Thursday, May 28, 2020

इम्तिहां और भी हैं ....कोरोना की कबड्डी उस पर टिड्डी - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह


Dr (Miss) Sharad Singh
इम्तिहां और भी हैं ....
कोरोना की कबड्डी उस पर टिड्डी
         - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
 #दैनिक_जागरण में प्रकाशित मेरा यह लेख बढ़ते संकटों पर ... आप भी पढ़िए...
हार्दिक आभार "दैनिक जागरण"🙏
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इम्तिहां और भी हैं ....
कोरोना की कबड्डी उस पर टिड्डी
  - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
           जब भी लगता है कि हालात से समझौता करना हमें आ गया है उसी दौरान एक न एक नया संकट खड़ा हो जाता है। कोरोना वायरस की कबड्डी चल ही रही थी कि टिड्डी दल आ धमका। खेत के खेत चट कर जाने वाले टिड्डी दल के कहर से बुंदेलखंड भी नहीं बचा। वह तो गनीमत है कि ग्रामीण और किसान अपने स्तर पर पहले से ही तैयार थे इस संकट से जूझने के लिए। इसलिए फिलहाल उतने बड़े पैमाने पर नुकसान नहीं हुआ जितने की आशंका थी। ग्रामीणों और किसानों ने शोर मचा कर, धुंआ कर टिड्डी दल को अपने इलाके से निकालने में सफलता पाई। यद्यपि यह कहा जा रहा है कि पाकिस्तान भारत के सीमाक्षेत्र में टिड्डियों की ब्रीडिंग कर रहा है। अर्थात् यह संकट फिर आएगा। उधर बुहान की ‘बेटलेडी’ कहलाने वाली वैज्ञानिक का कहना है कोरोना से भी अधिक भयानक वायरस का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा लगता है कि देश के दोनों पड़ोसियों ने तय कर लिया है कि भारतीयों को चैन से नहीं रहने देना है। एक कोरोना भेज रहा है तो दूसरा टिड्डियां। और हमारे यहां दशा यह है कि लगभग चार माह से सैनेटाईज़र का उपयोग करते रहने के बाद अनुसंधान का कथित परिणाम बताया जाता है कि चालीस दिन तक लगातार सैनेटाईज़र उपयोग करने से शरीर को नुकसान पहुंचता है। इतना ही नहीं इस कोरोनाकाल में अनेक घटनाएं ऐसी हुईं जिनमें सीधे मनुष्यों पर सैनेटाईज़र का छिड़काव कर दिया गया। अभी हाल ही में एक कंटेनमेंट एरिया में स्त्रियों और बच्चों पर सैनेटाईज़र का स्प्रे कर दिया गया जिससे उन्हें आंखों और शरीर में जलन होने लगी। गोया टिड्डियों से निपटने के लिए स्प्रे नहीं है लेकिन मनुष्यों पर इस्तेमाल करने के लिए हानिकारक स्प्रे है।
Dainik Jagaran, Article of Dr (Miss) Sharad Singh, 28.05.2020
.     इसी वर्ष जनवरी के अंतिम सप्ताह में यह सूचना जारी की गई थी कि भारत में केरल में कोरोना वायरस का पहला मरीज मिला है। वह मरीज चीन के वुहान प्रांत में मेडिकल स्टूडेंट था और वहां से अन्य भारतीयों के साथ वापस भारत लाया गया था। पहले मरीज पाए जाने की यह घटना वर्षों पुरानी प्रतीत होती है क्योंकि तब से अब तक लगभग चार माह में कोरोना के आतंक के अनेक रंग सभी लोग देख चुके हैं। कोरोना ने बीमार किया, कोरोना ने क्वारंटाईन कराया, कोरोना ने लाॅकडाउन कराया, कोरोना ने मौत दी और कोरोना ने हजारों मजदूरों को बेघर, बेरोजगार बना दिया। कोरोना ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी। बुंदेलखंड ने भी यह सब झेला है और आज भी झेल रहा है। बुंदेलखंड देश का वह इलाका है जो हमेशा विकास की बाट जोहता रहता है। यहां बड़े उद्योगों का अभाव है। यहां बड़ी मंडी का अभाव है। यहां शिक्षा का स्तर अभी भी पिछड़ा हुआ है। यहां जलप्रबंधन की समुचित व्यवस्था नहीं है। यहां के मजदूर किसान पलायन के लिए विवश रहते हैं। विगत वर्षों में सैंकड़ों छोटे किसानों ने अपनी खेती गंवाई और मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गए। अपने क्षेत्र में काम की कमी के कारण उन्होंने महानगरों का रूख किया। मगर कोरोना संकट ने उनके लिए वह संकट खड़ा किया जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। वे सारे प्रतिष्ठान, मिल, कारखाने आदि बंद हो गए जहां वे काम करते थे, वे सड़कें आॅटो, टैक्सी से खाली करा ली गईं जहां वे आॅटो, टैक्सी चला कर आजीविका कमाते थे। काम नहीं तो दाम नहीं। और दाम नहीं तो सिर पर छत नहीं। एक झटके में वे सारे श्रमिक मजदूर, कामगार हर चीज से बेदखल हो गए जो प्रवासी थे। जी हां, वे प्रवासी ही थे क्यों कि वे काम के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान भटकते थे। वे उन शहरों के निवासी नहीं थे। वहां उनका अपना घर नहीं था, अपनी पक्की रोज़ी नहीं थी। इसीलिए जब उन्हें महानगरों से बाहर धकेला गया तो वे अपने गांवों की ओर वापस चल पड़े। पैदल, सायकिल में, आॅटो में, पशुओं की भांति ट्रकों में। कहीं तो ठिकाना चाहिए था उन्हें।

बुंदेलखंड में भी सैंकड़ों मजदूर, कामगार वापस लौट आए हैं। निजी संस्थाओं और जनसेवकों ने उन्हें जिन्दा रहने के लिए दाना-पानी दिया, सहारा दिया। सरकार उन्हें मनरेगा के अंतर्गत काम दे रही है। 45 डिग्री की तपती धूप में सड़क बनाने, तालाब खोदने जैसा जीवट काम। पेट सब कुछ करा देता है। अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए जी तोड़ मेहनत करने में 45 डिग्री की धूप उन्हें डरा नहीं सकती है। बुंदेलखंड का हरेक प्रवासी मज़दूर अपने कटु अनुभवों के आधार पर यही कहता है कि वह अब कभी उन महानगरों में काम करने वापस नहीं जाएगा। उनका यह निश्चय उन्हें हौसला दे रहा है 45 डिग्री की जलती गरमी में। उस पर एक फूहड़ मैसेज व्हाट्सएप्प पर वायरल किया गया था जिसमें कुछ इस तरह की बातें थीं कि ‘अब मज़दूर मज़दूर बहुत हो गया। मजदूर तो अपने घर पहुंच ही जाएंगे और उन्हें मनरेगा के पैसे मिलेंगे और वे आराम से रहेंगे।’ आदि-आदि इसी तरह की ऊटपटांग शब्दावली थी। इस मैसेज को जिसने बनाया और जिन्होंने मुस्तैदी से फार्वर्ड किया उन्हें मानसिक बीमार ही कहा जा सकता है। वरना ऐसे मैसेज के पक्षधरों को 45 डिग्री के तापमान में काम कराना तो दूर, मात्र दिन भर खड़ा रख कर मनरेगा से दूने पैसे भी दिए जाएं तो वे मनरेगा और मैसेज सब कुछ भूल जाएंगे। 

जब स्थिति संकटों से घिरी हुई हो यानी पहले कोरोना और अब टिड्डी दल, तो हौसला ही उबार सकता है सारे संकट से। यह हौसला विवेक और आपसी सद्भावनापूर्ण विचार तथा व्यवहार से ही पैदा होगा। यह भ्रमित होने का समय नहीं वरन् हर तरह की परीक्षाओं में पास होने का समय है। अगर शायर अल्लामा इकबाल इस दौर में भारत में होते तो यही कहते- 
मुसीबत से आगे जहां और भी हैं 
अभी तो कई  इम्तिहां और भी हैं 
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(दैनिक जागरण में 28.05.2020 को प्रकाशित)
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