती है?
Charcha Plus, Column of Dr (Miss) Sharad Singh in Dainik Sagar Dinkar, 27.05.2020 |
इस दौरान ज़िलास्तर पर प्रशासनिक फेरबदल भी हो गया है। अभी तक के कोरोना कार्यकाल में कार्यरत महिला कलेक्टर का स्थानांतरण भोपाल कर दिया गया और भोपाल से एक अन्य अनुभवी कलेक्टर ने आ कर कार्यभार सम्हाल लिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिला कलेक्टर ने कोरोना प्रभावित क्षेत्रों में भी जा कर स्थितियों को संज्ञान में लिया। आमजनता ने भी उनके इस साहसिक कार्यप्रणाली को पसंद किया। उनके जाने पर शोक भी मनाया। किन्तु अपनी प्रिय कलेक्टर का कहना कितना माना इसके लिए अपने ग़िरेबांम में झंाकना होगा। जब भी लाॅकडाउन में छूट दी गई तो आमजनता से कलेक्टर की यही अपेक्षा रही कि लोग डिस्टेंसिंग का पालन करें, अति आवश्यक होने पर ही घर से निकलें और कोरोना के विरुद्ध सारे सुरक्षा नियमों का पालन करें। यदि इस अपेक्षा का ध्यान रखा गया होता तो सागर में कोरोना पीड़ितों की संख्या शून्य से बढ़ कर सौ तक न जा पहुंचती। कहने का आशय है कि प्रशासनिक फेरबदल को ले कर शोक मनाने अथवा प्रसन्न होने से कहीं अधिक जरूरी है कोरोना के विरुद्ध सुरक्षा नियमों का पालन करना। कतिपय लोग ऐसे भी हैं जिन्हें प्रशासनिक अथवा जनहित कार्यों के लिए लाॅकडाउन में निकलने का जो पास मिला हुआ है, उसका बेज़ा उपयोग कर के जोखिम पैदा करते रहते हैं। चार पहिया वाहन में एक ड्राईवर और दो सवारी के नियम का उल्लघंन करते हुए परिवार के चार से छः सदस्यों को गाड़ी में बिठा कर निकल पड़ते हैं। यदि कोई रोकता है तो सरकारी पास की धौंस तो है ही। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि उनकी यह ‘ठसक’ एक दिन उनके सहित अनेक लोगों को मुसीबत में डाल सकती है।
जहां तक कोरोना संक्रमण के शहर में निरंतर बढ़ने का प्रश्न है तो यह मानना होगा कि हर स्तर पर एक न एक चूक होती जा रही है। शहर में एक नर्स कोरोना पाॅजिटिव निकली। हिस्ट्री टटोलने पर पता चला कि उस नर्स ने एक डिलेवरी करायी थी। जांच की कड़ी जब प्रसूता तक पहुंची तब वह प्रसूता भी कोरोना पाॅजिटिव निकली। यह प्रकरण कई प्रश्न खड़े कर गया कि क्या डाॅक्टर और नर्स को प्रसूता में कोरोना के लक्षण दिखाई नहीं दिए अथवा कहीं कोई और चूक हुई? क्या नर्स के संपर्क में आए सभी लोग कोरोना निगेटिव पाए गए हैं या यहां भी कोई कड़ी छूट रही है?
भले ही यह प्रशासन की गाईडलाईन है कि कोरोना प्रभावित का नाम उजागर नहीं किया जाए लेकिन इस गाईड लाईन का प्रत्यक्ष असर यही है कि किसी मोहल्ले में एक भी कोरोना पाॅजिटिव केस सामने आता है तो अफ़वाहों और दहशत का बाज़ार गर्म हो जाता है। आपसी चर्चा के दम पर जब तक लोगों को कोरोना पाॅजिटिव का पता चला पाता है तब तक उससे संपर्क में आए लोग सावधान नहीं हो पाते हैं। यदि कोरोना पाॅजिटिव का नाम आधिकारिक तौर पर नहीं छिपाया जाए तो उसके संपर्क में आए लोग तत्काल चैकन्ने हांे सकेंगे और तत्काल अपनी जांच करवा सकेंगे। यूं भी इस संक्रमण के बारे में सभी को पता है। संक्रमित होना कोई लज्जाजनक स्थिति नहीं है। कोई भी व्यक्ति कभी भी स्वयं संक्रमित नहीं होना चाहेगा। अतः सभी को कोरोना संक्रमित के प्रति सहानुभूति रहती है और रहेगी। संक्रमण के प्रति समय रहते अलर्ट होने की दिशा में नाम छिपाने की गाईडलाईन पर जनहित में पुनः विचार किए जाने की आवश्यकता है।
जहां भय का संचार होता है वहां व्यक्ति से गलतियां भी होती हैं। जैसी कि उन तमाम लोगों से हुई जो सीधे कोरोना जांच कराने के बजाए झोलाछाप डाॅक्टर की शरण में गए। निश्चितरूप से उन्हें लगा होगा कि चुपचाप ईलाज करा कर काम चल जाए तो अच्छा है। कोरोना टेस्ट कराने के बाद वे कहीं किसी झमेले में न फंस जाएं। यदि यही सोच रही उनकी तो फिर मानना होगा कि अभी भी अनेक लोग डर के साए में जी रहे हैं और उनमें से कुछ संक्रमित भी पाए जा सकते हैं। यही स्थिति संक्रमण को रोकने के बजाए निरंतर बढ़ा रही है। जैसे भय के कारण पार्षद ने अपने परिवार सहित मोहल्ला बदल लिया। यदि वह या उसके परिवार का एक भी सदस्य संक्रमित हो चुका होगा तो वह कितने ही मोहल्ले बदल ले, संकट से बच नहीं सकता है। अतः जरूरी है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने मोहल्ले, अपने घर में साहस से डटा रहे और अपने डर पर काबू रखे। वह कहावत है न कि-‘‘डर के आगे जीत है’’। तो, हम सभी अपने डर पर काबू पाएं, कोरोना के विरुद्ध सुरक्षा नियमों का पालन करें तो जल्दी ही संक्रमितों का यह आंकड़ा सौ से वापस शून्य पर पहुंच सकेगा।
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(दैनिक सागर दिनकर में 27.05.2020 को प्रकाशित)
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