Sunday, February 6, 2022

श्रद्धांजलि | आज ज्योति कलश नहीं, छलक रहे हैं आंसू | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

स्वर साम्रज्ञी लता मंगेशकर जी को मे री विनम्र श्रद्धांजलि "युवा प्रवर्तक" पर...
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श्रद्धांजलि
आज ज्योति कलश नहीं, छलक रहे हैं आंसू
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
      "यदि लता जी को सुरों की अपदस्थ अप्सरा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। वे स्वरों की वह अप्सरा थीं जिन्हें स्वर्ग से पृथ्वी पर भेज दिया गया था ताकि वे पृथ्वीवासियों विशेष रूप से भारतवासियों को सुरों से परिचित करा सकें।"

यह अतिशयोक्ति नहीं है कि हर भारतीय को संगीत के संस्कार अगर किसी से मिले हैं तो उनमें अग्रणी नाम है  लता मंगेशकरजी का । लता जी के स्वर के द्वारा सबने जाना कि संगीत की मधुरता और संगीत का उतार-चढ़ाव क्या होता है। बिना संगीत शिक्षा लिए भी हर भारतीय ने संगीत का ज्ञान अर्जित किया और उसका श्रेय महिला स्वरों में लता मंगेशकर जी को ही दिया जा सकता है। मैंने भी अपने बचपन से ही लता जी के गाने सुने, उन्हें दोहराने  का प्रयास किया और उस पर अपने नन्हे पैरों से थिरकी भी| 
    मुझे याद है कि हमारे महिला समिति शिशुमंदिर स्कूल में वार्षिकोत्सव होने वाला था। मैं उस समय तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। मेरी शिक्षिका ने मुझे लता जी के गाने - 
"राधा न बोले, न बोले, न बोले रे, 
घूंघट के पट ना खोले रे 
राधा ना बोले, ना बोले, ना बोले रे ..."
पर नृत्य अभ्यास कराया। जबकि वर्षा दीदी ने लता जी का क्लासिकल गाने "ज्योति कलश छलके" का अभ्यास किया। मेरी दीदी वर्षा सिंह जी का स्वर बहुत मधुर था। उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी लेकिन लता जी के गाने गा-गा कर उन्हें स्वरों के उतार-चढ़ाव का अच्छा ज्ञान हो गया था। मंच पर नृत्य प्रस्तुत करते समय मैं तो एकाध स्टेप भूल गई थी लेकिन वर्षा दीदी ने बिना भूलचूक गाना गाया और प्रथम स्थान पाया। आज वर्षा दीदी होतीं तो उनकी आंखों से भी आंसू छलक पड़ते।
     मैंने भी अपने कच्चे स्वर से लता मंगेशकर जी के न जाने कितने गाने गाए और गुनगुनाए हैं, हर भारतीय की तरह। उनके स्वर के बिना कभी बॉलीवुड के संगीत संसार की कल्पना ही नहीं की। समय के साथ फ़िल्म संगीत की दुनिया में नए स्वर जुड़ते गए लेकिन लता जी का स्थान अक्षुण्ण रहा, फ़िल्म संगीत संसार में भी और दिलों में भी। लता जी ने कभी कोई गाना सिर्फ़ गले से नहीं गाया वरन दिल से गाया। तभी तो जब आज यह गाना सुनाई देता है -"ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं, हम क्या करें..", तो दिल में हूक-सी उठती है और आंखें भर आती हैं। इस गाने को उन्होंने मोहम्मद रफ़ी साहब के साथ गाया था और अपने स्वर से इसमें इतनी संवेदना भर दी कि आज भी यह मन को आंदोलित करने की क्षमता रखता है।
      लता मंगेशकर जी की यह खूबी थी कि वे गीत के मर्म और नायिका की आयु के साथ बेहतरीन तालमेल बिठा लेती थीं। उनके गानों को जब आशा पारेख या वहीदा रहमान पर फिल्माया जाता था तो ऐसा लगता था जैसे आशा पारेख या वहीदा रहमान गा रही होंं, वहीं जब उन्होंने अपनी किशोर आयु की भांजी पद्मिनी कोल्हापुरे के लिए "ये गलियां ये चौबारा, यहां आना ना दोबारा' गाना गाया तो ऐसा लगा कि जैसे पद्मिनी कोल्हापुरे ही गा रही हो। यानी स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी के लिए "जेनरेशन गैप" जैसा कुछ नहीं था, वे अपने स्वरों को नायिका के उम्र के अनुरूप ढालने की अद्भुत क्षमता रखती थीं। ऐसी विलक्षण क्षमता प्रायः देखने को नहीं मिलती है। यदि लता जी को सुरों की अपदस्थ अप्सरा कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा। वे स्वरों की वह अप्सरा थीं जिन्हें स्वर्ग से पृथ्वी पर भेज दिया गया था ताकि वे पृथ्वीवासियों विशेष रूप से भारतवासियों को सुरों से परिचित करा सकें।
       आज 06 जनवरी 2022 को लता मंगेशकर जी ने हमने विदा ले ली और स्वर्ग लौट गईं लेकिन वे अपने स्वर के रूप में हमारे साथ, हमारे दिलों में रहेंगी। विदा लता जी !!!
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