चर्चा प्लस
गौ माता और हमारी संवेदनाएं
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
गायों की मौत पर जांच होगी। तथ्य सामने आएंगे। दोषियों को सज़ा मिलेगी। राजनीतिक चश्में आंखों पर लगा कर भी बहसें हो रही हैं। लेकिन इन सबके बीच हमें अपने गिरेबां में भी झांक लेना चाहिए कि अपनी गौमाता की हम कितनी चिंता करते हैं? हमें स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या गौमाता पालतू पशु है या आवारा पशु है? यदि पालतू पशु है तो वह सड़कों, चौराहों, गलियों में क्यों घूमती दिखती है? कौन हैं उनके पालक जिन्होंने उन्हें अनुपयोगी जानकर सड़कों पर छोड़ दिया? हमने गौमाता को एक ऐसा भिखारी बना दिया है जो हमारे घर के दरवाज़े पर रोटी मांगने आती है। हम उसे रोटी एक-दो रोटी बासी खिला कर पुण्य कमाने के आनंद में डूबे रहते हैं।
माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभिः।
प्रनु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामादितिं विधिष्ट ।।
गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदितिपुत्रों की बहन और घृत रूप अमृत का भंडार है। अतः प्रत्येक विचारशील पुरुष को समझना चाहिए कि निरपराध एवं अवध्य गौ का वध न करें। यही तो कहा गया है वेदों में। हम संस्कृति के पुजारी हैं, पालक हैं और संवाहक हैं फिर गायों को ले कर कहां चला जाता है हमारा दायित्व बोध? हमारे मानस में छवि है उस कृष्ण की जो गौपालक थे। बाल्यावस्था से ही गाय चराते थे। उनके साथ जंगल में जाते थे और उन्हें सुख पहुंचाने के लिए बांसुरी बजाते थे। कवि सूरदास ने अपने कवित्त में इस दृश्य का सुंदर वर्णन किया है-
धनि यह बृंदावन की रेनु।
नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु।।
मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैनु।
चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु।।
इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनि के ऐनु।
सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पबृच्छ सुरधेनु।।
किंतु हमारे सांस्कृतिक मूल्य और गायों के प्रति हमारे दायित्वबोध की उस समय धज्जियां उड़ गईं जब यह घटना सामने आई कि भोपाल के बैरसिया के बसई गांव की गौसेवा भारती गौशाला में 100 से अधिक गायों की दर्दनाक ढंग से मौत हो गई है। जब पत्रकारों की एक टीम गौशाला पहुंची तो वहां उन्होंने 500 से अधिक गायों को ठंड में कंपकंपाते पाया। इन सभी को खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया गया था। उनके लिए शेड तक की व्यवस्था नहीं थीं। गायों के खाने के लिए भूसा और पानी तक की व्यवस्था नहीं थी। जिस जगह चारा डाला जाता है, वहां मिट्टी जमी हुई थी। रात करीब डेढ़ बजे एक गाय उस पत्रकार दल के सामने ही लड़खड़ाकर गिर गई। करीब 10 मिनट बाद उसने दम तोड़ दिया। यह दृश्य देख कर पत्रकार दल भी सकते में आ गया। गौशाला के सूखे कुए में अनेक गायों के शव मिले। ट्रॉली भरकर गायों की हड्डियां गौशाला से निकाली गईं।
भोपाल के बैरसिया में भाजपा नेता निर्मला देवी शांडिल्य की गौशाला में रविवार को कुएं में 20 गायों के शव, वहीं मैदान में 80 से ज्यादा गायों के शव और कंकाल पड़े मिले थे। इसके बाद पुलिस ने गौशाला संचालक निर्मला देवी पर केस दर्ज किया। वहीं प्रशासन ने गौशाला का संचालन अपने हाथ में ले लिया। निर्मला देवी 20 साल से गौशाला का संचालन कर रही हैं। बैरसिया की यह गौशाला सरकारी जमीन पर है। करीब 10 एकड़ जमीन पर कब्जा किया गया है। यहां तार फेंसिंग कर बाड़ा बनाया गया है। आसपास के गांवों के किसान मवेशियों को गौशाला में छोड़ जाते हैं। मवेशी की सेवा के लिए किसान 100-200 रुपए का अनुदान देते हैं। पत्रकारों के पूछने पर एक गैरजिम्मेदाराना बयान गौशाला की संचालक निर्मला देवी के द्वारा दिया गया कि ‘‘एक गाय की सेवा के लिए प्रशासन से डेढ़ रुपए मिलता है। वह भी दो-तीन साल में। ऐसे में इतने कम पैसे में गाय की सेवा करना मुमकिन नहीं। फिर भी मैं अपने स्तर पर गायों की सेवा कर रही हूं।’’ वहीं रात में गायों को खुले आसमान के नीचे रखने पर उन्होंने कहा, ‘‘प्रशासन ने गायों को बाहर रखा है। मैंने गायों के लिए पन्नी लगाकर उनके रहने की व्यवस्था बनाई थी, जिसे प्रशासन ने निकाल दिया।’’
गौशाला में गायों के लिए खाना नहीं होने पर उन्होंने कहा कि वे हर रोज भूसा मंगाती हैं। निर्मला देवी ने हंसते हुए पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘‘मैं भाजपा की नेता हूं। 30 साल से सक्रिय कार्यकर्ता रही हूं। भाजपा से ब्लॉक अध्यक्ष रही हूं। मंडी सदस्य भी रही हूं। पहले मंडी वाली और अब गौशाला वाली मैडम के नाम से जानी जाती हूं। ठंड के कारण 3-4 गायें मर गई हैं। हम कितना ध्यान दें। पन्नी (पॉलीथिन) के कारण मौत हो जाती हैं। मैं बुजुर्ग महिला हूं। मुझे परेशान किया जा रहा है। जो आरोप लगा रहे हैं, वो हमारे विरोधी हैं। हमारे पास 400 गायें हैं। अधिकतर गायें किसानों की हैं।’’
ठंड और भूख से सौ गायों की मौत पर कोई गौशाला की संचालक कैसे हंस कर बात कर सकता है? संचालक निर्मला देवी का हंसता हुआ वीडियो वायरल हो गया। जिसने भी देखा वह इस असंवेदना पर चकित रह गया। उधर सिलसिला यहीं नहीं थमा। गायों की मौत के बाद प्रशासन ने गौशाला का अधिकार अपने हाथ में ले लिया, लेकिन देख-रेख के लिए तुरंत अमला तैनात नहीं किया। गायें भूख-प्यास से तड़पती रहीं। उन्हें देखने वाला कोई नहीं था। कई गायें भोजन के लिए गौशाला से निकलकर तालाब की तरफ घूमती रहीं। इस दौरान उन्हें रोकने वाला भी कोई नहीं था। इधर कुत्तों के झुंड ने गायों पर हमला भी कर दिया। गौशाला की सुरक्षा में तैनात पुलिस बल ने पत्रकारों को बताया कि रात करीब 10 बजे प्रशासन ने गायों के लिए 1 ट्रक भूसा भेजा, लेकिन वह गायों को दिया ही नहीं गया। भूसा ट्रक पर ही लदा रहा, क्योंकि प्रशासन ने गायों की देखरेख के लिए किसी की ड्यूटी नहीं लगाई थी। यानी गायें भूख से छटपटा रही थीं, भूखा ट्रक में मौजूद था और किसी की ड्यूटी लगाए जाने की प्रतीक्षा की जा रही थी।
बात सरकारी व्यवस्थाओं की जाए तो मध्य प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री गौसेवा योजना शुरू की और इस योजना में 960 गौशालाओं का निर्माण किया जा चुका है। इस पर कुल 256.77 करोड़ रुपए खर्च किए गए। प्रदेश सरकार प्रति गाय 20 रुपए खर्च कर रही है. चालू साल 2021-22 में कुल 81 करोड़ खर्च किए गए। वैसे मध्यप्रदेश में 2200 गौशालाएं सक्रिय हैं। इनमें से 1587 गौशालाएं सरकार चलाती है। इन गौशालाओं में 2 लाख 55 हजार गौवंश पल रहा है। प्राइवेट संस्थाएं 627 गौशाला चला रही हैं। इनमें 1,73,874 गौवंश का पालन किया जा रहा है।
गौशाला में गायों की मौत पर कई सवाल उठने ही थे कि शासन बैरसिया की इस गौशाला के लिए कितना पैसा दे रही थी और उस पैसे का उपयोग गायों की जीवन रक्षा के लिए क्यों नहीं किया गया? ऐसे बहुत से प्रश्न हैं जिनकी जांच होगी। तथ्य सामने आएंगे। दोषियों को सज़ा मिलेगी। राजनीतिक चश्में आंखों पर लगा कर भी बहसें हो रही हैं और होती रहेंगी। लेकिन इन सबके बीच हमें अपने गिरेबां में भी झांक लेना चाहिए कि अपनी गौमाता की हम कितनी चिंता करते हैं? हमें स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि क्या गौमाता पालतू पशु है या आवारा पशु है? यदि पालतू पशु है तो वह सड़कों, चौराहों, गलियों में क्यों घूमती दिखती है? कौन हैं उनके पालक जिन्होंने उन्हें अनुपयोगी जानकर सड़कों पर छोड़ दिया? हमने गौमाता को एक ऐसा भिखारी बना दिया है जो हमारे घर के दरवाज़े पर रोटी मांगने आती है। हम उसे एक-दो रोटी बासी खिला कर पुण्य कमाने के आनंद में डूबे रहते हैं। क्या मात्र इतना ही दायित्व है हमारा, हमारी गौमाता के प्रति कि वह तो हमें हमारे मरने के बाद वैतरणी पार कराने की व्यवस्था कर दे लेकिन हम उसे जीते जी भरपेट खाना और रहने को शेड भी न दें? वस्तुतः इस घटना के बाद शासन, प्रशासन से साथ हम नागरिकों को भी आत्मावलोकन करने की ज़रूरत है। यदि हम गौमाता को ले कर वास्तविकता में संवेदनशील रहें तो ऐसी घटनाएं आकार ही नहीं ले सकेंगी।
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बेहद अफ़सोसजनक घटना है यह, पशुओं के प्रति मानव की हृदयहीनता की एक और मिसाल
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